डेली न्यूज़ (03 Jun, 2022)



द एनर्जी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

ऊर्जा प्रगति रिपोर्ट, ऊर्जा दक्षता, स्वच्छ ईंधन, सतत् विकास लक्ष्य 

मेन्स के लिये:

ऊर्जा प्रगति रिपोर्ट और सिफारिशें, अक्षय ऊर्जा, सतत् विकास लक्ष्य के निष्कर्ष। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, ‘ट्रैकिंग एसडीजी 7 - द एनर्जी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2022’ जारी की गई, जिसमें यह बताया गया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और कोविड-19 संकट ने एसडीजी 7 के लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयासों को काफी धीमा कर दिया है। 

टिप्पणी: 

  • वार्षिक एसडीजी 7 ट्रैकिंग रिपोर्ट में चार प्रमुख ऊर्जा लक्ष्यों के आधिकारिक डैशबोर्ड में वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रगति का मूल्यांकन किया है: 
    • 7.1: बिजली और स्वच्छ खाना पकाने के समाधान के लिये सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना; 
    • 7.2: अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी में पर्याप्त वृद्धि; 
    • 7.3: ऊर्जा दक्षता पर प्रगति को दोगुना करना; 
    • 7.A: स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना। 

निष्कर्ष: 

  • बिजली तक पहुँच (7.1): 
    • वैश्विक आबादी का हिस्सा बिजली तक पहुँच के संदर्भ में वर्ष 2010 में 83% से बढ़कर वर्ष 2020 में 91% हो गया है, जिससे वैश्विक स्तर पर बिजली तक पहुँच वाले लोगों की संख्या 1.3 बिलियन तक बढ़ गई है। 
    • बिजली की पहुँच से दूर, लोगों की संख्या वर्ष 2010 में 1.2 बिलियन से घटकर 2020 में 733 मिलियन हो गई 
    • हालाँकि, विद्युतीकरण में प्रगति की गति हाल के वर्षों में धीमी हो गई है, जिसे अधिक दूरस्थ और गरीब आबादी तक पहुँचने की बढ़ती जटिलता और कोविड -19 महामारी के दुष्प्रभाव से समझा जा सकता है। 
      • प्रगति की वर्तमान दर के अनुसार, विश्व वर्ष 2030 तक 92% विद्युतीकरण का ही लक्ष्य प्राप्त कर पायेगा। 
  • स्वच्छ ईंधन (7.1): 
    • स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन और प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता के संदर्भ में वैश्विक आबादी का हिस्सा वर्ष 2021 की तुलना में 3% बढ़कर वर्ष 2020 में 69% हो गया है। 
    • हालाँकि, जनसंख्या वृद्धि वाले क्षेत्र विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में, स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन की पहुँच से यह क्षेत्र बहुत अधिक लाभान्वित हुआ है। 
      • नतीजतन, स्वच्छ खाना पकाने वाले लोगों की कुल संख्या में कमी दशकों से अपेक्षाकृत स्थिर बनी हुई है। यह वृद्धि मुख्य रूप से एशिया में बड़ी आबादी वाले देशों तक पहुंँच में प्रगति से प्रेरित थी। 
  • नवीकरणीय (7.2): 
    • जबकि वर्ष 2021 में अक्षय क्षमता विस्तार की हिस्सेदारी में रिकॉर्ड मात्रा में वृद्धि हुई, सकारात्मक वैश्विक और क्षेत्रीय प्रक्षेपवक्र इस तथ्य को छिपाते हैं कि जिन देशों में नई क्षमता वृद्धि कम थी, उन्हें बढ़ी हुई पहुंँच की सबसे अधिक आवश्यकता थी। 
    • इसके अलावा बढ़ती वस्तु, ऊर्जा और शिपिंग कीमतों के साथ-साथ प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों ने सौर फोटोवोल्टिक (PV) मॉड्यूल, पवन टरबाइन, जैव ईंधन के उत्पादन और परिवहन की लागत में वृद्धि की है, जिससे भविष्य की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये अनिश्चितता बढ़ गई है। 
  • ऊर्जा दक्षता (7.3): 
    • एसडीजी 7.3 का लक्ष्य प्राथमिक ऊर्जा तीव्रता में वार्षिक सुधार की वैश्विक दर को दोगुना करना है।  
    • वर्ष 2010 से 2019 तक ऊर्जा तीव्रता में वैश्विक वार्षिक सुधार औसतन लगभग 1.9% था, जो लक्ष्य से काफी कम था। 
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रवाह (7.A): 
    • स्वच्छ ऊर्जा के समर्थन में विकासशील देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्तीय प्रवाह अधिकांश देशों में सतत् विकास की अत्यधिक आवश्यकता और जलवायु परिवर्तन की बढ़ती तात्कालिकता के बावजूद लगातार दूसरे वर्ष घटकर वर्ष 2019 में 10.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, । 
    • कुल मिलाकर वित्त पोषण का स्तर एसडीजी 7 तक पहुँचने के लिये आवश्यक स्तर से नीचे बना हुआ है, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर और सबसे कम विकसित देशों में। 

SDG

सिफारिशों 

  • बिजली तक पहुँच: वर्ष 2030 के लक्ष्य को पूरा करने के लिये नए कनेक्शनों की संख्या को सालाना 100 मिलियन तक बढ़ाने की आवश्यकता है। 
  • स्वच्छ पाक कला: वर्ष 2030 तक स्वच्छ खाना पकाने के लिये सार्वभौमिक पहुँच के एसडीजी 7 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक बहुक्षेत्रीय, समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। 
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि वैश्विक समुदाय उन देशों की सफलताओं और चुनौतियों से सीखे जिन्होंने स्वच्छ घरेलू ऊर्जा नीतियों को डिज़ाइन और कार्यान्वित करने का प्रयास किया है। 
  • नवीकरणीय: सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने का तात्पर्य बिजली, गर्मी और परिवहन के लिये अक्षय ऊर्जा स्रोतों की त्वरित तैनाती है। 
    • अक्षय शेयरों को 2030 तक 'कुल अंतिम ऊर्जा खपत' के 30% से अधिक तक पहुँचाने की आवश्यकता है, जो 2019 में 18% से अधिक है, वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य ऊर्जा उत्सर्जन तक पहुँचने के लिये सही दिशा में कदम बढ़ाना आवश्यक है। 
  • ऊर्जा दक्षता: अगर दुनिया को वर्ष 2050 तक ऊर्जा क्षेत्र से शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करना है, तो ऊर्जा दक्षता की दर अधिक होनी चाहिये। ऊर्जा दक्षता की दर इस दशक के लिये लगातार 4% से अधिक होने की आवश्यकता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रवाह: SDG 7.3 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ऊर्जा दक्षता नीतियों और निवेश को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है। 

विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) 

