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मानसून की भविष्यवाणी

  • 22 Jul 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में मानसून के गलत पूर्वानुमानों से इनके मापदंडों पर फिर से प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून ने लगभग एक सप्ताह की देरी के साथ 7 जून को केरल तट पर दस्तक दी। जून में अपेक्षित वर्षा की केवल दो-तिहाई वर्षा ही प्राप्त हुई।
  • जुलाई और अगस्त महीने मानसून के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं। जून से सितंबर तक होने वाली कुल वर्षा में से 89 सेमी. वर्षा के साथ 66% वर्षा इन दोनों महीनों में ही होती है।
  • प्रशांत महासागर में बनने वाले एलनीनो के आधार पर भारत के मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मई में पूर्वानुमान लगाया था कि सामान्य वर्षा से जुलाई में 5% और अगस्त 1% वर्षा कम होगी। एल नीनो के वर्षों में भारत के मानसून के कमज़ोर होने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
  • अरब सागर में बना वायु चक्रवात इस वर्ष के मानसून में बड़ी बाधा था। साथ ही पश्चिमी विक्षोभ ने भी मानसून के उत्तरी भारत, जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के वर्षण प्रतिरूप को प्रभावित किया।
  • केरल तट और पश्चिमी घाट की मानसून शाखा की अपेक्षा बंगाल की खाड़ी में संवहनीय धाराओं की उपस्थिति के कारण पूर्वी भारत की मानसून शाखा द्वारा ज़्यादा वर्षा हुई।

2010 तक IMD मानसून का पूर्वानुमान का सांख्यिकीय मॉडल:

  • इस मॉडल में उत्तरी अटलांटिक और उत्तरी प्रशांत के बीच समुद्र की सतह की तापमान प्रवणता, भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में गर्म पानी की मात्रा, यूरेशियन बर्फ का आवरण जैसे मानसून के प्रदर्शन से जुड़े जलवायु मापदंडों को शामिल किया जाता था।
  • उपरोक्त मापदंडों के फरवरी और मार्च के आँकड़ों की सौ वर्ष से अधिक के वास्तविक वर्षा के आँकड़ों से तुलना करने के बाद (सांख्यिकीय तकनीकों का उपयोग करते हुए) किसी एक विशेष वर्ष के मानसून का पूर्वानुमान लगाया जाता था।
  • इस प्रकार व्यक्त पूर्वानुमान अक्सर (विशेष रूप से वर्ष 2002, 2004 और 2006) गलत साबित हुए हैं।

2015 के बाद का पूर्वानुमान मॉडल:

  • 2015 के आसपास से ही मानसून पूर्वानुमान हेतु एक गतिशील प्रणाली का परीक्षण शुरू किया गया। इस प्रणाली में कुछ निश्चित स्थानों की भूमि और समुद्र के तापमान, नमी, विभिन्न ऊँचाई पर वायु की गति, जैसे मापदंडों के आधार पर मौसम का अनुमान लगाया जाता है।
  • इस प्रणाली से प्राप्त आँकड़ों की गणना शक्तिशाली कंप्यूटरों के माध्यम से की जाती है। साथ ही मौसम के पूर्वानुमान में भौतिकी समीकरणों का भी प्रयोग किया जाता है।
  • IMD और कई निजी मौसम एजेंसियाँ मानसून के पूर्वानुमान हेतु अधिक परिष्कृत और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर मॉडल का प्रयोग कर रही हैं। इस प्रकार की तकनीकों के माध्यम से 10 से 15 दिन पहले मौसम में बदलाव की सूचना दी जाती है। ये छोटे पूर्वानुमान कहीं अधिक विश्वसनीय होते हैं क्योंकि इससे किसानों को बुवाई के बारे में निर्णय लेने में सहायता मिलती है। साथ ही ग्रीष्म लहर और शीत-लहर की आशंकाओं का बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार भारत का जल संकट भूजल संसाधनों के अति-निष्कर्षण और वर्षा जल तथा सतही जल के पर्याप्त भंडारण के अभाव के कारण बना हुआ है। केंद्रीय जल आयोग ने मानसून के दौरान जलाशयों के पुनर्भरण और वर्षा के मौसम के बाद इनके प्रयोग से संबंधित अनुशंसाएँ जारी की हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।
  • IMD विश्व मौसम संगठन के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
  • इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • IMD में उप महानिदेशकों द्वारा प्रबंधित कुल 6 क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र आते हैं।
  • ये चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली और हैदराबाद में स्थित हैं।

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक:

  1. एल नीनो और ला नीना: ये प्रशांत महासागर के पेरू तट पर होने वाली परिघटना है । एल नीनो के वर्षों के दौरान समुद्री सतह के तापमान में बढ़ोत्तरी होती है और ला नीना के वर्षों में समुद्री सतह का तापमान कम हो जाता है। सामान्यतः एल नीनो वर्षों में भारत में मानसून कमज़ोर जबकि ला नीना वर्षों में मानसून मज़बूत होता है।
  2. हिंद महासागर द्विध्रुव: हिंद महासागर द्विध्रुव के दौरान हिंद महासागर का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की अपेक्षा ज़्यादा गर्म या ठंडा होता रहता है। पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने पर भारत के मानसून पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि ठंडा होने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  3. मेडेन जुलियन ऑस्किलेशन (OSCILLATION): इसकी वजह से मानसून की प्रबलता और अवधि दोनों प्रभावित होती है। इसके प्रभावस्वरुप महासागरीय बेसिनों में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता भी प्रभावित होती है, जिसके परिणामस्वरूप जेट स्ट्रीम में भी परिवर्तन आता है। यह भारतीय मानसून के सन्दर्भ में एल नीनो और ला नीना की तीव्रता और गति के विकास में भी योगदान देता है।
  4. चक्रवात निर्माण: चक्रवातों के केंद्र में अति निम्न दाब की स्थिति पाई जाती है जिसकी वजह से इसके आसपास की पवनें तीव्र गति से इसके केंद्र की ओर प्रवाहित होती हैं। जब इस तरह की परिस्थितियाँ सतह के नज़दीक विकसित होती हैं तो मानसून को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। अरब सागर में बनने वाले चक्रवात, बंगाल की खाड़ी के चक्रवातों से अधिक प्रभावी होते हैं क्योंकि भारतीय मानसून का प्रवेश प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में अरब सागर की ओर होता है।
  5. जेट स्ट्रीम: जेट स्ट्रीम पृथ्वी के ऊपर तीव्र गति से चलने वाली हवाएँ हैं, ये भारतीय मानसून को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

स्रोत: द हिंदू

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