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डेली न्यूज़

  • 05 May, 2022
  • 51 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय प्रधानमंत्री की यूरोपीय देशों की यात्रा

प्रिलिम्स के लिये:

नॉर्डिक देश, यूरोप में भौगोलिक स्थान, पहला भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

द्वितीय विश्व युद्ध, भारतीय प्रधानमंत्री की यूरोप यात्रा, भारत-जर्मनी संबंध, भारत-डेनमार्क संबंध, भारत-फ्राँस संबंध, भारत-यूरोप संबंध, भारत से जुड़े समूह और समझौते और/या भारत के हितों, द्विपक्षीय समूहों और समझौतों को प्रभावित करना।

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री तीन यूरोपीय देशों- ज़र्मनी, डेनमार्क और फ्रांँस की यात्रा पर हैं। उनकी यह विदेश यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब यूरोप रूस-यूक्रेन युद्ध का साक्षी बना हुआ है।

  • भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा इस बात पर प्रकाश डालती है कि भारत यूरोप के साथ अपने संबंधों को कितना महत्त्व देता है।

European-Countries

यात्रा का महत्त्व: 

  • भारत-जर्मनी संबंध:
    • पृष्ठभूमि: जर्मनी, यूरोप में भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण भागीदारों में से एक है, जिसके गहरे द्विपक्षीय संबंध हैं और यूरोपीय संघ में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
      • भारत द्वितीय विश्व युद्ध (WWII) के बाद जर्मनी के संघीय गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
      • भारत और जर्मनी के बीच मई 2000 से 'रणनीतिक साझेदारी' है और वर्ष 2011 में सरकार के प्रमुखों के स्तर पर अंतर-सरकारी परामर्श (IGC) के शुभारंभ के साथ इसे मज़बूत किया गया है। 
      • भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिनके साथ जर्मनी का संवाद तंत्र है। 
    • महत्व: रूस-यूक्रेन युद्ध में जर्मनी महत्त्वपूर्ण रणनीतिक विकल्प बना है।
      • इसने रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करने के साथ रक्षा खर्च बढ़ाने का फैसला किया है, यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की स्थिति को देखते हुए महत्त्वपूर्ण कदम है।
      • भारत भी रक्षा आपूर्ति के लिये रूस पर निर्भर है, अतः भारत और जर्मनी का रणनीतिक विकल्पों पर आपस में नोट्स का आदान-प्रदान करना और अपनी-अपनी ज़रूरतों के लिये रूस से दूर जाना महत्त्वपूर्ण होगा। 
  • भारत-डेनमार्क संबंध:
    • पृष्ठभूमि: सितंबर 2020 में आयोजित वर्चुअल समिट के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को "हरित रणनीतिक साझेदारी" के स्तर तक बढ़ा दिया गया था।  
      • पहला भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन सहयोग के नए क्षेत्रों का पता लगाने के लिये अप्रैल 2018 में हुआ था।
      • यह सहयोग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नॉर्डिक देशों- स्वीडन, फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, आइसलैंड का इस तरह का सहयोग केवल अमेरिका के साथ है। 
    • महत्त्व: नॉर्डिक देश नवाचार, स्वच्छ ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकी, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, मानवाधिकार एवं कानून के शासन में अग्रणी हैं। इन देशों के साथ सहयोग भारत के लिये अपनी ताकत का विस्तार करने हेतु बहुत बड़ा अवसर प्रस्तुत करता है।
  • भारत-फ्राँस संबंध: 
    • पृष्ठभूमि: भारत और फ्रांस के पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंध रहे हैं।
      • वर्ष 1998 में दोनों ने एक रणनीतिक साझेदारी शुरू की, जिसमें रक्षा और सुरक्षा सहयोग, अंतरिक्ष सहयोग तथा असैन्य परमाणु सहयोग स्तंभ थे।
      • भारत एवं फ्राँस के बीच एक मज़बूत आर्थिक साझेदारी है और सहयोग के नए क्षेत्रों में तेज़ी से संलग्न हैं।
      • वर्ष 1998 के पोखरण परीक्षणों के बाद भारत की निंदा नहीं करने वाले कुछ पश्चिमी देशों में फ्राँस भी शामिल था।
      • इसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिये भारत के दावे का समर्थन करना जारी रखा है।
      • मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था, वासेनार व्यवस्था और ऑस्ट्रेलिया समूह में भारत के प्रवेश में फ्राँस का समर्थन महत्त्वपूर्ण था।
      • फ्राँस परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में शामिल होने के लिये भारत का समर्थन करना जारी रखता है।
      • फ्राँस ने यूएनएससी 1267 प्रतिबंध समिति के तहत भारतीय नागरिकों को सूचीबद्ध करने के पाकिस्तान के प्रयासों को रोकने के लिये भारत के अनुरोधों का भी समर्थन किया है।
    • महत्त्व:  
      • हिंद महासागर में साझा हित: फ्राँस को अपनी औपनिवेशिक क्षेत्रीय संपत्ति, जैसे- रीयूनियन द्वीप और हिंद महासागर को भारत के लिये प्रभाव का क्षेत्र होने, की रक्षा करने की आवश्यकता है।
      • आतंकवाद का मुकाबला: फ्राँस ने आतंकवाद पर वैश्विक सम्मेलन के लिये भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
        • दोनों देश एक नए "नो मनी फॉर टेरर"- फाइटिंग टेररिस्ट फाइनेंसिंग’ पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन का भी समर्थन करते हैं।
      • फ्राँस द्वारा भारत का समर्थन: फ्राँस, कश्मीर पर भारत का लगातार समर्थन करता रहा है, जबकि पाकिस्तान के साथ उसके संबंधों में हाल के दिनों में कमी देखी गई है और चीन के साथ संशययुक्त संबंध हैं।
      • रक्षा सहयोग: भारत और फ्राँस घनिष्ठ रक्षा साझेदारी के चरण में प्रवेश कर चुके हैं। उदाहरण के लिये हाल ही में भारतीय वायु सेना (IAF) में  फ्रांँस के राफेल की  बहु-भूमिका लड़ाकू श्रेणी के विमान को शामिल किया गया है।
  • भारत-यूरोप संबंध:
    • पृष्ठभूमि: 1962 में भारत यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
      • 1994 में हस्ताक्षरित एक सहयोग समझौते ने मंत्री स्तरीय बैठकों और राजनीतिक संवादों को शामिल कर संबंधों को और व्यापक बनाया।
      • राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों, जलवायु परिवर्तन तथा स्वच्छ ऊर्जा, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष व परमाणु, स्वास्थ्य, कृषि और खाद्य सुरक्षा, शिक्षा तथा संस्कृति को शामिल कर इन संबंधों का विस्तार किया गया है।
    • यात्रा का महत्त्व: यूरोप की यात्रा से भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के लिये मंच तैयार करने और मुक्त व्यापार समझौते की वार्ता को बढ़ावा मिलने की संभावना है, जो पिछले  डेढ़ दशक से चल रही है।

