स्वास्थ्य बीमा: आवश्यकता और परिदृश्य
प्रिलिम्स के लिये:‘नीति आयोग, आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, कर्मचारी राज्य बीमा निगम मेन्स के लिये:स्वास्थ्य बीमा का महत्त्व और मौजूदा भारतीय परिदृश्य, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की अवधारणा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नीति आयोग’ ने ‘हेल्थ इंश्योरेंस फॉर इंडियाज़ मिसिंग मिडिल’ शीर्षक से एक व्यापक रिपोर्ट जारी की है।
- यह रिपोर्ट भारतीय आबादी में स्वास्थ्य बीमा कवरेज के अंतराल को प्रस्तुत करती है और इस समस्या से निपटने के लिये समाधान प्रदान करती है।.
प्रमुख बिंदु
- स्वास्थ्य बीमा का महत्त्व:
- स्वास्थ्य बीमा भारत में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के विरुद्ध वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने हेतु ‘आउट-ऑफ पॉकेट’ (OOP) व्यय को एकत्रित करने का एक तंत्र है।
- स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से पूर्व-भुगतान, जोखिम-पूलिंग और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के कारण होने वाले व्यापक व्यय से बचाव के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में सामने आया है।
- इसके अलावा प्री-पेड पूल फंड भी स्वास्थ्य देखभाल प्रावधान की दक्षता में सुधार कर सकते हैं।
- स्वास्थ्य बीमा: आवश्यकता और परिदृश्य:
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना: स्वास्थ्य बीमा कवरेज का विस्तार एक महत्त्वपूर्ण कदम है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने के भारत के प्रयास में मददगार होगा।
- स्वास्थ्य पर कम सरकारी व्यय ने सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता और गुणवत्ता को बाधित किया है।
- यह अधिकांश व्यक्तियों- लगभग दो-तिहाई को महँगे निजी क्षेत्र में इलाज कराने को मज़बूर करता है।
- अत्यधिक ‘आउट-ऑफ पॉकेट’ व्यय: भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में स्वास्थ्य पर कम सार्वजनिक व्यय, अत्यधिक ‘आउट-ऑफ पॉकेट’ व्यय और प्रतिकूल स्वास्थ्य घटनाओं हेतु वित्तीय सुरक्षा के अभाव जैसी विशेषताएँ मौजूद हैं।
- ‘मिसिंग मिडिल’: रिपोर्ट के अनुसार, कम-से-कम 30% आबादी या 40 करोड़ व्यक्तियों के पास स्वास्थ्य संबंधी किसी भी प्रकार की वित्तीय सुरक्षा मौजूद नही है, ऐसे लोगों को इस रिपोर्ट में ‘मिसिंग मिडिल’ के रूप में संदर्भित किया गया है।
- ‘आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ (AB-PMJAY) और विभिन्न राज्य सरकारों की योजनाएँ, आबादी के निचले 50% हिस्से को अस्पताल में भर्ती संबंधी व्यापक कवर प्रदान करती हैं।
- लगभग 20% आबादी यानी 25 करोड़ व्यक्ति- सामाजिक स्वास्थ्य बीमा और निजी स्वैच्छिक स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से कवर किये जाते हैं।
- मौजूदा स्वास्थ्य बीमा ‘मिसिंग मिडिल’ श्रेणी के लिये उपयुक्त नहीं:
- निम्न लागत वाले स्वास्थ्य बीमा उत्पाद के अभाव में ‘मिसिंग मिडिल’ श्रेणी को स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त नहीं हो पाता है।
- कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) और AB-PMJAY सहित सरकारी सब्सिडी वाले बीमा जैसे किफायती अंशदायी उत्पादों को इस श्रेणी के लिये डिज़ाइन नहीं किया गया है।
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना: स्वास्थ्य बीमा कवरेज का विस्तार एक महत्त्वपूर्ण कदम है और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने के भारत के प्रयास में मददगार होगा।
- अनुशंसित बीमा मॉडल: रिपोर्ट में देश में स्वास्थ्य बीमा कवरेज बढ़ाने के लिये तीन मॉडलों की सिफारिश की गई है:
- व्यापक एवं विविध जोखिम पूल का निर्माण: निजी अंशदायी स्वास्थ्य बीमा उत्पाद की सफलता के लिये एक व्यापक एवं विविध जोखिम पूल के निर्माण की आवश्यकता होती है।
- इसके लिये सरकार को सूचना शिक्षा अभियानों के माध्यम से स्वास्थ्य बीमा के विषय में उपभोक्ता जागरूकता का निर्माण करना चाहिये।
- एक संशोधित, मानकीकृत स्वास्थ्य बीमा उत्पाद विकसित करना: स्वास्थ्य बीमा की लागत यानी प्रीमियम को कम करने की ज़रूरत है, जो ‘मिसिंग मिडिल’ श्रेणी की सामर्थ्य के अनुरूप हो।
- उदाहरण के लिये ‘आरोग्य संजीवनी’ को और अधिक किफायती एवं व्यापक बनाया जा सकता है।
- आरोग्य संजीवनी ‘भारतीय बीमा नियामक विकास प्राधिकरण’ (IRDAI) द्वारा अप्रैल 2020 में शुरू किया गया एक मानकीकृत स्वास्थ्य बीमा उत्पाद है।
- सरकारी सब्सिडी वाला स्वास्थ्य बीमा: इस मॉडल का उपयोग ‘मिसिंग मिडिल’ श्रेणी के उन हिस्सों के लिये किया जा सकता है, जिन्हें उपरोक्त स्वैच्छिक अंशदायी मॉडल के लिये भुगतान करने की सीमित क्षमता के कारण कवर नहीं किया जा सका है।
- मध्यम अवधि में एक बार जब PMJAY का आपूर्ति और उपयोग पक्ष मज़बूत हो जाता है, तो ‘मिसिंग मिडिल’ श्रेणी में स्वैच्छिक योगदान की अनुमति देने हेतु उसकी बुनियादी अवसंरचना का भी लाभ उठाया जा सकता है।
- सरकार बीमाकर्त्ताओं की परिचालन एवं वितरण लागत को कम करने हेतु उपभोक्ता डेटा और बुनियादी अवसंरचना को सार्वजनिक कर सकती है।
- व्यापक एवं विविध जोखिम पूल का निर्माण: निजी अंशदायी स्वास्थ्य बीमा उत्पाद की सफलता के लिये एक व्यापक एवं विविध जोखिम पूल के निर्माण की आवश्यकता होती है।
आगे की राह
- एकीकृत दृष्टिकोण: उपरोक्त तीन मॉडलों का एक संयोजन, अलग-अलग समय पर चरणबद्ध तरीके से ‘मिसिंग मिडिल’ श्रेणी के लिये कवरेज सुनिश्चित कर सकता है।
- आउटरीच रणनीति: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) जैसे सरकारी डेटाबेस को संबंधित लोगों से सहमति लेने के पश्चात् ही निजी बीमा कंपनियों के साथ साझा किया जा सकता है।
- इससे आबादी के ज़रूरतमंद वर्ग तक बीमा उत्पादों की पहुँच में सुधार किया जा सकेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मानव तस्करी को रोकने के लिये प्रोटोकॉल: एससीओ
प्रिलिम्स के लिये:शंघाई सहयोग संगठन (SCO) मेन्स के लिये:मानव तस्करी से निपटने के भारत के प्रयास तथा इससे संबंधित प्रोटोकॉल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO)ने नई दिल्ली में आयोजित अपनी 19वीं बैठक (अभियोजक जनरल की) में मानव तस्करी, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी के बढ़ते खतरे को रोकने और उसका मुकाबला करने हेतु सहयोग को मजबूत करने के लिये एक प्रोटोकॉल को अपनाया।
- शंघाई सहयोग संगठन का वर्तमान अध्यक्ष ताजिकिस्तान है।
SCO (शंघाई सहयोग संगठन):
- इसकी स्थापना 2001 में रूस, चीन, किर्गिज़ गणराज्य,कज़ाखस्तान , ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा शंघाई में एक शिखर सम्मेलन में की गई थी।
- वर्तमान में इसमें भारत, कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़ गणराज्य, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ईरान जैसे 9 सदस्य देश शामिल हैं।
- भारत को 2005 में एससीओ में पर्यवेक्षक बनाया गया था।
- भारत और पाकिस्तान वर्ष 2017 में इसके स्थायी सदस्य बने।
- ईरान को वर्ष 2021 के SCO समिट में संगठन की सदस्यता प्रदान की गई थी।
- इसका मुख्यालय बीजिंग, चीन में है।
- RATS (क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना) SCO का एक स्थायी अंग है, जिसका मुख्यालय ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में है।
