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डेली न्यूज़

  • 03 Jan, 2020
  • 34 min read
भूगोल

भारत में बढ़ता अग्नि प्रवण वनों का क्षेत्रफल

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय वन सर्वेक्षण

मेन्स के लिये:

वन संसाधन, प्राकृतिक आपदाएँ, भारतीय वन सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India-FSI) के अध्ययन के अनुसार भारत के कुल वन क्षेत्र में से लगभग 21.4% में अत्यधिक अग्नि प्रवणता देखी गई है।

मुख्य बिंदु:

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  • यह जानकारी वर्ष 2004 से 2017 के बीच पूरे भारत में वनाग्नि बिंदु (Forest Fire Point-FFP)के सामानांतर भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा किये गए अध्ययन पर आधारित है, जिसे FSI द्वारा भारत वन स्थिति रिपोर्ट -2019 शीर्षक से प्रकाशित किया गया।
  • पिछले 13 वर्षों के अध्ययनों के दौरान भारत में कुल 2,77,758 वनाग्नि बिंदुओं की पहचान की गई
  • इन FFPs की पहचान मॉडरेट रेसोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोराडियोमीटर (Moderate Resolution Imaging Spectroradiometer-MODIS) के द्वारा सम्पूर्ण वन क्षेत्र को 5 किमी. X 5 किमी. के वर्ग विभक्त करके की गयी।
  • अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार संपूर्ण वनावरण के क्षेत्रफल का 3.89% हिस्सा उच्च अग्नि प्रवण (Extremely Fire Prone) क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया।
  • साथ ही लगभग 6.01% क्षेत्रफल को अत्यधिक अग्नि प्रवण (Very Highly Fire Prone) क्षेत्र, तथा 11.50% क्षेत्रफल को अधिक अग्नि प्रवण (Highly Fire Prone) क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है।
  • MODIS द्वारा इकट्ठा की गयी सूचना के आधार पर नवंबर 2018 से जून 2019 के बीच विभिन्न राज्यों में 29,547 बार वनाग्नि की चेतावनियाँ जारी की गई।
  • इसी दौरान मिज़ोरम जैसे छोटे राज्य में वनाग्नि की 2,795 चेतावनिया जारी की गई।
  • भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सात राज्यों में वनाग्नि के सबसे अधिक मामले देखे गए, इस राज्यों में नवंबर 2018 से जून 2019 के बीच वनाग्नि की 10,210 चेतावनियाँ जारी की गई, जो पूरे देश में जारी चेतावनियों का एक-तिहाई हिस्सा था।
  • भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (Zoological Survey of India) के विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में वनाग्नि के बढ़ाते मामलों का सबसे बड़ा कारण स्थानांतरण कृषि या झूम कृषि (Lash-and-Burn) है।
  • इस क्षेत्र में ज़्यादातर वनाग्नि के मामले जनवरी से मार्च के बीच में देखे जाते हैं। उत्तर-पूर्व के वन मध्य भारत के शुष्क पर्णपाती वनों से विपरीत उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन की श्रेणी में आते हैं जिनमें आसानी से आग लगना संभव नहीं है।

अध्ययन के अन्य तथ्य:

  • अध्ययन में पाया गया कि एक तरफ जहाँ पूरे देश में वनावरण के क्षेत्र में वृद्धि हुई है वहीं उत्तर-पूर्व विशेषकर मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड के वनावरण क्षेत्रफल में कमी आई है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, वनावरण क्षेत्रफल में आई इस कमी का कुछ हद तक संबंध इस क्षेत्र में बढ़ रहे वनाग्नि के मामलों से भी है।
  • इस अध्ययन में मध्य भारत के राज्यों में भी वनाग्नि की चेतावनियों में वृद्धि देखी गई, मध्य प्रदेश (2,723), महाराष्ट्र (2,516), ओडिशा (2,213) और छत्तीसगढ़ में 1,008 वनाग्नि के मामले।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, मध्य भारत में अधिकतर वनाग्नि के मामलों कारण मानवीय हैं, जिसमें लोगों द्वारा बीड़ी, सिगरेट अथवा अन्य ज्वालशील पदार्थों को वन क्षेत्रों के नज़दीक लापरवाही से छोड़ देना है।
  • इसके अतिरिक्त वनाग्नि के प्राकृतिक कारकों में आकाशीय बिजली प्रमुख है।