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स फॉरेस्ट्स 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व के वनों की स्थिति 2022, एफएओ।

मेन्स के लिये:

भारत में वन संसाधनों की स्थिति और संबंधित चिंताएंँ।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (United Nations Food and Agriculture Organization- FAO) द्वारा स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स फॉरेस्ट्स 2022 (SOFO 2022) रिपोर्ट जारी की गई। 

प्रमुख बिंदु 

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स फॉरेस्ट्स रिपोर्ट के बारे में:

  • इस रिपोर्ट का प्रकाशन द्वि-वार्षिक तौर पर किया जाता है तथा इसे व्यापक रूप से वन पारिस्थितिकी तंत्र पर सबसे महत्त्वपूर्ण डेटा या स्टॉक में से एक के रूप में माना जाता है।
  • SOFO का 2022 संस्करण हरित पुनर्प्राप्ति, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के क्षरण सहित पृथ्वी पर बहुआयामी संकटों से निपटने हेतु तीन वन मार्गों की क्षमता का निरीक्षण करता है। ये हैं:
    • वनों की कटाई को रोकना और वनों को बनाए रखना।
    • निम्नीकृत भूमि को बहाल करना और कृषि वानिकी का विस्तार करना।
    • वनों का सतत् उपयोग और हरित मूल्य शृंखला का निर्माण।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ:

