इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 05 Apr, 2021
  • 42 min read
कृषि

पीएम-कुसुम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना के अंतर्गत पहला कृषि आधारित सौर ऊर्जा संयंत्र जयपुर (राजस्थान) ज़िले की कोटपुतली तहसील में स्थापित किया गया है। इस संयंत्र से प्रत्येक वर्ष 17 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन होगा।

PM kusum

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय :

    • पीएम-कुसुम योजना को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना और ग्रिड से जुड़े क्षेत्रों में ग्रिड पर निर्भरता कम करने के लिये शुरू किया गया था।
    • फरवरी 2019 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने वित्तीय सहायता और जल संरक्षण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इस योजना को शुरू करने की मंज़ूरी प्रदान की।
    • बजट 2020-21 के अंतर्गत सरकार योजना का विस्तार करते हुए 20 लाख किसानों को एकल सौर पंप स्थापित करने हेतु सहायता प्रदान करेगी। इसके आलावा अन्य 15 लाख किसानों को उनके ग्रिड से जुड़े पंप सेटों के सौरीकरण (Solarisation) में मदद करेगी।
    • पीएम कुसुम योजना किसानों को अपनी बंजर भूमि पर स्थापित सौर ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से ग्रिड को बिजली बेचने का विकल्प प्रदान करते हुए अतिरिक्त आय अर्जित करने का अवसर प्रदान करेगी।
  • पीएम कुसुम योजना के घटक:

    • पीएम कुसुम योजना के तीन घटक हैं और इन घटकों के तहत वर्ष 2022 तक 30.8 गीगावाट की अतिरिक्त सौर क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
    • घटक A : भूमि पर स्थापित 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत ग्रिडों को नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों से जोड़ना।
    • घटक B : 20 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों की स्थापना।
    • घटक C : ग्रिड से जुड़े 15 लाख सौर ऊर्जा चालित कृषि पंपों का सौरीकरण (Solarisation)।
  • योजना के अपेक्षित लाभ:

    • डिस्कॉम की सहायता:
      • यह योजना कृषि क्षेत्र में सब्सिडी के बोझ को कम करते हुए बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की वित्तीय स्थिति को सुधारने में सहायक होगी।
      • यह अक्षय ऊर्जा खरीद दायित्व (RPO) के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगी।
    • राज्यों की सहायता:
      • इस योजना के तहत विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे आपूर्ति के दौरान होने वाली विद्युत क्षति या ट्रांसमिशन हानि (Transmission Loss) को कम किया जा सकेगा।
      • यह योजना सिंचाई पर सब्सिडी के रूप में होने वाले परिव्यय को कम करने का एक संभावित विकल्प हो सकती है।
    • किसानों की सहायता:
      • यदि किसान अपने सौर ऊर्जा संयंत्रों से उत्पादित अधिशेष विद्युत को बेचने में सक्षम होते हैं, तो इससे उन्हें बिजली बचाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा और भूजल का उचित एवं कुशल उपयोग सुनिश्चित किया जा सकेगा जिससे उनकी आय में भी वृद्धि होगी।
      • यह योजना किसानों को सौर जल पंपों (ऑफ-ग्रिड और ग्रिड-कनेक्टेड दोनों) के माध्यम से जल संरक्षण सुविधा प्रदान करने में सहायक हो सकती है।
    • पर्यावरणीय सहायता:
      • इस योजना के तहत कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिये सौर चालित पंपों की स्थापना के माध्यम से सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के साथ ही प्रदूषण में वृद्धि करने वाले डीज़ल पंपों के प्रयोग में कमी लाने में सफलता प्राप्त होगी।
  • चुनौतियाँ:

    • संसाधन और उपकरणों की उपलब्धता:
      • इस योजना को व्यापक स्तर पर लागू किये जाने के मार्ग में एक बड़ी बाधा उपकरणों की स्थानीय स्तर पर अनुपलब्धता है। वर्तमान में स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये पारंपरिक विद्युत या डीज़ल पंप की तुलना में सोलर पंप की उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
      • इसके अलावा ‘घरेलू सामग्री की आवश्यकता’ (Domestic Content Requirements- DCR) संबंधी नियमों की सख्ती के कारण सौर ऊर्जा उपकरण आपूर्तिकर्त्ताओं को स्थानीय सोलर सेल (Solar Cell) निर्माताओं पर निर्भर रहना पड़ता है, हालाँकि वर्तमान में देश में स्थानीय स्तर पर पर्याप्त घरेलू सोलर सेल निर्माण क्षमता नहीं विकसित की जा सकी है।
    • छोटे और सीमांत किसानों की अनदेखी:
      • इस योजना में छोटे और सीमांत किसानों की अनदेखी किये जाने का आरोप भी लगता रहा है, क्योंकि यह योजना 3 हॉर्स पावर (HP) और उससे उच्च क्षमता वाले पंपों पर केंद्रित है।
      • इस योजना के तहत किसानों की एक बड़ी आबादी तक सौर पंपों की पहुँच सुनिश्चित नहीं की जा सकी है क्योंकि वर्तमान में देश के लगभग 85% किसान छोटे और सीमांत श्रेणी में आते हैं।
      • विशेषकर उत्तर भारत और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भू-जल स्तर में हो रही गिरावट किसानों के लिये छोटे पंपों की उपयोगिता को सीमित करती है।
    • भू-जल स्तर में गिरावट:
      • कृषि क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति हेतु सरकार द्वारा भारी सब्सिडी दिये जाने के कारण सिंचाई पर खर्च की जाने वाली विद्युत की लागत बहुत ही कम होती है, जिसके कारण कई किसानों द्वारा अनावश्यक रूप से जल का दोहन किया जाता है। कृषि क्षेत्र में भू-जल का यह अनियंत्रित दोहन जल स्तर में गिरावट का एक प्रमुख कारण है।
      • सिंचाई के लिये सौर ऊर्जा प्रणाली की स्थापना करने के बाद भू-जल स्तर में गिरावट की स्थिति में उच्च क्षमता के पंपों को लगाना और भी कठिन तथा खर्चीला कार्य होगा, क्योंकि इसके लिये किसानों को पंप के साथ-साथ बढ़ी हुई क्षमता के लिये सोलर पैनलों की संख्या में वृद्धि करनी होगी।

आगे की राह:

  • केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति इस विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा योजना की सफलता की कुंजी है। भारत में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा कोई भी सुधार तब तक प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि केंद्र, राज्य और अन्य सभी हितधारकों के बीच इस संदर्भ में आम सहमति न बन जाए।
  • सिंचाई के लिये पारंपरिक डीज़ल या विद्युत चालित पंपों से सौर पंपों की तरफ बढ़ने के साथ ही किसानों को 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation) जैसे आधुनिक उपायों को भी अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ ही पानी और बिजली की भी बचत होगी।
  • इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन और हितधारकों की इस पहल में गंभीरता के साथ भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये कार्यान्वयन की उच्च लागत और व्यापक रखरखाव की चुनौतियों को देखते हुए योजना की बेंचमार्क कीमतों को अधिक आकर्षक बनाना होगा।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बिम्सटेक की 17वीं मंत्रिस्तरीय बैठक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने बिम्सटेक की 17वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में हिस्सा लिया।

  • श्रीलंका की अध्यक्षता में यह बैठक वर्चुअल माध्यम से आयोजित की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • बैठक में भारत का पक्ष

    • भारत की प्रतिबद्धता
      • बैठक के दौरान भारत ने बिम्सटेक ढाँचे के तहत आगे भी क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने और संगठन को मज़बूत, जीवंत, अधिक प्रभावी और परिणाम-उन्मुख बनाने के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर की।
    • प्रगति
      • बैठक में भारत द्वारा आतंकवाद, ट्रांस-नेशनल क्राइम, परिवहन एवं संचार, पर्यटन और पर्यावरण तथा आपदा प्रबंधन आदि विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति को रेखांकित किया गया।
  • बैठक का परिणाम

    • बैठक के दौरान श्रीलंका में आयोजित होने वाले आगामी बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में अपनाने हेतु बिम्सटेक परिवहन कनेक्टिविटी मास्टर प्लान का समर्थन किया गया।
    • भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य, इस मास्टर प्लान का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, क्योंकि कई सड़कें और नदी लिंक इस क्षेत्र से गुज़रते हैं।
    • बिम्सटेक चार्टर को जल्द अपनाने का आह्वान किया गया।
    • बैठक में आपराधिक मामलों में आपसी कानूनी सहायता पर कन्वेंशन, राजनयिकों तथा प्रशिक्षण अकादमियों के बीच सहयोग और कोलंबो (श्रीलंका) में बिम्सटेक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा की स्थापना से संबंधित तीन समझौता ज्ञापनों का समर्थन किया गया।
    • इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया कि भारत में स्थापित ‘बिम्सटेक सेंटर फॉर वेदर एंड क्लाइमेट’ आपदा संबंधी प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करने के लिये अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ पूर्णतः कार्यात्मक है।
  • चिंताएँ

    • रोहिंग्या शरणार्थी मामला जिसने म्याँमार और बांग्लादेश के संबंधों में तनाव उत्पन्न कर दिया है, के कारण सदस्यों के बीच सामंजस्य स्थापित करना मुश्किल हो गया है।
    • इसने संगठन के काम को कुछ हद तक प्रभावित किया है, क्योंकि इसके कारण एक सामान्य चार्टर विकसित करना संभव नहीं हो सका है।

बिम्सटेक

  • परिचय:
    • इसका पूरा नाम ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन’ (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) है तथा यह एक क्षेत्रीय संगठन है।
    • इसके 7 सदस्यों में से 5 सदस्य- बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका दक्षिण एशिया से हैं तथा दो- म्याँमार और थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं।
    • यह भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों के चलते दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क-SAARC) के महत्त्वहीन हो जाने के कारण भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ जुड़ने हेतु एक नया मंच प्रदान करता है।
    • अंतर-क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान देने केंद्रित करने के साथ-साथ, बिम्सटेक ने दक्षेस यानी SAARC और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (Association of Southeast Asian Nations-ASEAN) के सदस्य देशों के साथ एक साझा मंच का निर्माण भी किया है।
    • वर्तमान मे, बिम्सटेक 15 क्षेत्रों में कार्य करता है, जिनमें व्यापार, प्रौद्योगिकी, कृषि, पर्यटन, मत्स्य पालन, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं।
    • वर्ष 1997 में इसकी शुरुआत केवल छह क्षेत्रों को शामिल करते हुए हुई थी और बाद में वर्ष 2008 में शेष नौ क्षेत्रों तक इसे विस्तारित किया गया।
    • सचिवालय: ढाका, बांग्लादेश।
  • उद्देश्य:
    • क्षेत्र में तीव्र आर्थिक विकास हेतु वातावरण तैयार करना।
    • सहयोग और समानता की भावना विकसित करना।
    • सदस्य राष्ट्रों के साझा हित के क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग और पारस्परिक सहायता को बढ़ावा देना।
    • शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में एक-दूसरे का पूर्ण सहयोग।

bimstake

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना अवधि में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा 3 लाख करोड़ रुपए की आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (Emergency Credit Line Guarantee Scheme- ECLGS) की अवधि को 30 जून, 2021 तक बढ़ा दिया गया है तथा इसके दायरे को आतिथ्य, यात्रा और पर्यटन जैसे क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया है।

  • ECLGS को वर्ष 2020 में कोविड-19 संकट के समय आत्मनिर्भर पैकेज ( Atmanirbhar package) के तहत जारी किया गया था।
    • इसका उद्देश्य राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के कारण अपनी परिचालन देनदारियों को पूरा करने हेतु संघर्ष कर रहे छोटे व्यवसायों को सहायता/समर्थन प्रदान करना था।

प्रमुख बिंदु:

  • ECLGS 1.0:

    • 29 फरवरी, 2020 तक व्यावसायिक उद्देश्यों हेतु MSMEs, व्यावसायिक उद्यमों, MUDRA उधारकर्त्ताओं और व्यक्तिगत ऋणों पर उनके क्रेडिट की 20% सीमा तक पूर्णत: गारंटी और संपार्श्विक मुक्त अतिरिक्त क्रेडिट प्रदान करना।
    • 25 करोड़ रुपए तक के बकाया और 100 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाली MSMEs इसके लिये पात्र हैं।
      • हालांँकि नवंबर 2020 में ECLGS 2.0 में संशोधन के बाद टर्नओवर कैप को हटा दिया गया था
  • ECLGS 2.0:

    • यह संशोधित संस्करण कामथ समिति (Kamath Committee) द्वारा चिह्नित 26 तनावग्रस्त क्षेत्रों के साथ-साथ स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी ध्यान केंद्रित करता है, मुख्यतः जिनका बकाया 29 फरवरी, 2020 तक 50 करोड़ रुपए से अधिक और 500 करोड़ रुपए तक है।
    • SMAs अथवा ‘स्पेशल मेंशन अकाउंट’ का आशय ऐसे तनावग्रस्त खातों से है, जिनमें ऋण लेने वाला व्यक्ति ऋण चुकाने में सक्षम नहीं होता है।
      • जबकि SMA-0 ऐसे खाते हैं जिनमें आंशिक रूप से या 1-30 दिनों तक पूर्ण अतिदेय की स्थिति होती है। SMA-1 और SMA-2 खातों में क्रमशः 31-60 दिनों और 61-90 दिनों हेतु भुगतान अतिदेय होता है।
    • संशोधित योजना में पुनर्भुगतान की अवधि को पांँच वर्ष कर दिया गया है, जबकि ECLGS 1.0 में यह अवधि 4 वर्ष थी।
  • ECLGS 3.0:

    • ECLGS 3.0 में 29 फरवरी, 2020 तक सभी ऋण देने वाली संस्थाओं के कुल बकाया ऋण के 40 प्रतिशत तक का विस्तार शामिल है।
    • ECLGS 3.0 के तहत दिये जाने वाले ऋणों की अवधि 6 वर्ष होगी, जिसमें 2 वर्ष की छूट अवधि भी शामिल होगी।
    • यह आतिथ्य, यात्रा और पर्यटन, अवकाश तथा खेल क्षेत्रों के व्यावसायिक उद्यमों को कवर करता है। लेकिन;
      • यह सुविधा केवल उन उद्यमों हेतु है, जिनका कुल ऋण 29 फरवरी, 2020 तक 500 करोड़ रुपए से अधिक नहीं हो और विलंबित ऋण, यदि कोई हो तो इसकी मियाद 29 फरवरी, 2020 को 60 दिन या इससे कम हो।
  • नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी (National Credit Guarantee Trustee Company- NCGTC) द्वारा ECLGS योजना के तहत गारंटी प्रदान की जाती है।

नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी:

  • नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्टी कंपनी (NCGTC) की स्थापना भारतीय कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 28 मार्च, 2014 को 10 करोड़ रुपए की प्रदत्त पूंजी के साथ भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के तहत एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में की गई थी।
  • इस कंपनी के गठन का प्राथमिक उद्देश्य विभिन्न क्रेडिट गारंटी फंडों के लिये एक सामान्य ट्रस्टी कंपनी के रूप में कार्य करना है।
    • ऋण गारंटी कार्यक्रम उधारदाताओं के उधार जोखिम को साझा करने के लिये डिज़ाइन किये जाते हैं और इसके बदले संभावित उधारकर्त्ताओं को वित्त तक पहुँच की सुविधा प्रदान की जाती है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का वाणिज्य वस्तु व्यापार घाटा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा जारी प्रारंभिक आँकड़ों से पता चला है कि मार्च 2021 में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 14.11 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि मार्च 2020 के दौरान यह 9.98 बिलियन डॉलर था।

प्रमुख बिंदु

  • अन्य पर्यवेक्षण:

    • वाणिज्य वस्तु निर्यात: भारत का वाणिज्य वस्तु (Merchandise) निर्यात मार्च 2020 के 21.49 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में मार्च 2021 में 58.23% की वृद्धि के साथ 34.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
      • किसी साल के एक महीने में (मार्च 2021 में) पहली बार ऐसा हुआ कि भारतीय निर्यात 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया।
    •  वाणिज्य वस्तु आयात: भारत का वाणिज्य वस्तु आयात मार्च 2020 के 31.47 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में मार्च 2021 में 52.89% की वृद्धि के साथ 48.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
      • इस प्रकार भारत मार्च 2021 में एक शुद्ध आयातक देश रहा, जिसको 14.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है।
  • आयात बढ़ने का कारण:

    • लॉकडाउन में ढील और आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत वस्तुओं तथा आयात की मांग में वृद्धि के मुख्य कारण हैं।
    • वैश्विक व्यापार में वृद्धि के परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति शृंखला सक्रिय हो गई, जिसने वाणिज्य गतिविधियों को बढ़ाया है।
    • परिवहन क्षेत्र में गतिविधियाँ शुरू होने से तेल आयात बढ़ा है।
  • व्यापार घाटा: 
    • किसी देश का व्यापार घाटा उस स्थिति को संदर्भित करता है, जब उसका आयात निर्यात से ज़्यादा हो जाता है।
      • वस्तुओं से संबंधित व्यापार घाटा अर्थव्यवस्था में मांग की वृद्धि को दर्शाता है।
      • यह चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) का एक हिस्सा है।
  • चालू खाता घाटा:

    • चालू खाता, निर्यात और आयात के कारण विदेशी मुद्रा के निवल अंतर को दर्शाता है। यह विश्व के अन्य देशों के साथ एक देश के लेनदेन का प्रतिनिधित्व करता है तथा पूंजी खाते की तरह देश के भुगतान संतुलन (Balance of Payment) का एक घटक होता है।
    • जब किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक होता है, तो उसके BoP में व्यापार अधिशेष की स्थिति होती है, वहीं जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है तो उसे (BoP) व्यापार घाटे के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
    • प्रमुख घटक:
      • वस्तु,
      • सेवाएँ
      • विदेशी निवेश पर शुद्ध कमाई (जैसे ब्याज और लाभांश) तथा निश्चित समयावधि में भुगतानों का शुद्ध अंतरण जैसे कि विप्रेषण (Remittance)।
    • इसे सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है। चालू खाता शेष की गणना के सूत्र हैं:
      • चालू खाता शेष = व्यापार अंतर + शुद्ध वर्तमान स्थानांतरण + विदेश में शुद्ध आय।
      • व्यापार अंतर = निर्यात - आयात

भुगतान संतुलन

  • परिभाषा:
    • भुगतान संतुलन (Balance Of Payment-BoP) का अभिप्राय ऐसे सांख्यिकी विवरण से होता है, जो एक निश्चित अवधि के दौरान किसी देश के निवासियों के विश्व के साथ हुए मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन को रिकॉर्ड करता है।
  • BoP के घटक:
    • एक देश का BoP खाता तैयार करने के लिये विश्व के अन्य हिस्सों के बीच इसके आर्थिक लेन-देन को चालू खाते, पूंजी खाते, वित्तीय खाते और त्रुटियों तथा चूक के तहत वर्गीकृत किया जाता है।
    • चालू खाता: यह दृश्यमान (जिसे व्यापारिक माल भी कहा जाता है - व्यापार संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है) और अदृश्यमान वस्तुओं (गैर-व्यापारिक माल भी कहा जाता है) के निर्यात तथा आयात को दर्शाता है।
      • अदृश्यमान में सेवाएँ, विप्रेषण और आय शामिल हैं।
    • पूंजी खाता और वित्तीय खाता: यह किसी देश के पूंजीगत व्यय और आय को दर्शाता है।
    • त्रुटियाँ और चूक: कभी-कभी भुगतान संतुलन की स्थिति न होने के कारण इस असंतुलन को BoP में त्रुटियों और चूक (Errors and Omissions) के रूप में दिखाया जाता है। यह सभी अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को सही ढंग से रिकॉर्ड करने में देश की अक्षमता को दर्शाता है।
    • कुल मिलाकर BoP खाते में अधिशेष या घाटा हो सकता है।
      • यदि कोई कमी है तो विदेशी मुद्रा भंडार से पैसा निकालकर इसे पूरा किया जा सकता है।
      • यदि विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है तो इस घटना को BoP संकट के रूप में जाना जाता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

कोविड के कारण मातृ मृत्यु दर में वृद्धि: लैंसेट रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 महामारी से निपटने में स्वास्थ्य प्रणाली की विफलता के कारण मातृ मृत्यु दर और गर्भपात के मामलों में वृद्धि हुई है।

  • यह रिपोर्ट ब्राज़ील, मैक्सिको, अमेरिका, कनाडा, यू.के., डेनमार्क, नीदरलैंड, इटली, भारत, चीन और नेपाल सहित 17 देशों में किये गए 40 अध्ययनों के विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक परिदृश्य:

    • मृत्यु दर में वृद्धि:
      • गर्भपात के मामलों में 28% की वृद्धि हुई और गर्भावस्था या प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु दर का जोखिम लगभग एक-तिहाई बढ़ गया है।
      • कोविड-19 महामारी के दखल के कारण माताओं और शिशुओं दोनों की मृत्यु के मामलों में वृद्धि देखने को मिली है।
        • मातृ अवसाद में भी वृद्धि हुई।
    • गरीब देश सर्वाधिक प्रभावित:
      • गर्भावस्था पर कोविड-19 का प्रभाव गरीब देशों में अत्यधिक देखा गया।
    • हाशिये पर स्थित समूह सर्वाधिक प्रभावित:
      • हाशिये पर स्थित समूहों में कोविड-19 का प्रभाव सर्वाधिक देखा गया।
        • नेपाल में अस्पताल में होने वाले प्रसवों की संख्या में कमी को सर्वाधिक रूप से देखा गया।
        • यू.के. में महामारी की पहली लहर के दौरान कुल गर्भवती महिलाओं की मौतों में से 88% मौतें अल्पसंख्यक जातीय समूहों से संबंधित महिलाओं की हुईं।
  • भारतीय परिदृश्य:

    • वर्ष 2020 में अप्रैल और जून के बीच राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान वर्ष 2019 की इसी अवधि की तुलना में निम्नलिखित अंतर देखा गया:
      • चार या उससे अधिक प्रसव-पूर्व जाँच प्राप्त करने वाली गर्भवती महिलाओं में 27% की गिरावट।
      • संस्थागत प्रसव में 28% की गिरावट।
      • जन्म-पूर्व सेवाओं में 22% की गिरावट।
  • कारण:

    • स्वास्थ्य सेवाओं की अक्षमता:
      • स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की अक्षमता और महामारी का सामना करने के लिये लागू किये गए सख्त लॉकडाउन उपायों के कारण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुँच कम हो गई है।
    • सामाजिक परिवर्तन:
      • व्यापक सामाजिक परिवर्तन मातृ-स्वास्थ्य में गिरावट का कारण हो सकता है, इनमें घरेलू हिंसा, रोज़गार की हानि और स्कूल बंद होने के कारण बच्चों की अतिरिक्त देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियाँ शामिल हैं।
  • सुझाव:

    • काल्पनिक रणनीति:
      • नीति निर्माताओं और स्वास्थ्य सेवा नेतृत्त्वकर्त्ताओं द्वारा तत्काल वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित कर सुरक्षित और सम्मानजनक मातृत्व देखभाल के संरक्षण हेतु मज़बूत रणनीतियों का निरीक्षण किया जाना चाहिये।
    • निवेश में वृद्धि करना:
      • कम-संसाधन वाले क्षेत्रों में मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने में दशकों से देखी जा रही निवेश में कमी को पूरा करने के लिये तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
    • मातृत्व सेवा क्षेत्र के कर्मचारियों को दूसरे कार्यों में नियोजित न करना:
      • महामारी के दौरान महत्त्वपूर्ण और चिकित्सा देखभाल संबंधी मातृत्व सेवाओं से संबंधित कार्मिकों को अन्य कार्यों में नियोजित नहीं किया जाना चाहिये।
  • मातृ और बाल स्वास्थ्य से संबंधित कुछ भारतीय पहलें:

स्रोत-द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड-19 का पुनः संक्रमण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा 1,300 ऐसे व्यक्तियों के मामलों की जांँच की गई है जो दो बार कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं।

  • जांँच में पाया गया कि 1,300 लोगों में से 58 अर्थात् 4.5 प्रतिशत लोग कोरोना से दोबारा संक्रमित हुए।

प्रमुख बिंदु:

  • पुनः संक्रमण के वैश्विक मामले:

    • पुनः संक्रमण के पहले मामले की पुष्टि हॉन्गकॉन्ग में की गई।
    • अमेरिका और बेल्जियम में भी कुछ मामले सामने आए।
    • हालाँकि भारत में भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें लोगों का कोरोना टेस्ट कई बार पॉज़िटिव आया परंतु ऐसे मामलों को कोरोना के केस में शामिल नहीं किया जा सकता है।
      • इस प्रकार के मामले परसिस्टेंट वायरल शेडिंग (Persistent Viral Shedding) का परिणाम है। वायरल शेडिंग से तात्पर्य शरीर में वायरस के विस्तार से होता है।

परसिस्टेंट वायरल शेडिंग:

  • जब कोई व्यक्ति SARS-CoV-2 जैसे श्वसन वायरस (Respiratory Virus) से संक्रमित हो जाता है तो वायरस के कण विभिन्न प्रकार के वायरल रिसेप्टर (Viral Receptor) के साथ बंँधे होते हैं।
  • कोरोना वायरस से ठीक होने वाले लोगों में कोरोना के निम्न स्तर के वायरस कम-से-कम तीन महीने तक रह सकते हैं।
  • इस निम्न स्तर के वायरस में दूसरों को बीमार करने और संक्रमित कर देने की सीमित क्षमता ही होती है. इस वायरस का पता डायग्नोस्टिक टेस्ट के माध्यम से लगाया जा सकता है।
  • इस प्रकार लगातार वायरस से विकसित होने वाली बीमारी को पर्सिस्टेंट वायरल शेडिंग कहा जाता है।
  • पुनः संक्रमण के अध्ययन का महत्त्व:

    • यह स्पष्ट करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति जो एक बार संक्रमित हो चुका है क्या उसके द्वारा बीमारी के खिलाफ स्थायी प्रतिरक्षा विकसित की जा चुकी है या वह कुछ समय बाद पुनः संक्रमित होता है।
      • पुनः संक्रमित होने की संभावना के प्रति समझ कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
    • यह बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने हेतु आवश्यक रणनीतिक हस्तक्षेप के निर्धारण में सहायक होगा।
    • यह इस बात का आकलन करने में भी मदद करेगा कि कब तक लोगों को मास्क का उपयोग और शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना होगा।
    • इसका प्रभाव टीकाकरण की रफ्तार पर भी देखने को मिलेगा।
  • पुनः संक्रमण का निर्धारण:

    • पुनः संक्रमण की पुष्टि हेतु वैज्ञानिकों द्वारा वायरस के नमूने का जीनोम अनुक्रम विश्लेषण (Genome sequence analysis) किया गया।
      • क्योंकि वायरस में लगातार उत्परिवर्तन की क्रिया होती रहती है। दो नमूनों के जीनोम अनुक्रमों में कुछ अंतर विद्यमान होता है।
    • हालांँकि जीनोम विश्लेषण हेतु प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति से वायरस के नमूने एकत्र नहीं किये गए हैं।
      • आमतौर पर अधिकांश मामलों में पिछले संक्रमण का कोई जीनोम अनुक्रम नहीं देखा गया, जिससे तुलना की जा सके।
    • इस प्रकार ICMR के वैज्ञानिकों द्वारा अपने अध्ययन में उन मामलों को शामिल किया गया जिनमें रोगी 102 दिनों के भीतर कम-से-कम दो बार संक्रमित हुए थे लेकिन इस प्रकार के संक्रमण को परसिस्टेंट वायरल शेडिंग में शामिल नहीं किया जाएगा।
      • सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (Centers for Disease Control- CDC) के अनुसार, वायरल शेडिंग में लगभग 90 दिनों का समय लगता है।
  • पुनः संक्रमण के लक्षण:

    • पुनः संक्रमण की मध्यावधि में अधिकांश रोगियों में वायरस का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है, हालांँकि कुछ रोगियों द्वारा हल्के लक्षणों की पुष्टि की गई है।
    • कुछ लक्षणों में रुक-रुक कर बुखार आना, खांँसी या सांँस लेने में तकलीफ आदि शामिल हैं।
  • पुनः संक्रमण का निहितार्थ:

    • पुनः संक्रमण के कारण स्थायी प्रतिरक्षा (Permanent Immunity) प्रणाली को विकसित नहीं किया जा सकता है।
      • यदि प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति के जीनोम का विश्लेषण करना संभव हो तो पुनः संक्रमण की पुष्टि सही तरीके से की जा सकती है।
    • यदि पुनः संक्रमण के मामलों की पुष्टि हो जाती है तो मास्क का प्रयोग और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय सभी लोगों के लिये सामान्य हो जाएंगे।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद:

  • भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं संवर्द्धन हेतु भारत का शीर्ष निकाय है।
  • ICMR द्वारा जारी अधिदेश समाज के लाभ हेतु चिकित्सा अनुसंधान का संचालन, समन्वय और कार्यान्वयन करना है जो उत्पादों/प्रक्रियाओं में चिकित्सा नवाचारों का अनुवाद कर उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल करता है।
  • यह भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

तेल आयात अनुबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने तेल उत्पादन में कटौती को लेकर सऊदी अरब के साथ तनाव के मद्देनज़र अपनी रिफाइनरियों (IOC, BPCL और HPCL) को मध्य-पूर्व क्षेत्र (Middle East Region) के बाहर से तेल की आपूर्ति की संभावनाओं पर विचार करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • सऊदी अरब के साथ तनाव:

    • वर्ष 2021 की शुरुआत में जब तेल की कीमतें बढ़ने लगी थी तो भारत चाहता था कि सऊदी अरब तेल का उत्पादन बढ़ाए, लेकिन उसने भारत की बातों को नज़रअंदाज कर दिया।
    • इसके चलते भारत सरकार ने तेल के आयात पर अपनी निर्भरता का विकेंद्रीकरण करने पर विचार किया।
    • भारत के लिये सऊदी अरब और अन्य ओपेक (OPEC- पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) देश कच्चे तेल के मुख्य आपूर्तिकर्त्ता हैं। इन देशों की शर्तें अक्सर खरीदार देशों को प्रभावित करती हैं।
      • ओपेक तेल निर्यात करने वाले 13 विकासशील देशों का एक स्थायी अंतर-सरकारी संगठन है जो अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करता है।
      • सदस्य देश: ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, काँगो गणराज्य, अंगोला और वेनेज़ुएला।
  • ओपेक देशों के साथ अनुबंध के मुद्दे:

    • भारतीय कंपनियाँ अपने तेल खरीद का दो-तिहाई हिस्सा एक निश्चित वार्षिक अनुबंध पर खरीदती हैं।
      • कंपनियों को इस अनुबंध से तेल की एक सुनिश्चित मात्रा की आपूर्ति की जाती है लेकिन तेल का मूल्य निर्धारण और अन्य शर्तें केवल आपूर्तिकर्त्ता के पक्ष में होती हैं।
    • इस वार्षिक अनुबंध से खरीदार किसी भी महीने बाहर हो सकता है लेकिन इसके लिये उसे छः माह पहले बताना होगा और आपूर्तिकर्त्ता द्वारा घोषित औसत आधिकारिक मूल्य का भुगतान करना होगा।
      • तेल खरीदारों के लिये अनुबंधित शर्तों को मानने की बाध्यता है, जबकि सऊदी अरब और अन्य तेल ओपेक देशों के पास यह विकल्प है कि यदि ओपेक देश तेल की कीमत को कृत्रिम रूप से बढ़ाने के लिये तेल का उत्पादन कम करने का निर्णय लेता है तो वे ऐसा कर सकते हैं।
  • भारत के पास विकल्प:

    • भारत में जब तेल का उत्पादन किसी कारण से गिरता है तब इसके मूल्य निर्धारण में लचीलेपन के साथ-साथ आपूर्ति की निश्चितता की भी ज़रूरत होती है।
      • इसके अलावा आपूर्ति समय और मात्रा के लचीलेपन के विकल्प (कम करने या बढ़ाने की क्षमता) पर भारत को विचार करना चाहिये।
    • भारतीय रिफाइनरी खरीदे जाने वाले तेल की मात्रा को अवधि अनुबंध के माध्यम से कम करने या स्पॉट बाज़ार (Spot Market) या वर्तमान बाज़ार से अधिक खरीदने पर विचार कर सकती हैं।
    • भारत को स्पॉट बाज़ार से खरीदारी करने पर दिन-प्रतिदिन तेल की कीमतों में होने वाली गिरावट से लाभ मिल सकता है।
      • यह शेयर बाज़ार की तरह है जहाँ किसी दिन या समय में कीमतें कम होने पर शेयर खरीदे जा सकते हैं।
    • राज्य के स्वामित्व वाली रिफाइनरियों को भी खरीदारी में समन्वय करने और निजी रिफाइनरियों जैसे- रिलायंस इंडस्ट्रीज़, नायरा एनर्जी आदि के साथ संयुक्त रणनीति बनाने के लिये कहा गया है।

भारत का तेल आयात

  • भारत विश्व में तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
  • भारत अपनी कुल तेल ज़रूरतों का 85% आयात करता है, जिससे वह अक्सर तेल के वैश्विक आपूर्ति तथा कीमतों के उतार-चढ़ाव की चपेट में रहता है।
  • भारत, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे अन्य बड़े आपूर्तिकर्त्ता ब्लॉकों की जगह अपने कुल तेल आयात का 60% मध्य-पूर्व के देशों से खरीदता है।
    • हाल के महीनों में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और गुयाना जैसे नए स्रोतों से अधिक तेल खरीदा है, जहाँ एक बड़ा भारतीय प्रवासी वर्ग रहता है।
    • हालाँकि भारत को इन देशों की तुलना में मध्य-पूर्व से भौगोलिक निकटता के कारण कम समय में और कम माल ढुलाई लागत पर तेल की आपूर्ति होती है।

स्रोत: द हिंदू


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2