निष्कर्ष :

विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन वनाग्नि के मामलों की आवृत्ति एवं तीव्रता को बढ़ाता है। अनियंत्रित वनाग्नि की आवृति बढ़ने से वनावरण के रूप में प्रकृति को अपूर्णीय क्षति होती है, जिससे वनों पर निर्भर पर्यावरणीय एवं सामाजिक तंत्र को भी नुकसान पहुँचता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के साथ-साथ प्रकृति के ह्रास के मानवीय कारणों को नियंत्रित किया जाए, जिससे मानव और प्रकृति के बीच का संतुलन बना रहे।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

बाघ मृत्युदर में कमी

प्रीलिम्स के लिये:

बाघ अभयारण्य

मेन्स के लिये:

बाघों की जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Forest, Environment and Climate Change- MoEFCC) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, देश में वर्ष 2019 में मात्र 95 बाघों की मृत्यु के मामले पंजीकृत किये गए, जो पिछले तीन वर्षों के अनुपात में सबसे कम है।

मुख्य बिंदु:

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  • वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019 में देश भर में बाघों की मृत्यु के 85 प्रत्यक्ष मामले सामने आए, जबकि 11 बाघों के मरने की पुष्टि उनके अंगों के मिलने के आधार पर की गई।
  • ध्यातव्य है कि इससे पहले वर्ष 2018 के दौरान देश भर में बाघों की मृत्यु के 100 मामले और वर्ष 2017 में 115 मामले दर्ज किये गए थे, जबकि वर्ष 2016 में बाघों की मृत्यु का आँकड़ा 122 तक पहुँच गया था।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) के विशेषज्ञों के मतानुसार, इन आँकड़ों को पिछले कुछ वर्षों में देश में बढ़ रही बाघों की संख्या के संदर्भ में देखा जाना चाहिये।
  • जुलाई 2019 में जारी पिछली बाघ जनगणना में देखा गया था कि वर्ष 2014 में हुई जनगणना के मुकाबले देश में बाघों की संख्या तीन गुना बढ़कर 2,967 हो गई थी।

देश में बाघ मृत्यु-दर में आई कमी के कारण:

  • देश में बाघ मृत्यु-दर में आई कमी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा बाघों के संरक्षण के लिये चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों का परिणाम है।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा देश के विभिन्न बाघ अभयारण्यों में बाघों की सुरक्षा के लिये निगरानी, अभयारण्यों का बेहतर प्रबंधन और बाघों के संरक्षण के प्रति लोगों को शिक्षित एवं जागरूक करने जैसे अनेक कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने हाल के वर्षों में बाघों की निगरानी में तकनीकी का प्रयोग करना प्रारंभ किया है जिससे प्राधिकरण को इस क्षेत्र में काफी मदद मिली है।

देश में बाघ मृत्यु के राज्यवार आँकड़े:

  • देश में सबसे अधिक बाघ आबादी (वर्ष 2018 जनगणना के अनुसार 526) वाले राज्य मध्य प्रदेश में इस वर्ष सबसे अधिक 31 बाघों की मृत्यु दर्ज की गई।
  • इसके साथ ही दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र में 18 और कर्नाटक में इसी दौरान 12 बाघों की मृत्यु के मामले दर्ज किये गए। जबकि वर्ष 2018 की बाघ जनगणना में कर्नाटक और महाराष्ट्र में कुल बाघों की संख्या क्रमशः 524 व 312 पाई गई थी।
  • वर्ष 2019 में ही उत्तराखंड राज्य में 10, जबकि दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में वर्ष भर में बाघ मृत्यु के 7 मामले दर्ज किये गए।
  • कुछ बाघों की मृत्यु गैर-बाघ आबादी वाले राज्यों (जैसे-गुजरात) में भी दर्ज की गई, विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार, ऐसा बाघों के इन राज्यों में भटक कर चले जाने के कारण हुआ होगा।