  • वनों का क्षरण:
    • वनों की कटाई के कारण वर्ष 1990 और वर्ष 2020 के बीच 420 मिलियन हेक्टेयर (mha) वन नष्ट हो गए हैं, हालांँकि वन पृथ्वी के भौगोलिक क्षेत्र के 4.06 बिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हैं। 
      • हालांँकि वनों की कटाई की दर में गिरावट आई है लेकिन वर्ष 2015 और वर्ष 2020 के मध्य हर वर्ष 10 मिलियन हेक्टेयर वन नष्ट हुए है। 
      • वर्ष 2016 से वर्ष 2050 के बीच अकेले उष्णकटिबंध में अनुमानित 289 मिलियन हेक्टेयर वनों की कटाई की जाएगी, यदि अतिरिक्त कार्रवाई नहीं की गई तो इसके परिणामस्वरूप 169 GtCO2e का उत्सर्जन होगा।
        • ग्रीनहाउस गैस का कुल योग वैश्विक वार्षिक CO2 समकक्ष उत्सर्जन (GtCO2e/वर्ष) के आधार पर बिलियन टन के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • संक्रामक रोगों में वृद्धि:
    • 250 उभरते संक्रामक रोगों में से 15% वनों से जुड़े हैं।  
      • उदाहरण: कोविड-19, ड्रग रेसिस्टेंट इन्फेक्शन (रोगाणुरोधी), जीका वायरस आदि।
    • 1960 के बाद से रिपोर्ट की गई 30% नई बीमारियों हेतु वनों की कटाई और भूमि-उपयोग-परिवर्तन को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • गरीबी के स्तर में वृद्धि:
    • अवैध वन्यजीव व्यापार को रोकने, भूमि उपयोग परिवर्तन से बचने और निगरानी बढ़ाने के आधार पर महामारी को रोकने हेतु वैश्विक रणनीतियों की लागत का अनुमान 22 अरब अमेरिकी डॉलर बढ़कर 31 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। 
    • कोविड-19 के बाद लगभग 124 मिलियन से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी से ग्रस्त हो गए तथा महामारी के दौरान कुछ देशों में लकड़ी आधारित ईंधन (जैसे- जलाऊ लकड़ी, लकड़ी का कोयला) के उपयोग में वृद्धि हुई है, जिसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
  • प्राकृतिक संसाधनों की खपत:
    • वर्ष 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.7 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे भूमि के लिये प्रतिस्पर्द्धा मे वृद्धि होगी, क्योंकि वर्ष 2050 तक इस बड़ी आबादी के लिये भोजन की मांग 35 से 56% तक बढ़ जाएगी।
    • जनसंख्या के आकार और संपन्नता में वृद्धि के कारण संयुक्त रूप से सभी प्राकृतिक संसाधनों की वार्षिक वैश्विक खपत वर्ष 2017 के 92 बिलियन टन से दोगुना होकर वर्ष 2060 में 190 बिलियन टन होने की उम्मीद है।
      • वार्षिक बायोमास निष्कर्षण (Annual biomass extraction) वर्ष  2017 में 24 अरब टन से बढ़कर वर्ष 2060 तक 44 अरब टन तक पहुँचने की उम्मीद है।
      • मुख्य रूप से निर्माण और पैकेजिंग के कारण वन आधारित बायोमास की मांग में और अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
  • वनों पर जीडीपी की निर्भरता:
    • यह अनुमान है कि दुनिया के आधे से अधिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) (वर्ष 2020 में 84.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) जंगलों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर मामूली रूप से (प्रतिवर्ष 31 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) या अत्यधिक (प्रतिवर्ष 13 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) निर्भर करता है।
      • पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ मानव जीवन को संभव बनाती हैं, उदाहरण के लिये पौष्टिक भोजन और स्वच्छ पानी प्रदान करना, रोग एवं जलवायु को नियंत्रित करना, फसलों के परागण तथा मिट्टी के निर्माण का समर्थन करना व मनोरंजक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक लाभ प्रदान करना इसमें शामिल हैं।

सुझाव:

  • संरक्षण, बहाली और कृषि वानिकी:
    • वन संरक्षण (जैसे कि अवैध वन्यजीव व्यापार को रोकना और भूमि-उपयोग परिवर्तन से बचना) भविष्य मे आने वाली महामारी तथा लागत नुकसान का एक अंश है जो कि वास्तविक महामारी का कारण होगा, को रोकने में मदद कर सकता है।
    • कृषि वानिकी में जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और यहाँ तक कि फसल उत्पादन को बढ़ावा देने की विशेष संभावनाएँ हैं।
  • सतत् उपयोग:
    • वन उत्पादों को शामिल करने वाली आपूर्ति शृंखला सतत् विकास को वास्तविकता प्रदान करने का एक और तरीका है, विशेष रूप से दुनिया की आबादी वर्ष 2060 तक दोगुनी होने का अनुमान है जिसके तहत प्राकृतिक संसाधनों की मांग दोगुनी होकर 190 बिलियन मीट्रिक टन हो जाएगी।
  • वित्तपोषण: 
    • वित्तपोषण में भारी वृद्धि के लिये विशेष रूप से वर्ष 2030 तक तीन गुना वृद्धि की आवश्यकता होगी।
      • उदाहरण के लिये वनों की स्थापना और रखरखाव पर वर्ष 2050 तक प्रत्येक वर्ष 203 बिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च हो सकता है।
  • स्थानीय निर्माताओं द्वारा संगठनों का समर्थन:
    • छोटे समुदायों और स्वदेशी समूहों को अपने वनों का निरंतर प्रबंधन जारी रखने के लिये स्थानीय उत्पादक संगठनों का समर्थन करने के साथ भूमि स्वामित्व अधिकारों की रक्षा करना भी महत्त्वपूर्ण है।
      • इसके लिये सरकारें छोटे किसानों को उनके वृक्ष उत्पादों पर दीर्घकालिक अधिकार प्रदान कर सकती हैं, जिससे कृषि वानिकी के ज़ोखिम को कम करने के साथ-साथ प्रथागत भूमि अधिकारों की मान्यता को औपचारिक रूप प्रदान करने में मदद मिलेगी।

खाद्य और कृषि संगठन (FAO): 

'वनों पर न्यूयॉर्क घोषणा' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. इसे पहली बार 2014 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में समर्थन दिया गया था।
  2. यह वनों के नुकसान को समाप्त करने के लिये एक वैश्विक समयरेखा का समर्थन करता है।
  3. यह कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय घोषणा है।
  4. यह सरकारों, बड़ी कंपनियों और स्वदेशी समुदायों द्वारा समर्थित है।
  5. भारत इसकी स्थापना के समय से ही इसके हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से एक था।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।  

(a) केवल 1, 2 और 4  
(b) केवल 1, 3 और 5  
(c) केवल 3 और 4  
(d) केवल 2 और 5  

उत्तर: (a) 

  • वनों पर न्यूयॉर्क घोषणा एक स्वैच्छिक और गैर-कानूनी रूप से बाध्यकारी राजनीतिक घोषणा है जो 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के जलवायु शिखर सम्मेलन द्वारा प्रेरित सरकारों, कंपनियों और नागरिक समाज के बीच संवाद से विकसित हुई है। अतः कथन 1 सही है और कथन 3 सही नहीं है।
  • घोषणापत्र में 2020 तक वनों की कटाई की दर को आधा करने, 2030 तक इसे समाप्त करने और करोड़ों एकड़ भूमि को बहाल करने का वादा किया गया है। अत: कथन 2 सही है।
  • इस घोषणा में वर्तमान में 200 से अधिक समर्थनकर्त्ता हैं, जिनमें राष्ट्रीय सरकारें, उप-राष्ट्रीय सरकारें, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय, संगठन, गैर-सरकारी संगठन और वित्तीय संस्थान शामिल हैं। अत: कथन 4 सही है।
  • वनों की स्थापना पर न्यूयॉर्क घोषणा के समय भारत हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से एक नहीं था। अत: कथन 5 सही नहीं है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-नॉर्डिक देशों की द्विपक्षीय वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

नॉर्डिक देश, दूसरा भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन। 

मेन्स के लिये:

नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड और फिनलैंड के साथ भारत के संबंध

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड और फिनलैंड के अपने समकक्षों के साथ कई द्विपक्षीय बैठकें कीं।

  • बैठकों में द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत करने के तरीकों के बारे में चर्चा की गई तथा क्षेत्रीय एवं वैश्विक विकास पर विचारों का आदान-प्रदान किया गया।
  • बैठक डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन के मौके पर आयोजित की गई थी।

World-Atlas

दूसरे भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन की पृष्ठभूमि:

  • दूसरा संस्करण दुनिया को प्रभावित करने वाली दो सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं की पृष्ठभूमि में आयोजित किया गया।
    • एक महामारी के बाद आर्थिक सुधार और दूसरा यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा युद्ध है।
  • अर्थव्यवस्था, व्यापार और निवेश के अलावा शिखर सम्मेलन को कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के दृष्टिकोण से देखा जा सकता है जो पूंजीवाद तथा लोकतांत्रिक प्रथाओं के साथ-साथ कल्याण मॉडल को बाज़ार अर्थव्यवस्था से मिलाता है।
  • भारत ने नॉर्डिक कंपनियों को ब्लू इकॉनमी क्षेत्र में (विशेष रूप से सागरमाला परियोजना में) निवेश करने के लिये आमंत्रित किया।
    • भारत की आर्कटिक नीति आर्कटिक क्षेत्र में भारत-नॉर्डिक सहयोग के विस्तार के लिये एक अनुकूल ढाँचा प्रदान करती है।
  • नॉर्डिक देशों ने एक संशोधित और विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये अपना समर्थन दोहराया।
  • वर्ष 2018 में शिखर सम्मेलन के उद्घाटन संस्करण में नेतृत्व का ध्यान वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक विकास, नवाचार और जलवायु परिवर्तन पर था, जबकि विकास के चालक के रूप में नवाचार व डिजिटल परिवर्तन पर ज़ोर दिया गया था।

बैठक की मुख्य विशेषताएंँ:

  • भारत-डेनमार्क: यूक्रेन में युद्ध, भारत-यूरोपीय संघ (ईयू) मुक्त व्यापार समझौते और इंडो-पैसिफिक की स्थिति सहित द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने हेतु आपसी हित के व्यापक मुद्दों पर चर्चा की गई।
    • दोनों देश हरित हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा एवं अपशिष्ट जल प्रबंधन पर ध्यान देने के साथ हरित रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करने पर सहमत हुए। 
  • भारत-नॉर्वे: दोनों नेताओं ने ब्लू इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, सौर और पवन परियोजनाओं, हरित शिपिंग, मत्स्य पालन, जल प्रबंधन, वर्षा जल संचयन, अंतरिक्ष सहयोग, दीर्घकालिक अवसंरचना निवेश, स्वास्थ्य व संस्कृति जैसे क्षेत्रों में जुड़ाव को और अधिक मज़बूत करने पर चर्चा की।
    • भारतीय प्रधानमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि नॉर्वे भारत की हाल ही में घोषित आर्कटिक नीति का एक प्रमुख स्तंभ है।
  • भारत-स्वीडन: बैठक के दौरान दोनों देश के नेताओं ने संयुक्त कार्य योजना में प्रगति का जायजा लिया और लीडरशिप ग्रुप ऑन इंडस्ट्री ट्रांज़िशन (Leadership Group on Industry Transition- LeadIT) पहल के विस्तार के दायरे की सराहना की।
    • यह एक कम कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर दुनिया के सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक उद्योगों का मार्गदर्शन करने में मदद हेतु सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में  LeadIT को स्थापित करने के लिये भारत-स्वीडन संयुक्त वैश्विक पहल थी।  
    • वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री मोदी की स्वीडन यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने रक्षा, व्यापार और निवेश, नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट शहरों, महिलाओं के कौशल विकास, अंतरिक्ष एवं  विज्ञान तथा स्वास्थ्य देखभाल आदि में व्यापक पहलों को आगे बढ़ाने हेतु एक व्यापक संयुक्त कार्य योजना को अपनाया।  
  • भारत-आइसलैंड: दोनों नेताओं ने विशेष रूप से भूतापीय ऊर्जा, नीली अर्थव्यवस्था, आर्कटिक, नवीकरणीय ऊर्जा, मत्स्य पालन, खाद्य प्रसंस्करण, डिजिटल विश्वविद्यालयों तथा संस्कृति सहित शिक्षा के क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग को और अधिक मज़बूती प्रदान करने के तरीकों पर चर्चा की है।
  • भारत-फिनलैंड: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, भविष्य की मोबाइल प्रौद्योगिकियों, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और स्मार्ट ग्रिड जैसी नई एवं उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में सहयोग के विस्तार के अवसरों के संबंध में चर्चा की गई है।
    • भारतीय प्रधानमंत्री ने फिनिश कंपनियों को भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी करने तथा भारतीय बाज़ार में विशेष रूप से दूरसंचार, बुनियादी ढाँचे और डिजिटल परिवर्तनों में विशाल अवसरों का लाभ उठाने के लिये आमंत्रित किया है।

भारत के लिये नॉर्डिक देशों का महत्त्व:

  • भारत और नॉर्डिक देश मज़बूत व्यापार साझेदारी का हिस्सा हैं, हालाँकि व्यक्तिगत रूप से इन देशों का आर्थिक व्यापार G20 देशों की तुलना में बहुत कम है।
    • लगभग 54,000 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 1.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
    • भारत और नॉर्डिक देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार तथा सेवाएँ 13 अरब अमेरिकी डॉलर का है।
  • सहयोग के क्षेत्र: जिन देशों में तकनीकी कौशल तथा व्यापारिक संबंध हैं, वे आपसी हित के पाँच क्षेत्रों में सहयोग का पता लगाएंगे।
    • इनमें हरित साझेदारी, डिजिटल और नवाचार अर्थव्यवस्था, व्यापार एवं निवेश, सतत् विकास तथा आर्कटिक क्षेत्र से संबंधित सहयोग शामिल है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके साथ नॉर्डिक देशों की शिखर स्तरीय बैठकें होती हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और डेनमार्क

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य भागीदारी, विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आर्कटिक परिषद।

मेन्स के लिये:

हरित रणनीतिक साझेदारी, भारत-डेनमार्क संबंध, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य भागीदारी।

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रधानमंत्री की डेनमार्क यात्रा के दौरान भारत और डेनमार्क हरित हाइड्रोजन , नवीकरणीय ऊर्जा और अपशिष्ट जल प्रबंधन पर ध्यान देने के साथ हरित रणनीतिक साझेदारी को और मज़बूत करने पर सहमत हुए हैं।

  • इसके अलावा भारत ने मिशन पार्टनर के रूप में समाधान हेतु अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICARS) में शामिल होने के लिये डेनमार्क के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है।
  • डेनमार्क के प्रधानमंत्री ने साक्ष्य-आधारित डिजिटल प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार हेतु भारत के निमंत्रण पर में डेनमार्क के प्रवेश की पुष्टि की है।

Denmark

भारत-डेनमार्क संबंध:

  • पृष्ठभूमि: भारत और डेनमार्क के बीच राजनयिक संबंध सितंबर 1949 में स्थापित हुए जो नियमित उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान (Regular high-level Exchanges) को चिह्नित करते हैं।
    • दोनों देशों की इच्छा क्षेत्रीय और ऐतिहासिक लोकतांत्रिक परंपराओं के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं स्थिरता के लिये कार्य करना है।
    • वर्ष 2020 में आयोजित वर्चुअल समिट के दौरान द्विपक्षीय संबंधों को "हरित रणनीतिक साझेदारी" के स्तर तक बढ़ा दिया गया था।

हरित रणनीतिक साझेदारी:

  • हरित रणनीतिक साझेदारी राजनीतिक सहयोग को आगे बढ़ाने, आर्थिक संबंधों और हरित विकास का विस्तार, रोज़गार का सृजन, पेरिस समझौते और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के महत्त्वाकांक्षी कार्यान्वयन पर ध्यान देने के साथ-साथ वैश्विक चुनौतियों संबोधित करना एवं अवसरों को मज़बूती प्रदान करने हेतु एक पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यवस्था है।
  • जलवायु एजेंडे में भारत और डेनमार्क दोनों के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य हैं।
  • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा CO2 उत्सर्जक देश है और वर्ष 2030 तक देश के कार्बन उत्सर्जन के दोगुना होने की उम्मीद है।
  • वर्ष 2030 तक डेनमार्क सरकार द्वारा CO2 उत्सर्जन को 70% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसका उद्देश्य सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा के साथ सतत् विकास लक्ष्य-7 (SDG- 7) को प्राप्त करते हुए अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदान करना है।
  • भारत और डेनमार्क आपसी साझेदारी द्वारा वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करेंगे कि महत्त्वाकांक्षी जलवायु और सतत् ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव है।
  • वाणिज्यिक और आर्थिक संबंध: भारत-डेनमार्क के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2016 में 2.8 बिलियन अमेरिकी डाॅलर था जो वर्ष 2021 में बढ़कर 5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया है।
    • भारत से डेनमार्क को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में कपड़ा, परिधान और कच्चे धागे से संबंधित वस्तुएंँ, वाहन तथा उनके घटक, धातु के सामान, लोहा व इस्पात, जूते एवं यात्रा संबंधी सामान हैं।
    • डेनमार्क से भारत को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में डेनिश निर्यात औषधीय/दवाएँ, बिजली उत्पन्न करने वाली मशीनरी, औद्योगिक मशीनरी, धातु अपशिष्ट और अयस्क एवं जैविक रसायन शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: भारत का 75वांँ स्वतंत्रता दिवस कोपेनहेगन में ध्वजारोहण समारोह और जीवंत आज़ादी के अमृत महोत्सव समारोह के साथ बड़े उत्साह के साथ मनाया गया, जिसमें बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय शामिल हुए।
    • डेनमार्क के नागरिकों में भारतीय समुदाय के आईटी पेशेवर, डॉक्टर और इंजीनियर शामिल हैं।
    • डेनमार्क में महत्त्वपूर्ण सड़कों और सार्वजनिक स्थानों का नाम भारतीय नेताओं के नाम पर रखा गया है जिनमें गांधी मैदान (गांधी पार्क), कोपेनहेगन और आरहू विश्वविद्यालय के पास एक नेहरू रोड शामिल है।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस सलूशन (ICARS)

  • वर्ष 2017 और वर्ष 2018 के दौरान डेनमार्क और विश्व बैंक के बीच बातचीत के माध्यम से निम्न और मध्यम आय वाले देशों के सहयोग तथा कार्यान्वयन से अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने वाले एक इंटरनेशनल इंडिपेंडेंट रिसर्च एंड नाॅलिज सेंटर (International Independent Research and Knowledge Centre ) के विचार को बढ़ावा दिया गया था।
  • मार्च 2018 में एक बैठक में इस बात पर सहमति हुई थी कि इस क्षेत्र में यह पता लगाने के लिये इस विचार को आगे बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है कि क्या डेनमार्क इस तरह के केंद्र की शुरुआत व मेज़बानी कर सकता है, क्योंकि वन हेल्थ में काम करने का अपना लंबा इतिहास है।
  • नवंबर 2018 में डेनमार्क सरकार ने औपचारिक रूप से ICARS स्थापित करने की अपनी महत्त्वाकांक्षा की घोषणा की।

वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य भागीदारी:

  • ग्लोबल डिजिटल हेल्थ पार्टनरशिप सरकारों, सरकारी एजेंसियों और बहुराष्ट्रीय संगठनों का एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है जो साक्ष्य-आधारित डिजिटल तकनीकों के सर्वोत्तम उपयोग के माध्यम से अपने नागरिकों के स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार के प्रति समर्पित है।
  • यह अपने प्रतिभागियों के बीच परिवर्तनकारी जुड़ाव का अवसर प्रदान करने के लिये फरवरी 2018 में स्थापित किया गया था।
  • ऑस्ट्रेलिया 2018 में इस उद्घाटन शिखर सम्मेलन का मेज़बान देश था।
  • 'चौथा ग्लोबल डिजिटल हेल्थ पार्टनरशिप समिट' फरवरी 2019 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था।

आगे की राह

  • बहुपक्षीय मंच पर सहयोग: भारत और डेनमार्क ने मानवाधिकार, लोकतंत्र तथा कानून के शासन के मूल्यों को साझा किया है एवं दोनों को लोकतंत्र और मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने व बहुपक्षीय प्रणाली आधारित एक नियम को बढ़ावा देने के लिये विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आर्कटिक परिषद जैसे बहुपक्षीय मंचों में सहयोग करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

भारत की नागरिक पंजीकरण प्रणाली रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

नागरिक पंजीकरण प्रणाली, भारत का रजिस्ट्रार जनरल, जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम।

मेन्स के लिये:

जनसंख्या और संबद्ध मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी 2020 नागरिक पंजीकरण प्रणाली रिपोर्ट (Civil Registration System Report- CRS) पर आधारित महत्त्वपूर्ण सांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में देश में जन्म के समय सबसे अधिक लिंगानुपात केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में दर्ज किया गया।.

  • रिपोर्ट भारत का महापंजीयक द्वारा प्रकाशित की गई थी।
  • जन्म के समय लिंगानुपात प्रति हज़ार पुरुषों पर जन्म लेने वाली महिलाओं की संख्या है। जनसंख्या के लेंगिक अंतर को मापने में यह एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है।

भारत का महापंजीयक:

  • वर्ष 1961 में भारत का महापंजीयक की स्थापना गृह मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा की गई थी।
  • यह भारत की जनगणना और भारतीय भाषा सर्वेक्षण सहित भारत के जनसांख्यिकीय सर्वेक्षणों के परिणामों की व्यवस्था, संचालन तथा विश्लेषण करता है।
  • प्रायः एक सिविल सेवक को ही रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त किया जाता है जिसकी रैंक संयुक्त सचिव पद के समान होती है।
  • प्रायः एक सिविल सेवक को ही रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त किया जाता है जिसकी रैंक संयुक्त सचिव पद के समान होती है।
    • भारत में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण ‘जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण (RBD) अधिनियम’ 1969 के अधिनियमन के साथ अनिवार्य है तथा घटना के स्थान के अनुसार किया जाता है।
    • गृह मंत्रालय की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार न्यूनतम मानव इंटरफेस के साथ वास्तविक समय में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण को सक्षम करने के लिये नागरिक पंजीकरण प्रणाली में सुधार करने की योजना बना रही है।

जन्म और मृत्यु पंजीकरण (RBD) अधिनियम:

  • जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम को वर्ष 1969 में देश भर में जन्म एवं मृत्यु के पंजीकरण में एकरूपता तथा उसके आधार पर महत्त्वपूर्ण आंकड़ों के संकलन के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • अधिनियम के अधिनियमन के साथ भारत में जन्म, मृत्यु और मृत जन्म का पंजीकरण अनिवार्य हो गया है।
  • देश में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त पदाधिकारी करते हैं।
  • जनगणना संचालन निदेशालय, महापंजीयक के कार्यालय का अधीनस्थ कार्यालय हैं और यह कार्यालय अपने संबंधित राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश में अधिनियम के कामकाज की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • जन्म के समय उच्च लिंग अनुपात (SRB): यह वर्ष 2020 में लद्दाख (1104) के बाद अरुणाचल प्रदेश (1011), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (984), त्रिपुरा (974) तथा केरल (969) में दर्ज किया गया है।
    • वर्ष 2019 में जन्म के समय उच्चत लिंगानुपात अरुणाचल प्रदेश (1024) के बाद नगालैंड (1001), मिज़ोरम (975) और अंडमान निकोबार द्वीप समूह (965) में दर्ज किया गया था।
    • जन्म के समय लिंगानुपात पर महाराष्ट्र, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से जानकारी "उपलब्ध नहीं थी"।
  • जन्म के समय सबसे कम लिंग अनुपात: वर्ष 2020 में जन्म के समय सबसे कम लिंग अनुपात दर्ज करने वाले शीर्ष पाँच राज्यों में मणिपुर (880), दादरा और नगर हवेली, दमन एवं दीव (898), गुजरात (909), हरियाणा (916) तथा मध्य प्रदेश (921) शामिल हैं।
    • वर्ष 2019 में सबसे कम लिंगानुपात गुजरात (901), असम (903), मध्य प्रदेश (905) और जम्मू-कश्मीर (909) में दर्ज किया गया था।

Gender-Ratio

  • जन्म दर: नगालैंड, पुद्दुचेरी, तेलंगाना, मणिपुर, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, तमिलनाडु, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मिज़ोरम तथा चंडीगढ़ जैसे राज्यों में पंजीकृत जन्म दर में गिरावट दर्ज की गई।
    • पंजीकृत जन्म दर में लक्षद्वीप, बिहार, हरियाणा, सिक्किम, मध्य प्रदेश और राजस्थान में वृद्धि दर्ज की गई है।
  • मृत्यु दर: महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, नगालैंड, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, सिक्किम, पंजाब, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, अंडमान और निकोबार तथा असम में वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में मृत्यु दर में वृद्धि दर्ज की गई है।
    • बिहार में सबसे अधिक मृत्यु दर 18.3% तथा इसके बाद महाराष्ट्र में 16.6% और असम में 14.7% के साथ वृद्धि हुई है।
    • इस बीच मणिपुर, चंडीगढ़, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पुद्दुचेरी, अरुणाचल प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में मृत्यु दर में कमी देखी गई है।
  • शिशु मृत्यु: रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 में 1,43,379 शिशु मृत्यु दर्ज की गई जिसमें ग्रामीण क्षेत्र का हिस्सा केवल 23.4% था, जबकि कुल पंजीकृत शिशु मृत्यु का 76.6% शहरी क्षेत्र में दर्ज किया गया है।
    • रजिस्ट्रारों को शिशु मृत्यु की सूचना न देने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्यु का पंजीकरण न होना चिंता का विषय था, विशेष रूप से घरेलू आयोजनों के मामले में।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

इंटरनेट के भविष्य के लिये घोषणा

प्रिलिम्स के लिये:

इंटरनेट, इंटरनेट के भविष्य के लिये घोषणा, मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, मानवाधिकार

मेन्स के लिये:

भारत में इंटरनेट की स्वतंत्रता और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा 60 अन्य साझेदार देशों ने "इंटरनेट के संबंध में भविष्य के लिये घोषणा" नामक एक राजनीतिक घोषणा पर हस्ताक्षर किये हैं।

इंटरनेट के भविष्य के लिये घोषणा क्या है?

