जैव विविधता और पर्यावरण
स्टबल बर्निंग
- 05 Aug 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण-पश्चिम मानसून, वायु आयोग विधेयक, 2021 मेन्स के लिये:पराली जलाने से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव एवं इसे रोकने के लिये किये गए प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुछ विशेषज्ञों ने सलाह दी कि सरकार को पराली जलाने (Stubble Burning) के विकल्पों के कार्यान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये।
- कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की आलोचना का सामना कर रही केंद्र सरकार ने वायु आयोग विधेयक, 2021 में एक खंड को हटाने का निर्णय लिया था, जो किसानों को पराली जलाने हेतु दंडित करेगा और वायु की गुणवत्ता को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता है।
प्रमुख बिंदु:
पराली के बारे में:
- पराली जलाना, अगली फसल बोने के लिये फसल के अवशेषों को खेत में आग लगाने की क्रिया है।
- इसी क्रम में सर्दियों की फसल (रबी की फसल) बोने के लिये हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा कम अंतराल पर फसल की बोआई की जाती है तथा अगर सर्दी की छोटी अवधि के कारण फसल बोआई में देरी होती है तो उन्हें काफी नुकसान हो सकता है, इसलिये पराली को जलना पराली की समस्या का सबसे सस्ता और तीव्र तरीका है।
- यदि पराली को खेत में छोड़ दिया जाता है, तो दीमक जैसे कीट आगामी फसल पर हमला कर सकते हैं।
- किसानों की अनिश्चित आर्थिक स्थिति उन्हें पराली हटाने के लिये महंँगे मशीनीकृत तरीकों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है।
- पराली जलाने की यह प्रक्रिया अक्तूबर के आसपास शुरू होती है और नवंबर में अपने चरम पर होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी का समय भी है।
प्रमुख कारण:
- प्रौद्योगिकी:
- मशीनीकृत कटाई के कारण समस्या उत्पन्न होती है जिससे खेतों में कई इंच फसल के अवशेष/ठूंठ (Stubble) रह जाते हैं।
- इससे पहले फसल के इन अतिरिक्त अवशेषों का उपयोग किसान खाना पकाने के लिये, घास के रूप में, अपने पशुओं को गर्म रखने के लिये या यहांँ तक कि घरों के लिये अतिरिक्त इन्सुलेशन के रूप में करते थे।
- लेकिन अब ऐसे उद्देश्यों के लिये पराली का उपयोग तार्किक नहीं रह गया है।
- कानूनों का प्रतिकूल प्रभाव:
- पंजाब उप-जल संरक्षण अधिनियम (2009) के कार्यान्वयन से उत्तरी भारत में सर्दियों की शुरुआत के साथ पराली जलाने की समयावधि का भी संयोग बन गया।
- पीपीएसडब्ल्यू अधिनियम (2009) द्वारा निर्देशित जल की कमी को रोकने के लिये खरीफ मौसम के दौरान धान की देर से रोपाई करने से किसानों के पास अगली फसल हेतु फसल की कटाई और खेत तैयार करने के बीच बहुत कम समय बचता था, इसलिये किसान पराली जलाने का सहारा ले रहे हैं।
- उच्च सिलिका सामग्री:
- उच्च सिलिका सामग्री के कारण गैर-बासमती चावल के मामले में चावल के भूसे को चारे के लिये उपयुक्त नहीं माना जाता है।
पराली जलाने के प्रभाव:
- प्रदूषण:
- खुले में पराली जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में ज़हरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं।
- वातावरण में छोड़े जाने के बाद ये प्रदूषक वातावरण में फैल जाते हैं, भौतिक और रासायनिक परिवर्तन से गुज़र सकते हैं तथा अंततः स्मॉग की मोटी चादर बनाकर मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
- मृदा उर्वरकता:
- भूसी को ज़मीन पर जलाने से मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे यह कम उर्वरक हो जाती है।
- गर्मी उत्पन्न होना:
- पराली जलाने से उत्पन्न गर्मी मिट्टी में प्रवेश करती है, जिससे नमी और उपयोगी रोगाणुओं को नुकसान होता है।
पराली जलाने के विकल्प:
- पराली का स्व-स्थानिक उपचार: उदाहरण के लिये ‘ज़ीरो टिलर’ मशीन द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन और बायो डीकंपोजर का उपयोग।
- गैर-स्थानिक उपचार: उदाहरण के लिये मवेशियों के चारे के रूप में चावल के भूसे का उपयोग।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: उदाहरण के लिये ‘टर्बो हैप्पी सीडर’ (THS) मशीन, जो पराली को उखाड़ सकती है और साफ किये गए क्षेत्र में बीज भी बो सकती है। इसके बाद पराली को खेत के लिये गीली घास के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- फसल पैटर्न में बदलाव: यह अधिक मौलिक समाधान है।
आगे की राह
- पराली जलाने पर अंकुश लगाने के लिये जुर्माना लगाना भारतीय सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के लिहाज़ से बेहतर विकल्प नहीं है। हमें वैकल्पिक समाधानों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
- यद्यपि सरकार मशीनों का वितरण कर रही है, किंतु स्व-स्थानिक प्रबंधन के लिये सभी को मशीनें नहीं मिल पाती हैं। सरकार को उनकी उपलब्धता सभी के लिये सुनिश्चित करनी चाहिये।
- इसी तरह गैर-स्थानिक उपचार प्रबंधन में कुछ कंपनियों ने अपने उपयोग के लिये पराली इकट्ठा करना शुरू कर दिया है, किंतु इस दृष्टिकोण को और अधिक बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है।
- छोटे और सीमांत किसानों को विशेष रूप से, गैर-स्थानिक रणनीतियों को अपनाने के लिये समर्थन की आवश्यकता होती है, ताकि भूसे को मिट्टी में मिलाया जा सके और इसे जलाया नहीं जाए। समाधान तक पहुँचे बिना दंड अधिरोपित करना विकल्प नहीं है।