  1. सतत् विकास लक्ष्यों को पहली बार वर्ष 1972 में 'क्लब ऑफ रोम' नामक एक वैश्विक थिंक टैंक द्वारा प्रस्तावित किया गया था। 
  2. सतत् विकास लक्ष्यों को वर्ष 2030 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (B) 

व्याख्या: 

  • 17 सतत् विकास लक्ष्य (SDG) जिन्हें वैश्विक लक्ष्यों के रूप में भी जाना जाता है, गरीबी को समाप्त करने, ग्रह की रक्षा करने और सभी के लिये शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने हेतु सार्वभौमिक आह्वान है। 
  • वे सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों की सफलता पर आधारित हैं, जिसमें जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता, नवाचार, टिकाऊ उपभोग, शांति और न्याय जैसे नए क्षेत्रों सहित अन्य प्राथमिकताएंँ शामिल हैं। 
  • इन लक्ष्यों के उद्देश्य आपस में अंतःसंबंधित हैं, एक की सफलता से दूसरे मुद्दे की सफलता सुनिश्चित होती है 
  • वर्ष 2015 में अपनाया गया SDG जनवरी 2016 में प्रभावी हुआ। इसे 2030 तक हासिल किया जाना है। अतः कथन 2 सही है। 
  • SDG की उत्पति वर्ष 2012 में रियो डी जनेरियो में सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में हुआ था। क्लब ऑफ रोम ने पहली बार वर्ष 1968 में अधिक व्यवस्थित तरीके से संसाधन संरक्षण की वकालत की थी। अतः कथन 1 सही नहीं है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


श्रीलंका का त्रिंकोमाली बंदरगाह

प्रिलिम्स के लिये:

त्रिंकोमाली बंदरगाह, विशेष आर्थिक क्षेत्र, हंबनटोटा बंदरगाह। 

मुख्य के लिये:

भारत के मुद्दे और चुनौतियांँ, श्रीलंका संबंध, हिंद महासागर क्षेत्र में विकास, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। 

चर्चा में क्यों? 

श्रीलंका त्रिंकोमाली बंदरगाह को एक औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना रहा है जो वैश्विक हितों को आकर्षित करेगा। 

  • यह प्रस्ताव एक विशेष आर्थिक क्षेत्र, एक औद्योगिक पार्क या एक ऊर्जा केंद्र के लिये विदेशी और स्थानीय निवेश प्राप्त करके श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण से संबंधित भूमि का मुद्रीकरण करने के लिये एक लंबे समय से चली आ रही योजना है। 

Trincomalee-Port-of-Sri-Lanka

प्रमुख बिंदु: 

  • त्रिंकोमाली पोर्ट :  
    • त्रिंकोमाली बंदरगाह श्रीलंका के पूर्वोत्तर तट पर  त्रिंकोमाली खाड़ी में एक प्रायद्वीप पर स्थित है, जिसे पहले कोडियार खाड़ी  कहा जाता था। 
    • त्रिंकोमाली, चेन्नई का निकटतम बंदरगाह है 
  • बंदरगाह का महत्व: 
    • भू-रणनीतिक और सामरिक महत्त्व: हिंद महासागर में इस बंदरगाह का सामरिक महत्त्व है, यह भारत, जापान और अमेरिका सहित कई देशों के हितों से संबंधित है। 
    • डेडिकेटेड पोर्ट टर्मिनल: त्रिंकोमाली में पहले से ही कई डेडिकेटेड पोर्ट टर्मिनल हैं- इसमें लंका इंडियन ऑयल कंपनी की सुविधा, टोक्यो सीमेंट की सुविधा और आटा कारखाने के लिये अनाज की सुविधा और एक चाय टर्मिनल शामिल है। 
      • कोयला, जिप्सम और सीमेंट जैसे बल्क कार्गो के लिये एक घाट भी है। 
    • अन्य बंदरगाहों पर दबाव : यह विकास कोलंबो बंदरगाह पर दबाव कम करेगा और परिचालन में मदद करेगा जिससे आपूर्ति शृंखला में वृद्धि होगी। 
    • गैर-कंटेनरीकृत कार्गो यातायात: इसके लिये गैर-कंटेनरीकृत कार्गो यातायात जैसे सीमेंट, कोयला या अन्य औद्योगिक कच्चे माल के लिये बंदरगाह का विकास भी आवश्यक होगा। 

भारत के संदर्भ में इस सौदे का महत्त्व: 

  • प्राकृतिक बंदरगाह: यह एशिया के बेहतरीन प्राकृतिक बंदरगाहों में से एक है, जिससे भारत लाभान्वित होगा। 
  • चीनी प्रभाव का नियंत्रण: यह बंदरगाह हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के रूप में काम करेगा। हंबनटोटा बंदरगाह तक चीन की पहुंँच पहले से ही है, इसलिये त्रिंकोमाली बंदरगाह भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • समुद्री व्यापार मार्ग: जो भारतीय कंपनियांँ इस विकास में कार्य में लगी हैं वे इस क्षेत्र में भारतीय समुद्री व्यापार मार्गों को बढ़ाएगी। 
    • इस साल की शुरुआत में ‘लंका इंडियन ऑयल कंपन’' और ‘सीलोन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन’ ने त्रिंकोमाली में (ब्रिटिश शासन के दौरान निर्मित) विशाल तेल भंडारण टैंक फार्म विकसित करने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस सौदे से समझौते को फायदा होगा। 

आगे की राह 

  • त्रिंकोमाली बंदरगाह के विभिन्न लाभ जैसे, प्राकृतिक गहरे पानी, आश्रय, पर्यटन स्थलों, और बंदरगाह के आसपास के क्षेत्र में औद्योगिक और रसद के लिये पर्याप्त स्थान के साथ, समुद्री कार्गो व्यापार के क्षेत्र की अनुमानित वृद्धि आदि। ये विशेष रूप से बांग्लादेश और म्यांँमार के साथ-साथ भारत के पूर्वी समुद्री तट पर बंदरगाहों के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है। 
  • भारत के साथ त्रिंकोमाली बंदरगाह संयुक्त परियोजना श्रीलंका के घरेलू नृजातीय विचारों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है। 
  • यदि यह प्रोजेक्ट सफल होता है तो इससे श्रीलंका को चीन के कर्ज के जाल से निकलने में मदद मिलेगी। 

विगत वर्ष के प्रश्न(PYQs): 

प्रश्न. निम्नलिखित  युग्मों पर विचार कीजिये: (2018) 

क्षेत्र जो कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित होते हैं देश
1. केटालोनिया स्पेन
2. क्रीमिया हंगरी
3. मिंडानाओ फिलीपींस
4. ओरोमिया नाइजीरिया

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? 

