शासन व्यवस्था
चुनावी बाॅण्ड
प्रिलिम्स के लिये:चुनावी बॉण्ड, राजनीतिक दल, लोगों का प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 मेन्स के लिये:चुनावी प्रक्रिया पर चुनावी बॉण्ड का प्रभाव, नीतियों के निर्माण और उनके कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने डेटा रिपोर्टिंग साझा की जिसमें बताया गया है कि चुनावी बॉण्ड (EB) के माध्यम से राजनीतिक दलों को दान की गई राशि 10,000 करोड़ रुपए का आँकड़ा पार कर चुकी है।
- जुलाई 2022 में आयोजित चुनावी बॉण्ड की 21वीं बिक्री में पार्टियों को चुनावी बॉण्ड खरीद से 5 करोड़ रुपए मिले।
- पार्टियों द्वारा एकत्र की गई कुल राशि वर्ष 2018 में चुनावी बॉण्ड योजना शुरू होने के बाद से 10,246 करोड़ रुपए हो गई है।
चुनावी बॉण्ड:
- परिचय:
- भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्ड्स को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है।
- चुनावी बॉण्ड दाताओं द्वारा गुप्त रूप से खरीदे जाते हैं और ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
- ऋण साधनों के रूप में इन्हें दानदाताओं द्वारा बैंक से खरीदा जा सकता है और राजनीतिक दल उन्हें भुना सकते हैं।
- इन्हें केवल एक पात्र राजनीतिक पार्टी द्वारा बैंक के अपने खाते में जमा करके भुनाया जा सकता है।
- चुनावी बॉण्ड SBI द्वारा बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
- बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
- पात्रता:
- केवल लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29 ए के तहत ऐसे पंजीकृत राजनीतिक दल जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम-से-कम 1% वोट प्राप्त किया है, वे चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के लिये पात्र हैं।
चुनावी बॉण्ड भारत के लिये चुनौती का विषय:
- मूल विचार के विपरीत:
- चुनावी बॉण्ड योजना की मुख्य आलोचना यह की जाती है कि यह अपने मूल विचार यानी चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के ठीक विपरीत काम करता है।
- उदाहरण के लिये आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की गुमनामी केवल जनता और विपक्षी दलों तक की सीमित होती है।
- चुनावी बॉण्ड योजना की मुख्य आलोचना यह की जाती है कि यह अपने मूल विचार यानी चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के ठीक विपरीत काम करता है।
- जबरन वसूली की संभावना:
- चूँकि इस तरह के बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, ऐसे में कई आलोचकों का मानना है कि सरकार इसके माध्यम से यह जान सकती है कि कौन लोग विपक्षी दलों को वित्तपोषण प्रदान कर रहे हैं।
- परिणामस्वरूप यह प्रकिया केवल तत्कालीन सरकार को ही धन उगाही की अनुमति देती है और इस प्रकार से सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करती है।
- चूँकि इस तरह के बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, ऐसे में कई आलोचकों का मानना है कि सरकार इसके माध्यम से यह जान सकती है कि कौन लोग विपक्षी दलों को वित्तपोषण प्रदान कर रहे हैं।
- लोकतंत्र के लिये चुनौती:
- वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के ज़रिये प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट दी है।
- इसका मतलब है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्तपोषित किया है।
- हालाँकि प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक अपना वोट उन्हें देतें हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
- वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के ज़रिये प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट दी है।
- ‘जानने के अधिकार’ से समझौता:
- भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि ‘जानने का अधिकार’ विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ:
