भारतीय राजनीति
मुख्य चुनाव आयुक्त
- 17 May 2022
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त, आदर्श आचार संहिता। मेन्स के लिये:संवैधानिक निकाय। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति ने राजीव कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त (25वें सीईसी) के रूप में नियुक्त किया।
- उन्होंने सुशील चंद्रा की जगह ली है।
प्रमुख बिंदु
- भारत के चुनाव आयोग के बारे में:
- भारत निर्वाचन आयोग जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
- चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 (राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है) को संविधान के अनुसार की गई थी। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में है।
- यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
- इसका राज्यों में पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है। इसके लिये भारत का संविधान अलग से राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान करता है।
- भारत निर्वाचन आयोग जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान का भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित है और इन मामलों हेतु एक आयोग की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 324: चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित है।
- अनुच्छेद 325: धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान।
- अनुच्छेद 326: लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
- अनुच्छेद 327: विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति।
- अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल को इसके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति।
- अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप पर रोक।
- निर्वाचन आयोग की संरचना:
- निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन राष्ट्रपति की एक अधिसूचना के ज़रिये 16 अक्तूबर, 1989 को इसे तीन सदस्यीय बना दिया गया।
- निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्त, यदि कोई हों, जो राष्ट्रपति समय-समय पर तय कर सकता है, से मिलकर बनेगा।
- वर्तमान में इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और दो अन्य चुनाव आयुक्त शामिल हैं।
- राज्य स्तर पर निर्वाचन आयोग की सहायता मुख्य चुनाव अधिकारी द्वारा की जाती है जो आईएएस रैंक का अधिकारी होता है।
- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल:
- राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करता है।
- इनका कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की उम्र (जो भी पहले हो) तक होता है।
- इन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समकक्ष दर्जा प्राप्त होता है और समान वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।
- निष्कासन:
- वे कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं या उन्हें उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले भी हटाया जा सकता है।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया की तरह ही पद से हटाया जा सकता है।
- सीमाएँ:
- संविधान ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
- संविधान ने चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया है।
- संविधान ने सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी और नियुक्ति से वंचित नहीं किया है।
ECI की शक्तियाँ और कार्य:
- प्रशासनिक:
- संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना।
- समय-समय पर मतदाता सूची तैयार करना और सभी पात्र मतदाताओं का पंजीकरण करना।
- राजनीतिक दलों को मान्यता देना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना।
- यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
- सलाहकार क्षेत्राधिकार और अर्द्ध-न्यायिक कार्य:
- संविधान के तहत संसद और राज्य विधानमंडलों के मौजूदा सदस्यों को निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास सलाहकारी क्षेत्राधिकार है।
- ऐसे सभी मामलों में आयोग की राय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी है, किंतु ऐसे मामले पर राज्यपाल अपनी राय दे सकता है।
- इसके अलावा चुनाव में भ्रष्ट आचरण के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों के मामले, जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सामने आते हैं, इस सवाल पर आयोग की राय के लिये भी भेजा जाता है कि क्या ऐसे व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया जाएगा और यदि हांँ, तो किस अवधि के लिये।
- आयोग के पास ऐसे किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित करने की शक्ति है, जो समय के भीतर और कानून द्वारा निर्धारित तरीके से अपने चुनावी खर्चों का लेखा-जोखा करने में विफल रहा है।
- संविधान के तहत संसद और राज्य विधानमंडलों के मौजूदा सदस्यों को निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास सलाहकारी क्षेत्राधिकार है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |