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डेली न्यूज़

  • 04 Jun, 2020
  • 58 min read
भूगोल

उष्णकटिबंधीय तूफान क्रिस्टोबाल

प्रीलिम्स के लिये:

उष्णकटिबंधीय तूफान क्रिस्टोबाल,  उष्णकटिबंधीय तथा बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में अंतर, चक्रवातों के क्षेत्रीय नाम

मेन्स के लिये:

उष्णकटिबंधीय तथा बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवात

चर्चा में क्यों?

उष्णकटिबंधीय तूफान 'क्रिस्टोबाल' (Cristobal) मेक्सिको में लैंडफॉल करने के बाद धीरे-धीरे अंतर्देशीय भागों की ओर बढ़ रहा है, जिससे दक्षिणी मेक्सिको तथा अमेरिका के कुछ हिस्सों के प्रभावित होने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह तूफान पूर्वी प्रशांत महासागर में उत्पन्न उष्णकटिबंधीय तूफान अमांडा (Tropical Storm Amanda) के अधिविष्ट (किसी तूफान की समाप्ति के पूर्व की अवस्था) भाग से बना है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि 'अमांडा' तूफान के कारण हाल ही में अल सल्वाडोर और ग्वाटेमाला में कम-से-कम 17 लोग मारे गए थे।
  • उष्णकटिबंधीय तूफान क्रिस्टोबाल का निर्माण मेक्सिको की खाड़ी में हुआ है। 

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात: 

  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान होते हैं जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। 

क्रिस्टोबाल तूफान की विशेषताएँ:

  • तूफान की अवस्थिति: मेक्सिको से 15 मील की दूरी पर;
  • वायु की सामान्य गति: 50 मील प्रति घंटे;
  • वर्षा की संभावना: 25 से 50 सेंटीमीटर तक;

Tropical-Storm-Cristobal

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात निर्माण की अनुकूल स्थितियाँ: 

  • बृहत् समुद्री सतह;  
  • समुद्री सतह का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो; 
  • कोरिआलिस बल का उपस्थित होना; 
  • लंबवत पवनों की गति में अंतर कम होना;  
  • कमज़ोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण होना;  
  • समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।

चक्रवातों का निर्माण व समाप्ति:

  • चक्रवातों को ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है। समुद्रों से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति से ये तूफान अधिक प्रबल होते हैं। 
  • चक्रवातों के स्थल पर पहुँचने पर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है जिससे ये क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं। 
    • वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचते हैं चक्रवात का लैंडफॉल कहलाता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का मार्ग:

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा प्रारंभ में पूर्व से पश्चिम की ओर होती है क्योंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। लेकिन लगभग 20° अक्षांश पर ये चक्रवात कोरिओलिस बल के प्रभाव के कारण दाईं ओर विक्षेपित हो जाते हैं तथा लगभग 25° अक्षांश पर इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी ही जाती है। 30° अक्षांश के आसपास पछुआ हवाओं के प्रभाव के कारण इनकी दिशा पूर्व की ओर हो जाती है।

Pacific-Ocean

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के क्षेत्रीय नाम:

क्षेत्र 

चक्रवात नाम 

हिंद महासागर 

चक्रवात 

पश्चिमी अटलांटिक तथा पूर्वी प्रशांत महासागर 

हरीकेन 

पश्चिमी प्रशांत महासगर और दक्षिणी चीन सागर 

टाइफून 

ऑस्ट्रेलिया 

विली-विली 

बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Extra-Tropical Cyclones):

  • वे चक्रवातीय वायु प्रणालियाँ, जो उष्ण कटिबंध से दूर, मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं, उन्हें बहिरूष्ण या शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं।

उष्णकटिबंधीय तथा बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में अंतर:

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपनी ऊर्जा संघनन की गुप्त उष्मा से प्राप्त करते हैं जबकि बहिरूष्ण चक्रवात अपनी ऊर्जा दो भिन्न वायुराशियों के क्षैतिज तापीय अंतर से प्राप्त करते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में वायु की अधिकतम गति पृथ्वी की सतह के निकट जबकि बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में क्षोभसीमा के पास सबसे अधिक होती है।
  • ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उष्णकटिबंधीय चक्रवात के 'ऊष्ण कोर' क्षोभमंडल में जबकि अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात में 'ऊष्ण कोर' समताप मंडल में तथा 'शीत कोर' क्षोभमंडल में पाई जाती है।
  • 'ऊष्ण कोर' में वायु अपने आसपास की वायु से अधिक गर्म होती है, अत: निम्न दाब केंद्र बनने के कारण वायु तेज़ी से इस केंद्र की ओर प्रवाहित होती है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंसक विरोध प्रदर्शन

प्रीलिम्स के लिये:

पवित्र सप्ताह विद्रोह (The Holy Week Uprising), यू. एस. का ‘फेयर हाउसिंग एक्ट’,  वर्ष 1929 की महामंदी 

मेन्स के लिये:

संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्तमान हालत एवं आगामी चुनाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विश्व भर के कई अन्य देशों में भी देखने को मिले हैं।

प्रमुख बिंदु: 