- चुनावी बॉण्ड नागरिकों को इस संदर्भ में कोई विवरण नहीं देते हैं।
- उक्त गुमनामी उस समय की सरकार पर लागू नहीं होती है, जो कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
- इसका मतलब यह है कि सत्ता में बैठी सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को बाधित कर सकती है।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म:
- चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे पर पहले से मौजूद सभी सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी रूप से अच्छे संसाधन वाले निगमों को चुनावों के लिये धन देने की अनुमति देती है जिससे क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म एक आर्थिक प्रणाली है जो उद्योगपतियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।
आगे की राह
- भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता की कमी के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
- संपूर्ण शासनतंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने हेतु मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना आवश्यक है।
- मतदाता जागरूकता अभियान पर्याप्त बदलाव लाने में भी मदद कर सकते हैं।
- यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करते हैं जो उन परअधिक खर्च करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं तो इससे लोकतंत्र एक कदम और आगे बढ़ेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस और इसका महत्त्व, बाघ संरक्षण से संबंधित प्रयास। मेन्स के लिये:बाघ संरक्षण का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को धारीदार बिल्ली के संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ-साथ उसके प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिये वैश्विक प्रणाली की वकालत करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (ITD) के रूप में मनाया जाता है।
- ITD की स्थापना वर्ष 2010 में रूस में आयोजित सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में जंगली बाघों की संख्या में गिरावट के बारे में जागरूकता बढ़ाने, उन्हें विलुप्त होने से बचाने और बाघ संरक्षण के कार्य को प्रोत्साहित करने के लिये की गई थी।
- असम में मानस टाइगर रिज़र्व में सीमा पार वन्यजीव संरक्षण के वार्षिक वन्यजीव निगरानी परिणामों से पता चला है कि प्रत्येक बाघ के लिये 2.4 बाघिन हैं।
बाघ से संबंधित प्रमुख तथ्य:
- वैज्ञानिक नाम: पैंथेरा टाइग्रिस
- भारतीय उप-प्रजातियाँ: पैंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस।
- परिचय:
- यह साइबेरियाई समशीतोष्ण जंगलों से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप और सुमात्रा पर उपोष्णकटिबंधीय एवं उष्णकटिबंधीय जंगलों तक पाया जाता है।
- यह बिल्ली की सबसे बड़ी प्रजाति है और पैंथेरा जीनस का सदस्य है।
- परंपरागत रूप से बाघों की आठ उप-प्रजातियों को मान्यता दी गई है, जिनमें से तीन विलुप्त हो चुकी हैं।
- बंगाल टाइगर्स: भारतीय उपमहाद्वीप
- कैस्पियन बाघ: मध्य और पश्चिम एशिया के माध्यम से तुर्की (वलुप्त)
- अमूर बाघ: रूस और चीन के अमूर नदी क्षेत्र और उत्तर कोरिया
- जावन बाघ: जावा, इंडोनेशिया (विलुप्त)
- दक्षिण चीन बाघ: दक्षिण मध्य चीन
- बाली बाघ: बाली, इंडोनेशिया (विलुप्त)
- सुमात्रन बाघ: सुमात्रा, इंडोनेशिया
- भारत-चीनी बाघ: महाद्वीपीय दक्षिण-पूर्व एशिया।
- खतरा:
- आवास क्षेत्र का विनाश, आवास विखंडन और अवैध शिकार।
- संरक्षण की स्थिति:
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) लाल सूची: लुप्तप्राय।
- वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट I
- भारत में टाइगर रिज़र्व
- कुल गणना: 53