(a) 1, 2 और 3 
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1 और 3 
(d) केवल 2 और 4 

उत्तर: C 

व्याख्या: 

  • कैटेलोनिया स्पेन में है। यह उत्तर-पूर्व स्पेन में एक स्वायत्त क्षेत्र है जिसका  विशिष्ट इतिहास लगभग 1,000 वर्ष पुराना है। अक्तूबर 2017 में स्पेन से स्वतंत्र होने के लिये यहाँ एक जनमत संग्रह का आयोजन किया गया और कैटेलोनिया ने  एकतरफा स्वतंत्रता की घोषणा की। अत: युग्म 1 सुमेलित है। 
  • क्रीमिया पूर्व में यूक्रेन का एक क्षेत्र था जिस पर वर्ष 2014 में रूस द्वारा नियंत्रण कर लिया गया था। अतः  युग्म 2 सही सुमेलित नहीं है। 
  • मिंडानाओ फिलीपींस का दूसरा सबसे बड़ा द्वीप है। इस्लामिक स्टेट समर्थक सैकड़ों उग्रवादियों ने मई 2017 में मिंडानाओ में मुख्य रूप से इस्लामिक शहर मारवी के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया।अतः  युग्म 3 सुमेलित है। 
  • ओरोमिया क्षेत्र में मुख्य रूप से ओरोमो जातीय समूह निवास करते हैं, जो इथियोपिया का सबसे बड़ा जातीय समूह है। दिसंबर 2016 में इथियोपिया में दो समुदायों के बीच क्षेत्रीय विवादों के बाद ओरोमो और सोमाली समूहों के बीच जातीय संघर्ष हुए थे। अत: युग्म 4 सुमेलित नहीं है। 

अतः विकल्प C सही  है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारत और स्वीडन के बीच उद्योग संक्रमण वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

'स्टॉकहोम+50', लीडआईटी, COP27, यूएन क्लाइमेट एक्शन समिट, यूएनईपी। 

मेन्स के लिये:

भारत-स्वीडन संबंध, द्विपक्षीय समूह और समझौते, समूह और समझौते भारत को शामिल करते हैं और/या भारत के हितों को प्रभावित करते हैं। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत और स्वीडन ने अपनी संयुक्त पहल ‘लीडरशिप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन’ (LeadIT) के एक भाग के रूप में स्टॉकहोम में उद्योग संक्रमण वार्ता की मेज़बानी की। 

  • इस उच्च स्तरीय संवाद ने संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 'स्टॉकहोम+50' में योगदान दिया है, साथ ही COP-27 (जलवायु परिवर्तन) के लिये एजेंडा निर्धारित किया है। 

लीडआईटी: 

  • परिचय : 
    • लीडआईटी पहल उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देती है जो वैश्विक जलवायु कार्रवाई में प्रमुख हितधारक हैं और जहाँ विशिष्ट हस्तक्षेप की आवश्यकता है। 
    • यह उन देशों और कंपनियों को संगठित करता है जो पेरिस समझौते को हासिल करने एवं कार्रवाई के लिये प्रतिबद्ध हैं। 
    • इसे वर्ष 2019 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में स्वीडन और भारत की सरकारों द्वारा लॉन्च किया गया था और यह विश्व आर्थिक मंच द्वारा समर्थित है। 
    • लीडआईटी के सदस्य इस विचार को बढ़ावा देते हैं कि वर्ष 2050 तक ऊर्जा-गहन उद्योगों में निम्न-कार्बन उत्सर्जन के उपायों को अपनाकर शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्यों की पूर्ति की जा सकती है। 
  • सदस्य संख्या: 
    • लीडआईटी में देशों और कंपनियों को मिलाकर कुल 37 सदस्य हैं। 
      • जापान और दक्षिण अफ्रीका, इस पहल के नवीनतम सदस्य हैं। 

भारत-स्वीडन संबंध 

  • राजनीतिक संबंध:  
    • वर्ष 1948 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए और दशकों से लगातार मज़बूत स्थिति में हैं। 
    • पहला भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन (भारत, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, आइसलैंड और डेनमार्क) वर्ष 2018 में स्वीडन में आयोजित किया गया था। 
    • स्वीडन ने नवंबर 2020 में भारत की सह-अध्यक्षता में प्रथम भारत-नॉर्डिक-बाल्टिक (एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया सहित) कॉन्क्लेव में भी भाग लिया। 
  • बहुपक्षीय जुड़ाव: 
    • भारत और स्वीडन ने संयुक्त रूप से वर्ष 2019 में  संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) के सहयोग से लीडरशिप ग्रुप ऑन इंडस्ट्री ट्रांज़िशन (LeadIT) लॉन्च किया।  
    • 1980 के दशक में भारत और स्वीडन ने 'सिक्स नेशन पीस समिट' (जिसमें अर्जेंटीना, ग्रीस, मैक्सिको और तंजानिया भी शामिल थे) के फ्रेमवर्क के अंतर्गत परमाणु निरस्त्रीकरण के मुद्दों पर एक साथ काम किया। 
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत और स्वीडन मानवीय मामलों पर एक वार्षिक संयुक्त वक्तव्य प्रस्तुत करते हैं। 
    • वर्ष 2013 में स्वीडिश प्रेसीडेंसी के दौरान भारत किरुना मंत्रिस्तरीय बैठक में एक पर्यवेक्षक के रूप में आर्कटिक परिषद में शामिल हुआ। 
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:  
    • एशिया में चीन तथा जापान के बाद भारत, स्वीडन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार (Trade Partner) है। 
    • वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर  (2016) से बढ़कर 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर  (2019) हो गया है। 
  • रक्षा और एयरोस्पेस (स्वीडन-भारत संयुक्त कार्य योजना 2018): यह अंतरिक्ष अनुसंधान, प्रौद्योगिकी, नवाचार और अनुप्रयोगों के क्षेत्र में सहयोग पर प्रकाश डालता है।  

Sweden

आगे की राह 

  • यूरोपीय संघ का सदस्य होने के नाते स्वीडन यूरोपीय संघ और यूरोपीय संघ के देशों के साथ भारत की साझेदारी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
  • सामरिक जुड़ाव, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश परिदृश्यों से पारस्परिक रूप से लाभकारी पद्धति के तहत साझा आर्थिक प्रगति को बढ़ावा मिलने की संभावना है। 

स्रोत पीआईबी 


बंदूक नियंत्रण कानून

प्रिलिम्स के लिये:

शस्त्र (संशोधन) अधिनियम 2019। 

मेन्स के लिये:

समाज से संबंधित चुनौतियाँ एवं मुद्दे, शस्त्र (संशोधन) अधिनियम, 2019। 

चर्चा में क्यों ? 

