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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

स्पेस इंटरनेट

  • 19 Nov 2019
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

स्टारलिंक नेटवर्क, स्पेस इंटरनेट क्या है

मेन्स के लिये

सूचना और प्रौद्योगिकी के विकास में स्पेस इंटरनेट की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की प्रमुख निजी कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) ने स्पेस इंटरनेट (Space Internet) की सुविधा मुहैया कराने के लिये 60 सैटेलाइटों के एक समूह को निम्न भू-कक्षा (Low Earth Orbit-LEO) में स्थापित किया।

मुख्य बिंदु:

  • स्पेसएक्स की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का नाम स्टारलिंक नेटवर्क (Starlink Network) है। इसके माध्यम से यह कंपनी वर्ष 2020 तक संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा में स्पेस इंटरनेट की सुविधा देना प्रारंभ कर देगी।
  • वर्ष 2021 तक इसका लक्ष्य पूरी पृथ्वी पर कम कीमत में नॉन-स्टॉप स्पेस इंटरनेट की सुविधा प्रदान करना है।
  • इस परियोजना के पहले चरण में 12,000 सैटेलाइटों को निम्न भू-कक्षा (Low Earth Orbit) में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद दूसरे चरण में 30,000 सैटेलाइटें भी इसी कक्षा में स्थापित की जाएंगी।

स्पेस इंटरनेट की आवश्यकता

  • स्पेस इंटरनेट की मुख्य विशेषता इसकी विश्वसनीयता तथा अबाध रूप से इंटरनेट प्रदान करने की क्षमता है। इंटरनेट आज विश्व में लोगों की बुनियादी ज़रूरत बन चुका है तथा लोक सेवाओं की बेहतर पहुँच के लिये आवश्यक है।
  • वर्तमान में विश्व की आधी जनसंख्या (लगभग 4 बिलियन लोग) इंटरनेट की पहुँच से बाहर हैं जिसके प्रमुख कारणों में इंटरनेट प्रदान करने के पारंपरिक तरीके जैसे फाइबर ऑप्टिक्स केबल (Fibre Optics Cable) तथा ताररहित नेटवर्क (Wireless Network) आदि का प्रयोग किया जाना शामिल हैं।
  • दूर दराज के वे इलाके जहाँ भूमि उबड़-खाबड़ हो या टावर तथा केबल (Cable) लगाना संभव न हो, वहाँ इंटरनेट प्रदान करने के ये माध्यम सफल नहीं हैं। स्पेस इंटरनेट इन कमियों को दूर कर सकता है।

स्पेस इंटरनेट के तकनीकी पक्ष

  • स्पेस आधारित इंटरनेट का प्रयोग अभी भी होता है लेकिन ये केवल कुछ निजी अंतरिक्ष संस्थाओं या सरकारों के हाथ में है। वर्तमान में कार्यरत इन सभी इंटरनेट प्रदान करने वाली सैटेलाइटों को भू-स्थैतिक कक्षा (Geo-Stationary Orbit-GEO) में स्थापित किया गया है।
  • ये सैटेलाइटें पृथ्वी की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर 35,786 किमी. की ऊँचाई पर GEO में स्थापित हैं।
  • यहाँ उपस्थित सैटेलाइट 11,000 किमी. प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करती हैं। इनके द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा में लगा समय तथा पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन में लगा समय समान होता है इसलिये पृथ्वी से देखने पर ये स्थिर प्रतीत होती हैं।
  • अधिक ऊँचाई पर होने की वजह से GEO में स्थापित एक सैटेलाइट पृथ्वी के लगभग एक तिहाई हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकती है तथा इसी कक्षा में स्थापित 3 या 4 सैटेलाइट मिलकर पृथ्वी के प्रत्येक हिस्से को सिग्नल संप्रेषित कर सकती हैं।
  • GEO में उपस्थित सैटेलाइटों की मुख्य कमी यह है कि पृथ्वी से अधिक दूरी पर स्थित होने की वजह से ये डेटा के वास्तविक समय में सम्प्रेषण (Real Time Data Transmission) करने में सक्षम नहीं हैं। डेटा के सम्प्रेषण में हुई इस देरी को टाइम लैग (Time Lag) या लेटेंसी (Latency) कहा जाता है।
  • GEO में उपस्थित सैटेलाइटों में लेटेंसी 600 मिली. सेकंड की होती है जबकि LEO में स्थापित सैटेलाइटों में यह घटकर 20-30 मिली. सेकंड तक रह जाती है।
  • LEO का विस्तार पृथ्वी की सतह के ऊपर 200 किमी. से 2,000 किमी. तक है। स्पेसएक्स अपनी सभी सैटेलाइटों को इसी कक्षा में 350 किमी. से 1,200 किमी. की ऊँचाई में स्थापित करेगा।
  • कम ऊँचाई पर स्थापित होने की वजह से ये सैटेलाइट पृथ्वी के सीमित क्षेत्र तक ही डेटा संप्रेषित कर सकती हैं। अतः पूरी पृथ्वी पर डेटा के संप्रेषण के लिये स्पेसएक्स अधिक संख्या में सैटेलाइट स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
  • LEO में स्थापित होने के कारण इन सैटेलाइटों को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव को कम करने के लिये GEO में उपस्थित सैटेलाइटों की तुलना में दोगुनी रफ्तार से परिक्रमा करनी होगी।

स्पेस इंटरनेट से संभावित हानियाँ

  • अंतरिक्ष में सैटेलाइटों की बढ़ती संख्या से अंतरिक्ष में मलबा (Space Debries) बढ़ रहा है, इससे अंतरिक्ष में उपस्थित सैटेलाइटों में टकराव हो सकता है।
  • वर्तमान में अंतरिक्ष में लगभग 2000 सैटेलाइट मौजूद हैं तथा वर्ष 1957 में प्रारंभ हुए अंतरिक्ष युग (Space Age) से अभी तक लगभग 9000 सैटेलाइटें भेजी जा चुकी हैं। इनमें से अधिकांश निचली कक्षाओं में मौजूद हैं।
  • वैज्ञानिकों तथा खगोलशास्त्रियों का मानना है कि मानव निर्मित सैटेलाइटों के प्रेक्षण से प्रकाश प्रदूषण (रात में मानवजनित गतिविधियों द्वारा आकाश में अत्यधिक प्रकाश) का खतरा उत्पन्न हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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