- सबसे बड़ा: नागार्जुनसागर श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व, आंध्र प्रदेश
- सबसे छोटा: महाराष्ट्र में बोर टाइगर रिज़र्व
भारत में बाघों की आबादी की स्थिति
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर के जंगलों में बाघों की संख्या 3,726 से बढ़कर 5,578 हो गई है।
- भारत, नेपाल, भूटान, रूस और चीन में बाघों की आबादी स्थिर या बढ़ रही है।
- भारत वैश्विक बाघों की आबादी का 70% से अधिक का आवास है।
- भारत ने बाघ संरक्षण पर सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा के लक्षित वर्ष 2022 से 4 साल पहले वर्ष 2018 में ही बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल किया।
- बाघ जनगणना (2018) के अनुसार, भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2,967 हो गई है।
बाघ संरक्षण का महत्त्व:
- बाघ संरक्षण वनों के संरक्षण का प्रतीक है।
- बाघ एक अनूठा जानवर है जो किसी स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र और उसकी विविधता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह खाद्य शृंखला में उच्च उपभोक्ता है जो खाद्य शृंखला में शीर्ष पर है और जंगली (मुख्य रूप से बड़े स्तनपायी) आबादी को नियंत्रण में रखता है।
- इस प्रकार बाघ शिकार द्वारा शाकाहारी जंतुओं और उस वनस्पति के मध्य संतुलन बनाए रखने में मदद करता है जिस पर वे भोजन के लिये निर्भर होते हैं।
- बाघ संरक्षण का उद्देश्य मात्र एक खूबसूरत जानवर को बचाना नहीं है।
- यह इस बात को सुनिश्चित करने में भी सहायक है कि हम अधिक समय तक जीवित रहें क्योंकि इस संरक्षण के परिणामस्वरूप हमें स्वच्छ हवा, पानी, परागण, तापमान विनियमन आदि जैसी पारिस्थितिक सेवाओं की प्राप्ति होती है।
उठाए गए संबंधित कदम:
- प्रोजेक्ट टाइगर 1973: यह वर्ष 1973 में शुरू की गई पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों को आश्रय प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण: यह MoEFCC के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है और इसको वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद स्थापित किया गया था।
- कंज़र्वेशन एश्योर्ड|टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS): CA|TS विभिन्न मानदंडों का एक सेट है, जो बाघ से जुड़े स्थलों को जाँचने का मौका देता है कि क्या उनके प्रबंधन से बाघों का सफल संरक्षण संभव होगा।
स्रोत: इंडियन ऐक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
प्राकृतिक संसाधन लेखांकन (NRA)
प्रिलिम्स के लिये:प्राकृतिक संसाधन लेखांकन (NRA), आर्थिक और पर्यावरण लेखा प्रणाली (SEEA), सतत् विकास लक्ष्य (SDG), सरकारी लेखा मानक सलाहकार बोर्ड (GASAB), CAG। मेन्स के लिये:प्राकृतिक संसाधन लेखांकन (NRA) - इसका महत्त्व, भारत की पहल और इसके कार्यान्वयन में चुनौतिंयाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने कहा है कि नवंबर 2022 तक प्राकृतिक संसाधन लेखांकन (NRA) पर रिपोर्ट जारी की जाएगी।
- यह ज़िम्मेदार उपयोग की निगरानी में मदद करने के लिये लेखा प्रणाली विकसित करने का एक प्रयास है, जो स्थिरता की ओर ले जाएगा।
प्राकृतिक संसाधन लेखांकन (NRA)
- परिचय:
- प्राकृतिक संसाधन लेखांकन आर्थिक गतिविधियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों की कमी और पर्यावरण क्षरण के मूल्य का आकलन करने की एक प्रक्रिया है
- NRA की अवधारणा प्राकृतिक पर्यावरण के विभिन्न घटकों और देश की आर्थिक प्रगति के बीच घनिष्ठ अंतःक्रिया को समझने हेतु उभरी थी।
- यह इस अवधारणा पर आधारित है कि 'किसी संसाधन का मापन उसके बेहतर प्रबंधन की ओर ले जाता है।
- ऐतिहासिक परिदृश्य:
- NRA के लिये पहला कदम मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन), 1970 में तब उठाया गया जब आर्थिक विकास और पर्यावरणीय गिरावट के बीच संबंधों पर पहली बार चर्चा की गई।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित ब्रंटलैंड आयोग ने वर्ष 1987 में पर्यावरण और आर्थिक गतिविधियों के बीच घनिष्ठ संबंध के विचार को व्यक्त किया, जिसके बाद पर्यावरण लेखांकन एवं वर्ष 1992 में रियो डी जनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ।
NRA को बढ़ावा देने हेतु पहल:
- वैश्विक स्तर पर पहल:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का शीर्षक- "ट्रांसफॉर्मिंग अवर वर्ल्ड; द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट" (25 सितंबर, 2016) जिसे 190 से अधिक देशों की मंज़ूरी मिली, को प्राकृतिक संसाधन खातों की तैयारी की आवश्यकता है।
- भारत इस संकल्प का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2012 में आर्थिक और पर्यावरण लेखा प्रणाली (SEEA) को अपनाया। यह NRA के लिये नवीनतम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत ढाँचा है।
- ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, फ्राँस और जर्मनी जैसे लगभग 30 देशों ने पर्यावरण लेखांकन को अपनाने में विभिन्न डिग्री हासिल की है।
- यूरोपीय संघ द्वारा वित्तपोषित पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं (NCAVES) परियोजना का प्राकृतिक पूंजी लेखा और मूल्यांकन, संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (UNSD), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) तथा जैवविविधता के सम्मेलन (CBD) के सचिवालय द्वारा संयुक्त रूप से लागू किया गया है।
- भारत इस परियोजना में भाग लेने वाले पाँच देशों में से एक है,अन्य देश ब्राज़ील, चीन, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको हैं।
- यह प्राकृतिक पूंजी के स्टॉक और प्रवाह को मापने एवं रिपोर्ट करने के लिये व्यवस्थित तरीका प्रदान करने हेतु लेखांकन ढाँचे का उपयोग करने के प्रयासों को कवर करने वाला व्यापक शब्द है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का शीर्षक- "ट्रांसफॉर्मिंग अवर वर्ल्ड; द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट" (25 सितंबर, 2016) जिसे 190 से अधिक देशों की मंज़ूरी मिली, को प्राकृतिक संसाधन खातों की तैयारी की आवश्यकता है।
- भारत-विशिष्ट पहल:
- CAG ने वर्ष 2002 में सरकारी लेखा मानक सलाहकार बोर्ड (GASAB) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य निर्णय लेने की गुणवत्ता और सार्वजनिक जवाबदेही को बढ़ाने के लिये सरकारी लेखांकन तथा वित्तीय रिपोर्टिंग के मानकों में सुधार करना था।
- इसमें भारत सरकार में सभी लेखा सेवाओं के प्रतिनिधि, RBI, ICAI और राज्य सरकारों जैसे नियामक प्राधिकरण शामिल हैं।
- भारत का CAG प्रधान ऑडिट संस्थानों के अंतर्राष्ट्रीय निकाय का भी सदस्य है, जिसे WGEA (पर्यावरण लेखा परीक्षा पर कार्य समूह) कहा जाता है, जिसने सुझाव दिया (वर्ष 2010) कि लेखा परीक्षा संस्थानों को अपने देशों को प्राकृतिक संसाधन लेखांकन को अपनाने में सहायता करनी चाहिये।
- CAG ने वर्ष 2002 में सरकारी लेखा मानक सलाहकार बोर्ड (GASAB) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य निर्णय लेने की गुणवत्ता और सार्वजनिक जवाबदेही को बढ़ाने के लिये सरकारी लेखांकन तथा वित्तीय रिपोर्टिंग के मानकों में सुधार करना था।
प्राकृतिक संसाधन लेखांकन का महत्त्व:
- अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध:
- पर्यावरणीय संसाधनों का लेखांकन गैर-नवीकरणीय क्षति की मात्रा निर्धारित करता है और वास्तविक रूप में विकास के निर्धारण में सहायता करता है।
- नीति निर्धारण में सहायता- सुदृढ़ डेटाबेस:
- नीति निर्माताओं को उनके निर्णयों के संभावित प्रभाव को समझने में मदद करना।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का प्रबंधन:
- NRA सतत् विकास लक्ष्यों के साथ गहन रूप से अंतर्संबंधित हैं क्योंकि 17 में से 4 लक्ष्य प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और उनके लेखांकन से संबंधित हैं।
- जलवायु परिवर्तन का सामना:
- जलवायु परिवर्तन की निगरानी, माप और विश्लेषण के लिये परिसंपत्ति एवं प्रवाह लेखा को एक उपयोगी ढाँचे के रूप में मान्यता दी गई है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ:
- सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने के अलावा यह भारत को परिसंपत्ति लेखा के गठन में विशिष्ट देशों के समूह का हिस्सा बनने में सहायता प्रदान करेगा।
प्राकृतिक संसाधनों के लेखांकन से संबंधित चुनौतियाँ:
- राज्य के अधिकारियों के उचित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण का अभाव है।
- परिसंपत्ति लेखांकन के गठन में सीमाएँ- डेटा की आवधिकता का मानचित्रण।
- संसाधनों के लिये डेटा संग्रह में कई एजेंसियाँ शामिल हैं; यह डेटा साझाकरण/डेटा संघर्ष के मुद्दों को जन्म दे सकता है।
स्रोत:बिज़नेस स्टैंडर्ड
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत- उज़्बेकिस्तान संबंध
प्रिलिम्स के लिये:उज़्बेकिस्तान और पड़ोसी देशों का मानचित्र मेन्स के लिये:भारत- उज़्बेकिस्तान संबंध, अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने भारत-उज़्बेकिस्तान अंतर-सरकारी आयोग के 13वें सत्र में भाग लिया।
- इसके अलावा,उन्होंने भारत-उज़्बेकिस्तान संबंधों को एकीकृत विस्तारित पड़ोस संबंधी भारत के दृष्टिकोण के लिये काफी महत्त्वपूर्ण बताया।
- आईजीसी की बैठक विशेष तौर पर व्यापार एवं निवेश के क्षेत्र में विभिन्न मुद्दों पर विचार एवं चर्चा करने के साथ-साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच है।
सत्र के मुख्य बिंदु:
- केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने कहा कि प्रौद्योगिकी, डिजिटल भुगतान समाधान और स्टार्टअप जैसे नए क्षेत्रों में संबंधों को आगे ले जाने की आवश्यकता है।
- उन्होंने क्षेत्रीय संपर्क एवं सहयोग के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया।
- उन्होंने दोनों देशों के बीच सहयोग के सात उभरते क्षेत्रों जैसे- डिजिटल भुगतान, अंतरिक्ष सहयोग, कृषि एवं डेयरी, फार्मा, रत्न एवं आभूषण, एमएसएमई और अंतर क्षेत्रीय सहयोग को रेखांकित किया।
भारत- उज़्बेकिस्तान संबंध:
- परिचय:
- भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है।
- उज़्बेकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद भारत इसकी राज्य संप्रभुता को स्वीकार करने वाले पहले देशों में से एक था।
- भारत और उज़्बेकिस्तान ने राजनीति, व्यापार, निवेश, रक्षा, सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, सूचना प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूत किया है, साथ ही दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक संबंधों को बढ़ावा मिला है।
- पहल:
- रक्षा सहयोग:
- दोनों पक्षों ने संयुक्त सैन्य अभ्यास "दस्त्लिक 2019" (Dustlik 2019) के आयोजन का स्वागत किया।
- भारत ने ताशकंद में उज़्बेकिस्तान की सशस्त्र सेना अकादमी में एक इंडिया रूम स्थापित करने में भी सहायता की है।
- सुरक्षा सहयोग:
- भारत और उज़्बेकिस्तान आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध, अवैध तस्करी आदि सहित कई सुरक्षा मुद्दों पर आम दृष्टिकोण साझा करते हैं।
- इस क्षेत्र में जुड़ाव का मुख्य केंद्रबिंदु उज़्बेक सुरक्षा एजेंसियों को प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से सहायता प्रदान करना है।
- व्यापार:
- यह वर्ष 2019-20 में 247 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 34.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जो 38.5% की वृद्धि है।
- निवेश:
- भारतीय कंपनियों द्वारा भारतीय निवेश में फार्मास्यूटिकल्स, मनोरंजन पार्क, ऑटोमोबाइल घटकों और आतिथ्य उद्योग के क्षेत्र में निवेश शामिल हैं।
- एमिटी यूनिवर्सिटी और शारदा यूनिवर्सिटी ने क्रमशः ताशकंद और अंदिजान में कैंपस खोले हैं।
- आईक्रिएट जैसे भारतीय संस्थान उज़्बेकिस्तान में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने और उद्यमियों को इनक्यूबेटर स्थापित करने में प्रशिक्षण देने के लिये उज़्बेक समकक्षों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।
- पर्यटन:
- उज़्बेक सरकार ने भारतीय पर्यटकों के लिये ई-वीज़ा सुविधा का विस्तार किया है।
- उज़्बेकिस्तान भी चिकित्सा पर्यटन के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभरा है, जिसमें लगभग 8,000 उज़्बेक प्रतिवर्ष भारत में चिकित्सा उपचार हेतु भारत आतें हैं।
- सौर ऊर्जा:
- उज़्बेकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने में रुचि व्यक्त की है।
- प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से सौर ऊर्जा क्षेत्र के विकास में भारतीय भागीदारी में रुचि दिखाई है।
- रक्षा सहयोग:
- द्विपक्षीय तंत्र:
- राष्ट्रीय समन्वय समितियाँ: भारत और उज़्बेकिस्तान ने परस्पर सहमत परियोजनाओं एवं पहलों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये राष्ट्रीय समन्वय समितियों का गठन किया है।
- बहुपक्षीय पहल:
- भारत-मध्य एशिया व्यापार परिषद: ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स, मोटर वाहन, कृषि-प्रसंस्करण, शिक्षा और शहरी बुनियादी ढाँचे, परिवहन, नागरिक उड्डयन, आईटी तथा पर्यटन पर विशेष ध्यान देने के साथ व्यापार एवं निवेश साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिये सभी पाँच मध्य एशियाई देशों की व्यापार परिषदों को एक साथ लाया गया।
- भारत-मध्य एशिया वार्ता: यह राजनीति, अर्थशास्त्र, डिजिटलीकरण एवं सांस्कृतिक व मानवीय क्षेत्रों में भारत तथा मध्य एशिया के देशों के बीच संबंधों को और मज़बूत करने में सक्षम बनाता है।
भारत-उज़्बेकिस्तान संबंधों को लेकर चुनौतियाँ:
- दोनों देशों के मध्य होने वाले व्यापार और वाणिज्य की मात्रा अत्यंत कम है।
- कनेक्टिविटी की कमी, क्योंकि उज़्बेकिस्तान एक भू-आबद्ध देश है और हवाई संपर्क ढाँचा तुलनात्मक रूप से विकसित नहीं है।
- चीन ने उज़्बेकिस्तान समेत सभी मध्य एशियाई देशों को बेल्ट एंड रोड पहल के साथ शामिल कर लिया है।
आगे की राह
- भारतीय कंपनियाँ उज़्बेकिस्तान के साथ विभिन्न व्यापार समझौतों का लाभ उठा सकती हैं और दोनों देशों की आर्थिक एवं व्यापार क्षमता का दोहन करने के लिये क्षेत्र में संयुक्त लाभकारी निवेश परियोजनाओं को लागू कर सकती हैं।
- दोनों देशों के मध्य परस्पर तालमेल बढ़ाने की ज़रूरत है।
- उज़्बेकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) में शामिल होना चाहिये।
- INSTC के सदस्य के रूप में ईरान और भारत दोनों के साथ उज़्बेकिस्तान के जुड़ने से व्यापार विशेष रूप से कनेक्टिविटी उचित दिशा में आगे बढ़ेंगी।
सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से मानव क्रियाकलापों के कारण हाल में अत्यधिक संकुचित हो गया है/ सूख गया है? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: A व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। मेन्स:प्रश्न. कई बाहरी शक्तियों ने मध्य एशिया में अपनी जड़ें जमा ली हैं, जो भारत के लिये रुचि का क्षेत्र है। इस संदर्भ में भारत के अश्गाबात समझौते (2018) में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। |
स्रोत: पी.आई.बी
जैव विविधता और पर्यावरण
सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण
प्रिलिम्स के लिये:मानवाधिकार, संयुक्त राष्ट्र, UNGA, मानवाधिकारों की घोषणा, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण मेन्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय समूहों और संधियों का महत्त्व, मानव अधिकारों के रूप में पर्यावरण, संयुक्त राष्ट्र की भूमिकाएँ |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण तक पहुँच की घोषणा करता है।