- यह शिखर सम्मेलन प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है तथा इसकी अध्यक्षता सदस्य राष्ट्रों द्वारा एक वर्ष के लिये रोटेशन के आधार पर की जाती है।
प्रमुख बिंदु
- मानव तस्करी:
- मानव तस्करी के तहत किसी व्यक्ति से बलपूर्वक या दोषपूर्ण तरीके से कोई कार्य करवाना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना या बंधक बनाकर रखना जैसे कृत्य आते हैं, इन तरीको में धमकी देना या अन्य प्रकार की जबरदस्ती भी शामिल है।
- उत्पीडन में शारीरिक या यौन शोषण के अन्य रूप,बलात् श्रम या सेवाएँ,,दास बनाना या ज़बरन शारीर के अंग निकलना आदि शामिल हैं।
- प्रोटोकॉल के बारे में:
- व्यक्तियों के अवैध व्यापार के खतरे से निपटने के लिये राष्ट्रीय कानूनों के आदान-प्रदान को जारी रखने का आह्वान।
- तस्करी के पीड़ितों को उनकी पात्रता के दायरे में सुरक्षा और सहायता प्रदान करना।
- उन्नत प्रशिक्षण के क्षेत्र में एससीओ के सदस्य राष्ट्रों के शैक्षिक संगठनों के बीच सहयोग विकसित करने का आह्वान, इनमें विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी का मुकाबला करना शामिल है।
- भारत में प्रासंगिक कानून:
- अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम,1956 इस मुद्दे से निपटने के लिये प्रमुख कानून है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 (शोषण के खिलाफ अधिकार)।
- आईपीसी में 25 धाराएँ, जैसे- 366A, 366B, 370 और 374।
- किशोर न्याय अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम तथा बाल श्रम रोकथाम अधिनियम, बंधुआ श्रम (उन्मूलन) अधिनियम आदि।
- मानव तस्करी से निपटने के भारत के प्रयास:
- जुलाई 2021 में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने मानव तस्करी विरोधी विधेयक, व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021 का मसौदा जारी किया।
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध (पलेर्मो कन्वेंशन) पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की पुष्टि की है, जिसमें अन्य लोगों के बीच विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और दंडित करने के लिये एक प्रोटोकॉल है।
- भारत ने वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने और उनका मुकाबला करने हेतु सार्क कन्वेंशन की पुष्टि की है।
- मानव तस्करी के अपराध से निपटने के लिये राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न निर्णयों को संप्रेषित करने और अनुवर्ती कार्रवाई हेतु गृह मंत्रालय (MHA) में वर्ष 2006 में एंटी-ट्रैफिकिंग नोडल सेल की स्थापना की गई थी।
- न्यायिक संगोष्ठी: निचली अदालत के न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित और संवेदनशील बनाने के लिये मानव तस्करी पर न्यायिक संगोष्ठी उच्च न्यायालय स्तर पर आयोजित की जाती है।
- गृह मंत्रालय ने प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से 'व्यक्तियों की तस्करी’ के विरुद्ध भारत में कानून प्रवर्तन प्रतिक्रिया को मज़बूत करने की एक व्यापक योजना के तहत देश के 270 ज़िलों में मानव तस्करी विरोधी इकाइयों की स्थापना हेतु फंड जारी किया है।
- उज्ज्वला योजना वर्ष 2007 में बच्चों और महिलाओं की तस्करी को समाप्त करने के लिये शुरू की गई थी। इस योजना का उद्देश्य यौन शोषण के लिये तस्करी को रोकना, बचाव, पुनर्वास और उन्हें स्वदेश भेजना है।
- "स्वाधार गृह योजना", "सखी", "महिला हेल्पलाइन का सार्वभौमिकरण" जैसी विभिन्न पहलें हिंसा से प्रभावित महिलाओं की चिंताओं को दूर करने के लिये सहायक संस्थागत ढाँचे और तंत्र प्रदान करती हैं।
स्रोत-पीआईबी
पसुंपोन मुथुरामलिंगा थेवार
प्रिलिम्स के लिये:पसुंपोन मुथुरामलिंगा थेवार, सुभाष चंद्र बोस मेन्स के लिये:पसुंपोन मुथुरामलिंगा थेवार की भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने 114वीं थेवार जयंती (गुरु पूजा) पर पसुंपोन मुथुरामलिंगा थेवर को श्रद्धांजलि दी।
- गुरु पूजा प्रत्येक वर्ष 30 अक्तूबर को पसुंपोन मुथुरामलिंगा थेवार की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- जन्म:
- उनका जन्म 30 अक्तूबर, 1908 को तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िले के पसुंपोन में हुआ था।
- परिचय:
- वह एक स्वतंत्रता सेनानी-सह-आध्यात्मिक नेता थे। उन्हें मुकुलथोर समुदाय के बीच एक देवता के रूप में देखा जाता है, यह कल्लर, मरावर और अहंबादियार नामक समुदायों के समूह में से एक समुदाय है।
- मुकुलथोर समुदाय के लोग अभी भी प्रसाद चढ़ाते हैं जैसा कि मंदिरों में देवताओं के लिये उनकी जयंती और गुरु पूजा समारोहों पर किया जाता है।
- उन्होंने पारंपरिक हिंदू धर्म को स्वीकार नहीं किया क्योंकि यह 'वर्णाश्रम' का समर्थन करता था। उन्होंने हमेशा हिंदू धर्म की बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- उन्होंने खुले तौर पर धार्मिक अंधविश्वासों और संकीर्ण सोच की निंदा की।
- वह एक स्वतंत्रता सेनानी-सह-आध्यात्मिक नेता थे। उन्हें मुकुलथोर समुदाय के बीच एक देवता के रूप में देखा जाता है, यह कल्लर, मरावर और अहंबादियार नामक समुदायों के समूह में से एक समुदाय है।
- सुभाष चंद्र बोस के साथ संबंध:
- समाजवादी और सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी होने के नाते, उन्होंने वर्ष 1952 से अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक (AIFB) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- वह AIFB के राष्ट्रीय संसदीय क्षेत्र के लिये तीन बार चुने गए।
- समाजवादी और सुभाष चंद्र बोस के सहयोगी होने के नाते, उन्होंने वर्ष 1952 से अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक (AIFB) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- मंदिर प्रवेश आंदोलन:
- मंदिर प्रवेश प्राधिकरण और क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1939 में सी. राजगोपालाचारी की सरकार द्वारा पारित किया गया था।
- इसने दलितों के हिंदू मंदिरों में प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया।
- उन्होंने इस सुधार का समर्थन किया और जुलाई 1939 में दलितों को मदुरै के मीनाक्षी मंदिर में प्रवेश कराने वाले कार्यकर्ता ए. वैद्यनाथ अय्यर की मदद की।
- मंदिर प्रवेश प्राधिकरण और क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1939 में सी. राजगोपालाचारी की सरकार द्वारा पारित किया गया था।
- आपराधिक जनजाति अधिनियम:
- 1920 में अंग्रेज़ों द्वारा मुकुलथोर समुदाय के खिलाफ अधिनियमित आपराधिक जनजाति अधिनियम (CTA), जिसके खिलाफ थेवार ने लोगों को लामबंद करके विरोध और प्रदर्शन शुरू किया, उनके व्यक्तित्व को उत्तम बनाने में एक प्रमुख मील का पत्थर साबित हुआ।
- CTA ने इस समुदाय को आदतन अपराधियों के रूप में नामित करके इनका अपराधीकरण किया।
- निरंतर प्रयासों के बाद वर्ष 1946 में अधिनियम को निरस्त कराने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
- 1920 में अंग्रेज़ों द्वारा मुकुलथोर समुदाय के खिलाफ अधिनियमित आपराधिक जनजाति अधिनियम (CTA), जिसके खिलाफ थेवार ने लोगों को लामबंद करके विरोध और प्रदर्शन शुरू किया, उनके व्यक्तित्व को उत्तम बनाने में एक प्रमुख मील का पत्थर साबित हुआ।
- मृत्यु:
- 30 अक्तूबर, 1963 को बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।
ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक:
- इसकी स्थापना मई 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने की थी। यह भारत में एक वामपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक दल था जो वर्ष 1939 में भारतीय कॉन्ग्रेस के भीतर एक गुट के रूप में उभरा।
- फॉरवर्ड ब्लॉक का पहला अखिल भारतीय सम्मेलन जून 1940 में नागपुर में आयोजित किया गया था और इसने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष के लिये उग्रवादी कार्रवाई का आग्रह करते हुए 'भारतीय लोगों को सभी शक्ति' (All Power to the Indian People) शीर्षक से एक प्रस्ताव पारित किया।
- फॉरवर्ड ब्लॉक का मुख्य उद्देश्य कॉन्ग्रेस पार्टी के सभी कट्टरपंथी तत्त्वों को एक साथ लाना था। ताकि यह समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के पालन के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के अर्थ का प्रसार कर सके।
- 23 जून,1942 को इसे प्रतिबंधित घोषित कर दिया गया। यहाँ तक कि जब इसे अवैध घोषित किया गया, तब भी इसने लोगों के संघर्ष को सफलता और गौरव का ताज पहनाने में क्रांतिकारी भूमिका निभाई।
- भारत की स्वतंत्रता के बाद पार्टी ने खुद को एक स्वतंत्र राजनीतिक दल के रूप में पुर्नस्थापित किया।
स्रोत: पीआईबी
विश्व धरोहर स्थल और जलवायु परिवर्तन
प्रिलिम्स के लिये:विश्व धरोहर स्थल, जलवायु परिवर्तन, सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान, ब्लू कार्बन, विश्व विरासत, समुद्री कार्यक्रम मेन्स के लिये:विश्व धरोहर स्थल और जलवायु परिवर्तन के मध्य अंतर्संबंध |
चर्चा में क्यों?
यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में सूचीबद्ध वनों (2001-2020) से उत्सर्जित और अवशोषित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के पहले वैज्ञानिक आकलन में पाया गया है कि विश्व धरोहर स्थलों में सूचीबद्ध वन जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रमुख बिंदु
- जलवायु परिवर्तन को कम करना:
- विश्व धरोहर स्थल प्रत्येक वर्ष वातावरण से 190 मिलियन टन CO2 को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध वनों द्वारा लंबी अवधि में कार्बन संग्रहण से लगभग 13 बिलियन टन कार्बन का कुल कार्बन भंडारण हुआ है।
- यदि यह संग्रहीत कार्बन वातावरण में CO2 के रूप में छोड़ा जाता है तो यह जीवाश्म ईंधन दुनिया के कुल वार्षिक CO2 उत्सर्जन का 1.3 गुना अधिक उत्सर्जन होगा।
- हालाँकि मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के दबाव के कारण दस वनों से अधिक कार्बन छोड़ा गया था, जो कि खतरनाक है।
- यूनेस्को अपने विश्व धरोहर समुद्री कार्यक्रम के तहत अद्वितीय समुद्री महत्त्व के लिये दुनिया भर में 50 स्थलों को सूचीबद्ध करता है। ये वैश्विक महासागर क्षेत्र के सिर्फ एक प्रतिशत का प्रतिनिधित्त्व करते हैं लेकिन वैश्विक ब्लू कार्बन परिसंपत्तियों का कम-से-कम 15% हिस्सा समायोजित करते हैं।
- ब्लू कार्बन कार्बनिक कार्बन है जो मुख्य रूप से सड़ने वाले पौधों की पत्तियों, लकड़ी, जड़ों और जानवरों से प्राप्त होता है। यह तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र द्वारा संग्रहीत किया जाता है।
- भारत का सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (60 मिलियन टन कार्बन) उन पाँच स्थलों में शामिल है, जिनके पास विश्व स्तर पर सबसे अधिक ब्लू कार्बन स्टॉक है।
- उच्च उत्सर्जन का कारण:
- कुछ स्थलों पर कृषि के लिये भूमि की मंज़ूरी के कारण उत्सर्जन, संग्रहण से अधिक हो गया।
- दावानल के बढ़ते पैमाने और गंभीरता अक्सर सूखे की गंभीर अवधि से जुड़ी होती है, यह भी कई मामलों में एक प्रमुख कारक है।
- अन्य चरम मौसम की घटनाएँ, जैसे कि हरिकेन ने कुछ स्थलों पर योगदान दिया।
- सिफारिशें:
- विरासत स्थलों का संरक्षण:
- यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों और उनके आसपास के परिदृश्यों की मज़बूत और निरंतर सुरक्षा सुनिश्चित किया जाए जिससे वन भविष्य की पीढ़ियों हेतु मज़बूत कार्बन सिंक और स्टोर के रूप में कार्य करना जारी रख सकें।
- शीघ्र प्रतिक्रिया:
- जलवायु से संबंधित घटनाओं का तेज़ी से जवाब देना, साथ ही बेहतर परिदृश्य प्रबंधन के माध्यम से पारिस्थितिक संपर्क को बनाए रखना और मज़बूत करना।
- एकीकृत संरक्षण:
- अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय जलवायु, जैव विविधता तथा सतत् विकास रणनीतियों में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की निरंतर सुरक्षा को एकीकृत करना।
- यह पेरिस जलवायु समझौते, 2020 के बाद के वैश्विक जैव विविधता ढाँचे और सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप होना चाहिये।
- विरासत स्थलों का संरक्षण:
सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (Sundarban National Park)
- यह पश्चिम बंगाल के कोलकाता के दक्षिण-पूर्व में स्थित है और गंगा डेल्टा का हिस्सा है।
- बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर सुंदरबन मैंग्रोव वन हैं।
- यह क्षेत्र जीवों की विस्तृत शृंखला के लिये जाना जाता है। यह कई दुर्लभ और विश्व स्तर पर खतरे में पड़ी वन्यजीव प्रजातियों जैसे कि एश्चुरीयन मगरमच्छ, रॉयल बंगाल टाइगर, वाटर मॉनिटर छिपकली, गंगा डॉल्फिन और ओलिव रिडले कछुए का निवास है ।
विश्व विरासत समुद्री कार्यक्रम
- यह उष्णकटिबंधीय से ध्रुवों तक फैले अद्वितीय समुद्री स्थानों का एक वैश्विक संग्रह है।
- अभी तक इस सूची में 37 देशों में 50 अद्वितीय महासागर स्थल शामिल हैं जिनको उनकी अद्वितीय समुद्री जैव विविधता, विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र, अद्वितीय भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं या अतुलनीय सुंदरता के लिये मान्यता दी गई है।
- इस कार्यक्रम के तहत भारत का सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान एकमात्र सूचीबद्ध स्थल है।
विश्व धरोहर स्थल
- विश्व धरोहर स्थल एक ऐसा स्थान है जो यूनेस्को द्वारा अपने विशेष सांस्कृतिक या भौतिक महत्त्व के लिये सूचीबद्ध है।
- विश्व धरोहर स्थलों की सूची का रखरखाव यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति द्वारा प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय 'विश्व विरासत कार्यक्रम' के तहत किया जाता है।
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है जिसे विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन कहा जाता है, जिसे 1972 में यूनेस्को द्वारा अपनाया गया था।
- भारत में 40 विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित स्थल शामिल हैं। नवीनतम शामिल स्थल गुजरात में धोलावीरा है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) कानून से छूट
प्रिलिम्स के लिये:व्यक्तिगत डेटा, गैर-व्यक्तिगत डेटा, डेटा संरक्षण विधेयक, निजता का अधिकार मेन्स के लिये:व्यक्तिगत डेटा संरक्षण से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (Personal Data Protection-PDP) कानून (डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019) से छूट की मांग की है।
प्रमुख बिंदु
- गोपनीयता कानून: इसे आमतौर पर "गोपनीयता विधेयक" के रूप में जाना जाता है और यह डेटा के संग्रह, संचालन एवं प्रसंस्करण को विनियमित करके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने का वादा करता है जिसके द्वारा व्यक्ति की पहचान किया जा सकता है।
- यह सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा विगत में तैयार किये गए मसौदे से प्रेरित है।
- सुप्रीम कोर्ट ने पुट्टस्वामी फैसले (2017) में कहा कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
- प्रावधान:
- यह विधेयक सरकार को विदेशों से कुछ प्रकार के व्यक्तिगत डेटा के हस्तांतरण को अधिकृत करने की शक्ति देता है और सरकारी एजेंसियों को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने की अनुमति देता है।
- विधेयक, डेटा को तीन श्रेणियों में विभाजित करता है तथा प्रकार के आधार पर उनके संग्रहण को अनिवार्य करता है।
- व्यक्तिगत डेटा: वह डेटा जिससे किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है जैसे नाम, पता आदि।
- संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा: कुछ प्रकार के व्यक्तिगत डेटा जैसे- वित्तीय, स्वास्थ्य, यौन अभिविन्यास, बायोमेट्रिक, आनुवंशिक, ट्रांसजेंडर स्थिति, जाति, धार्मिक विश्वास और अन्य श्रेणी इसमें शामिल हैं।
- महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा: कोई भी वस्तु जिसे सरकार किसी भी समय महत्त्वपूर्ण मान सकती है, जैसे- सैन्य या राष्ट्रीय सुरक्षा डेटा।
- यह विधयेक डेटा न्यासियों को मांग किये जाने पर सरकार को कोई भी गैर-व्यक्तिगत डेटा प्रदान करने के लिये अनिवार्य करता है।
- डेटा न्यासी (Fiduciary) एक सेवा प्रदाता के रूप में कार्य कर सकता है जो ऐसी वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने के दौरान डेटा को एकत्र एवं भंडारित करके उसका उपयोग करता है।
- गैर-व्यक्तिगत डेटा अज्ञात डेटा को संदर्भित करता है, जैसे ट्रैफिक पैटर्न या जनसांख्यिकीय डेटा।
- कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये एक डेटा संरक्षण प्राधिकरण की परिकल्पना की गई है।
- इसमें 'भूलने के अधिकार' का भी उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि ‘डेटा प्रिंसिपल’ (जिस व्यक्ति से डेटा संबंधित है) को ‘डेटा फिड्यूशरी’ द्वारा अपने व्यक्तिगत डेटा के निरंतर प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार होगा।
- समाहित मुद्दे:
- यदि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) कानून को वर्तमान स्वरूप में लागू किया जाता है, तो यह दो अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्र बना सकता है।
- एक सरकारी एजेंसियों के साथ जो पूरी तरह से कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगी, उन्हें व्यक्तिगत डेटा से निपटने की पूरी स्वतंत्रता दी जाएगी।
- दूसरे नंबर पर निजी ‘फिड्यूशियरी’ होंगे जिन्हें कानून के हर प्रावधान से निपटना होगा।
- धारा 35: यह भारत की संप्रभुता और अखंडता, सार्वजनिक व्यवस्था, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और राज्य की सुरक्षा का आह्वान करता है ताकि सरकारी एजेंसियों के लिये केंद्र सरकार को इस अधिनियम के सभी या किसी भी प्रावधान को निलंबित करने की शक्ति प्रदान की जा सके।
- धारा 12: यह UIDAI को विधेयक की कठोरता से कुछ छूट देता है क्योंकि यह ‘डेटा प्रिंसिपल’ को सेवा या लाभ के प्रावधान के लिये डेटा को संसाधित करने में सक्षम बनाता है। हालाँकि इसके बाद भी पूर्व सूचना देनी होगी।
- UIDAI प्राधिकरण पहले से ही आधार अधिनियम द्वारा शासित है और कानूनों का दोहरापन नहीं हो सकता है।
- डेटा स्थानीयकरण
- यदि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (PDP) कानून को वर्तमान स्वरूप में लागू किया जाता है, तो यह दो अलग-अलग पारिस्थितिक तंत्र बना सकता है।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI):
- यह आधार अधिनियम 2016 के प्रावधानों का पालन करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा 12 जुलाई, 2016 को स्थापित एक वैधानिक प्राधिकरण है।
- UIDAI को भारत के सभी निवासियों को 12 अंकों की विशिष्ट पहचान (UID) संख्या (आधार) प्रदान करना अनिवार्य है।
- UIDAI की स्थापना भारत सरकार द्वारा जनवरी 2009 में योजना आयोग के तत्वावधान में एक संलग्न कार्यालय के रूप में की गई थी।
स्रोत: द हिंदू
विश्व की विभिन्न कृषि पद्धतियों को अपनाना
प्रिलिम्स के लिये:इंटर क्रॉपिंग, रिले प्लांटेशन, साइल मल्चिंग मेन्स के लिये:विश्व की विभिन्न कृषि पद्धतियों का भारत के लिये महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शोध किये गए दस्तावेज़ों के अनुसार, "इंटर क्रॉपिंग के साथ एकीकृत खेती पर्यावरणीय पदचिह्न को कम करते हुए खाद्य उत्पादन को बढ़ाती है", भारत में छोटे भूमि धारक अधिक अनाज पैदा कर सकते हैं और पर्यावरणीय पदचिह्न को कम कर सकते हैं।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- "रिले प्लांटेशन" उपज बढ़ाता है:
- रिले प्लांटेशन का अर्थ है एक ही खेत में एक ही मौसम में विभिन्न फसलों का रोपण।
- उदाहरण: तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में छोटे किसान रिले खेती से पैसा कमा रहे हैं। वे प्याज, हल्दी, मिर्च, अदरक, लहसुन और यहाँ तक कि कुछ देशी फल भी लगाते हैं, इस प्रकार इस बीच के समय के दौरान लाभ कमाते हैं।
- इसमें श्रम का बेहतर प्रयोग होता है, कीड़े कम फैलते हैं और फलियाँ मिट्टी में नाइट्रोजन का प्रसार करती हैं।
- हालाँकि रिले क्रॉपिंग में कठिनाइयाँ होती हैं, अर्थात् इसके लिये मशीनीकरण और प्रबंधन की अधिक आवश्यकता है।
- स्ट्रिप क्रॉपिंग अधिक लाभकारी:
- स्ट्रिप क्रॉपिंग का उपयोग अमेरिका में किया गया है (जहाँ खेत भारत की तुलना में बड़े हैं), वहाँ किसान वैकल्पिक तरीके से एक ही खेत में मकई और सोयाबीन के साथ गेहूँ उगाते हैं। हालाँकि इसके लिये बड़ी भूमि की आवश्यकता होती है।
- भारत में जहाँ बड़े खेत हैं (जैसे कि शहरों और राज्य सरकारों के स्वामित्व वाले), भूमि को पट्टियों में विभाजित किया जाता है तथा फसलों के बीच घास की पट्टियों को उगने के लिये छोड़ दिया जाता है।
- वृक्षारोपण से पश्चिमी भारत में रेगिस्तान को स्थिर करने में मदद मिली है।
- साइल मल्चिंग और नो टिल:
- "साॅइल मल्चिंग", यानी उपलब्ध साधन जैसे- गेहूँ या चावल के भूसे के प्रयोग से मृदा में सुधार करना साॅइल मल्चिंग कहलाता है।
- पारंपरिक मोनोकल्चर फसल की तुलना में ‘नो-टिल’ या कम जुताई वार्षिक फसल की उपज को 15.6% से 49.9% तक बढ़ा देती है और पर्यावरण के पदचिह्न को 17.3% तक कम कर देती है।
- हालाँकि भारत में छोटे किसानों के लिये ये तरीके आसान नहीं हैं, लेकिन कम-से-कम बड़े खेतों में इनका अभ्यास किया जा सकता है।
- मिट्टी की मल्चिंग के लिये आवश्यक है कि सभी खुली मिट्टी को पुआल, पत्तियों और इसी तरह से ढक दिया जाए, तब भी जब भूमि उपयोग में हो।
- कटाव को कम कर नमी बरकरार रखी जाती है और लाभकारी जीवों, जैसे केंचुआ का प्रयोग किया जाता है, इससे मिट्टी की जुताई न करने पर भी वही लाभ मिलता है।
- "रिले प्लांटेशन" उपज बढ़ाता है:
- भारत के लिये महत्त्व:
- वर्तमान आँकड़े के अनुसार, देश में छोटे किसानों की एक बड़ी आबादी है, जिनमें से कई के पास 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है।
- भारत के लगभग 70% ग्रामीण परिवार अभी भी अपनी आजीविका के लिये मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं, जिसमें 82% किसान छोटे और सीमांत हैं।
- कुछ स्रोतों के अनुसार सभी किसानों में से केवल 30% औपचारिक स्रोतों से उधार लेते हैं।
- राज्य सरकारों की ओर से कृषि ऋण माफी इस संबंध में मददगार रही है।