  • इस विरोध प्रदर्शन को अलग-थलग करने के लिये अमेरिकी सरकार ने भीड़ के ऊपर आँसू गैस के गोले, रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल किया और अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रदर्शनकारियों को ‘ठग’ कहा एवं उन्हें गोली मारने और उनके खिलाफ सेना के इस्तेमाल करने की धमकी दी।   
    • यदि यही विरोध प्रदर्शन किसी गैर-पश्चिमी राष्ट्र में हो रहे होते और वहाँ का राष्ट्रपति ऐसी भाषा का प्रयोग करता तो अमेरिकी विदेश विभाग, ब्रिटिश, फ्राॅन्स और जर्मनी के विदेश कार्यालय तुरंत वहाँ की सरकार की निंदा करते और मानवाधिकारों का सम्मान करने का आह्वान करते तथा अमेरिकी काॅन्ग्रेस भी उस राष्ट्र के 'क्रूर' शासन के खिलाफ कानून बना देती या उस पर प्रतिबंध लगा देती।  
    • किंतु इस बार हिंसक विरोध प्रदर्शन, पुलिस की बर्बरता और राष्ट्रपति की धमकी का गवाह बनने वाला देश स्वयं संयुक्त राज्य अमेरिका है।
  • यह विरोध प्रदर्शन अमेरिका के लगभग सभी बड़े शहरों में फैल चुका है जो अप्रैल 1968 में डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों की याद दिलाते हैं। 
  • विश्लेषक बताते है कि अमेरिका में हो रहे ये विरोध प्रदर्शन सिर्फ अश्वेत नागरिक की हत्या का कारण नहीं है बल्कि ‘दंगों’ के माध्यम से जो हालात सामने आए हैं वह हज़ारों अमेरिकियों का गुस्सा है जो एक ही समय में कई बाधाओं से लड़ रहे हैं।   

अमेरिकी इतिहास का सबसे अशांत वर्ष 1968:  

  • वर्ष 1968 आधुनिक अमेरिकी इतिहास में सबसे अधिक उतार-चढाव वाले वर्षों में से एक था।
    • उल्लेखनीय है कि वियतनाम युद्ध के खिलाफ अमेरिका में विरोध-प्रदर्शन पहले से ही हो रहा था कि 4 अप्रैल, 1968 को टेनेसी राज्य के मेम्फिस के एक मोटल (एक प्रकार का होटल) में डॉ. मार्टिन लूथर किंग की हत्या कर दी गई। वहीं दो महीने के बाद राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रॉबर्ट एफ. केनेडी की लॉस एंजिल्स में गोली मारकर हत्या कर दी गई। 
  • डॉ. किंग की हत्या के कारण अमेरिकी शहरों में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया जिसे ‘पवित्र सप्ताह विद्रोह’ (The Holy Week Uprising) कहा जाता है।
  • यह हिंसक विद्रोह संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन डीसी, शिकागो, बाल्टीमोर, कंसास सिटी सहित सभी जगहों पर अधिकतर अश्वेत युवाओं द्वारा किया गया जिसने अमेरिकी गृहयुद्ध की याद को ताज़ा किया था।

अमेरिकी इतिहास में वर्ष 1968 और वर्ष 2020 के बीच समानताएँ:

  • अमेरिकी इतिहास में वर्ष 1968 और वर्ष 2020 के बीच काफी समानताएँ हैं। जॉर्ज फ्लॉयड की मृत्यु से पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका पहले से ही बड़े पैमाने पर आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधी संकटों से जूझ रहा था।
  • COVID-19 महामारी से अश्वेत समुदाय को काफी दिक्कत हुई जिसमें अब तक 100,000 से अधिक अमेरिकी नागरिकों की मौत हो चुकी है।
  • वर्ष 1929 की महामंदी (Great Depression) के बाद से अमेरिका में सबसे बड़ी आर्थिक मंदी देखी जा रही है। अश्वेत नागरिक फ्लॉयड की मौत ने अमेरिकी जनता के गुस्से के लिये एक चिंगारी का काम किया तो वहीं राष्ट्रपति ट्रंप की भड़काऊ भाषा ने इन प्रदर्शनों को हिंसक रूप दे दिया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने अतीत में कई बार नस्लीय हिंसा देखी है जिनमें अधिकतर विरोध प्रदर्शन स्थानीय स्तर के ही होते थे। किंतु वर्तमान में हो रहे विरोध प्रदर्शन वर्ष 1968 के विरोध प्रदर्शनों जैसे हैं। जिसे न्यू यॉर्कर (New Yorker) के संपादक ‘डेविड रेमनिक’ ने इसे ‘एक अमेरिकी विद्रोह’ (An American Uprising) कहा था। 
  • इस विद्रोह का कारण अमूर्त रूप से विभाजित देश है जो एक घातक संक्रमण (COVID-19), बेरोज़गारी और बिगड़ते नस्ल संबंधों की ट्रिपल चुनौतियों का सामना करने के लिये संघर्ष कर रहा है।

'लॉ एंड ऑर्डर' अभियान ('Law and Order' Campaign):

  • वर्ष 1968 में अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिये नेशनल गार्ड की तैनाती की था किंतु उन्होंने डॉ. लूथर किंग की हत्या के अगले दिन अमेरिकी काॅन्ग्रेस को लिखे एक पत्र में कहा था कि निष्पक्ष नागरिक अधिकारों के हीरो (डॉ. मार्टिन लूथर किंग) की स्थायी माँगों में से एक ‘फेयर हाउसिंग एक्ट’ पारित करना था।
    • परिणामतः पाँच दिनों के भीतर वर्ष 1968 का नागरिक अधिकार अधिनियम, शीर्षक VIII, जिसे ‘फेयर हाउसिंग एक्ट’ के रूप में जाना जाता है, को प्रतिनिधि सभा ने एक बड़े अंतर से पारित किया।
  • वहीं वर्तमान में जिस तरह से राष्ट्रपति ट्रंप स्थिति को संभाल रहे हैं उससे लगता है कि उनकी तीव्र प्रतिक्रिया सैन्यवादी है जिसने अब तक प्रदर्शनकारियों को उकसाया है और अमेरिकी समाज में विभाजन को गहरा किया है।
  • जानकर बताते हैं कि आगामी राष्ट्रपति पद के लिये होने वाले चुनाव के कारण राष्ट्रपति ट्रंप स्पष्ट रूप से पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की बनाई रेखा का अनुसरण कर रहे हैं। 
  • वर्ष 1968 में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद रिचर्ड निक्सन ने अपने चुनावी अभियान में 'लॉ एंड ऑर्डर' का आह्वान किया। यह एक नस्लीय संदेश था जिसने अश्वेत नागरिकों द्वारा की गई हिंसा के समक्ष श्वेत नागरिकों के वोटों के ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया।
  • ‘लॉ एंड ऑर्डर’ अभियान ने निक्सन के राजनीतिक भाग्य में एक नई जान फूंक दी, जिसे लिंडन बी. जॉनसन ने कभी ‘जीर्ण प्रचारक’ (Chronic Campaigner) कहा था। निक्सन ने उस वर्ष राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता था।
  • इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि आगामी चुनाव में ट्रंप फिर से अर्थव्यवस्था पर दाँव नहीं लगा सकते क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अत्यंत नाज़ुक स्थिति में है।
    • बढ़ती हिंसा और नागरिक अशांति के बीच यह स्पष्ट है कि ट्रंप का चुनावी अभियान निक्सन के चुनावी अभियान की ही एक धुरी है।
    • क्योंकि व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने 'कानून एवं व्यवस्था' बनाए रखने का आह्वान किया किंतु कुछ ही घंटों के बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सेना का उपयोग करने की धमकी देते हुए कहा कि ‘मैं आपकी कानून एवं व्यवस्था का राष्ट्रपति हूँ’।
  • किंतु वर्तमान एवं अतीत की स्थिति में एक बड़ा अंतर है। जब निक्सन ने प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाते हुए अभियान शुरू किया था तो वह राष्ट्रपति नहीं थे। किंतु वर्तमान में ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और अमेरिकी शहर उनकी निगरानी में हिंसक प्रदर्शनों के गवाह बन रहे हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