- भारत ने प्रस्ताव के लिये मतदान किया और बताया कि संकल्प बाध्यकारी दायित्व का निर्माण नहीं करते हैं।
- केवल अभिसमयों और संधियों के माध्यम से ही राज्य पक्ष ऐसे अधिकारों के लिये दायित्वों का निर्वहन करते हैं।
भारतीय संविधान में स्वच्छ पर्यावरण का प्रावधान:
- जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उपयोग भारत में विविध प्रकार से किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ प्रजाति के रूप में जीवित रहने का अधिकार, जीवन की गुणवत्ता, सम्मान के साथ जीने का अधिकार और आजीविका का अधिकार शामिल है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है: 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।'
संकल्प के बारे में:
- परिचय:
- ग्रह पर प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ, स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण भविष्य में मानवता के सामने सबसे गंभीर खतरे हैं।
- यह दर्शाता है कि सदस्य राज्य जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता के नुकसान और प्रदूषण जैसे ट्रिपल प्लेनेट संकट के खिलाफ सामूहिक लड़ाई में एकजुट हो सकते हैं।
- भारत सहित संयुक्त राष्ट्र के 160 से अधिक सदस्य देशों द्वारा अपनाई गई घोषणा कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
- लेकिन यह देशों को राष्ट्रीय संविधानों और क्षेत्रीय संधियों में स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को शामिल करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
- रूस और ईरान ने मतदान से परहेज किया।
- लाभ:
- यह पर्यावरणीय अन्याय और संरक्षण अंतराल को कम करने में मदद करेगा।
- यह लोगों को सशक्त बना सकता है, विशेष रूप से कमज़ोर परिस्थितियों में उन लोगों को जिनमें पर्यावरणीय मानवाधिकार रक्षक, बच्चे, युवा, महिलाएँ और स्थानिक लोग शामिल हैं।
- यह अधिकार (स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण तक पहुँच) मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 में शामिल नहीं था।
- यह एक ऐतिहासिक संकल्प है जो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून की प्रकृति को बदल देगा।
मानवाधिकार:
- परिचय:
- मानवाधिकारों का आशय ऐसे अधिकारों से है जो जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त होते हैं।
- मानवाधिकारों में शामिल हैं:
- जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी तथा यातना से मुक्ति, विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम व शिक्षा का अधिकार आदि।
- बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक मानव इन अधिकारों का उपभोग कर सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून:
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून व्यक्तियों या समूहों के मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने तथा उनकी रक्षा करने हेतु कुछ तरीकों से कार्य करने या कुछ कृत्यों से परहेज करने के लिये सरकारों के दायित्वों को निर्धारित करता है।
- मानव अधिकारों का निकाय:
- मानवाधिकार कानून के व्यापक निकाय में एक सार्वभौमिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित संहिता होती है, जिसमें सभी इच्छुक राष्ट्र इसकी सदस्यता ले सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र ने नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत अधिकारों की एक विस्तृत शृंखला को परिभाषित किया है।
- इसने इन अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने तथा राज्यों को उनकी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में सहायता के लिये तंत्र भी स्थापित किया है।
