शासन व्यवस्था
आसिया बीबी ईशनिंदा मामला (Asia Bibi blasphemy case)
- 06 Nov 2018
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संदर्भ
हाल ही में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई महिला आसिया बीबी को ईशनिंदा के एक मामले में बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘आसिया बीबी की सज़ा वाले फैसले को नामंज़ूर किया जाता है। अगर अन्य किसी मामले में उन पर मुक़दमा नहीं है तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।’ गौरतलब है कि पाकिस्तान की निचली अदालत और फिर हाईकोर्ट ने ईशनिंदा कानून के तहत इस मामले में आसिया बीबी को मौत की सज़ा सुनाई थी।
मुद्दा क्या है?
- ध्यातव्य है कि आसिया बीबी पर 2009 में ईशनिंदा करने का आरोप लगाया गया था। 2010 में एक निचली अदालत ने उसे मौत की सज़ा दे दी थी। 2014 में लाहौर उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा जिसे हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पलटते हुए उसे बरी करने का आदेश दे दिया।
- सुप्रीम कोर्ट ने मशाल खान और अयूब मसीह केस का हवाला देते हुए कहा था कि पिछले 28 वर्षों में 62 अभियुक्तों को अदालत का फ़ैसला आने से पहले ही मार दिया गया।
भीड़ तंत्र
- पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद पाकिस्तान सरकार के पास एक ऐसा मौका था जिसमें वह ईशनिंदा जैसे प्रतिगामी कानूनों की व्यवहार्यता पर बहस छेड़ सकती थी। परंतु, निर्णय के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे चरमपंथियों के दबाव में आकर पाकिस्तान सरकार ने घुटने टेक दिये और एक चरमपंथी समूह के साथ समझौता कर लिया।
- इस समझौते के अनुसार, पाकिस्तान सरकार आसिया बीबी की रिहाई के खिलाफ समीक्षा याचिका के विरोध में कोई कदम नहीं उठाएगी। इसके अलावा, समझौते में सरकार ने यह भी वादा किया है कि आसिया बीबी को पाकिस्तान छोड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- सवाल यह है कि पाकिस्तान सरकार आखिर कब तक चरमपंथियों के दबाव में आकर नीतियों का निर्धारण करेगी? आसिया बीबी के मामले में पाकिस्तान पहले ही बहुत ज़्यादा रक्तपात देख चुका है।
- साल 2011 में पंजाब के मुखर और धर्मनिरपेक्ष गवर्नर सलमान तासीर, जिन्होंने आसिया बीबी की रिहाई के लिये प्रचार किया था, की हत्या को उनके ही सिक्योरिटी गार्ड ने अंजाम दिया था। तासीर की हत्या करने वाला मुमताज क़ादरी एक मौलवी द्वारा दिये गए प्रवचन से प्रेरित हुआ था।
- तत्कालीन अल्पसंख्यक मंत्री शाहबाज भट्टी की भी ईशनिंदा कानून में संशोधन हेतु आग्रह करने के बाद उसी वर्ष हत्या कर दी गई थी।
- ईशनिंदा कानून को लेकर पाकिस्तान को अब तक विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समूहों से आलोचना का सामना करना पड़ा है। गौरतलब है कि इस कानून को धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वाला कानून माना जाता रहा है।
ईशनिंदा क्या है?
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