प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 05 Jun, 2021
  • 53 min read
शासन व्यवस्था

SDG इंडिया इंडेक्स: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

SDG इंडिया इंडेक्स, नीति आयोग

मेन्स के लिये:

SDG इंडिया इंडेक्स एवं इससे संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग द्वारा सतत् विकास लक्ष्य (SDG) इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड 2020-21 का तीसरा संस्करण जारी किया गया।

  • SDG इंडिया इंडेक्स 2020-21 भारत में संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से विकसित किया गया है।

Kerala-Index

प्रमुख बिंदु:

  • नीति आयोग ने डेटा-संचालित मूल्यांकन के माध्यम से SDGs के संबंध में देश की प्रगति की निगरानी के लिये और उसे प्राप्त करने में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच प्रतिस्पर्द्धात्मक भावना को बढ़ावा देने हेतु वर्ष  2018 में अपना सूचकांक लॉन्च किया।
  • नीति आयोग के पास देश में SDGs को अपनाने और उनकी निगरानी करने तथा राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के बीच प्रतिस्पर्द्धी और सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने का दोहरा अधिकार है।
    • यह सूचकांक एजेंडा 2030 के तहत वैश्विक लक्ष्यों की व्यापक प्रकृति की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जबकि यह राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से जुड़ा हुआ है।
    • वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सतत् विकास हेतु एजेंडा 2030 अपनाया।
    • यह 17 SDGs सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को पूरा करने और कुछ अधिक दबाव वाली चुनौतियों से निपटने के लिये साहसिक प्रतिबद्धता है।
  • SDG इंडिया इंडेक्स 2020-21 एक ऑनलाइन डैशबोर्ड पर भी लाइव है, जिसकी नीतिगत, नागरिक समाज, व्यवसाय और शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक प्रासंगिकता है।

क्रियाविधि:

  • SDG इंडिया इंडेक्स प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश के लिये 16 SDGs पर लक्ष्यवार स्कोर की गणना करता है।
  • ये स्कोर 0-100 के बीच होते हैं और यदि कोई राज्य/केंद्रशासित क्षेत्र 100 का स्कोर प्राप्त करता है तो यह दर्शाता है कि उसने वर्ष 2030 के अनुसार लक्ष्य हासिल कर लिये हैं।
    • किसी राज्य/संघराज्य क्षेत्र का स्कोर जितना अधिक होगा, लक्ष्य की प्राप्ति की दूरी उतनी ही अधिक होगी।
  • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उनके एसडीजी इंडिया इंडेक्स स्कोर के आधार पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है: एस्पिरेंट (0-49), परफॉर्मर (50-64), फ्रंट-रनर (65-99), अचीवर (100)।

पिछले संस्करणों के साथ तुलना:

  • राष्ट्रीय संकेतक ढाँचे (NIF) के साथ अधिक संरेखण के साथ लक्ष्यों और संकेतकों के व्यापक कवरेज के कारण SDGs इंडिया इंडेक्स 2020-21 पिछले संस्करणों की तुलना में अधिक मज़बूत है।
  • 115 संकेतक 17 में से 16 SDGs को शामिल करते हैं, यह 17 SDGs के गुणात्मक मूल्यांकन के साथ 70 SDGs लक्ष्यों को कवर करते हैं।
  • यह सूचकांक के 2018-19 और 2019–20 संस्करणों में एक सुधार है, जिसमें 39 लक्ष्यों और 13 प्रयोजनों के साथ 62 संकेतकों तथा 54 लक्ष्यों एवं 16 प्रयोजनों में 100 संकेतकों का उपयोग किया गया था।

राष्ट्रीय विश्लेषण:

  • देश के समग्र SDG स्कोर में 6 अंकों का सुधार हुआ, यह वर्ष 2019 के 60 से 2020-21 में 66 हो गया।
    • वर्तमान में एस्पिरेंट, अचीवर श्रेणी में कोई राज्य नहीं है; 15 राज्य/केंद्रशासित प्रदेश परफॉर्मर श्रेणी में हैं और 22 राज्य/केंद्रशासित प्रदेश फ्रंट-रनर की श्रेणी में हैं।
  • भारत ने वर्ष 2020 में स्वच्छ ऊर्जा, शहरी विकास और स्वास्थ्य से संबंधित SDGs में महत्त्वपूर्ण सुधार देखा। हालाँकि उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढाँचे के साथ-साथ अच्छे काम और आर्थिक विकास के क्षेत्रों में बड़ी गिरावट आई है।

राज्यवार प्रदर्शन:

  • केरल ने सूचकांक के तीसरे संस्करण में 75 के स्कोर के साथ रैंकिंग में शीर्ष पर अपना स्थान बरकरार रखा, उसके बाद तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश दोनों ने 72 स्कोर किया।
  • बिहार, झारखंड और असम सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य थे। हालाँकि सभी राज्यों ने पिछले वर्ष के स्कोर में कुछ सुधार दिखाया, जिसमें मिज़ोरम और हरियाणा ने सबसे अधिक सुधार किया।

Sustainable-Development

स्रोत-पीआइबी


भूगोल

देविका नदी परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

देविका नदी परियोजना, देविका नदी, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना तथा इसके तहत नदियों में प्रदूषण को रोकने हेतु किये गए उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास राज्य मंत्री द्वारा उधमपुर, जम्मू-कश्मीर में देविका नदी परियोजना के लिये सुझाव आमंत्रित किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु

परियोजना के विषय में:

  • इस परियोजना की लागत 190 करोड़ रुपए है।
  • मार्च 2019 में, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (National River Conservation Plan-NRCP) के अंतर्गत इस परियोजना पर काम शुरू किया गया था। 
  • परियोजना के अंतर्गत देविका नदी के किनारे स्नान "घाट" (स्थल) विकसित किए जाएंगे, अतिक्रमण हटाया जाएगा, प्राकृतिक जल निकायों को पुन: स्थापित किया जाएगा और श्मशान भूमि के साथ-साथ जलग्रहण क्षेत्र भी विकसित किये जाएंगे।
  • इस परियोजना में तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, 129.27 किमी का सीवरेज़ नेटवर्क, दो श्मशान घाटों का विकास, सुरक्षा बाड़ और लैंडस्केपिंग, छोटे जल विद्युत संयंत्र तथा तीन सौर ऊर्जा संयंत्र शामिल किये गए हैं।
  •  परियोजना के पूरा होने के बाद, नदियों के प्रदूषण में कमी आएगी और जल की गुणवत्ता में सुधार होगा।

देविका नदी के बारे में:

  • देविका नदी जम्मू और कश्मीर के उधमपुर ज़िले में पहाड़ी सुध (शुद्ध) महादेव मंदिर से निकलती है और पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान में) की ओर बहती है जहाँ यह रावी नदी में मिल जाती है।
  • नदी का धार्मिक महत्त्व इसलिये है क्योंकि इसे हिंदुओं द्वारा गंगा नदी की बहन के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • जून 2020 में, उधमपुर में देविका पुल का उद्घाटन किया गया। इस पुल के निर्माण का उद्देश्य यातायात की भीड़ से निपटने के अलावा, सेना के काफिले और वाहनों को सुगम मार्ग प्रदान करना भी है।

राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना

परिचय:

  • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (National River Conservation Plan-NRCP) वर्ष 1995 में शुरू की गई एक केंद्रीय वित्तपोषित योजना है जिसका उद्देश्य नदियों में प्रदूषण को रोकना है।
  • नदी संरक्षण से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP) और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (National Ganga River Basin Authority- NGRBA) के तहत लागू किये जा रहे हैं।

NRCP के तहत अंतर्निहित गतिविधियाँ:

  • खुले नालों के द्वारा नदी में बहने वाले कच्चे मल-जल को रोकने तथा शोधन हेतु उसका पथांतर करने के लिये दिशा अवरोधन एवं दिशा परिवर्तन कार्य।
  • पथांतरित वाहित मल-जल का शोधन करने के लिये मल-जल शोधन संयंत्र/सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट। 
  • नदी तटों पर खुले में मलत्याग की रोकथाम के लिये अल्प लागत वाले शौचालय।
  • लकड़ी के प्रयोग को संरक्षित करने के लिये विद्युत शवदाह गृह एवं उन्नत काष्ठ शवदाह गृहों का निर्माण करना तथा जलाऊ घाटों पर लाए गए शवों का उचित दाह-संस्कार सुनिश्चित करना।
  • स्नान घाटों का सुधार जैसे नदी तटाग्र विकास कार्य।
  • जन जागरूकता तथा जन सहभागिता।
  • नदी संरक्षण के क्षेत्र में मानव संसाधन विकास (HRD), क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान।
  • अन्य विविध कार्य जो मानव आबादी के साथ संपर्क सहित स्थान विशिष्ट स्थितियों पर निर्भर करते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चीन का 'कृत्रिम सूर्य' ईएएसटी

प्रिलिम्स के लिये

प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक, नाभिकीय संलयन, नाभिकीय विखंडन, HL-2M टोकामक, टोकामक, इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर, हाइड्रोजन बम

मेन्स के लिये

समावेशी विकास में उन्नत परमाणु संलयन प्रयोगात्मक अनुसंधान की ज़रूरत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन के ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक (Experimental Advanced Superconducting Tokamak- EAST) ने 288 मिलियन डिग्री फारेनहाइट का उच्चतम तापमान हासिल किया, जो सूर्य के तापमान से दस गुना अधिक है।

  • चीन अकेला ऐसा देश नहीं है जिसने उच्च प्लाज्मा तापमान हासिल किया है। वर्ष 2020 में दक्षिण कोरिया के कोरिया सुपरकंडक्टिंग टोकामक एडवांस्ड रिसर्च (Korea Superconducting Tokamak Advanced Research) रिएक्टर ने 20 सेकंड के लिये 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक के प्लाज़्मा तापमान को बनाए रखते हुए एक नया रिकॉर्ड बनाया।

टोकामक 

  • यह संलयन ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिये तैयार की गई एक प्रायोगिक मशीन है।
  • इसके अंदर परमाणुओं के संलयन से उत्पादित ऊर्जा को एक विशाल बर्तन में ऊष्मा के रूप में अवशोषित किया जाता है।
  • संलयन बिजली संयंत्र (Fusion Power Plant) पारंपरिक बिजली संयंत्र की तरह इस गर्मी का उपयोग भाप और फिर टर्बाइन तथा जनरेटर के माध्यम से बिजली पैदा करने के लिये करता है।

प्रमुख बिंदु

प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक के विषय में:

  • ईएएसटी रिएक्टर चीन के हेफेई में चीनी विज्ञान अकादमी के प्लाज़्मा भौतिकी संस्थान (ASIPP) में स्थित एक उन्नत परमाणु संलयन प्रयोगात्मक अनुसंधान उपकरण है।

स्थापना:

  • ईएएसटी को पहली बार वर्ष 2006 में आरंभ किया गया था।

उद्देश्य:

  • इस कृत्रिम सूर्य का उद्देश्य परमाणु संलयन की प्रक्रिया को दोहराना है, यह वही प्रतिक्रिया है जो सूर्य को शक्ति प्रदान करती है।
  • यह इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor) सुविधा का हिस्सा है, जो वर्ष 2035 में चालू होने के बाद विश्व का सबसे बड़ा परमाणु संलयन रिएक्टर बन जाएगा।
    • आईटीईआर के सदस्यों में चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, कोरिया, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

कार्यचालन:

  • यह परमाणु संलयन प्रक्रिया पर आधारित है जो सूर्य और अन्य तारों द्वारा की जाती है।
  • परमाणु संलयन करने के लिये हाइड्रोजन के परमाणुओं पर अत्यधिक ताप और दबाव डाला जाता है ताकि वे एक साथ जुड़ जाए। हाइड्रोजन में पाए जाने वाले ड्यूटेरियम और ट्रिटियम दोनों के नाभिक एक साथ मिलकर एक हीलियम नाभिक और एक न्यूट्रॉन के साथ ऊर्जा का निर्माण करते हैं।
  • गैसीय हाइड्रोजन ईंधन को 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान पर गर्म किया जाता है ताकि यह उप-परमाणु कणों का एक गर्म प्लाज़्मा (विद्युत चार्ज गैस) बना सके।
  • एक मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र की मदद से प्लाज़्मा को रिएक्टर की दीवारों से दूर रखा जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह ठंडा न हो और बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता कम हो जाए।

चीन में अन्य टोकामक:

  • ईएएसटी के अलावा चीन वर्तमान में HL-2A रिएक्टर के साथ-साथ J-TEXT का भी संचालन कर रहा है।
  • HL-2M टोकामक चीन के सबसे बड़े और सबसे उन्नत परमाणु संलयन प्रायोगिक अनुसंधान उपकरण को दिसंबर 2020 में पहली बार सफलतापूर्वक संचालित किया गया था। यह चीन की परमाणु ऊर्जा अनुसंधान क्षमताओं के विकास में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

महत्त्व:

  • यह चीन के हरित विकास (Green Development) के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • नाभिकीय संलयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बड़ी मात्रा में अपशिष्ट उत्पन्न किये बिना उच्च स्तर की ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। परमाणु विखंडन के विपरीत संलयन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है और इसे कम जोखिम के साथ एक सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है।

परमाणु अभिक्रियाएँ

विवरण:

  • एक परमाणु अभिक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें दो नाभिक अथवा एक नाभिक और एक बाह्य उप-परमाणु कण एक या अधिक नए न्यूक्लाइड का उत्पादन करने के लिये आपस में टकराते हैं।
  • इस प्रकार एक परमाणु अभिक्रिया में कम-से-कम एक न्यूक्लाइड का दूसरे में परिवर्तन होना चाहिये।

प्रकार:

  • नाभिकीय विखंडन:
    • इस प्रक्रिया में एक परमाणु नाभिक दो संतति नाभिकों (Daughter Nuclei) में विभाजित होता है।
    • यह विभाजन रेडियोधर्मी क्षय द्वारा सहज प्राकृतिक रूप से या प्रयोगशाला में आवश्यक परिस्थितियों (न्यूट्रॉन, अल्फा आदि कणों की बमबारी करके) की उपस्थिति में किया जा सकता है।
    • विखंडन से प्राप्त हुए खंडों/अंशों का एक संयुक्त द्रव्यमान होता है जो मूल परमाणु से कम होता है। द्रव्यमान में हुई यह क्षति सामान्यतः परमाणु ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
    • वर्तमान में सभी वाणिज्यिक परमाणु रिएक्टर नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित हैं।
  • नाभिकीय संलयन:
    • नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया को दो हल्के परमाणुओं के संयोजन से एक भारी परमाणु नाभिक के निर्माण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • इस तरह की नाभिकीय संलयन प्रतिक्रियाएँ सूर्य और अन्य तारों में ऊर्जा का स्रोत होती हैं।
    • इस प्रक्रिया में नाभिक को संलयित करने के लिये अधिक मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया के लिये कई मिलियन डिग्री तापमान तथा कई मिलियन पास्कल दाब वाली परिस्थिति आवश्यक होती है।
      • हाइड्रोजन बम (Hydrogen Bomb) का निर्माण एक तापनाभिकीय संलयन (Thermonuclear Fusion) अभिक्रिया पर आधारित है। हालांँकि प्रारंभिक ऊर्जा प्रदान करने के लिये  हाइड्रोजन बम के मूल में यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन पर आधारित एक परमाणु बम को स्थापित किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

CEM- इंडस्ट्रियल डीप डीकार्बनाइजेशन इनिशिएटिव

प्रीलिम्स के लिये

क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल, इंडस्ट्रियल डीप डीकार्बनाइज़ेशन इनिशिएटिव, संयुक्त राष्ट्र विकास औद्योगिक संगठन के बारे में तथ्यात्मक जानकारी

मेन्स के लिये 

क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल का परिचय तथा स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के संदर्भ में इसकी उपयोगिता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और यूनाइटेड किंगडम ने संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (United Nations Industrial Development Organization- UNIDO) द्वारा समन्वित क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल (Clean Energy Ministerial's- CEM), इंडस्ट्रियल डीप डीकार्बोनाइज़ेशन इनिशिएटिव (Industrial Deep Decarbonization Initiative- IDDI) के तहत औद्योगिक ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये एक नया वर्कस्ट्रीम (Workstream) शुरू किया है।

  • इसे 12वीं CEM (CEM12) बैठक में लॉन्च किया गया था, जिसकी मेज़बानी वस्तुतः चिली द्वारा की गई।

प्रमुख बिंदु

12वीं CEM बैठक के बारे में:

  • इसका उद्देश्य हरित प्रौद्योगिकियों को लागू करना और कम कार्बन वाली औद्योगिक सामग्री की मांग को प्रोत्साहित करना है।
  • भारत वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई उत्सर्जन सघनता को 33 से 35% तक कम करने के लिये प्रतिबद्ध है (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान)।
  • यह संकल्प लौह व इस्पात, सीमेंट और पेट्रो-रसायन जैसे ऊर्जा आधारित क्षेत्रों में कम कार्बन उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों के कारगर विकास द्वारा पूरा किया जाएगा।
  • सरकारी नीतियों के परिणामस्वरूप AgDSM (कृषि मांग पक्ष प्रबंधन कार्यक्रम), MuDSM (नगरपालिका मांग पक्ष प्रबंधन) आदि जैसे मांग पक्ष में ऊर्जा की पर्याप्त बचत दर्ज की गई है।