COVID-19 प्रबंधन सूचकांक

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19 प्रबंधन सूचकांक

मेन्स के लिये:

महामारी प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार द्वारा 'COVID-19 प्रबंधन सूचकांक' (COVID-19 Management Index) के तहत 10 राज्यों के लिये किये गए विश्लेषण में राजस्थान प्रथम स्थान पर रहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 महामारी का ‘डबलिंग टाइम’ (पॉज़िटिव रोगियों की संख्या के दोगुने होने का समय) जहाँ देश में 12 दिन है, वहीं राजस्थान में यह 18 दिन का है।
  • 'COVID-19 प्रबंधन सूचकांक' में COVID-19 के पॉज़िटिव मामले, सही हो चुके मरीज़, मृत्यु-दर जैसे पैरामीटरों के आधार पर राज्यों का विश्लेषण किया गया है।

राजस्थान की COVID-19 के संदर्भ में वर्तमान स्थिति:

  • हालाँकि राजस्थान में COVID-19 पॉज़िटिव मामलों की संख्या 10,000 होने वाली है लेकिन सक्रिय मामलों (Active Cases) का ग्राफ लगातार घट रहा है। अब राज्य में केवल 2,699 सक्रिय मामले हैं।
  • राजस्थान में COVID-19 महामारी के कारण होने वाली मृत्यु-दर 2.16% रही जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम थी। वही मरीज़ों का 'रिकवरी रेट' 67.59% है।

राजस्थान सरकार द्वारा किये गए प्रयास:

  • राज्य में वर्तमान में प्रतिदिन 18,250 परीक्षण किये जा रहे हैं तथा शीघ्र ही 25,000  परीक्षण प्रतिदिन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाएगा।
  • राज्य में विभिन्न शहरों से 11 लाख प्रवासियों की वापसी के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में महामारी का व्यापक प्रसार नहीं हुआ क्योंकि महामारी के प्रसार को रोकने के लिये ग्रामों तथा उपखंड स्तर पर 'सूक्ष्म नियोजन' प्रणाली को अपनाया गया था।

राजस्थान सरकार की आगे की रणनीति:

  • राज्य का 'चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग' वर्तमान में अन्य स्वास्थ्य सेवाओं, जैसे कि टीकाकरण, परिवार कल्याण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम आदि पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, ताकि राज्य का बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचा तथा 'स्वास्थ्य सूचकांक' COVID-19 महामारी के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित न हो। 
  • राज्य सरकार 15 ज़िलों के 21 केंद्रों पर शीघ्र ही नैदानिक परीक्षण भी शुरू करेगी। इनमें वे ज़िले भी शामिल हैं, जहाँ अन्य राज्यों से सबसे ज्यादा प्रवासी वापस आए हैं।
  • प्रत्येक ग्राम में 'स्वास्थ्य जागरूकता' बढ़ाने के लिये दो स्वास्थ्य मित्र प्रशिक्षित तथा नियुक्त किये जाएंगे। 

निष्कर्ष:

  • COVID-19 महामारी का बेहतर प्रबंधन ही इस महामारी से बचाव का एकमात्र तरीका है। अत: सभी राज्य सरकारों को संस्थानों, संगठनों, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ मिलकर महामारी प्रबंधन की योजनाओं को वास्तविक धरातल पर लागू करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत में कोरोना वायरस के अद्वितीय लक्षण (A3i)

प्रीलिम्स के लिये:

कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद

मेन्स के लिये:

भारत में SARS-CoV-2 के विभिन्न क्लैड/प्रकार और स्वास्थ्य पर उनका प्रभाव  

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी’ (Institute of Genomics and Integrative Biology) तथा सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (Centre for Cellular and Molecular Biology) के शोधकर्त्ताओं ने भारत में एक नए कोरोना वायरस की पहचान की है।

प्रमुख बिंदु:

    • कोरोनावायरस का यह क्लेड/प्रकार संभवतः भारत में दूसरा सबसे प्रचलित प्रकार है और इसमें विश्व स्तर के 3.5% जीनोम शामिल हो सकते हैं।
    • शोधकर्त्ताओं द्वारा चिह्नित कोरोना वायरस के इस क्लेड/प्रकार का नाम A3i है। गौरतलब है कि शोधकर्त्ताओं द्वारा विश्लेषित कोरोनावायरस के 361 जीनोम में से 41% जीनोम A3i से संबंधित हैं।
    • उल्लेखनीय है कि भारत में कोरोनावायरस का सबसे प्रमुख क्लेड (Clade) A2a है और शोधकर्त्ताओं द्वारा विश्लेषित कोरोनावायरस के 361 जीनोम में से 45% जीनोम A2a से संबंधित हैं।
      • क्लेड (Clade): SARS-CoV-2 का क्लैड/प्रकार वायरस का एक समूह है जिन्हें जीनोम के कुछ हिस्सों में विशेष उत्परिवर्तन या समानता के आधार पर एक साथ समूहीकृत किया गया है।
    • A3i के अनुक्रमण में चार स्थानों पर भिन्नता के कारण यह दूसरे वायरस से अलग है।
    • वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार,  A2a की तुलना में A3i का उत्परिवर्तन बहुत धीमी गति से होता है जो इसके प्रसार को रोकने का संभावित कारण हो सकता है। 
    • इस बात का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि A3i अत्यधिक घातक है या इससे ज्यादा मृत्यु होती है। 
    • A3i का प्रसार तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और दिल्ली में अत्यधिक है।  
    • विश्वभर में 11 प्रकार के SARS-CoV-2 की पहचान की गई है जिनमें से भारत में 6 प्रकार के वायरस चिह्नित किये गए हैं।
    • उत्परिवर्तित होने के पश्चात् A2a फेफड़ों को अत्यधिक प्रभावित करता है। वर्तमान में दुनिया भर में A2a का प्रसार सबसे अत्यधिक है। 
    • पिछले अध्ययनों से पता चला है कि टाइप ओ (Type O) वायरस सबसे पुराना था जिसे चीन में चिह्नित किया गया था। 
    • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research-ICMR) के अनुसार, भारत में SARS-CoV-2 वायरस के तीन प्रमुख क्लेड/प्रकार प्रचलित हैं जिनके स्रोत वुहान, अमेरिका और यूरोप हैं।

    वर्गीकरण का महत्त्व:

    • इस तरह के वर्गीकरण से यह जानने में आसानी होती हैं कि वायरस कितने खतरनाक हैं और उनके प्रसार की गति क्या है। 
    • ये वर्गीकरण कुछ विशेष प्रकार के टीकों से जोखिम को कम किये जा सकने की संभावना का भी पता लगाने में सहायक साबित हो सकते हैं। 

    कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र

    (Centre for Cellular & Molecular Biology- CCMB):

    • ‘कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र’ आधुनिक जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है।
    • CCMB की शुरुआत 1 अप्रैल, 1977 को एक अर्द्ध-स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी।
    • उद्देश्य:
      • आधुनिक जीव विज्ञान के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान का संचालन करना।
      • जीव विज्ञान के अंतर-अनुशासनात्मक क्षेत्रों में नई और आधुनिक तकनीकों के लिये केंद्रीकृत राष्ट्रीय सुविधाओं को बढ़ावा देना।

    स्रोत: द हिंदू


    कृषि

    ग्रामीण भारत के विकास हेतु प्रमुख निर्णय

    प्रीलिम्स के लिये

    सरकार द्वारा लिये गए विभिन्न निर्णयों का विवरण

    मेन्स के लिये

    ग्रामीण भारत के विकास के संबंध में सरकार द्वारा लिये गए विभिन्न निर्णय और उनका प्रभाव

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में ग्रामीण भारत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार को लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित की गई, जिसमें भारतीय ग्रामीण किसानों की मदद के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाने हेतु कई महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय लिये गए। 

    प्रमुख बिंदु

    • देश भर में COVID-19 महामारी के तीव्र प्रसार के कारण भारत समेत विश्व की तमाम अर्थव्यवस्थाएँ काफी तनाव का सामना कर रही हैं, पहले से ही सुस्त पड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था अब और अधिक संकट की स्थिति में आ गई है।
    • उल्लेखनीय है कि COVID-19 महामारी से पूर्व भी भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारी तनाव का सामना कर रही थी और ग्रामीण मांग काफी न्यूनतम स्तर पर आ गई थी, इसके कारण न केवल भारतीय किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनः जीवित करना और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है।
    • ऐसे में मंदी की स्थिति से निपटने के लिये सरकार द्वारा तमाम तरह के प्रयास किये जा रहे हैं, इन्ही प्रयासों की एक कड़ी के तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए हैं।

    प्रमुख निर्णय

    आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम में संशोधन

    • निर्णय: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम, 1955 में ऐतिहासिक संशोधन को मंज़ूरी दी है, जो कि कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाने और किसानों की आय में बढ़ोतरी करने की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है।
      • आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम में संशोधन के माध्यम से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्‍याज और आलू जैसी वस्‍तुओं को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटा दिया जाएगा। इस व्‍यवस्‍था से निजी निवेशक अत्‍यधिक नियामकीय हस्‍तक्षेप के भय से मुक्‍त हो जाएंगे।
      • वहीं सरकार ने नियामकीय व्‍यवस्‍था को उदार बनाने के साथ ही उपभोक्‍ताओं के हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की है। संशोधन के तहत यह व्‍यवस्‍था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि‍ उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है।
    • आवश्यकता: यद्यपि भारत में अधिकतर कृषि वस्तुओं के उत्पादन में अधिशेष की स्थिति है, किंतु इसके बावजूद कोल्‍ड स्‍टोरेज, प्रसंस्‍करण और निर्यात में निवेश के अभाव में किसान अपनी उपज की सही कीमत प्राप्त नहीं कर पाते हैं, क्योंकि आवश्यक वस्तु अधिनियम के भय के कारण उनकी उद्यमशीलता हतोत्‍साहित होती है। 
      • जब भी शीघ्र नष्‍ट हो जाने वाली कृषि उपज की अधिक पैदावार होती है, तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में यदि पर्याप्‍त प्रसंस्‍करण सुविधाएँ उपलब्‍ध हों तो व्यापक पैमाने पर इस प्रकार की बर्बादी को रोका जा सकता है।
    • लाभ: उत्‍पादन, भंडारण, ढुलाई, वितरण और आपूर्ति करने की आज़ादी से व्‍यापक स्‍तर पर उत्‍पादन करना संभव हो जाएगा और इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment-FDI) को आकर्षित किया जा सकेगा। इससे कोल्‍ड स्‍टोरेज में निवेश बढ़ाने और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) के आधुनिकीकरण में मदद मिलेगी।
      • यह संशोधन किसानों और उपभोक्‍ताओं दोनों के लिये ही मददगार साबित होगा। इसके साथ ही भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण होने वाली कृषि उपज की बर्बादी को भी रोका जा सकेगा।