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में पिछले 11 दिनों की अवधि के दौरान सामूहिक गोलीबारी की दो घटनाएँ हुईं, जिसमें प्राथमिक विद्यालय के बच्चों सहित 30 से अधिक लोग मारे गए। 

  • अमेरिका में वर्ष 2020 में कुल 24,576 हत्याएँ दर्ज की गईं, जिनमें से लगभग 79%,(19,384) मौतें गोलीबारी की वजह से हुई हैं। 
  • अमेरिका में शस्त्रों का विनियमन संघ, राज्य और स्थानीय सरकारों के मध्य विद्यमान साझा प्राधिकरण के माध्यम से किया जाता है। 
  • अमेरिका के  सर्वोच्च न्यायालय ने पहले माना था कि अमेरिकी संविधान का दूसरा संशोधन आत्मरक्षा के लिये "हथियार रखने और धारण करने" के अधिकार की रक्षा करता है, जबकि संघीय न्यायालयों ने संभावित उल्लंघन के संदर्भ में तर्क दिया है कि संघीय, राज्य और स्थानीय नियम इस अधिकार को बाधित करते हैं। 

भारत में शस्त्र नियंत्रण कानून: 

  • शस्त्र अधिनियम, 1959: 
    • परिचय: इसका उद्देश्य भारत में हथियारों और गोला-बारूद के अधिग्रहण, कब्ज़े, निर्माण, बिक्री, आयात, निर्यात और परिवहन से संबंधित सभी पहलुओं को शामिल करना है। 
    • भारत में बंदूक लाइसेंस प्राप्त करने के लिये अहर्ताएँ: 
      • भारत में बंदूक लाइसेंस प्राप्त करने के लिये न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष है। 
      • आवेदन करने से पांँच वर्ष पूर्व आवेदक को हिंसा या नैतिकता से जुड़े किसी भी अपराध का दोषी नहीं ठहराया गया हो, 'विकृत दिमाग' का न हो, न ही सार्वजनिक सुरक्षा और शांति के लिये खतरा हो। 
      • संपत्ति योग्यता बंदूक लाइसेंस प्राप्त करने के लिये एक मानदंड नहीं है। 
      • एक आवेदन प्राप्त होने पर लाइसेंसिंग प्राधिकरण (अर्थात, गृह मंत्रालय), निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को निर्धारित समय के भीतर पूरी तरह से जांँच के बाद आवेदक के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये कहता है। 
    • अधिनियम की अन्य विशेषताएंँ: 
      • यह 'निषिद्ध हथियार' को उन हथियारों के रूप में परिभाषित करता है जो या तो कोई भी हानिकारक तरल या गैस छोड़ते हैं, या ऐसे हथियार जिन्हें चलाने के लिये ट्रिगर दबाने की आवश्यकता होती है 
      • यह फसल सुरक्षा या खेल के लिये कम-से-कम 20 इंच के बैरल के साथ चिकनी बोर गन के उपयोग की अनुमति देता है। 
      • किसी भी संस्था कोे ऐसी बंदूक को बेचने या स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं है, जिस पर निर्माता का नाम, निर्माता का नंबर या कोई अन्य दृश्यमान मुहर या पहचान चिह्न नहीं लगी हो। 
  • आयुध अधिनियम में संशोधन: 
    • वर्ष 2019 में संशोधित शस्त्र अधिनियम एक व्यक्ति द्वारा खरीद की जा सकने वाली बंदूकों की संख्या को 3 से घटाकर 2 कर सकता है। 
    • लाइसेंस की वैधता को वर्तमान 3 वर्ष से बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया गया है। 
    • यह सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित करने के लिये लाइसेंस प्राप्त हथियारों के उपयोग को कम करने के लिये विशिष्ट प्रावधानों को भी सूचीबद्ध करता है। 
    • सज़ा: बिना लाइसेंस के प्रतिबंधित गोला-बारूद के अधिग्रहण, कब्ज़े या ले जाने के अपराध के लिये जुर्माने के साथ-साथ कारावास की सज़ा को 7 से 14 वर्ष के बीच बढ़ा दिया गया है। 
      • यह बिना लाइसेंस के बंदूकों की एक श्रेणी को दूसरी श्रेणी में बदलने पर रोक लगाता है। 
      • गैरकानूनी निर्माण, बिक्री और हस्तांतरण के लिये कम-से-कम सात साल की कैद की सज़ा दी जा सकती है, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी।  

आगे की राह 

  • एक तरीका यह है कि सख्त बंदूक नियंत्रण लागू किया जाए और सख्त रूप से प्रतिबंधित किया जाए कि कौन हथियार खरीद सकता है या उसका मालिक कौन है। इस संबंध में अमेरिकी कानून बहुत लचीले और उदार हैं। 
  • भारत को भी बंदूको के अधिग्रहण और कब्ज़े से संबंधित कानूनों की समीक्षा करने और उन्हें सख्त करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू 


प्रशांत द्वीपीय देशों में चीन का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये :

ईईजेड, प्रशांत महासागर, इंडो-पैसिफिक, क्वाड, ब्लू अर्थव्यवस्था।

मेन्स के लिये:

प्रशांत द्वीप समूह के देश और इसका महत्त्व, भारत-पीआईसी संबंध, वैश्विक समूह। 

चर्चा में क्यों?  

चीन के विदेश मंत्री वर्तमान में दस प्रशांत द्वीपीय देशों (PIC) की यात्रा पर हैं और उन्होंने फिज़ी के साथ दूसरी चीन-प्रशांत द्वीपीय देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक की सह-मेज़बानी की है। 

प्रशांत द्वीपीय  देश: 

  • प्रशांत द्वीप देश 14 राज्यों का समूह है जो एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच प्रशांत महासागर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से संबंधित है। 
  • इनमें कुक आइलैंड्स, फिज़ी, किरिबाती, रिपब्लिक ऑफ मार्शल आइलैंड्स, फेडरेटेड स्टेट्स ऑफ माइक्रोनेशिया (FSM), नाउरू, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालु और वानुअतु शामिल हैं। 

Pacific-Islands-Countries

PIC का महत्त्व: 