क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल (CEM) के बारे में:

  • स्थापना: 
    • इसे दिसंबर 2009 में कोपेनहेगन में पार्टियों के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन में स्थापित किया गया था।
    • 2016 में सातवें क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल में अपनाई गई स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय रूपरेखा CEM शासन संरचना को परिभाषित करती है और मिशन वक्तव्य, उद्देश्यों, सदस्यता और मार्गदर्शक सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार करती है।
  • उद्देश्य:
    • CEM स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने वाली नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ावा देने, सीखे गए सबक और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने तथा वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था में संक्रमण को प्रोत्साहित करने के लिये एक उच्च स्तरीय वैश्विक मंच है।
    • केंद्र-बिंदु के क्षेत्र: CEM तीन वैश्विक जलवायु और ऊर्जा नीति लक्ष्यों पर केंद्रित है:
    • विश्व भर में ऊर्जा दक्षता में सुधार।
    • स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति में वृद्धि।
    • स्वच्छ ऊर्जा पहुँच का विस्तार करना।
  • सदस्य:
    • 29 देश CEM का हिस्सा हैं।
    • भारत भी एक सदस्य देश है।
  • 11वाँ क्लीन एनर्जी मिनिस्ट्रियल:
    • CEM11 को वर्ष 2020 में सऊदी अरब के राज्य (Kingdom of Saudi Arabia) द्वारा आयोजित किया गया था, जिसे एक संकटपूर्ण स्थिति (Critical Moment) में तीव्र, स्थायी पुनर्प्राप्ति में स्वच्छ ऊर्जा की भूमिका और अगले स्वच्छ ऊर्जा दशक को आकार देने में CEM समुदाय की भूमिका पर विचार करने के लिये आयोजित किया गया था।

इंडस्ट्रियल डीप डीकार्बोनाइजेशन इनिशिएटिव (IDDI):

  • इंडस्ट्रियल डीप डीकार्बोनाइज़ेशन इनिशिएटिव के बारे में:
    • IDDI, CEM की एक पहल है।
    • यह सार्वजनिक और निजी संगठनों का एक वैश्विक गठबंधन है जो कम कार्बन औद्योगिक सामग्री की मांग को प्रोत्साहित करने के लिये काम कर रहा है।
    • राष्ट्रीय सरकारों के सहयोग से IDDI कार्बन आकलन को मानकीकृत करने, महत्त्वाकांक्षी सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के खरीद लक्ष्यों को स्थापित करने, कम कार्बन उत्पाद विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने और उद्योग के दिशा-निर्देशों को डिज़ाइन करने के लिये काम करता है।
  • समर्थन करने वाले देश:
    • UNIDO द्वारा समन्वित IDDI का नेतृत्व UK और भारत द्वारा किया जाता है और वर्तमान सदस्यों में जर्मनी तथा कनाडा शामिल हैं।
  • लक्ष्य:
    • कम कार्बन, स्टील और सीमेंट खरीदने के लिये सरकारों और निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना।
    • मान्य मानकों और लक्ष्यों के लिये डेटा सोर्सिंग और उसे साझा करना।

संयुक्त राष्ट्र विकास औद्योगिक संगठन

संयुक्त राष्ट्र विकास औद्योगिक संगठन के बारे में:

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो गरीबी में कमी लाने, समावेशी वैश्वीकरण और पर्यावरणीय स्थिरता के लिये औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है।

सदस्य:

  • 1 अप्रैल 2019 तक 170 देश UNIDO के सदस्य हैं।
  • भारत भी इसका एक सदस्य देश है।

विचार-विमर्श:

  • सदस्य नियमित रूप से नीति बनाने वाले संगठनों के सत्रों में UNIDO के मार्गदर्शक सिद्धांतों और नीतियों पर चर्चा करते हैं और निर्णय लेते हैं।

मिशन:

  • UNIDO का मिशन, जैसा कि वर्ष 2013 में UNIDO जनरल कॉन्फ्रेंस (UNIDO General Conference) के पंद्रहवें सत्र में अपनाई गई लीमा घोषणा (Lima Declaration) में वर्णित है, सदस्य राज्यों में समावेशी और सतत् औद्योगिक विकास (ISID) को बढ़ावा देना एवं तेज़ करना है।

शासनादेश:

  • UNIDO के जनादेश को SDG-9 में पूरी तरह से मान्यता प्राप्त है, जो "लचीले बुनियादी ढाँचे के निर्माण, समावेशी और टिकाऊ औद्योगीकरण एवं नवाचार को बढ़ावा देने" का आह्वान करता है।
  • इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियना में है।

स्रोत- पीआईबी


शासन व्यवस्था

मेगा फूड पार्क योजना

प्रिलिम्स के लिये 

इंडस बेस्ट मेगा फूड पार्क, मेगा फूड पार्क योजना

मेन्स के लिये

कृषि के समग्र विकास के दृष्टिकोण से मेगा फूड पार्क योजना की ज़रूरत 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री ने छत्तीसगढ़ के रायपुर में वर्चुअल रूप में इंडस बेस्ट मेगा फूड पार्क (Indus Best Mega Food Park) का उद्घाटन किया।

  • इसे मेगा फूड पार्क योजना (Mega Food Park Scheme) के तहत बनाया गया है। इस फूड पार्क से करीब 5000 लोगों को रोज़गार मिलेगा तथा लगभग 25000 किसान लाभान्वित होंगे।