    कृषि उपज का बाधा मुक्त व्यापार

    • निर्णय: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020’ को मंज़ूरी दी है। इस अध्‍यादेश का मूल उद्देश्य ‘कृषि उत्पाद विपणन समिति’ (APMC) की सीमाओं से बाहर किसानों को कारोबार के अतिरिक्‍त अवसर मुहैया कराना है जिससे कि उन्हें प्रतिस्पर्द्धात्मक माहौल में अपने उत्पादों की अच्‍छी कीमतें मिल सकें।
    • आवश्यकता: कई प्रकार के नियामक प्रतिबंधों के कारण देश के किसानों को अपने उत्पाद बेचने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अधिसूचित कृषि उत्पाद विपणन समिति (APMC) वाले बाज़ार क्षेत्र के बाहर किसानों पर उत्पाद बेचने पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। उन्हें अपने उत्पाद सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त खरीदारों को ही बेचने की बाध्यता है।
    • लाभ: अध्यादेश के लागू होने से किसानों के लिये एक सुगम और मुक्त व्यापार वातावरण निर्मित हो सकेगा जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की स्वतंत्रता होगी। 

      • इससे किसानों को अधिक विकल्प मिल सकेंगे, बाज़ार की लागत कम होगी और किसानों को अपनी उपज की बेहतर कीमत मिल सकेगी। इसके अलावा अतिरिक्त उपज वाले क्षेत्रों में भी किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य मिल सकेगा और साथ ही कम उपज वाले क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को भी अधिक कीमतें नहीं चुकानी पड़ेंगी।
      • अध्यादेश में कृषि उत्पादों का सुगम व्यापार सुनिश्चित करने के लिये एक ई-प्लेटफॉर्म निर्मित किये जाने का भी प्रस्ताव है।
      • यह अध्यादेश निश्चित रूप से भारत में ‘एक देश, एक कृषि बाज़ार’ के निर्माण का मार्ग प्रशस्‍त करेगा और कठोर परिश्रम करने वाले हमारे किसानों के लिये सही कीमत सुनिश्चित करेगा।

    किसानों को विभिन्न हितधारकों से जोड़कर सशक्त बनाना

    • निर्णय: प्रधानमंत्री नरेंद्र की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020’ को भी स्वीकृति दी है। यह अध्यादेश किसानों की उपज की वैश्विक बाज़ारों में आपूर्ति के लिये आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला तैयार करने का कार्य करेगा। किसानों की ऊँचे मूल्य वाली कृषि हेतु तकनीक और परामर्श तक पहुँच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें ऐसी फसलों के लिये तैयार बाज़ार भी मिलेगा।
    • आवश्यकता: भारतीय कृषि को खेतों के छोटे आकार के कारण विखंडित खेती के रूप में वर्गीकृत किया जाता है तथा मौसम पर निर्भरता, उत्पादन की अनिश्चितता और बाज़ार अनिश्चितता इसकी कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं। इसके चलते कृषि में काफी अधिक जोखिम है और इनपुट (Input) तथा आउटपुट (Output) प्रबंधन के मामले में कृषि काफी अप्रभावी है।
    • लाभ: यह अध्यादेश ग्रामीण किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाएगा। इससे किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स (Inputs) तक पहुँच भी सुनिश्चित होगी। इससे विपणन की लागत में कमी आएगी और किसानों की आय भी सुधरेगी।
      • किसान प्रत्यक्ष रूप से विपणन से जुड़ सकेंगे, जिससे मध्यस्थों की भूमिका समाप्त होगी और उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा।

    किसानों के कल्याण के लिये सरकार की प्रतिबद्धता 

    • सरकार द्वारा कृषि और संबद्ध गतिविधियों में संलग्न लोगों को बढ़ावा देने के लिये ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के हिस्से के तौर पर कई कदमों की घोषणा की गई हैं।
    • इनमें किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card) के ज़रिये रिआयती ऋण देना, कृषि-ढाँचा संबंधी परियोजनाओं के लिये वित्तीय सुविधा, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और मछलीपालन को मज़बूत करने हेतु उपाय, विभिन्न बिमारियों के विरुद्ध टीकाकरण अभियान, हर्बल खेती (Herbal Cultivation) को प्रोत्साहन, मधुमक्खी पालन को बढ़ावा और ऑपरेशन ग्रीन (Operation Green) आदि शामिल हैं।
    • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi-PM-KISAN) योजना के माध्यम से 9.54 करोड़ से अधिक किसान परिवारों को लाभ हुआ है और लॉकडाउन अवधि के दौरान अब तक 19,515 करोड़ रुपए वितरित किये गए हैं। लॉकडाउन अवधि के दौरान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana-PMFBY) के तहत 8,090 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। 

    COVID-19 और भारतीय अर्थव्यवस्था

    • देश में कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रकोप को रोकने के लिये देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया है, ऐसे में सभी प्रकार की विनिर्माण और गैर-विनिर्माण गतिविधियाँ रुक गई हैं।
    • COVID-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को काफी गंभीर रूप से प्रभावित किया है और भारत इसका कोई अपवाद नहीं है।
    • पहले से ही संकट का सामना कर रही भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अधिक संकट की स्थिति में आ गई है। विभिन्न विशेषज्ञों का मानना है कि लॉकडाउन का भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा।
    • ग्रामीण क्षेत्र में COVID-19 का सबसे अधिक प्रभाव कृषि आपूर्ति-श्रृंखला पर देखने को मिला है, यद्यपि सरकार ने परमिट व्यवस्था के माध्यम से आवश्यक फल ​​और अनाज के आवागमन को सुनिश्चित करने का प्रयास किया है, किंतु इस व्यवस्था का सफल कार्यान्वयन नहीं हो सका और अधिकांश लोगों को इस प्रकार का परमिट नहीं मिल सका।
      • इससे राज्यों के कई किसानों को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है। 
    • लॉकडाउन के कारण देश का कृषि निर्यात पूरी तरह से बंद हो गया है, जिससे किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। आँकड़ों के अनुसार, भारत फसलों का एक प्रमुख निर्यातक है और वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत का कुल कृषि निर्यात 685 अरब रुपए था।

    स्रोत: पी.आई.बी.