  • सबसे बड़ा अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ): 
    • द्वीपों को भौतिक और मानव भूगोल के आधार पर तीन अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया है - माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया और पोलिनेशिया। 
    • अपने छोटे भूमि क्षेत्र के बावजूद द्वीप प्रशांत महासागर के विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं। 
    • हालांँकि इनमे से कुछ सबसे छोटे एवं सबसे कम आबादी वाले राज्य हैं, जिनके पास दुनिया के कुछ सबसे बड़े अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) हैं। 
  • आर्थिक क्षमता: 
    • बड़े EEZ में बहुत अधिक आर्थिक संभावनाएंँ हैं क्योंकि उनका उपयोग मत्स्य पालन, ऊर्जा, खनिजों और वहांँ मौजूद अन्य समुद्री संसाधनों का दोहन करने के लिये किया जा सकता है। 
      • इसलिये ये छोटे द्वीप राज्यों के बजाय बड़े महासागरीय राज्यों के रूप में पहचाने जाते हैं। 
    • वास्तव में किरिबाती और FSM दोनों PIC का EEZ भारत से बड़ा है। 
  • प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता में भूमिका: 
    • इन देशों ने सामरिक क्षमताओं के विकास और प्रदर्शन के लिये शक्ति प्रक्षेपण और प्रयोगशालाओं के लिये स्केप्रिंग बोर्ड्स रूप में प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • औपनिवेशिक युग की प्रमुख शक्तियों ने इन सामरिक क्षेत्रों पर नियंत्रण पाने के लिये एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा की। 
    • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान (शाही जापान और यूएस) प्रशांत द्वीपों ने भी संघर्ष के प्रमुख कारकों में से एक के रूप में काम किया। 
  • प्रमुख परमाणु हथियार परीक्षण स्थल: 
  • संभावित वोट बैंक: 
    • साझा आर्थिक और सुरक्षा चिंताओं द्वारा संबंधित 14 PICs संयुक्त राष्ट्र में मतदान के लिये ज़िम्मेदार हैं और अंतर्राष्ट्रीय राय जुटाने हेतु प्रमुख शक्तियों के संभावित वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं। 

चीन के लिये PICs का महत्त्व: 

  • एक प्रभावी ब्लू वाटर सक्षम नौसेना बनने में: 
    • PICs चीन के समुद्री हित और नौसैनिक शक्ति के विस्तार की प्राकृतिक रेखा में अवस्थित हैं 
    • वे चीन की 'प्रथम द्वीप शृंखला' से परे स्थित हैं, जो देश के समुद्री विस्तार के प्रवेश बिंदु का प्रतिनिधित्व करता है।  
    • PICs भू-रणनीतिक दृष्टि से उस स्थान पर अवस्थित हैं जिसे चीन अपने 'सुदूर समुद्र' के रूप में संदर्भित करता है, जिसका नियंत्रण चीन को एक प्रभावी ब्लू वाटर सक्षम नौसेना बना देगा - जो महाशक्ति बनने के लिये एक आवश्यक शर्त है।
  • काउंटरिंग क्वाड: 
    • PICs को प्रभावित करने की आवश्यकता ऐसे समय में चीन के लिये और भी अधिक दबाव का विषय बन गई है जब चीन के विरोध स्वरुप हिंद-प्रशांत में चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी है। 
  • ताइवान की भूमिका: 
    • PICs की विशाल समुद्री समृद्धि के अलावा, ताइवान चीन के प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। 
    • चीन, ताइवान को इस क्षेत्र में एक प्रतिस्पर्द्धी मानता है तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में इसकी मान्यता का विरोध करता है। 
    • इसलिये जिस भी देश को चीन के साथ आधिकारिक रूप से संबंध स्थापित करने होंगे, उसे ताइवान के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने होंगे।. 
      • चीन अपनी आर्थिक उदारता के माध्यम से 14 PICs  में से 10 से राजनयिक मान्यता प्राप्त करने में सफल रहा है। 
      • केवल चार PICs - तुवालु, पलाऊ, मार्शल द्वीप और नौरु, वर्तमान में ताइवान को मान्यता देते हैं। 

चीन के वर्तमान कदम के  निहितार्थ: 

  • PICs को प्रमुख शक्ति संघर्षों में शामिल कर सकता है: 
    • सामूहिक रूप से PICs चीन के व्यापक और महत्वाकांँक्षी प्रस्तावों से सहमत नहीं थे,  इसलिये चीन समझौते पर आम सहमति प्राप्त करने में विफल रहा।  
    • चीन द्वारा प्रस्तावित आर्थिक और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने से PICs की संप्रभुता और एकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है तथा भविष्य में उन्हें बड़े शक्ति संघर्षों में शामिल किया जा सकता है। 
  • क्षेत्र में पारंपरिक शक्तियों को मज़बूत करने में: 
    • प्रशांत द्वीपों के प्रति चीन की कूटनीति की तीव्रता ने उन शक्तियों को मज़बूत बना दिया है जिन्होंने परंपरागत रूप से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रीय गतिशीलता को नियंत्रित किया है।  
    • चीन-सोलोमन द्वीप समझौते के बाद से अमेरिका ने इस क्षेत्र के लिये अपनी कूटनीतिक प्राथमिकता पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया है। 
    • ीन के प्रस्तावित सौदे के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करने में अमेरिका द्वारा निभाई गई भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि संघीय राज्य माइक्रोनेशिया (FSM)  एकमात्र ऐसा देश है जो चीन को मान्यता देता है और साथ ही अमेरिका के साथ मुक्त संघ के समझौते का भी हिस्सा है। 
      • संघीय राज्य माइक्रोनेशिया पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीपीय देश है जिसमें 600 से अधिक छोटे-छोटे द्वीप शामिल हैं। 

भारत तथा प्रशांत द्वीपीय देशों के बीच संबंधों की मुख्य विशेषताएँ: 

  • परिचय: 
    • प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत की बातचीत अभी भी काफी हद तक इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति से प्रेरित है। 
      • फिजी की लगभग 40% आबादी भारतीय मूल की है और लगभग 3000 भारतीय वर्तमान में पापुआ न्यू गिनी में रह रहे हैं। 
    • संस्थागत जुड़ाव के संदर्भ में, भारत प्रशांत द्वीप मंच (PIF) में प्रमुख संवाद भागीदारों के रूप में भाग लेता है। 
    • हाल के वर्षों में प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत की बातचीत को सुविधाजनक बनाने में सबसे महत्त्वपूर्ण विकास के रूप में प्रशांत द्वीप समूह सहयोग (FIPIC) के लिये एक कार्रवाई-उन्मुख मंच का गठन किया गया है। 
      • FIPIC की शुरुआत वर्ष 2014 में एक बहुराष्ट्रीय समूह के रूप में की गई  थी। 

सहयोग के क्षेत्र: 

  • ब्लू इकॉनमी: 
    • अपने संसाधन संपन्न अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) के साथ प्रशांत द्वीपीय देश भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये तरल प्राकृतिक गैस (LNG) और हाइड्रोकार्बन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के आकर्षक स्रोत होने के साथ-साथ इनके लिये नए बाज़ार भी प्रदान कर सकते हैं। 
    • 'ब्लू इकॉनमी' के विचार परा ज़ोर देते हुए भारत इन देशों के साथ विशेष रूप से जुड़ सकता है। 
  • जलवायु परिवर्तन और सतत विकास: 
    • इन द्वीप देशों का भूगोल उन्हें जलवायु चुनौतियों के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाता है। 
      • समुद्र जलस्तर में वृद्धि के कारण बढ़ती मिट्टी की लवणता निचले द्वीपीय राज्यों के लिये खतरा है, जिससे विस्थापन की समस्या भी पैदा हो रही है। 
    • इसलिये, जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास चिंता के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ  प्रभावी और ठोस समाधान के लिये एक करीबी साझेदारी विकसित की जा सकती है।
  • आपदा प्रबंधन: 
    • प्रशांत द्वीप समूह के अधिकांश देश व्यापक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिणामों के साथ विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त हैं। 
    • भारत आपदा जोखिम लचीलापन की क्षमता निर्माण में सहायता कर सकता है। 
    • सितंबर, 2017 में, भारत ने सात प्रशांत द्वीपीय देशों में जलवायु पूर्व चेतावनी प्रणाली  की शुरुआत की है। 