प्रमुख बिंदु

इंडस बेस्ट मेगा फूड पार्क के विषय में:

  • इसे वर्ष 2008-09 में शुरू किया गया था ताकि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा सके और आपूर्ति शृंखला के प्रत्येक चरण में खाद्य अपव्यय को कम करने पर विशेष ध्यान दिया जा सके।
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय देश में मेगा फूड पार्क योजना लागू कर रहा है।
  • मेगा फूड पार्क क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से मज़बूत फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज के साथ खेत से बाज़ार तक मूल्य शृंखला के साथ खाद्य प्रसंस्करण के लिये आधुनिक बुनियादी सुविधाओं का निर्माण किया जाता है।

उद्देश्य:

  • इसका उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करणकर्त्ता और खुदरा विक्रेताओं को एक साथ लाकर कृषि उत्पादन को बाज़ार से जोड़ने के लिये एक तंत्र प्रदान करना है ताकि मूल्यवर्द्धन को अधिक, अपव्यय को कम तथा किसानों की आय को ज़्यादा करके रोज़गार के नए अवसर (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में) सुनिश्चित किये जा सकें।

दृष्टिकोण:

  • यह योजना "क्लस्टर" दृष्टिकोण पर आधारित है जो एक अच्छी तरह से स्थापित आपूर्ति शृंखला के साथ औद्योगिक भूखंडों में आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिये एक अच्छी तरह से परिभाषित कृषि/बागवानी क्षेत्र में अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण की परिकल्पना करती है।

घटक:

  • एक मेगा फूड पार्क में आमतौर पर संग्रह केंद्र, प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र, केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र, कोल्ड चेन और उद्यमियों के लिये खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना हेतु लगभग 25-30 पूर्ण विकसित भूखंड होते हैं।

वित्तीय सहायता:

  • केंद्र सरकार प्रति मेगा फूड पार्क परियोजना के लिये 50 करोड़ रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • यह परियोजना एक विशेष प्रयोजन साधन (Special Purpose Vehicle- SVP) द्वारा कार्यान्वित की जाती है जो कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत एक निगमित निकाय है।
    • एसपीवी एक सहायक कंपनी है जो एक विशिष्ट व्यावसायिक उद्देश्य या गतिविधि के लिये बनाई गई है।

वर्तमान स्थिति:

Mega-Food-Park

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सैटेलाइट इंटरनेट

प्रिलिम्स के लिये  

 लो अर्थ ऑर्बिट (LEO), स्पेस इंटरनेट, जियोस्टेशनरी सैटेलाइट, ‘पाँच से 50' सेवा (OneWeb), स्टारलिंक, प्रोजेक्ट कुइपर (Kuiper) प्रोज़ेक्ट लून 

मेन्स के लिये 

सैटेलाइट इंटरनेट और LEO प्रौद्योगिकी की विशेताएँ, सूचना और प्रौद्योगिकी के विकास में स्पेस इंटरनेट की भूमिका, अंतरिक्ष में इंटरनेट सेवाओं संबंधित प्रमुख पहलें

चर्चा में क्यों?

एक अनुमान के अनुसार, इस दशक में वार्षिक रूप में 1,250 उपग्रह या सैटेलाइट लॉन्च किये जाएंगे, जिनमें से 70% वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये अनुप्रयोग किये जाएंगे।

  • विभिन्न निजी कंपनियाँ लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) उपग्रहों के अपने बेड़े के माध्यम से दुनिया भर में ब्रॉडबैंड उपग्रह इंटरनेट प्रसारित करने का लक्ष्य बना रही हैं।
  • अंतरिक्ष (Space) इंटरनेट प्रणाली कोई नया विचार नहीं है। इसका उपयोग जियोस्टेशनरी सैटेलाइट (Geostationary Satellite) के माध्यम से चुनिंदा उपयोगकर्त्ताओं के लिये किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु 

सैटेलाइट इंटरनेट और LEO प्रौद्योगिकी:

  • उपग्रहों की स्थिति: LEO उपग्रह पृथ्वी से लगभग 500 किमी. से 2000 किमी. की दूरी पर स्थित हैं जो स्थिर कक्षा उपग्रहों (Stationary Orbit Satellites) की तुलना में लगभग 36,000 किमी. दूर  हैं।
  • विलंबता (Latency): विलंबता या डेटा भेजने और प्राप्त करने के लिये आवश्यक समय का निर्धारण उनकी निकटता पर निर्भर है। 
    • चूँकि LEO उपग्रह पृथ्वी की कक्षा के समीप परिक्रमा करते हैं, वे पारंपरिक स्थिर-उपग्रह प्रणालियों की तुलना में मज़बूत सिग्नल और तीव्र गति प्रदान करने में सक्षम हैं।
    • इसके अतिरिक्त वे मौजूदा ग्राउंड-आधारित नेटवर्क से अधिक नहीं होने के कारण प्रतिद्वंद्वी होने की क्षमता रखते हैं क्योंकि ये सिग्नल फाइबर-ऑप्टिक केबल की तुलना में अंतरिक्ष के माध्यम से तीव्र गति से चलते हैं।
  • उच्च निवेश : LEO उपग्रह 27,000 किमी./घंटा की गति से यात्रा करते हैं और 90-120 मिनट में ग्रह के पूर्ण परिपथ का एक चक्कर पूरा करते हैं।
    • परिणामस्वरूप व्यक्तिगत उपग्रह केवल थोड़े समय के लिये भूमि ट्रांसमीटर के साथ सीधे संपर्क कर सकते हैं, इस प्रकार बड़े पैमाने पर LEO उपग्रह प्रणाली की आवश्यकता होती है जिसके फलस्वरूप एक महत्त्वपूर्ण पूंजी निवेश होता है।
    • इन लागतों के कारण यह इंटरनेट के तीन माध्यमों (फाइबर, स्पेक्ट्रम और सैटेलाइट) में से दूसरी सबसे महँगी प्रणाली है।