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    भारत के डिजिटल कर की जाँच

    प्रीलिम्स के लिये

    यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव, डिजिटल कर

    मेन्स के लिये

    डिजिटल कर से संबंधित निर्णय का प्रभाव, भारत-अमेरिका संबंधों पर अमेरिकी जाँच के प्रभाव

    चर्चा में क्यों?

    अमेरिकी वाणिज्य मामलों की एजेंसी ‘यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव’ (United States Trade Representative-USTR) नेटफ्लिक्स (Netflix), उबर (Uber), लिंक्डइन (LinkedIn) और स्पॉटिफाई (Spotify) जैसी अमेरिकी डिजिटल सेवा कंपनियों के राजस्व पर भारत सहित 10 देशों द्वारा अपनाए गए या विचाराधीन करों की जाँच शुरू करने पर विचार कर रही है। 

    प्रमुख बिंदु

    • अमेरिकी एजेंसी के अनुसार, बीते दो वर्षों में विभिन्न सरकारों ने उस प्रकार के राजस्वों पर कर अधिरोपित किया है अथवा करने पर विचार कर रही हैं, जिसे कंपनियों द्वारा उस देश की सीमा में मौजूदा उपयोगकर्त्ताओं को कुछ डिजिटल सेवाएँ प्रदान करके अथवा उन्हें लक्षित करके उत्पन्न किया गया है।
    • इन्हें डिजिटल कर के रूप में लागू किया जा रहा है। जिनके कारण कई बड़ी अमेरिकी कंपनियों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
    • उल्लेखनीय है कि बीते दिनों भारत सरकार ने घोषणा की थी कि 1 अप्रैल, 2020 से देश में प्रदान की जाने वाली डिजिटल सेवाओं के लिये सभी विदेशी बिलों पर 2 प्रतिशत कर लगाया जाएगा।
    • यह कर ई-कॉमर्स सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियों पर भी देय होगा। साथ ही यह कर उन कंपनियों पर भी लागू होगा जो ऑनलाइन विज्ञापन के माध्यम से भारतीय ग्राहकों को लक्षित करती हैं। यह कर केवल उन गैर-निवासी कंपनियों पर लागू होता है, जिनकी वार्षिक आय 2, 67,000 डॉलर से अधिक है।

    भारत का पक्ष

    • उम्मीद है कि जल्द ही भारत इस संबंध में USTR को अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएगा। भारत सरकार द्वारा यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत सरकार का यह निर्णय वर्ष 1995 के ‘सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौते’ (General Agreement on Trade in Services-GATS) के अनुरूप है।
    • साथ ही इस प्रकार के कर के अधिरोपण का निर्णय विश्व की सभी कंपनियों पर लागू होगा, न कि केवल अमेरिकी कंपनियों पर।

    इस निर्णय के निहितार्थ 

    • अमेरिका इस तथ्य को लेकर चिंतित है कि उसके कुछ व्यापारिक भागीदार अमेरिकी कंपनियों को अनुचित रूप से लक्षित करने के लिये विशेष रूप से योजनाएँ डिज़ाइन कर रहे हैं। 
    • भारतीय परिदृश्य में यह निर्णय संभावित रूप से भारत और अमेरिका के मध्य आगामी समय में होने वाले एक द्विपक्षीय व्यापार सौदे के परिणाम को प्रभावित कर सकता है।
    • विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी वाणिज्य मामलों की एजेंसी का यह निर्णय विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) की असमर्थता की पृष्ठभूमि में अमेरिकी प्रशासन के एकपक्षीय रवैये की शुरुआत का संकेत देता है। 

    संबंधित अमेरिकी कानून

    • अमेरिका के व्यापार अधिनियम, 1974 (Trade Act of 1974) की धारा 301  यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव (USTR) को किसी भी अन्य देश द्वारा की गई ऐसी कार्रवाई की जाँच करने का अधिकार देता है जो अनुचित अथवा भेदभावपूर्ण है और जिससे अमेरिकी व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

    यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव 

    (United States Trade Representative-USTR)

    • यह संयुक्त राज्य अमेरिका की एक एजेंसी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1962 में अमेरिका के एक विशेष व्यापार प्रतिनिधि के रूप में हुई थी।
    • यह एजेंसी संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये व्यापार नीति विकसित करने और इस संबंध में अमेरिका के राष्ट्रपति से सिफारिश करने के लिये उत्तरदायी है तथा इसके द्वारा ही द्विपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर व्यापार वार्ता आयोजित की जाती है ।

    निष्कर्ष 

    • विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी भविष्य में इस प्रकार की जाँच और अधिक बढ़ सकती हैं, क्योंकि अब यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे बहुपक्षीय संगठनों को लगभग निरर्थक बनाने के पश्चात् एकपक्षीय मार्ग अपनाने की अमेरिकी रणनीति का एक हिस्सा बन गया है।
    • वैश्विक व्यापार में इलेक्ट्रॉनिक सेवाओं के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए, यह जाँच अमेरिका द्वारा इस तरह की कार्रवाई के लिये मंच निर्धारित कर सकती है।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    वास्तविक समय में विद्युत की खरीद-बिक्री

    प्रीलिम्स के लिये:

    पॉवर सिस्टम ऑपरेशन कार्पोरेशन लिमिटेड, राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र

    मेन्स के लिये:

    वास्तविक समय में विद्युत की खरीद-बिक्री से संबंधित मुद्दे 

    चर्चा में क्यों?