आगे की राह: 

  • प्रशांत द्वीपीय देश भौगोलिक रूप से छोटे होते हुए भी अंतर्राष्ट्रीय मामलों में काफी आर्थिक, रणनीतिक और राजनीतिक महत्त्व रखते हैं। 
  • इस क्षेत्र के साथ जुड़ने के हालिया प्रयासों ने भारत को इन देशों के बहुत करीब ला दिया है। 
  • प्रशांत द्वीपीय देशों के प्रति भारत का दृष्टिकोण साझा मूल्यों और साझा भविष्य के आधार पर क्षेत्र के साथ एक पारदर्शी, आवश्यकता-आधारित दृष्टिकोण और समावेशी संबंधों पर केंद्रित है। 
  • आने वाले वर्षों में प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत का जुड़ाव तीसरे FIPC शिखर सम्मेलन के जल्द ही होने की उम्मीद है। 

स्रोत: द हिंदू 


बायोमास बिजली

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा, बायोमास विद्युत, पायरोलिसिस, गैसीकरण। 

मेन्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा हेतु सरकार की पहल। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत (कुरुक्षेत्र, हरियाणा) में एक नई बायोमास-आधारित बॉयलर तकनीक शुरू की गई जो हरित होने का दावा करती है और सभी प्रकार के कृषि अवशेषों को ईंधन के रूप में समायोजित कर सकती है, साथ ही साथ पराली जलानके बोझ को कम करने में मदद कर सकती है। 

  • जैसे-जैसे देश कार्बन मुक्त बिजली उत्पादन की ओर बढ़ रहा है, नियामक और नीति निर्माता बायोमास आधारित बिजली पर ध्यान दे रहे हैं। 
  • देश में बिजली की मांग का लगभग 2.6% बायोमास द्वारा पूरा किया जाता है। 

प्रमुख बिंदु  

  • बायोमास-आधारित बॉयलर की विशेषताएंँ: 
    • नए बॉयलर की क्षमता 75 टन प्रति घंटा है और इससे 15 मेगावाट बिजली पैदा होती है। 
    • डेनमार्क की यह नई तकनीक संयंत्र को कम ईंधन तैयार करने और संभालने के साथ विभिन्न प्रकार के ईंधन जलाने में सक्षम बनाती है। 
    • वाइब्रेटिंग ग्रेट के कारण यह दहन तकनीक लाभप्रद है। 
    • स्टीम बॉयलर ग्रेट भट्ठी में ठोस ईंधन का प्रयोग करती है। 
      • वाइब्रेटिंग ग्रेट हर घनत्व के बायोमास को समायोजित करता है। 
      • हालांँकि ईंधन में नमी की मात्रा 15-20% होनी चाहिये। 
    • चूंँकि वाइब्रेटिंग ग्रेट किसी भी आकार के कृषि अवशेषों को जलाने में सहयोग करता है, अतः यह ऊर्जा उत्पादन के लिये बायोमास के प्रसंस्करण हेतु खपत ऊर्जा की बचत करता है। 
  • पारंपरिक बॉयलरों से अधिक लाभदायक: 
    • मौजूदा पारंपरिक बॉयलर केवल विशिष्ट प्रकार के कृषि अवशेषों जैसे धान की भूसी, धान की पुआल, सरसों आदि के लिये डिज़ाइन किये गए हैं और ऊर्जा उत्पादन में बायोमास के योगदान को प्रतिबंधित करते हैं। 
    • जबकि वाइब्रेटिंग ग्रेट बायलर तकनीक किसी भी प्रकार के बायोमास को फायर करने का एक समाधान हो सकता है। 

बायोमास: 

  • परिचय 
    • बायोमास नवीकरणीय कार्बनिक सामग्री है जो पौधों और जानवरों से प्राप्त होती है। 
  • उपयोग 
    • बायोमास का उपयोग ‘फैसिलिटी हीटिंग’, विद्युत ऊर्जा उत्पादन, संयुक्त ताप और बिजली के लिये किया जाता है।  
  • बिजली में परिवर्तित करने के तरीके: बायोमास को कई तरीकों से विद्युत शक्ति में परिवर्तित किया जा सकता है। 
    • बायोमास सामग्री का दहन:  
      • सबसे आम बायोमास सामग्री जैसे कृषि अपशिष्ट या काष्ठ सामग्री का प्रत्यक्ष दहन है। 
    • गैसीकरण:  
      • गैसीकरण पूर्ण दहन के लिये आवश्यकता से कम ऑक्सीजन के साथ बायोमास को गर्म करके प्रयोग योग्य ऊर्जा सामग्री के साथ संश्लेषित गैस का उत्पादन करता है। 
    • पायरोलिसिस:  
      • पायरोलिसिस ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में बायोमास को तेज़ी से गर्म करके जैव-तेल उत्पन्न करता है। 
    • अवायवीय पाचन:  
      • अवायवीय पाचन एक नवीकरणीय प्राकृतिक गैस का उत्पादन करता है जब ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में बैक्टीरिया द्वारा कार्बनिक पदार्थ को विघटित किया जाता है।  
        • बहुत गीला कचरा जैसे- पशु और मानव अपशिष्ट, एक अवायवीय डाइज़ेस्टर में एक मध्यम-ऊर्जा सामग्री गैस में परिवर्तित हो जाते हैं। 
  • लाभ: 
    • कई अन्य नवीकरणीय ऊर्जा विकल्पों की तुलना में, बायोमास में डिस्पैचबिलिटी का लाभ होता है, जिसका अर्थ है कि यह नियंत्रणीय है और ज़रूरत पड़ने पर उपलब्ध है। 
  • हानि:  
    • ईंधन की खरीद, वितरण, संग्रहीत और भुगतान करने की आवश्यकता है.  
    • इसके अलावा बायोमास दहन प्रदूषक पैदा करता है, जिसे नियमों के अनुसार सावधानीपूर्वक निगरानी और नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता है । 
  • सरकार की पहल: 
    • ग्रिड बिजली उत्पादन के लिये देश के बायोमास संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के मुख्य उद्देश्य के साथ बायोमास बिजली और सह उत्पादन कार्यक्रम लागू किया गया है। 
    • केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने बायोमास जैसे खोई, कृषि आधारित औद्योगिक अवशेष, फसल अवशेष, ऊर्जा संयंत्रीकरण के माध्यम से उत्पादित लकड़ी, खरपतवार के साथ-साथ बिजली उत्पादन के लिये औद्योगिक कार्यों में उत्पादित लकड़ी के कचरे का उपयोग करने वाली परियोजनाओं हेतु केंद्रीय वित्तीय सहायता की घोषणा की। 
      • इस कदम का उद्देश्य ऊर्जा उत्पादन के लिये एक नियंत्रित वातावरण में बायोमास दहन को बढ़ाना था। 