- कानून के इस निकाय की नींव संयुक्त राष्ट्र का चार्टर और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा है, जिसे वर्ष 1945 एवं 1948 में महासभा द्वारा अपनाया गया था।
- मानवाधिकार कानून के व्यापक निकाय में एक सार्वभौमिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित संहिता होती है, जिसमें सभी इच्छुक राष्ट्र इसकी सदस्यता ले सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता और प्रदूषण:
- जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य तापमान और मौसम के प्रतिरूप में आए दीर्घकालिक बदलाव से है।
- ये बदलाव प्राकृतिक हो सकते हैं जैसे सौर चक्र में बदलाव के माध्यम से जलवायु परिवर्तन।
- लेकिन 1800 के दशक से मानव गतिविधियाँ जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारक रही हैं, जिसमें मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने की प्रक्रिया शामिल है।
- जीवाश्म ईंधन को जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है जो पृथ्वी के चारों ओर एक कंबल की तरह काम करता है, जो सूरज से आने वाली गर्मी को रोककर पृथ्वी के तापमान को बढ़ाता है।
- जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के उदाहरणों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन शामिल हैं।
- ये कार चलाने के लिये गैसोलीन या किसी इमारत को गर्म करने के लिये कोयले के उपयोग से उत्पन्न होते हैं।
- भूमि और जंगलों को साफ करने से कार्बन डाइऑक्साइड भी निकल सकता है।
- ये कार चलाने के लिये गैसोलीन या किसी इमारत को गर्म करने के लिये कोयले के उपयोग से उत्पन्न होते हैं।
- अपशिष्ट के लिये लैंडफिल मीथेन उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है।
- ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, भवन, कृषि और भूमि उपयोग मुख्य उत्सर्जक हैं।
- जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के उदाहरणों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य तापमान और मौसम के प्रतिरूप में आए दीर्घकालिक बदलाव से है।
- जैवविविधता:
- जैवविविधता का आशय सभी प्रकार के जीवन से है जिसमें एक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के जानवरों, पौधों, कवक और यहाँ तक कि बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जो हमारी प्राकृतिक दुनिया का निर्माण करते हैं।
- इनमें से प्रत्येक प्रजाति और जीव संतुलन बनाए रखने एवं जीवन का समर्थन करने के लिये एक जटिल वेब की तरह पारिस्थितिक तंत्र में एक साथ काम करते हैं।
- जैवविविधता प्रकृति में हर उस चीज़ का समर्थन करती है जो हमें जीवित रहने के लिये चाहिये, जैसे- भोजन, स्वच्छ जल, दवा और आश्रय।
- प्रदूषण:
- प्रदूषण पर्यावरण में हानिकारक पदार्थों की शुरुआत है।
- इन हानिकारक पदार्थों को प्रदूषक कहा जाता है।
- ज्वालामुखी की राख जैसे प्रदूषक प्राकृतिक हो सकते हैं।
- वे मानव गतिविधि जैसे कारखानों द्वारा उत्पादित अपशिष्ट या अपवाह द्वारा भी निर्मित हो सकते हैं।
- प्रदूषक- हवा, जल और ज़मीन की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाते हैं।
- इन हानिकारक पदार्थों को प्रदूषक कहा जाता है।
- प्रदूषण पर्यावरण में हानिकारक पदार्थों की शुरुआत है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न. मौलिक अधिकारों के अलावा भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा भाग मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) के सिद्धांतों और प्रावधानों को दर्शाता है या प्रतिबिंबित करता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
प्रश्न. यद्धपि मानवाधिकार अयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों का सुझाव दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021) |