भूस्थिर (Geostationary) उपग्रह इंटरनेट:

  • उपग्रहों की स्थिति: भूस्थैतिक कक्षा भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह से 35,786 किमी. की ऊँचाई पर स्थित है।
    • अधिकांश मौजूदा अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट सिस्टम भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों का उपयोग करते हैं।
    • इस कक्षा में उपग्रह लगभग 11,000 किमी. प्रतिघंटा की गति से चलते हैं, और पृथ्वी की एक परिक्रमा को उसी समय पूरा करते हैं जब पृथ्वी अपनी धुरी पर एक बार घूमती है।
      • सतहों पर जाँच या परीक्षण के लिये भूस्थिर कक्षा में एक उपग्रह स्थिर होता है।
  • आवृत्त क्षेत्र: GEO में स्थापित एक सैटेलाइट पृथ्वी के लगभग एक-तिहाई हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकता है तथा इसी कक्षा में स्थापित 3 या 4 सैटेलाइट मिलकर पृथ्वी के प्रत्येक हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकते हैं।
  • सुलभ कनेक्टिविटी : चूँकि उपग्रह स्थिर रूप में प्रतिस्थापित होते हैं, इसलिये उनसे जुड़ना आसान हो जाता है।
  • विलंबता संबंधी मुद्दे: GEO में उपस्थित सैटेलाइटों से संचरण में लगभग 600 मिली. सेकंड की लेटेंसी या विलंबता होती है।  LEO की तुलना में भूस्थिर उपग्रह अधिक ऊँचाई पर स्थित होते हैं, इस प्रकार जितनी लंबी दूरी तय की जाएगी, उतनी ही अधिक विलंबता होती है।

संबंधित पहल:

  • 'पाँच से 50' सेवा (OneWeb): वनवेब (OneWeb) एक निजी कंपनी है जिसने LEO में 218 उपग्रहों के तारामंडल को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।

    • 50 डिग्री अक्षांश के उत्तर के सभी क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रस्तुत करने की 'पाँच से 50' सेवा की क्षमता हासिल करने के लिये अब केवल एक और प्रक्षेपण की आवश्यकता है।
    • जून 2021 तक 'पाँच से 50' सेवा को चालू किये जाने की उम्मीद है, जिसमें 2022 में उपलब्ध 648 उपग्रहों द्वारा संचालित वैश्विक सेवाएँ शामिल हैं।
  • स्टारलिंक (Starlink) : यह स्पेसएक्स (SpaceX) का उपक्रम है।

    • स्टारलिंक के पास वर्तमान में कक्षा में 1,385 उपग्रह हैं और इससे पूर्व इसने उत्तरी अमेरिका में बीटा परीक्षण शुरू कर दिया है साथ ही भारत जैसे देशों में प्री-ऑर्डर या अग्रिम बुकिंग शुरू कर दी है।
    • हालाँकि स्टारलिंक के उपग्रह पृथ्वी के समीप गति करते हैं और इसलिये कंपनी को वनवेब की तुलना में वैश्विक कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये एक बड़े बेड़े ( Fleet) या तंत्र की आवश्यकता होती है।
  • प्रोजेक्ट कुइपर (Kuiper) : यह वर्ष 2019 में शुरू की गई अमेज़न (Amazon) की एक परियोजना है।

  • प्रोजेक्ट लून : बहुराष्ट्रीय कंपनी गूगल ने वर्ष 2013 में प्रोजेक्ट लून की शुरुआत की है। इसमें उच्च ऊँचाई वाले गुब्बारों का उपयोग करते हुए बेतार-संचार प्रौद्योगिकी या एरियल वायरलेस नेटवर्क स्थापित किया जाता है।

    • केन्या के ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा का परीक्षण करने के बाद Google की मूल कंपनी, अल्फाबेट ने वर्ष 2021 में इस परियोजना को समाप्त कर दिया। 

LEO उपग्रहों के प्रक्षेपण में समस्याएँ:

  • विनियमन मुद्दे: स्पुतनिक और अपोलो मिशन के दौरान  सरकारें अंतरिक्ष-आधारित गतिविधियों पर प्रभुत्त्व संपन्न और विनियमित थीं। 
    • हालाँकि वर्तमान में शक्ति का संतुलन देशों से कंपनियों में स्थानांतरित हो गया है 
    • परिणामस्वरूप इन कंपनियों पर किसका नियंत्रण स्थापित होगा जैसे प्रश्न शामिल हैं, विशेष रूप से वे राष्ट्र जो बड़ी संख्या में व्यक्तिगत परियोजनाओं में योगदान करते हैं।
    •  यह नियामक ढाँचे को जटिल बनाता है।
  • लॉजिस्टिक चैलेंज: अंतरिक्ष में हज़ारों उपग्रहों को प्रक्षेपित करने संबंधित आवश्यक वस्तुओं (लॉजिस्टिक) की चुनौतियाँ हैं।
  • अंतरिक्ष अवलोकन में जटिलता: उपग्रहों को कभी-कभी रात के  समय खुले आसमान में देखा जा सकता है जो खगोल वैज्ञानिकों के लिये मुश्किलें पैदा करता है क्योंकि उपग्रह पृथ्वी पर सूर्य के प्रकाश को दर्शाते हैं, जिससे प्रतिबिंब में लकीरें एक-दूसरे के पार दिखाई देती हैं।
  • रुकावटें:  निम्न कक्षा में गतिमान उपग्रह अपने ऊपर परिक्रमा करने वाले उपग्रह की आवृत्ति को भी बाधित कर सकते हैं।
  • स्पेस जंक (Space Junk): कक्षा में पहले से ही 1 सेमी. व्यास से बड़ी लगभग 1 मिलियन वस्तुएँ मौज़ूद हैं, जो दशकों की अंतरिक्ष गतिविधियों का उपोत्पाद है।
    • उन वस्तुओं को सामान्य भाषा में 'स्पेस जंक' कहा जाता है। इसमें अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुँचाने या अन्य उपग्रहों से टकराने की क्षमता होती है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