    विद्युत मंत्रालय (Ministry of Power) ने 3 जून, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से देशभर में वास्तविक समय (Real Time) में विद्युत की खरीद-बिक्री हेतु बाज़ार की शुरुआत की है।

    प्रमुख बिंदु:

    • उल्लेखनीय है कि विद्युत् मंत्रालय द्वारा उठाए गए इस कदम से भारतीय विद्युत बाज़ार भी विश्व में संचालित ‘रियल टाइम इलेक्ट्रिसिटी मार्केट’ की श्रेणी में शामिल हो गया है।
    • रियल टाइम इलेक्ट्रिसिटी मार्केट (Real Time Electricity Market-RTEM) एक संगठित बाज़ार है जहाँ भारत के क्रेताओं एवं विक्रेताओं द्वारा वास्तविक समय में आवश्यकताओं के अनुसार विद्युत की खरीद-बिक्री की जाएगी।
    • रियल टाइम मार्केट लागू किये जाने से वास्तविक समय में विद्युत बाज़ार में अपेक्षित लचीलापन आएगा साथ ही बाज़ार में उपलब्ध अधिशेष विद्युत का ईष्टतम उपयोग सुनिश्चित किया जा सकेगा।
    • रियल टाइम मार्केट में एक दिन में कुल 48 नीलामी सत्र (Auction Sessions) आयोजित किये जाएंगे अर्थात् प्रत्येक 30 मिनट पर विद्युत की नीलामी की जाएगी और सत्र बंद होने के एक घंटे के भीतर विद्युत का वितरण किया जाएगा।
    • रियल टाइम मार्केट के माध्यम से विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्काम) को प्रतिस्पर्द्धा मूल्य पर बाज़ार में पहुँचने के लिये एक वैकल्पिक तंत्र उपलब्ध कराया जाएगा।
    • लंबी अवधि के अनुबंध एवं रियल टाइम मार्केट में सहभागिता करने के लिये विद्युत उत्पादक कंपनियों के लिये विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के साथ लाभ साझा करने हेतु एक तंत्र उपलब्ध कराया गया है। 
    • गौरतलब है कि रियल टाइम मार्केट से वर्ष 2022 तक भारत सरकार के 175 गीगावाट (Gigawatt- GW) नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy-RE) के लक्ष्य को प्राप्त करने में मज़बूती मिलेगी।
    • राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र (National Load Despatch Centre)-पोसोको (POSOCO) बिजली एक्सचेंज के बीच समन्वय में स्वचालन को लेकर ज़रूरी सुविधा उपलब्ध करा रहा है ताकि रियल टाइम मार्केट के तहत तेज़ी से व्यापार किया जा सके। 

    पॉवर सिस्टम ऑपरेशन कार्पोरेशन लिमिटेड 

    (Power System Operation Corporation Limited-POSOCO):

    • ‘पॉवर सिस्टम ऑपरेशन कार्पोरेशन लिमिटेड’ भारत सरकार का उपक्रम है जो क्षेत्रीय भार प्रेषण केंद्रों (Regional Load Despatch Centres-RLDCs) और राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र (National Load Despatch Centre-NLDC) के संचालन और जनशक्ति की आवश्यकता से संबंधित सभी पहलुओं का पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण करता है। 
    • इसमें 5 क्षेत्रीय भार प्रेषण केंद्र और एक राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र शामिल है।
    • ‘राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र और क्षेत्रीय भार प्रेषण केंद्र’ विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत कार्य करते हैं।
    • राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र के कार्य:
      • केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग एवं केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किये गए दिशा-निर्देशों या नियमों के अनुसार प्रेषण प्रणाली के संचालन से संबंधित जानकारी का प्रसार करना।
      • राष्ट्रीय ग्रिड का संचालन एवं उनकी सुरक्षा करना।
      • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा के विनिमय हेतु समन्वय करना 

      उद्देश्य:

      • विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को अपनी विद्युत आवश्यकताओं की योजना बनाने में मदद करना।
      • डिस्कॉम को अपनी विद्युत संबंधी आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा करने में मदद करना।
      • नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की निरंतर या परिवर्तनशील प्रकृति के कारण ग्रिड प्रबंधन की चुनौतियों को रियल टाइम मार्केट की साहयता से कम करना।
      • बोली लगाने के अल्प समय और परिभाषित प्रक्रियाओं के कारण क्रेता अपनी ज़रूरत के हिसाब से विद्युत की खरीद कर सकेंगे। 
      • विद्युत उत्पादक कंपनियों को भी अपनी गैर-आवश्यक क्षमता को बेचने का अवसर प्राप्त होगा जिससे उनकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी।
      • विद्युत खरीद की लागत को कम किया जा सकेगा साथ ही विद्युत की ज़रूरत पड़ने पर रियल टाइम इलेक्ट्रिसिटी मार्केट से खरीदा भी जा सकता है। 