  • परिचय:
    • "राज्य प्रायोजित या दुर्भावनापूर्ण व्यवहार के युग में घोषणा का उद्देश्य मानवता के लिये एक परस्पर संचार प्रणाली को बढ़ावा देना है।
    • घोषणा एक समावेशी पहल है, जिसके तहत भागीदार अन्य सरकारों तक पहुँच जारी रखेंगे ताकि उन्हें घोषणा में शामिल किया जा सके।
      • सभी भागीदार निजी क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, तकनीकी समुदाय, अकादमिक और नागरिक समाज तथा दुनिया भर में अन्य प्रासंगिक हितधारकों तक पहुँच सुनिश्चित करेंगे ताकि एक खुले, मुक्त, वैश्विक, इंटरऑपरेबल, विश्वसनीय व सुरक्षित इंटरनेट को प्राप्त करने के लिये साझेदारी में कार्य किया जा सके।
    • घोषणा और उसके मार्गदर्शक सिद्धांत कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं।
      • इसका उपयोग सार्वजनिक नीति निर्माताओं के साथ-साथ नागरिकों, व्यवसायों और नागरिक समाज संगठनों के लिये एक संदर्भ बिंदु के रूप में किया जाना चाहिये।
  • उद्देश्य:
    • इंटरनेट द्वारा बुनियादी लोकतांत्रिक सिद्धांतों, मौलिक स्वतंत्रताओं एवं मानवाधिकारों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये जैसा कि मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में परिलक्षित होता है।
    • इंटरनेट को एकल नेटवर्क, विकेंद्रीकृत नेटवर्क के रूप में काम करना चाहिये, जहाँ डिजिटल तकनीकों का उपयोग भरोसेमंद तरीके से किया जाता है, यह व्यक्तियों के बीच अनुचित भेदभाव से बचने और व्यवसायों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा हेतु ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के उपयोग की अनुमति देता है।
    • इसका उद्देश्य मानव अधिकारों की रक्षा करना, सिंगल ग्लोबल इंटरनेट को बढ़ावा देना, विश्वास और समावेशिता को बढ़ावा देना तथा इंटरनेट के विकास हेतु एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण की रक्षा करना है।

संबंधित चिंताएंँ:

  • हाल ही में कुछ सत्तावादी सरकारों द्वारा इंटरनेट स्वतंत्रता के दमन में वृद्धि हुई है, मानव अधिकारों का उल्लंघन करने के लिये डिजिटल उपकरणों का उपयोग, साइबर हमलों का बढ़ता प्रभाव, अवैध सामग्री का प्रसार और दुष्प्रचार तथा आर्थिक शक्ति का अत्यधिक संकेंद्रण हुआ है।
  • विश्व में बढ़ती डिजिटल सत्तावाद की वैश्विक प्रवृत्ति देखी जा रही है। रूस और चीन जैसे देशों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने, स्वतंत्र समाचार साइटों को सेंसर करने, चुनावों में हस्तक्षेप करने, दुष्प्रचार को बढ़ावा देने व अपने नागरिकों को अन्य मानवाधिकारों से वंचित करने के लिये कार्य किया है।

भारत में इंटरनेट स्वतंत्रता की स्थिति:

  • परिचय:
    • 2021 में वैश्विक स्तर पर कुल 182 इंटरनेट क्रैकडाउन की सूचना मिली थी।
      • भारत में 106 शटडाउन की घटनाओं में से 85 जम्मू और कश्मीर में दर्ज किये गए थे।
    • भारत उन 18 देशों में से एक था, जिन्होंने विरोध प्रदर्शन के दौरान मोबाइल इंटरनेट बंद कर दिया था।
    • वर्ष 2021 में इंटरनेट बंद करने वाले देशों की संख्या 2020 के 29 से बढ़कर 34 हो गई है।
  • इससे संबंधित न्यायालय के निर्णय:
    • अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ, 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इंटरनेट सेवाओं का एक अपरिभाषित प्रतिबंध अवैध होगा तथा इंटरनेट बंद करने के आदेश संबंधी आवश्यकता और आनुपातिकता के परीक्षणों को पूरा किया जाना चाहिये।
    • फहीमा शिरीन बनाम केरल राज्य, 2019 में केरल उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इसे निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट के उपयोग के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।

स्रोत: द हिंदू


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