बाघों के अवैध शिकार के मामले:

  • प्रस्तुत आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2019 में अवैध शिकार के कारण 22 बाघों की मृत्यु हो गई, जबकि एक बाघ की मृत्यु की मृत्यु जहर के कारण हुई।
  • अवैध शिकार के मामलों के अध्ययन में देखा गया कि 22 में से 16 अवैध शिकार की घटनाएँ बाघ अभयारण्यों के बाहर दर्ज की गईं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, अवैध शिकार की 70% घटनाएँ बाघ अभयारण्यों के बाहर ही होती हैं।
  • वर्ष 2019 में बाघों के अवैध शिकार की घटनाओं के मध्य प्रदेश में 8, महाराष्ट्र में 6 तथा कर्नाटक और असम में 2-2 मामले पाए गए, इसके साथ ही NTCA विद्युत आघात से होने वाली बाघों की मौतों के मामलों को भी अवैध शिकार के रूप में पंजीकृत कर रही है।
  • वर्ष 2019 के आँकड़ों में 17 बाघों की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से बताई गई जबकि 56 बाघों की मृत्यु के कारणों का पता नहीं लगाया जा सका।

नए बाघ अभयारण्यों का निर्माण:

  • NTCA के अधिकारियों के मतानुसार, देश में बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए कुछ और क्षेत्रों को बाघ अभयारण्य के रूप में घोषित करने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में भारत में 50 बाघ अभयारण्य हैं जो 73,000 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैले हैं।
  • बाघों के अभयारण्यों से बाहर आकर लंबी दूरी तय करने के बढ़ते मामलों को देखते हुए, नए अभयारण्यों के निर्माण पर विचार करना बहुत ही आवश्यक हो गया है।
  • NTCA के अनुसार, वर्ष 2020 तक कम-से-कम तीन नए बाघ अभयारण्य बनाने की योजना है।

बाघों के अंतर्राज्यीय स्थानांतारण के मामले:

  • बाघों के अंतर्राज्यीय स्थानांतारण के लिये संबंधित राज्यों के वन विभागों को NTCA तथा भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII) के वैज्ञानिकों की सहमति लेनी पड़ती है।
  • वर्ष 2018 में देश में किसी भी बाघ के पहले अंतर्राज्यीय स्थानांतारण के मामले में मध्य प्रदेश के कान्हा बाघ अभयारण्य से एक नर बाघ और बांधवगढ़ अभयारण्य से एक बाघिन (मादा) को ओडिशा के सतकोसिया बाघ अभयारण्य में स्थानांतरित किया गया था।
    • परन्तु बाघ की अवैध शिकार में मृत्यु और मादा बाघिन द्वारा एक स्थानीय महिला की हत्या के बाद ऐसे कार्यक्रमों की सार्थकता पुनः विचार किया जा रहा है।
  • देश में बाघों की संख्या बढ़ने के साथ ही उनमें क्षेत्रीय अधिकार को लेकर संघर्ष के मामले भी बढ़े हैं, जिसे देखते हुए राज्य वन विभागों ने अंतर्राज्यीय स्थानांतारण का रास्ता अपनाया था।

स्रोत-द हिंदू


भूगोल

उत्तर-पूर्वी मानसून की स्थिति

प्रीलिम्स के लिये:

भारत मौसम विज्ञान विभाग

मेन्स के लिये:

उत्तर-पूर्वी मानसून का वार्षिक वितरण

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2019 में उत्तर-पूर्वी मानसून से होने वाली वर्षा की मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2019 में उत्तर-पूर्वी मानसून से होने वाली वर्षा की मात्रा में कुल 30% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • वर्ष 2019 में दक्षिण-पश्चिम मानसून काफी समय तक प्रभावी रहा, इसलिये शीतकालीन मानसून देरी से प्रारंभ हुआ।
  • इसके बावजूद दक्षिणी प्रायद्वीप के सभी प्रभागों में तीन महीनों के दौरान सामान्य या उससे अधिक वर्षा दर्ज की गई।
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, उत्तर-पूर्वी मानसून के प्रभावी रहने के दौरान स्थानिक और कालिक रूप से प्रत्येक सप्ताह सामान्य वर्षा दर्ज की गई।