      स्रोत: पीआईबी  


      विविध

      Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 04 जून, 2020

      रवीश कुमार

      अनुभवी राजनयिक और विदेश मंत्रालय के पूर्व प्रवक्ता रवीश कुमार को फिनलैंड (Finland) में भारत का नया राजदूत नियुक्त किया गया है। वर्तमान में रवीश कुमार विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव के तौर पर कार्यरत हैं। रवीश कुमार फिनलैंड में भारत की राजदूत वाणी राव का स्थान लेंगे, जिन्हें वर्ष 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था। रवीश कुमार 1995 बैच के भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service-IFS) अधिकारी हैं। रवीश कुमार को जुलाई 2017 में विदेश मंत्रालय का प्रवक्ता नियुक्त किया गया था और वे अप्रैल 2020 तक इस पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने विभिन्न घटनाओं जैसे- जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन आदि पर विश्व के समक्ष भारत का पक्ष रखा। इसके अतिरिक्त वे फ्रैंकफर्ट (Frankfurt) में भारतीय महावाणिज्य दूत (Consulate General) और जकार्ता (Jakarta) में डिप्टी चीफ ऑफ मिशन (Deputy Chief of Mission) के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं। उल्लेखनीय है कि भारत और फिनलैंड के मध्य ऐतिहासिक रूप से काफी मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। फिनलैंड भारत को अपने उत्पादन के लिये एक बड़े बाज़ार के रूप में देखता है, जबकि भारत फिनलैंड को यूरोपीय संघ के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य और आधुनिक तकनीक वाले एक देश के रूप में देखता है। वर्ष 2019 में दोनों देशों के मध्य राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष पूरे हो गए हैं। फिनलैंड में भारतीय संस्कृति मुख्य तौर पर योग काफी लोकप्रिय है।

      भारत की रेटिंग में कमी 

      अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस (Moody's Investors Service) ने भारत की क्रेडिट रेटिंग को ‘Baa2’ से कम करके ‘Baa3’ कर दिया है। साथ ही मूडीज़ ने भारत के प्रति अपने ‘नकारात्मक’ दृष्टिकोण को भी बरकरार रखा है। मूडीज़ के अनुसार, COVID-19 महामारी और लगातार बढ़ते कर्ज के साथ ही वर्तमान वित्तीय संकट के कारण आगामी भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था को सामान्य गति से विकास करने में काफी समय लगेगा। मूडीज़ ने स्पष्ट किया है कि भारतीय नीति निर्माताओं के लिये मौजूदा वित्तीय जोखिमों को कम करने के साथ अपनी नीतियाँ लागू करना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। साधारण शब्दों में क्रेडिट रेटिंग किसी भी देश, संस्था या व्यक्ति की ऋण लेने या उसे चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन होती है। मूडीज़ विश्व की तीन बड़ी अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से एक है। दो अन्य रेटिंग एजेंसियाँ स्टैण्डर्ड एंड पुअर्स (S & P) तथा फिच हैं। मूडीज़ Aaa से लेकर C तक रेटिंग जारी करती है। AAA को सबसे सर्वश्रेष्ठ रेटिंग माना जाता है, जबकि C सबसे खराब रेटिंग होती है। इन कंपनियों द्वारा रेटिंग देते समय किसी देश पर कर्ज़ की मौजूदा स्थिति और उसे चुकाने की उसकी क्षमता को ध्यान में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त ये एजेंसियाँ देश में हुए आर्थिक सुधारों, भविष्य के आर्थिक परिदृश्य तथा देश में निवेश के लिये सुरक्षित माहौल को भी ध्यान में रखती हैं।

      बिमल जुल्का समिति

      हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting) के तहत संचालित फिल्म मीडिया इकाइयों के युक्तिकरण को लेकर गठित बिमल जुल्का समिति ने मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। समिति ने अपनी जाँच में पाया कि मंत्रालय के अधीन कई संस्थान एक जैसा ही कार्य कर रहे थे, समिति ने अपनी रिपोर्ट में 4 व्यापक कार्यक्षेत्रों के साथ एक प्रमुख संगठन (अम्ब्रेला ऑर्गनाइज़ेशन-Umbrella Organization) बनाने का सुझाव दिया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में व्यावसायिक फिल्मों के निर्माण के लिये स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के वित्तपोषण हेतु फिल्म प्रमोशन फंड (Film Promotion Fund) के निर्माण का सुझाव दिया है। इसके अतिरिक्त समिति ने राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (National Film Development Corporation of India), फिल्म डिवीज़न, चिल्ड्रंस फिल्म सोसायटी ऑफ इंडिया (Children's Film Society), सत्यजीत रे फिल्म और टेलीविज़न संस्थान (Satyajit Ray Film & Television Institute), फिल्म महोत्सव निदेशालय (Directorate of Film Festivals) और भारत के राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय आदि के विकास के लिये एक विशेष रोडमैप सुझाया है।

      विदेशी नागरिकों के भारत में आने संबंधी प्रतिबंधों में छूट

      भारत सरकार ने विदेशी नागरिकों की कुछ श्रेणियों को भारत में आने की इजाज़त देने के लिये वीज़ा और यात्रा प्रतिबंधों में छूट देने देने की घोषणा की है। सरकार के निर्णय के तहत विदेशी नागरिकों की निम्नलिखित श्रेणियों को भारत में आने की इजाज़त मिलेगी- (1) विदेशी व्यवसायी जो बिज़नेस वीज़ा पर भारत आ रहे हैं (2) विदेशी हेल्थकेयर पेशेवर, स्वास्थ्य शोधकर्त्ता, इंजीनियर और तकनीशियन जो प्रयोगशालाओं और कारखानों सहित भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में सहायता करने वाले विभिन्न पेशेवर, हालाँकि यह भारत में किसी मान्यता प्राप्त और पंजीकृत स्वास्थ्य सुविधा केंद्र, पंजीकृत दवा कंपनी या मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से प्राप्‍त निमंत्रण पत्र की स्थिति में ही होगा (3) विदेशी इंजीनियरिंग, प्रबंधकीय, डिज़ाइन या अन्य विशेषज्ञ जो भारत स्थित विदेशी व्यापार संस्थाओं की ओर से भारत की यात्रा करने वाले हैं (4) विदेशी तकनीकी विशेषज्ञ और इंजीनियर, जो एक पंजीकृत भारतीय व्यवसाय कंपनी के निमंत्रण पर भारत में विदेशी मूल की मशीनरी और उपकरण सुविधाओं की स्थापना, मरम्मत और रख-रखाव के उद्देश्य से यात्रा कर रहे हैं। विदेशी नागरिकों की उपरोक्त श्रेणियों को विदेशों में भारतीय दूतावासों से एक नया व्यापार वीज़ा या रोज़गार वीज़ा प्राप्त करना होगा।


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