कीटों से नष्ट हुई फसलें

प्रिलिम्स के लिये:

रेगिस्तानी टिड्डियाँ, अंतर्राष्ट्रीय पौध संरक्षण सम्मेलन

मेन्स के लिये:

कीट संबंधी समस्या और फसल उत्पादन

चर्चा में क्यों:

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की 40% कृषि फसल हर वर्ष कीटों द्वारा नष्ट हो जाती है।

  • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2020 को अंतर्राष्ट्रीय पादप स्वास्थ्य वर्ष के रूप में घोषित किया, जिसे 1 जुलाई, 2021 तक बढ़ा दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

संक्रमण का कारण:

  • पौधों की सभी बीमारियों में से आधी वैश्विक स्थानांतरण और व्यापार के माध्यम से फैलती हैं, जो पिछले एक दशक में तीन गुना हो गई हैं।
  • मौसम दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:

  • यह कृषि और वानिकी पारिस्थितिकी प्रणालियों में विशेष रूप से ठंडे आर्कटिक, बोरियल, समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कीटों के फैलने के जोखिम को बढ़ाएगा।

आक्रामक कीटों को नियंत्रित करना:

  • आक्रामक कीटों के नियंत्रण में सहायता के लिये असामान्य रूप से गर्मी एवं सर्दी पर्याप्त हो सकती है।
  • ‘फॉल आर्मीवॉर्म कीट’ जो मक्का, ज्वार और बाज़रा जैसी फसलों के माध्यम से खाना प्राप्त करते हैं और ‘टेफ्रिटिड फ्रूट फ्लाईज़’ (जो फल और अन्य फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं) पहले से ही गर्म जलवायु के कारण फैल चुके हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण रेगिस्तानी टिड्डियों (दुनिया के सबसे विनाशकारी प्रवासी कीट) के अपने प्रवासी मार्गों और भौगोलिक वितरण को बदलने की उम्मीद है।

पादप कीटों का प्रभाव:

  • यह लाखों लोगों को पर्याप्त खाद्यान से वंचित कर देता है।
  • यह कृषि गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इस प्रकार ग्रामीण गरीब समुदायों के लिये आय का प्राथमिक स्रोत है।
  • आक्रामक कीट देशों को वार्षिक रूप से कम-से-कम 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करते हैं और जैव विविधता के नुकसान के मुख्य चालकों में से एक हैं।

मुख्य सिफारिशें:

  • किसानों को नीति निर्माताओं के एकीकृत कीट प्रबंधन जैसे पर्यावरण के अनुकूल तरीकों के उपयोग के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • व्यापार को सुरक्षित बनाने के लिये, अंतर्राष्ट्रीय पादप स्वास्थ्य मानकों और मानदंडों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय पौध संरक्षण सम्मेलन (IPCC) और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा विकसित स्वास्थ्य मानक और मानदंड ।
    • IPPC भारत सहित 180 से अधिक देशों द्वारा हस्ताक्षरित एक पादप स्वास्थ्य संधि है।
    • इसका उद्देश्य दुनिया के पौध संसाधनों को कीटों के प्रसार और नुकसान से बचाना और सुरक्षित व्यापार को बढ़ावा देना है।
  • राष्ट्रीय पादप स्वास्थ्य प्रणालियों और संरचनाओं को मज़बूती प्रदान करने के लिये तथा अधिक शोध के साथ-साथ निवेश की आवश्यकता है।
  • नीति निर्माताओं और सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनके निर्णय ठोस तैयारी और डेटा पर आधारित हों।
  • नियमित रूप से पौधों की निगरानी करना और उभरते खतरों के बारे में पूर्व चेतावनी प्राप्त करना, सरकारों, कृषि अधिकारियों और किसानों को पौधों को स्वस्थ रखने के लिये निवारक और अनुकूल उपाय करने में मदद करता है।

कीट नियंत्रण के तरीके:

  • कीट को नियंत्रित करने के सबसे लोकप्रिय तरीकों में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों और कीटनाशकों का उपयोग शामिल है, हालाँकि कुछ आर्मी वाॅर्म्स ने इन युक्तियों के लिये प्रतिरोध विकसित किया है और फसलों को नष्ट करना जारी रखे हुए हैं।
  • प्राकृतिक दृष्टिकोण, जिसमें ‘ततैया’ जैसे प्रजनन शिकारियों को आवश्यक होने पर खेतों में छोड़ा जाना शामिल है, साथ ही एक ‘जर्म वारफेयर’ विकसित करना है जो उन बीमारियों को अलग करता है जिनसे कैटरपिलर (आर्मीवार्म) प्रवण होता है, वैज्ञानिकों द्वारा खोजा जा रहा है।
  • एक संगरोध प्रणाली, जिसके तहत ऐसे कीड़ों की मेजबानी करने वाले अनाज और पौधों के आयात का शिपिंग बंदरगाहों, हवाई अड्डों और भूमि सीमा पर निरीक्षण किया जाता है।
  • भारत में संगरोध प्रणाली, 2003 के ‘प्लांट क्वारंटाइन’ (भारत में आयात का विनियमन) आदेश द्वारा शासित है, जिसे वर्ष 1914 के विनाशकारी कीट और कीट अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया है।
    • भारत में संगरोध ज़िम्मेदारी संयंत्र संरक्षण, संगरोध और भंडारण निदेशालय (फरीदाबाद, हरियाणा में मुख्यालय) के पास है। कम स्टाफ वाले निदेशालय और एक मज़बूत कानून की कमी ने भारतीय सीमाओं पर पुलिस का काम मुश्किल बना दिया है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये

वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

मेन्स के लिये

रिपोर्ट संबंधी मुख्य तथ्य, श्रम बाज़ार पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स रिपोर्ट-2021’ जारी की है।

Global-Shortfall

प्रमुख बिंदु

कोविड का प्रभाव

  • कोरोना महामारी ने दुनिया भर में 100 मिलियन से अधिक श्रमिकों को गरीबी के दुष्चक्र में धकेल दिया है। महामारी के कारण इस वर्ष के अंत में 75 मिलियन नौकरियों की कमी की संभावना है।
  • वर्ष 2019 के सापेक्ष अनुमानित अतिरिक्त 108 मिलियन श्रमिक अब अत्यंत या मध्यम गरीब हैं, जिसका अर्थ है कि क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में ऐसे लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को प्रतिदिन 3.20 अमेरिकी डॉलर (यह निम्न-मध्यम-आय वाले देशों के लिये विश्व बैंक की गरीबी रेखा है) से कम पर जीवनयापन करना पड़ता है। 
  • गरीबी दर में तेज़ी से हो रही वृद्धि काम के घंटे खोने के कारण है, क्योंकि विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में लॉकडाउन लागू किया गया है और अधिकांश लोगों की नौकरी छूट गई है या फिर उनकी आय में कमी आ रही है।
  • गरीबी के उन्मूलन की दिशा में बीते पाँच वर्षों में की गई समग्र प्रगति व्यर्थ हो गई है, क्योंकि गरीबी दर अब वर्ष 2015 के स्तर पर वापस आ गई है।

बढ़ती असमानता

  • महामारी ने श्रम बाज़ार में मौजूद असमानताओं को और बढ़ा दिया है, जिसमें कम-कुशल श्रमिक, महिलाएँ, युवा या प्रवासी सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

कार्य-समय का नुकसान

  • बहुत से लोगों के काम के घंटों में नाटकीय रूप से कटौती देखी गई है।
  • वर्ष 2020 में वर्ष 2019 की चौथी तिमाही की तुलना में वैश्विक कामकाजी घंटों का 8.8 प्रतिशत का नुकसान हुआ, जो कि 255 मिलियन पूर्णकालिक रोज़गार के समान है।
  • यद्यपि स्थिति में सुधार हुआ है, किंतु वैश्विक काम के घंटों में बढ़ोतरी होने में अभी काफी समय लगेगा और विश्व में अभी भी इस वर्ष के अंत तक 100 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर नुकसान होने की आशंका है।

बेरोज़गारी दर

  • वर्ष 2020-21 में बेरोज़गारी दर 6.3 प्रतिशत है, जो कि अगले वर्ष (2021-22) तक गिरकर 5.7 प्रतिशत हो जाएगी, किंतु तब भी यह पूर्व-महामारी (वर्ष 2019) दर यानी 5.4 प्रतिशत से अधिक है।

महिला बेरोज़गारी

  • महिलाओं के अवैतनिक कार्य के समय में वृद्धि हुई है और उन्हें अनुपातहीन रोज़गार के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
  • इसके अलावा महिलाओं पर बच्चों की देखभाल और होम स्कूलिंग गतिविधियों का भी असमान बोझ पड़ा है।
  • नतीजतन पुरुषों के लिये 3.9 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं के लिये रोज़गार में 5 प्रतिशत की गिरावट आई है।

श्रमिकों पर प्रभाव

  • श्रमिकों और उद्यमों पर महामारी के दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिलेंगे।
  • अतः इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अनुमानित रोज़गार वृद्धि दर महामारी के कारण उत्पन्न संकट से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं होगी।

सिफारिश

  • दीर्घावधिक नुकसान को रोकने के लिये समेकित नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता है।
  • रिपोर्ट में विकासशील देशों के लिये टीकों और वित्तीय सहायता की वैश्विक पहुँच सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है, जिसमें ऋण पुनर्गठन या सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बढ़ाना शामिल है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

परिचय

  • इस संगठन को वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, जो कि इस विश्वास के साथ गठित किया गया था कि सार्वभौमिक और स्थायी शांति तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
    • वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
  • यह एक त्रिपक्षीय संगठन है, जो अपने कार्यकारी निकायों में सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।

सदस्य

  • भारत ILO का संस्थापक सदस्य है और इसमें कुल 187 सदस्य हैं।
  • वर्ष 2020 में भारत ने ILO के शासी निकाय की अध्यक्षता ग्रहण की है।

मुख्यालय

  • जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड)

पुरस्कार

  • वर्ष 1969 में ILO को राष्ट्रों के बीच भाईचारे और शांति के संदेश को बढ़ावा देने, श्रमिकों के लिये बेहतर कार्य एवं न्याय प्रणाली स्थापित करने और अन्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

आगे की राह

  • कोविड-19 महामारी न केवल एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, बल्कि यह एक रोज़गार और मानव संकट भी है।
  • यदि नौकरियों के सृजन में तेज़ी लाने, समाज के संवेदनशील वर्गों का समर्थन करने और आर्थिक रिकवरी को प्रोत्साहित करने के संबंध में मज़बूत प्रयास नहीं किये जाते हैं तो मानव एवं आर्थिक क्षमता के नुकसान और उच्च गरीबी एवं असमानता के रूप में महामारी का प्रभाव वर्षों तक देखने को मिल सकता है।
  • अतः उत्पादक रोज़गार के अवसर पैदा करने और सबसे संवेदनशील लोगों के लिये दीर्घकालिक श्रम बाज़ार की संभावनाओं को बढ़ावा देने हेतु तत्काल प्रयास किया जाना आवश्यक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2