उत्तर-पूर्वी मानसून:

  • IMD द्वारा सामान्यतः अक्तूबर से दिसंबर तक के समय को उत्तर-पूर्वी मानसून की अवधि के तौर पर माना गया है।
  • सितंबर के अंत में सूर्य का दक्षिणायन प्रारंभ हो जाता है, फलतः गंगा के मैदान पर निर्मित निम्न वायुदाब की पेटी भी दक्षिण की ओर खिसकना आरंभ कर देती है, जिसके कारण ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ कमज़ोर पड़ने लगता है और दिसंबर के मध्य तक आते-आते निम्न वायुदाब का केंद्र भारतीय उपमहाद्वीप से पूरी तरह हट चुका होता है।
  • इस समय ताप कटिबंधों के साथ-साथ इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्ज़ेंस ज़ोन (Inter Tropical Convergence Zone- ITCZ) का भी दक्षिण की ओर विस्थापन हो जाता है, जिसके कारण ‘उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम’ का तिब्बत के पठार से हिमालय पर्वत की ओर विस्थापन प्रारंभ हो जाता है तथा ‘उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम’ का प्रभाव भारतीय प्रायद्वीप पर कम होने लगता है, जिसके कारण बंगाल की खाड़ी में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिये अनुकूल दशाएँ उत्पन्न हो जाती हैं तथा प्रायद्वीपीय भारत के पूर्वी भागों में वर्षा होती है।
  • इस अवधि के दौरान जहाँ दक्षिणी राज्यों मुख्यतः तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के साथ-साथ तेलंगाना और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में वर्षा होती है, वहीं जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र में इस अवधि के दौरान या तो वर्षा या बर्फबारी होती है।

इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्ज़ेंस ज़ोन:

  • ITCZ भूमध्य रेखा के पास एक गतिशील क्षेत्र है, जहाँ उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध से आने वाली व्यापारिक हवाएँ मिलती हैं। गर्मियों में ITCZ भूमध्य रेखा से उत्तरी गोलार्द्ध की तरफ खिसक (Shift) जाता है जिसका भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

वर्ष 2019 में उत्तर-पूर्वी मानसून की स्थिति:

  • वर्ष 2019 में मानसूनी मौसम के दौरान लक्षद्वीप (172%) एवं कर्नाटक (70%) में अत्यधिक वर्षा हुई, जबकि केरल और माहे में दिसंबर के अंत तक सामान्य से 27% अधिक वर्षा दर्ज की गई।
  • IMD द्वारा जारी वर्षा संबंधी आँकड़ों के अनुसार, तमिलनाडु में सामान्य से 1% अधिक वर्षा हुई।
  • वहीं पुद्दुचेरी में सामान्य से 17% कम तथा तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश में सामान्य से 8% कम वर्षा हुई।
  • वर्ष 2019 में उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण दक्षिण भारत में सामान्य से 30% अधिक वर्षा हुई। इसलिये केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission) द्वारा 26 दिसंबर, 2019 को जारी जलाशयों की वर्तमान भंडारण स्थिति के अनुसार, दक्षिण भारत में स्थित 36 जलाशयों में इनकी कुल जल भरण क्षमता का 76 प्रतिशत (40.37 बिलियन क्यूबिक मीटर) जल भंडारित है।
  • पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान इन जलाशयों में कुल जल भंडारण क्षमता का केवल 46 प्रतिशत जल भंडारित था।

उत्तर-पूर्वी मानसून का नामकरण:

  • उत्तर-पूर्वी मानसून का देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, हालाँकि इस मानसून प्रणाली का एक हिस्सा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के ऊपर उत्पन्न होता है।
  • उत्तर-पूर्वी मानसून का नामकरण इसके उत्तर-पूर्व दिशा से दक्षिण-पश्चिम की ओर जाने के कारण किया गया है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

