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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चीन का कृत्रिम सूर्य

  • 07 Dec 2020
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन द्वारा  अपने "कृत्रिम सूर्य" परमाणु संलयन रिएक्टर (“Artificial Sun” Nuclear Fusion Reactor) का सफलतापूर्वक संचालन किया गया जो देश के परमाणु ऊर्जा अनुसंधान क्षमता के क्षेत्र में एक महान उपलब्धि है। इस परमाणु रिएक्टर से स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त होने की उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु:

  • HL-2M टोकामक रिएक्टर (HL-2M Tokamak reactor) चीन का सबसे बड़ा और सबसे उन्नत परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी अनुसंधान उपकरण है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह उपकरण एक शक्तिशाली स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।
    • प्राकृतिक रूप से सूर्य में होने वाली परमाणु संलयन प्रक्रिया की प्रतिकृति के लिये  इसमें HL-2M टोकामक यंत्र का उपयोग किया गया है।
  • इसमें गर्म प्लाज्मा को संलयित करने के लिये एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किया गया है तथा इसमें तापमान को सूर्य के कोर के तापमान की तुलना में  लगभग दस गुना अधिक तक गर्म (150 मिलियन डिग्री सेल्सियस) करने की क्षमता है।
  • सिचुआन प्रांत में स्थित इस रिएक्टर को सामान्यत:  "कृत्रिम सूर्य" के नाम से जाना जाता है जो अत्यधिक गर्मी एवं ऊर्जा उत्पन्न करता है।

अन्य समान प्रयोग

  • अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर
    • वर्ष 1985 में अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor-ITER)  को 35 देशों की सहभागिता में शुरु किया गया।
    • यह फ्रांँस में अवस्थित है।
    • उद्देश्य:  इसका उद्देश्य विश्व के सबसे बड़े टोकामक यंत्र का निर्माण करना है ताकि बड़े पैमाने पर कार्बन-मुक्त ऊर्जा के स्रोत के रूप में संलयन की व्यवहार्यता को सिद्ध किया जा सके।
      • टोकामक एक प्रायोगिक मशीन है जिसे  संलयन की ऊर्जा का उपयोग करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। एक टोकामक के अंदर परमाणु संलयन के माध्यम से उत्पादित ऊर्जा को पात्र की दीवारों में ऊष्मा के रूप में अवशोषित किया जाता है। एक पारंपरिक ऊर्जा संयंत्र की तरह एक संलयन ऊर्जा संयंत्र में इस ऊर्जा का उपयोग वाष्प उत्पादन तथा उसके बाद टरबाइन और जनरेटर के माध्यम से विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है।

परमाणु अभिक्रियाएँ

  • विवरण:
    • एक परमाणु अभिक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें दो नाभिक अथवा एक नाभिक और एक बाह्य उप-परमाणु कण एक या अधिक नए न्यूक्लाइड का उत्पादन करने के लिये आपस में टकराते हैं। इस प्रकार एक परमाणु अभिक्रिया में कम-से-कम एक न्यूक्लाइड का दूसरे में परिवर्तन होना चाहिये।

प्रकार 

  • नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission):
    • इस प्रक्रिया में एक परमाणु का नाभिक दो संतति नाभिकों (Daughter Nuclei) में विभाजित होता है।
    • यह विभाजन रेडियोधर्मी क्षय द्वारा सहज प्राकृतिक रूप से या प्रयोगशाला में आवश्यक परिस्थितियों (न्यूट्रॉन, अल्फा आदि कणों की बमबारी करके) की उपस्थिति में किया जा सकता है।
    • विखंडन से प्राप्त हुए खंडों/अंशों का एक संयुक्त द्रव्यमान होता है जो मूल परमाणु से कम होता है। द्रव्यमान में हुई यह क्षति सामान्यतः परमाणु ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
    • वर्तमान में सभी वाणिज्यिक परमाणु रिएक्टर नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित हैं।
  • नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion):
    • नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया को दो हल्के परमाणुओं के संयोजन से एक भारी परमाणु नाभिक के निर्माण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • इस तरह की नाभिकीय संलयन प्रतिक्रियाएँ सूर्य और अन्य तारों में ऊर्जा का स्रोत होती हैं।
    • इस प्रक्रिया में नाभिक को संलयित करने के लिये अधिक मात्रा में ऊर्जा की की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया के लिये कई मिलियन डिग्री तापमान तथा कई मिलियन पास्कल दाब वाली परिस्थिति आवश्यक होती है।
    • हाइड्रोजन बम का निर्माण एक तापनाभिकीय संलयन (Thermonuclear Fusion) अभिक्रिया पर आधारित है। हालांँकि प्रारंभिक ऊर्जा प्रदान करने के लिये  हाइड्रोजन बम के मूल में यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन पर आधारित एक परमाणु बम को स्थापित किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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