विगत वर्ष के प्रश्न(PYQs):   

प्रश्न. चीनी उद्योग के उप-उत्पादों की उपयोगिता के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2013) 

  1. खोई का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिये बायोमास ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
  2. कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों के उत्पादन के लिये शीरा का उपयोग फीडस्टॉक्स में से एक के रूप में किया जा सकता है।
  3. शीरे का उपयोग एथेनॉल उत्पादन के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

 उत्तर: C 

व्याख्या: 

  • चीनी उद्योग के चार मुख्य उप-उत्पाद गन्ना टॉप, खोई, फिल्टर मड और शीरा हैं। 
  • गन्ने की खोई जैव-आधारित अर्थव्यवस्था की स्थापना के लिये बायोमास का एक अत्यधिक आशाजनक स्रोत है। खोई का उपयोग बिजली, इथेनॉल, पेपर बोर्ड और वैनिलिन जैसे रसायनों के उत्पादन के लिये किया जा सकता है। अत: कथन 1 सही है। 
  • गुड़, परिष्कृत चीनी का उप-उत्पाद है। इसका उपयोग अल्कोहल उत्पादन के लिये किया जाता है।इसके पोषक तत्त्व, भूख बढ़ाने और भौतिक गुणों के कारण पशुओं के चारे में इसकी महत्त्वपूर्ण उपयोगिता है। इसका उपयोग अन्य उत्पादों के बीच इथेनॉल, स्प्रिट और अल्कोहल के उत्पादन के लिये भी किया जा सकता है। अत: कथन 3 सही है। 
  • गुड़ का उपयोग जैविक उत्पादन के लिये फीडस्टॉक्स में से एक के रूप में किया जाता है, लेकिन रासायनिक उर्वरकों के लिये नहीं। अत: कथन 2 सही नहीं है। 

अतः विकल्प C सही है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ  


सोशल मीडिया शिकायत के लिये अपीलीय समितियों का प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये:

शिकायत अपीलीय समिति, आईटी नियम, 2021।  

मेन्स के लिये:

आईटी नियम, 2021 में संशोधन की आवश्यकता। 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में, भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट के संबंध में अपीलों की सुनवाई के लिये 'शिकायत अपीलीय समितियों' के गठन का प्रस्ताव रखा गया है। 

 शिकायत अपीलीय समितियांँ

  • परिचय: 
    • आईटी नियम, 2021 में प्रस्तावित संशोधनों के मसौदे के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा एक या एक से अधिक 'शिकायत अपीलीय समितियों' का गठन किया जाएगा। 
    • अपीलीय समितियांँ सोशल मीडिया मध्यस्थ द्वारा नियुक्त शिकायत अधिकारी के निर्णय के विरुद्ध प्रयोक्ताओं की अपीलों पर कार्रवाई करेंगी। 
    • इस समिति में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और अन्य सदस्य शामिल होंगे। 
  • कार्य: 
    • सोशल मीडिया नेटवर्क द्वारा नियुक्त शिकायत अधिकारी के आदेश से प्रभावित कोई भी व्यक्ति शिकायत अधिकारी से सूचना प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर शिकायत अपील समिति में अपील कर सकता है। 
    • शिकायत अपील समिति ऐसी अपील पर तेज़ी से कार्रवाई करेगी और अपील की प्राप्ति की तारीख से 30 कैलेंडर दिनों के भीतर अंतिम रूप से अपील का निपटान करने का प्रयास करेगी। 
    • शिकायत अपील समिति द्वारा पारित प्रत्येक आदेश का अनुपालन संबंधित मध्यस्थ द्वारा किया जाएगा। 

शिकायत अपीलीय समितियों की आवश्यकता: 

  • वर्ष 2021 में ‘कंटेंट मॉडरेशन एंड टेकडाउन’ को लेकर सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बीच कई गतिरोध उत्पन्न हुए। 
    • सरकारी आदेशों के बाद किसान आंदोलन के समर्थन में संदेश पोस्ट करने वाले समाचार वेबसाइटों, अभिनेताओं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और ब्लॉगर्स के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक कर दिया गया। 
  • जैसे-जैसे भारत में इंटरनेट का तेज़ी से विस्तार हो रहा है, सरकारी नीतियों से संबंधित नए मुद्दे भी सामने आते रहते हैं। अतः ऐसे मुद्दों से निपटने के लिये कमियों को दूर करना आवश्यक हो जाता है। 

आईटी नियम, 2021: 

  • परिचय: 
    • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम सरकार द्वारा 2021 में अधिसूचित किये गए थे। 
  • मुख्य विशेषताएंँ: 
    • भारत में पंजीकृत उपयोगकर्ताओं के साथ एक अधिसूचित सीमा से ऊपर सोशल मीडिया मध्यस्थों को महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों (SSMI) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
    • SSMI को अनुपालन कर्मियों को नियुक्त करने, सूचना के पहले प्रवर्तक की पहचान को सक्षम करने और सामग्री की पहचान के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित उपायों को लागू करने की आवश्यकता होती है। 
    • सभी मध्यस्थों को उपयोगकर्ताओं या पीड़ितों की शिकायतों के समाधान के लिये शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना आवश्यक है। 
    • समाचार और समसामयिक मामलों की सामग्री के ऑनलाइन प्रकाशकों के साथ-साथ ‘क्यूरेटेड ऑडियो-विज़ुअल’ सामग्री के विनियमन के लिये एक रूपरेखा निर्धारित की है। 
    • प्रकाशकों के लिये स्व-नियमन के विभिन्न स्तरों के साथ एक त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र निर्धारित किया गया है। 

Social_media

  • प्रमुख मुद्दे: 
    • नियम कुछ मामलों में आईटी अधिनियम, 2000 के तहत प्रत्यायोजित शक्तियों से परे जा सकते हैं, जैसे SSMI और ऑनलाइन प्रकाशकों के विनियमन और कुछ मध्यस्थों को जानकारी के पहले प्रवर्तक की पहचान करने की आवश्यकता होती है। 
    • ऑनलाइन सामग्री को प्रतिबंधित करने के आधार व्यापक हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं। 
    • मध्यस्थों के पास से सूचना प्राप्त करने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं हैं। 
    • इसके मंच पर सूचना के पहले प्रवर्तक की पहचान को सक्षम करने के लिये संदेश सेवाओं की आवश्यकता व्यक्तियों की गोपनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। 

विगत वर्ष के प्रश्न(PYQs): 

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसके लिये साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना कानूनी रूप से अनिवार्य है? (2017) 

  1. सेवा प्रदाता
  2. डेटा केंद्र
  3. निगमित निकाय

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: D 

व्याख्या:  

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 70 बी के अनुसार, केंद्र सरकार को अधिसूचना द्वारा भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERTIn) नामक एक एजेंसी को घटना की प्रतिक्रिया के लिये राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करने के लिये नियुक्त करना चाहिये। 
  • केंद्र सरकार ने आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 70 बी के अंतर्गत वर्ष 2014 में सीईआरटी-इन के नियम स्थापित और अधिसूचित किये। नियम 12 (1) (A) के अनुसार, सेवा प्रदाताओं, मध्यस्थों, डेटा केंद्रों और कॉर्पोरेट निकायों को साइबर सुरक्षा घटनाओं की उचित समय-सीमा के अंदर CERT-In को  रिपोर्ट करना अनिवार्य है। अत: कथन 1, 2 और 3 सही हैं। 

अतः विकल्प D सही है। 

स्रोत: द हिंदू 


अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट, 2021  

मेन्स के लिये:

भारत के हित में देशों की नीतियांँ और राजनीति का प्रभाव, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता (IRF) पर 2021 की रिपोर्ट ज़ारी की गई। 

अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता का अमेरिकी कार्यालय: 

  • पृष्ठभूमि: 
    • वर्ष 1998 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (IRFA, 1998) को हस्ताक्षरित किया। 
    • इस अधिनियम ने अमेरिकी सरकार के विदेश विभाग के तहत एक राजदूत-एट-लार्ज की अध्यक्षता में अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के कार्यालय का निर्माण किया और अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की स्थापना की। 
  • उद्देश्य: 
    • यूएस ऑफिस ऑफ इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम (IRF) विश्व स्तर पर धार्मिक रूप से प्रेरित दुर्व्यवहार, उत्पीड़न और भेदभाव पर नज़र रखता है। 
    • इसके अतिरिक्त यह उल्लिखित चिंताओं को दूर करने के लिये नीतियों और कार्यक्रमों की सिफारिश, विकास और कार्यान्वयन करता है। 
    • IRF में यह भी उल्लेख किया गया है कि यह धर्म और विवेक की स्वतंत्रता को लागू करने के लिये वैश्विक स्तर पर उभरते लोकतंत्रों की सहायता करता है। 
    • इसके अलावा उन शासनों की पहचान करें और उनकी निंदा करें जो धर्म के आधार पर उत्पीड़न करते हैं और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने में विश्व स्तर पर गैर सरकारी संगठनों की सहायता करते हैं। 

रिपोर्ट की मुख्य बिंदु: 

  • भारत: 
    • बढ़ते हमले: 
      • भारत में लोगों (धार्मिक असहिष्णुता के कारण) और पूजा स्थलों पर हमलों में वृद्धि देखी गई है। 
      • धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर ये हमले वर्ष भर होते रहे हैं जिनमें हत्याएँ और उनको डराना-धमकाना शामिल है।  
        • इनमें गोहत्या या गोमांस के व्यापार के आरोपों के आधार पर गैर-हिंदुओं के खिलाफ हमले की घटनाएँ भी शामिल थीं। 
    • धर्मांतरण विरोधी कानून: 
      • इसके भारत खंड में देश में धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर भी प्रकाश डाला गया  है, यह देखते हुए कि 28 राज्यों में ये कानून हैं और उनके तहत गिरफ्तारी की गई थी। 
      • ये यह भी बताता है कि कई राज्य सरकारों ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को पेश करने की योजना की घोषणा की है। 
    • पुलिस द्वारा गिरफ्तारियाँ: 
      • पुलिस ने गैर-हिंदुओं को मीडिया या सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने के लिये  गिरफ्तार किया, जिन्हें हिंदु धर्म या हिंदुओं के लिये अपमानजनक माना गया था। 
    • संदिग्ध आतंकी: 
      • जम्मू-कश्मीर में बिहार के हिंदू प्रवासी श्रमिकों सहित नागरिकों और प्रवासियों को निशाना बनाकर और उनकी हत्या करने वाले हमले भी  हुए हैं। 
      • रिपोर्ट के अनुसार, इसने हिंदू और सिख समुदायों में व्यापक भय पैदा कर दिया है, जिससे कई क्षेत्र से प्रवासियों का पलायन हुआ। 
    • लिंचिंग: 
      • वर्ष 2021 में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों की लिंचिंग की घटनाओं का भी जिक्र है। 
    • विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम: 
      • गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के कामकाज को बाधित करने के लिये सरकार द्वारा विदेशी योगदान विनियम अधिनियम का इस्तेमाल किया गया था। 
      • हालाँकि, सरकार का दावा है कि इस अधिनियम का इस्तेमाल विदेशी गैर सरकारी संगठनों की निगरानी और जवाबदेही को बढ़ाने के लिये  किया जाता है। 
  • वैश्विक स्थिति: 
    • परिचय: 
      • वियतनाम और नाइजीरिया को उन देशों के रूप में उद्धृत किया गया है जहाँ धार्मिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाया जा रहा था। 
      • धार्मिक स्वतंत्रता प्रतिबंधों वाले देशों के उदाहरणों के एक अन्य वर्ग में अमेरिका सहयोगी देश सऊदी अरब, साथ ही चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान शामिल हैं 
      • चीन मुख्य रूप से मुस्लिम उइगर और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के नरसंहार और दमन को जारी रखा है। 
      • पाकिस्तान में, कई लोगों पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया है, या वर्ष 2021 में अदालतों द्वारा मौत की सजा सुनाई गई है। 
    • प्रगति : 
      • मोरक्को, तिमोर लेस्ते, ताइवान और इराक उन देशों के उदाहरण हैं जहांँ धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रगति हुई है। 
        • कुछ देश नागरिकों के "मूल अधिकारों" का सम्मान नहीं कर रहे थे, जिसमें धर्मत्याग और ईशनिंदा कानूनों का उपयोग करना और धार्मिक अभिव्यक्ति को कम करना- जैसे कि धार्मिक पोशाक को प्रतिबंधित करना शामिल है। 

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति: 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का एक मौलिक अधिकार के रूप में उल्लेख किया गया है। 
    • अनुच्छेद 25 (अंतःकरण की स्वतंत्रता एवं धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता)। 
    • अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता)। 
    • अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि हेतु करों के संदाय को लेकर स्वतंत्रता)। 
    • अनुच्छेद 28 (कुछ विशिष्ट शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने को लेकर स्वतंत्रता)। 
  • इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा से संबंधित प्रावधान हैं। 

स्रोत: द हिंदू