एम-सेसेशन कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

एम-सेसेशन, राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम, ‘Be Healthy, Be mobile’ पहल, वैश्विक तंबाकू महामारी पर WHO की रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, तंबाकू का उपयोग और स्वास्थ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा वैश्विक तंबाकू महामारी (Global Tobacco Epidemic) पर जारी रिपोर्ट में तंबाकू की आदत छोड़ने वालों के संदर्भ में एम-सेसेशन (mCessation) कार्यक्रम का उल्लेख किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • एम-सेसेशन, तंबाकू छोड़ने के लिये मोबाइल प्रौद्योगिकी पर आधारित एक पहल है।
  • भारत ने वर्ष 2016 में सरकार के डिजिटल इंडिया पहल के हिस्से के रूप में पाठ्य संदेशों (Text Messages) का उपयोग कर mCessation कार्यक्रम शुरू किया था। यह तंबाकू छोड़ने वाले व्यक्तियों और प्रोग्राम विशेषज्ञों के बीच दो-तरफा मैसेजिंग का उपयोग करता है तथा उन्हें गतिशील सहायता प्रदान करता है।
  • यह कार्यक्रम उन लोगों को महत्त्व देता है जो कि एक समर्पित राष्ट्रीय नंबर पर मिस्ड कॉल देकर तंबाकू के सेवन से छुटकारा चाहते हैं।
  • कार्यक्रम की प्रगति की निगरानी ऑनलाइन डैशबोर्ड के माध्यम से रियल टाइम में की जाती है जिससे पंजीकरणों की संख्या का विवरण प्राप्त होता है।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किये गए एक मूल्यांकन में धूम्रपान करने वाले और धूम्रपानरहित तंबाकू केउपयोगकर्त्ताओं, दोनों में नामांकन के छह महीने बाद ही तंबाकू छोड़ने वालों की दर औसतन 7% पाई गई।
  • सरकार ने हाल ही में “mTobaccoCessation” प्लेटफॉर्म का संस्करण- 2 जारी किया है, जो 12 भाषाओं में एसएमएस या इंटरेक्टिव वॉयस प्रतिक्रिया के माध्यम से सामग्री वितरित कर सकता है।
  • mCessation की पहुँच अधिकतम लोगों तक सुनिश्चित करने के लिये इसे प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर की सलाह में शामिल किया जाना चाहिये।

तंबाकू नियंत्रण के लिये अन्य प्रयास

  • राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (National Tobacco Control Programme) तथा केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने WHO एवं अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union) के सहयोग से “Be Healthy, Be Mobile” पहल को लागू किया।

Be Healthy, Be Mobile पहल

  • यह पहल लोगों को शिक्षित कर और उनके मोबाइल के माध्यम से गैर संक्रामक रोगों को प्रबंधित करने से संबंधित है।
  • यह पहल मोबाइल फोन उपयोगकर्त्ताओं को रोग की रोकथाम और प्रबंधन की जानकारी देने के लिये मोबाइल फोन प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान करके स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करती है।
  • वर्ष 2007 से ही केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तंबाकू के पैकेट पर ग्राफिक स्वास्थ्य चेतावनी (Graphic Health Warnings on Tobacco Packets) देने पर ज़ोर दे रहा है।

तंबाकू के पैक पर ग्राफिक चेतावनी का महत्त्व

  • दुनिया की आधी से अधिक आबादी या 91 देशों में रहने वाले 3.9 बिलियन लोग ग्राफिक स्वास्थ्य चेतावनियों से अधिक मात्र में लाभान्वित हो रहे हैं और भारत उन देशों में से है जिसको सबसे ज़्यादा उपलब्धि मिली है।
  • हालाँकि इस संबंध में भारत का विशिष्ट मूल्यांकन नहीं हुआ है, किंतु कई देशों ने इसी तरह के मज़बूत लेबल पेश किए हैं, जिससे पता चलता है कि यह नीति युवाओं के बीच तंबाकू के उपयोग को कम करने और तंबाकू को छोड़ने के लिये प्रेरित करने में सबसे अधिक प्रभावी है।

वैश्विक तंबाकू महामारी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वर्ष 2019 की रिपोर्ट वैश्विक तंबाकू महामारी पर WHO की रिपोर्ट शृंखला की सातवीं रिपोर्ट है जो तंबाकू की महामारी की स्थिति और इससे निपटने के लिये किये जाने वाले कार्यों को ट्रैक करती है।
  • ब्राज़ील में जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत तंबाकू उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है, जहाँ धूम्रपान रहित तंबाकू के 200 मिलियन से अधिक उपयोगकर्त्ता और कुल मिलाकर तंबाकू के 276 मिलियन उपभोक्ता हैं।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में एक ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वेक्षण (Global Adult Tobacco Survey) में पाया गया कि 38.5 प्रतिशत धूम्रपान करने वाले वयस्क और 33.2 प्रतिशत तंबाकू के धुआँ रहित रूपों के उपयोगकर्त्ता/वयस्कों ने तंबाकू छोड़ने का प्रयास किया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय अवसंरचना कार्यक्रम (NIP)

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, Non Performing Assets

मेन्स के लिये:

बुनियादी ढाँचे और भारतीय अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन का आर्थिक संवृद्धि में योगदान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline- NIP) के अंतर्गत 102 लाख करोड़ रुपए की आधारभूत परियोजनाओं (Infrastructure Projects) की घोषणा की है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इन परियोजनाओं को अगले पाँच वर्षों में लागू किया जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि भारत के प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था कि अगले पाँच वर्षों में बुनियादी ढाँचे पर 100 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। इन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शामिल होंगी। अतः आधारभूत परियोजनाओं में 102 लाख करोड़ रुपए खर्च किये जाने की घोषणा उपर्युक्त परियोजना का ही हिस्सा है।
  • वित्तीय वर्ष 2019-20 से 2024-25 तक प्रत्येक वर्ष के लिये राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन तैयार करने हेतु हाल ही में टास्क फोर्स का गठन किया गया था।
  • वर्ष 2020 से 2025 के दौरान भारत में बुनियादी ढाँचे पर अनुमानित पूंजीगत व्यय का लगभग 70% ऊर्जा (24%), सड़क (19%), शहरी (16%), और रेलवे (13%) जैसे क्षेत्रों में होगा।
    • इस कार्यक्रम के अंतर्गत केंद्र और राज्य दोनों से 39-39 प्रतिशत वित्त प्राप्त किया जाएगा और निजी क्षेत्र से 22 प्रतिशत वित्त प्राप्त किया जाएगा।

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन क्या है?

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत को अपनी विकास दर को बनाए रखने के लिये वर्ष 2030 तक बुनियादी सुविधाओं पर 4.5 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने की आवश्यकता होगी। राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन का कार्य इसे एक कुशलतम तरीके से संभव बनाना है।

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन के लाभ

  • अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में: बेहतर नियोजित राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन से आधारभूत परियोजनाओं को अधिक सक्षम करने, कारोबार में वृद्धि, रोज़गार सृजन, जीवनयापन में सुगमता और बुनियादी ढाँचे तक सभी को न्यायसंगत पहुँच प्रदान करने जैसे अनेक फायदे होंगे जिससे विकास को और अधिक समावेशी बनाने में मदद मिलेगी।
  • सरकार के राजस्व में वृद्धि: इस कार्यक्रम से बुनियादी ढाँचों के निर्माण में तेज़ी आएगी। चूँकि विकसित बुनियादी ढाँचा आर्थिक गतिविधियों के स्तर को बढ़ाता है जिससे सरकार के राजस्व आधार में सुधार होगा और साथ ही उत्पादक क्षेत्रों में केंद्रित व्यय की गुणवत्ता भी सुनिश्चित होगी।
  • यह कार्यक्रम परियोजनाओं को पूरा करने के संबंध में बेहतर दृष्टिकोण प्रदान करता है, साथ ही परियोजना में बोली लगाने के लिये तैयारी हेतु पर्याप्त समय भी प्रदान करता है।
  • यह कार्यक्रम परियोजना के असफल होने जैसी आशंका को कम करता है तथा निवेशकों के आत्मविश्वास में वृद्धि के परिणामस्वरूप वित्त के स्रोतों तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • यह कार्यक्रम निवेशकों के विश्वास को बढ़ता है क्योंकि इसके माध्यम से परियोजनाओं को बेहतर तरीके से तैयार किया जाता है। यह सक्रिय परियोजनाओं की निगरानी संबंधी तनाव को कम करता है, जिससे गैर-निष्पादित संपत्तियों (Non Performing Assets- NPA) की संभावना कम होती है।
  • इन परियोजनाओं के माध्यम से भारत को वर्ष 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में मदद मिलेगी।

NIP से भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में कैसे मदद मिलेगी?

  • 102 लाख करोड़ रुपए की राष्ट्रीय अवसंरचना परियोजनाओं से देश का बुनियादी ढाँचा सुदृढ़ होगा जिससे देश में उत्पादन की दर बढ़ेगी और साथ ही निवेशकों को आकर्षित करने का एक बेहतर माहौल बनेगा।
  • दरअसल, इतनी बड़ी धनराशि खर्च करने से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे अर्थव्यवस्था में मांग में वृद्धि होगी और रोज़गार के अवसर निर्मित होंगे फलतः सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी। इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का मार्ग प्रशस्त होगा।

स्त्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स) 03 जनवरी, 2020

‘दामिनी’ हेल्पलाइन

हाल ही में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) ने महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ‘दामिनी’ नाम से कॉलिंग एवं वाट्सएप हेल्पलाइन सेवा की शुरुआत की है। अधिकारियों के अनुसार, इस हेल्पलाइन सेवा (8114277777) पर महिलाएँ सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं।


मनजोत कालरा पर प्रतिबंध

विगत वर्ष अंडर-19 (U-19) विश्वकप में शतक लगाने वाले बाएँ हाथ के ओपनर बल्लेबाज मनजोत कालरा को उम्र के संबंध में धोखाधड़ी करने के आरोप में दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन (DDCA) ने रणजी ट्रॉफी से एक साल के लिये निलंबित कर दिया है। DDCA के निवर्तमान लोकपाल न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) बदर दुरेज़ अहमद ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन यह आदेश पारित किया।


विनोद कुमार यादव

केंद्र सरकार ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव के कार्यकाल को एक वर्ष के लिये बढ़ा दिया है। हाल ही में सरकार ने रेलवे सेवाओं के एकीकरण और रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन का महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया था। विदित हो कि विनोद कुमार यादव को अश्विनी लोहानी के स्थान पर रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष रूप में नियुक्त किया गया था। वह 1980 बैच के इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स (IRSEE) अधिकारी हैं।


भारतीय रेलवे का एकीकृत हेल्प लाइन नंबर

भारतीय रेलवे ने रेल यात्रा के दौरान यात्रियों की शिकायतों के त्‍वरित समाधान और पूछताछ सुविधाओं के लिये अपने सभी हेल्‍पलाइन नंबरों को हेल्‍पलाइन संख्‍या 139 के साथ एकीकृत कर दिया है। अब एकमात्र हेल्‍पलाइन संख्‍या 139 मौजूदा सभी हेल्‍पलाइन सेवाओं का स्‍थान ले लेगी। यात्रियों के लिये यह हेल्‍पलाइन नंबर याद रखने और यात्रा के दौरान अपनी सभी ज़रूरतों के बारे में रेलवे के साथ संपर्क स्थापित करने में आसान और सुविधाजनक रहेगा। उल्लेखनीय है कि यह हेल्‍पलाइन सेवा 139 कुल 12 भाषाओं में उपलब्‍ध होगी। साथ ही यह इंटरएक्टिव वायस रेस्‍पोंस प्रणाली पर आधारित होगी। इस नंबर पर केवल स्‍मार्ट फोन से ही नहीं, बल्कि किसी भी मोबाइल फोन से संपर्क किया जा सकेगा।


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