शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभाव के कारण केंद्र सरकार की फ्लैगशिप ग्रामीण आवास योजना के अंतर्गत प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के लिये स्वीकृत घरों में से केवल 5.4% ही वर्ष 2020-2021 तक पूर्ण हो पाए हैं।
प्रमुख बिंदु:
प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY-G) के बारे में:
- लॉन्च: वर्ष 2022 तक ‘सभी के लिये आवास’ के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये 1 अप्रैल, 2016 को पूर्ववर्ती इंदिरा आवास योजना (Indira Awaas Yojana-IAY) का पुनर्गठन कर उसे प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) कर दिया गया था।
- मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय।
- उद्देश्य: मार्च 2022 तक सभी ग्रामीण परिवारों के आवासहीन और कच्चे तथा जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के घर उपलब्ध कराना।
- पूर्ण अनुदान सहायता प्रदान करके आवास इकाइयों के निर्माण और मौजूदा गैर-लाभकारी कच्चे घरों के उन्नयन में गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे रह रहे ग्रामीण लोगों की मदद करना।
- लाभार्थी: इसके लाभार्थियों में एससी/एसटी, मुक्त बंधुआ मज़दूर और गैर-एससी/एसटी श्रेणियाँ, विधवाओं या कार्रवाई में मारे गए रक्षाकर्मियों के परिजन, पूर्व सैनिक एवं अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, विकलांग व्यक्ति तथा अल्पसंख्यक शामिल हैं।
- लाभार्थियों का चयन : तीन चरणों के माध्यम से लाभार्थियों का सत्यापन किया जाएगा जिसमें 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC), ग्राम सभा एवं जियो टैगिंग शामिल है।
- साझा लागत: इस योजना की कुल लागत का बँटवारा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में किया जाता है, जबकि पूर्वोत्तर तथा हिमालयी राज्यों के लिये यह राशि 90:10 के अनुपात में साझा की जाती है।
- विशेषताएँ:
- घर के न्यूनतम आकार को 20 वर्ग मीटर से 25 वर्ग मीटर (एक स्वच्छ रसोई घर सहित) तक बढ़ाया गया है।
- इकाई सहायता मैदानी क्षेत्रों में 70,000 रुपए से बढ़ाकर 1.20 लाख रुपए तथा पर्वतीय राज्यों में 75,000 रुपए से बढ़ाकर 1.30 लाख रुपए कर दी गई है।
- शौचालय के निर्माण के लिये स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G), मनरेगा या वित्तपोषण के किसी अन्य स्रोत से तालमेल बिठाकर सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
- पाइप के ज़रिये पेयजल आपूर्ति, बिजली कनेक्शन, एलपीजी गैस कनेक्शन इत्यादि के लिये विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से भी प्रयास किया जाता है।
योजना का प्रदर्शन:
- निर्माण लक्ष्य का केवल 55% पूरा हो चुका है।
- ग्रामीण गरीबों के लिये बनाए जाने वाले 2.28 करोड़ घरों में से 1.27 करोड़ से कम घरों का कार्य जनवरी 2021 तक पूरा हो चुका था।
- लगभग 85% लाभार्थियों के लिये धन स्वीकृत किया गया है।
- इस योजना ने रोज़गार सृजन में मदद की है तथा कई राज्यों ने अपने प्रवासी मज़दूरों को लॉकडाउन के दौरान रोज़गार उपलब्ध कराया।
प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी
- लॉन्च: 25 जून, 2015 को प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का शुभारंभ किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य शहरी क्षेत्रों के लोगों को 2022 तक आवास उपलब्ध कराना है।
- कार्यान्वयन: आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय
- विशेषताएँ:
- शहरी गरीबों (झुग्गीवासी सहित) के बीच शहरी आवास की कमी को संबोधित करते हुए पात्र शहरी गरीबों के लिये पक्के घर सुनिश्चित करता है।
- इस मिशन में संपूर्ण नगरीय क्षेत्र शामिल है (जिसमें वैधानिक नगर, अधिसूचित नियोजन क्षेत्र, विकास प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, औद्योगिक विकास प्राधिकरण या राज्य विधान के अंतर्गत कोई भी प्राधिकरण जिसे नगरीय नियोजन का कार्य सौंपा गया है)।
- PMAY(U) के अंतर्गत सभी घरों में शौचालय, पानी की आपूर्ति, बिजली और रसोईघर जैसी बुनियादी सुविधाएँ हैं।
- यह योजना महिला सदस्य के नाम पर या संयुक्त नाम से घरों का स्वामित्व प्रदान कर महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देती है।
- विकलांग व्यक्तियों, वरिष्ठ नागरिकों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, एकल महिलाओं, ट्रांसजेंडर और समाज के कमज़ोर वर्गों को इसमें प्राथमिकता दी जाती है।
- चार कार्यक्षेत्रों में विभाजित:
- निजी भागीदारी के माध्यम से संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग करने वाले मौजूदा झुग्गीवासियों का इन-सीटू (उसी स्थान पर) पुनर्वास किया जाएगा।
- क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी।
- साझेदारी में किफायती आवास।
- लाभार्थी के नेतृत्व वाले निजी घर निर्माण/मरम्मत के लिये सब्सिडी।
स्रोत: द हिंदू
कृषि
मोटे अनाजों की खेती का पुनः प्रचलन
चर्चा में क्यों?
कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (International Fund for Agricultural Development- IFAD) द्वारा वर्ष 2013-14 में मध्य प्रदेश के डिंडोरी ज़िले में कोदो और कुटकी (मोटे अनाज) जैसी फसलों की खेती को पुनर्जीवित करने हेतु की गई पहल ने ऐसे अनाजों की खेती को एक नया रूप देने में सफलता हासिल की है, जिनकी कृषि लगभग हाशिये पर पहुँच गई थी।
- IFAD, संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक विशेष एजेंसी है जो वर्ष 1974 के विश्व खाद्य सम्मेलन का प्रमुख परिणाम था।
- IFAD की स्थापना वर्ष 1977 में गई थी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करने पर केंद्रित है। यह विकासशील देशों में गरीब ग्रामीण आबादी के साथ मिलकर कार्य करके गरीबी, भूख और कुपोषण को समाप्त करने की दिशा में कार्यरत्त है।
प्रमुख बिंदु:
परियोजना के बारे में:
- शुरुआत
- इस परियोजना को 40 गांँवों के 1,497 महिला किसानों के साथ शुरू किया गया था जिनमें ज़्यादातर गोंड और बैगा जनजातियों की महिला किसान शामिल थीं, इनके द्वारा 749 एकड़ में इन दो मोटे अनाजों (कोदो और कुटकी) की खेती की जाती है।
- बीज और प्रशिक्षण:
- खेत को तैयार करने, लाइन-बुवाई (पारंपरिक हाथ से बुआई करने के विपरीत) और विशिष्ट पौधों के संरक्षण हेतु खाद, जस्ता, कवकनाशी तथा अन्य रसायनों के उपयोग हेतु चयनित किसानों को जबलपुर में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय और स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा प्रशिक्षण प्रदान कर अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराए गए।
- स्वयं सहायता समूह:
- स्व-सहायता समूह के किसानों के एक संघ द्वारा उपज की खरीद कर उसकी यांत्रिक डी-हलिंग (Mechanical De-Hulling) का कार्य किया गया। (अनाज से भूसी निकालने हेतु प्रयुक्त पारंपरिक मैनुअल पाउंडिंग प्रक्रिया में अत्यधिक समय लगता है।)
प्रभाव:
- वर्ष 2019-20 में परियोजना क्षेत्र में कोदो-कुटकी उगाने वाले किसानों की मदद की गई जिससे उनकी संख्या बढकर 14,301 हो गई।
- कोदो-कुटकी उगाने वाले क्षेत्र में 14,876 एकड़ की बढ़ोत्तरी हुई।
- पोषण संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिली (बच्चों में कुपोषण से लड़ने में)।
- बाजरे की खेती को पुनर्जीवित करने में मदद मिली (फसल पैदावार पहले की तुलना में 1.5-2 गुना अधिक है)।
मोटे अनाज:
मोटे अनाज के बारे में:
- मोटे अनाजों को अक्सर सुपरफूड के रूप में संदर्भित किया जाता है, इनके उत्पादन को स्थायी कृषि और एक स्वस्थ विश्व के संदर्भ में देखा जा सकता है
भारत में मोटे अनाज:
- वर्तमान में भारत में उगाई जाने वाली तीन प्रमुख मोटे अनाज वाली फसलें ज्वार, बाजरा और रागी हैं।
- इसके साथ ही भारत मोटे अनाजों की जैव-आनुवंशिक रूप से विविध और स्वदेशी किस्मों की एक समृद्ध शृंखला को विकसित कर रहा है।
- प्रमुख उत्पादक राज्यों में राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा शामिल हैं।
मोटे अनाजों की ऊपज को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता:
- पोषण सुरक्षा:
- मोटे अनाज गेहूंँ और चावल की तुलना में सस्ते होने के साथ-साथ उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन तथा आयरन आदि की उपस्थिति के चलते पोषण हेतु बेहतर आहार होते हैं।
- मोटे अनाजों में कैल्शियम और मैग्नीशियम की प्रचुरता होती है।
- जैसे- रागी में सभी खाद्यान्नों की तुलना में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है।
- इसमें लोहे की उच्च मात्रा महिलाओं की प्रजनन आयु और शिशुओं में एनीमिया के उच्च प्रसार को रोकने में सक्षम है।
- जलवायु अनुकूल:
- ये कठोर एवं सूखा प्रतिरोधी फसलें हैं जिनका वृद्धि काल (70-100 दिन) गेहूंँ या चावल (120-150 दिन ) की फसल की तुलना में कम होता है इसके अलावा मोटे अनाजों (350-500मिमी) को गेहूंँ या चावल (600-1,200मिमी) की फसल की तुलना में कम जल की आवश्यकता होती है।
- आर्थिक सुरक्षा:
- चूंँकि मोटे अनाजों के उत्पादन हेतु निवेश की कम आवश्यकता होती है, अत: ये किसानों के लिये आय के स्थायी स्रोत साबित हो सकते हैं।
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में सहायक:
- मोटे अनाज कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में सहायक है जैसे- मधुमेह और मोटापे की समस्या।क्योंकि वे ग्लूटेन मुक्त होते हैं और इनमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है।(खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट के एक सापेक्ष स्तर के अनुसार वे रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करते हैं)।
- मोटे अनाज एंटीऑक्सीडेंट का संपन्न स्रोत है।
- मोटे अनाज कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में सहायक है जैसे- मधुमेह और मोटापे की समस्या।क्योंकि वे ग्लूटेन मुक्त होते हैं और इनमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है।(खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट के एक सापेक्ष स्तर के अनुसार वे रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करते हैं)।
चुनौतियाँ:
- गेहूँ को वरीयता:
- गेहूँ में ग्लूटेन प्रोटीन विद्यमान होता है जो आटे में पानी मिलाने पर इसे चिपचिपा बनाता है तथा आटे को अधिक गाढ़ा और लोचदार बनाता है।
- जिसके परिणामस्वरूप रोटियाँ अधिक मुलायम बनती हैं, यह मोटे अनाजों में संभव नहीं है क्योकि ये ग्लूटेन मुक्त होते हैं।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की मांग में बढ़ोतरी:
- भारत ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और रेडी-टू-ईट उत्पादों की मांग में उछाल देखा है, जिनमें सोडियम, चीनी, ट्रांस-वसा और यहांँ तक कि कार्सिनोजेन्स का उच्च स्तर पाया जाता है।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के तीव्र विपणन के साथ ग्रामीण आबादी में भी मिल-संसाधित चावल और गेहूंँ का उपयोग करने की तीव्र इच्छा देखी जा रही है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम द्वारा अन्य अनाजों को बढ़ावा:
- वर्ष 2013 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत ग्रामीण भारत के तीन-चौथाई परिवारों को 5 किलोग्राम गेहूंँ या चावल प्रति व्यक्ति प्रतिमाह उपलब्ध कराया जाता है जिसमें 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार यह मोटे अनाजों की मांग में कमी लाता है।
भारतीय पहल:
- मोटे अनाजों को बढ़ावा:
- अप्रैल 2018 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा मोटे अनाजों को उनके "उच्च पोषक मूल्य" और "मधुमेह विरोधी गुणों" के कारण "पोषक तत्त्वों" के रूप में घोषित किया गया था।
- वर्ष 2018 को नेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (National Year of Millets) के रूप में मनाया गया।
- MSP में वृद्धि:
- सरकार द्वारा मोटे अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) को बढ़ाया गया है, जो किसानों को उनकी फसल का अधिक मूल्य प्रदान करती है।
- इसके अलावा उपज की बिक्री हेतु एक स्थिर बाज़ार प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को शामिल किया है।
- निवेश सहायता:
- सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण किया गया है और मोटे अनाजों की बिक्री को बढ़ावा देने हेतु विपणन क्षमता का समर्थन किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय पहल
- यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली ने 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ (International Year of Millets) के रूप में मनाने के भारत के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है।
आगे की राह:
- जलवायु के साथ सामंजस्य स्थापित करने, छोटी फसल अवधि, कम उपजाऊ मिट्टी, पहाड़ी इलाकों एवं वर्षा की कम मात्रा के साथ उगने की क्षमता को देखते हुए मोटे अनाज़ों की खेती को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- मोटे अनाजों की पहुंँच गरीबों तक होने के कारण ये सभी आय श्रेणी के लोगों को पोषण प्रदान करने के साथ-साथ वर्षा आधारित कृषि प्रणालियों का जलवायु अनुकूलन के साथ समर्थन करने में एक आवश्यक भूमिका निभा सकते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
एपोफिस क्षुद्रग्रह
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने क्षुद्रग्रह एपोफिस के कारण आगामी 100 वर्षों तक पृथ्वी को कोई नुकसान होने की संभावना को खारिज कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
आकार
- एपोफिस पृथ्वी के निकट एक क्षुद्रग्रह है, जिसका आकार तुलनात्मक रूप से काफी बड़ा, लगभग 335 मीटर है।
नाम और खोज
- वर्ष 2004 में खोजे गए इस क्षुद्रग्रह का नाम अराजकता और अंधेरे के प्राचीन मिस्र के देवता के नाम पर रखा गया है तथा इसकी खोज के बाद नासा ने घोषणा की थी कि यह क्षुद्रग्रह उन क्षुद्रग्रहों में से एक है, जिनके कारण पृथ्वी के समक्ष बड़ा खतरा मौजूद है।
- एपोफिस के वर्ष 2029 और वर्ष 2036 के पृथ्वी के करीब आने की भविष्यवाणी की गई थी, किंतु बाद में नासा ने इन आशंकाओं को खारिज कर दिया था।
- हालाँकि वर्ष 2068 में इसके पृथ्वी के करीब से गुज़रने या टकराने की आशंका बनी हुई थी।
हालिया उड़ान
- हाल ही में 5 मार्च, 2021 को यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी से लगभग 17 मिलियन किलोमीटर की दूरी से गुज़रा है। इस दौरान वैज्ञानिकों ने सूर्य के चारों ओर क्षुद्रग्रह की कक्षा के बारे में विस्तार से अध्ययन करने के लिये रडार अवलोकन का उपयोग किया।
प्रभाव- यदि यह पृथ्वी से टकराता है तो:
क्षुद्रग्रह
परिचय
- क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करने वाले छोटे चट्टानी पदार्थ होते हैं। क्षुद्रग्रह द्वारा सूर्य की परिक्रमा ग्रहों के समान ही की जाती है लेकिन इनका आकार ग्रहों की तुलना में बहुत छोटा होता है।
- इन्हें लघु ग्रह भी कहा जाता है।
- नासा के अनुसार, ज्ञात क्षुद्रग्रहों की संख्या तकरीबन 9,94,383 है, जिनका निर्माण 4.6 अरब वर्ष पूर्व सौरमंडल के निर्माण के समय हुआ था।
वर्गीकरण: क्षुद्रग्रह तीन वर्गों में विभाजित हैं:
- पहला समूह
- मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट में मौजूद क्षुद्रग्रह, अनुमान के अनुसार, इस क्षुद्रग्रह बेल्ट में 1.1 से 1.9 मिलियन क्षुद्रग्रह मौजूद हैं।
- दूसरा समूह
- इसमें वे ट्रोजन क्षुद्रग्रह शामिल हैं, जो एक बड़े ग्रह के साथ अपनी कक्षा को साझा करते हैं। नासा ने बृहस्पति, नेपच्यून और मार्स ग्रहों के ट्रोजन क्षुद्रग्रहों की जानकारी दी है। वर्ष 2011 में नासा ने पृथ्वी के ट्रोजन क्षुद्रग्रह की भी सूचना दी थी।
- तीसरा समूह
- इसमें नियर-अर्थ क्षुद्रग्रह (NEA) शामिल होते हैं, जिनकी कक्षा पृथ्वी के पास से गुज़रती हैं। वे क्षुद्रग्रह जो पृथ्वी की कक्षा को पार करते हैं उन्हें अर्थ -क्रॉसर्स कहा जाता है। अब तक कुल 10,000 से अधिक नियर-अर्थ क्षुद्रग्रहों के बारे में सूचना प्राप्त हुई है, जिनमें से 1,400 से अधिक को ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (PHAs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- नासा का सेंटर फॉर नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडी (CNEOS) इन क्षुद्रग्रहों (जब ये पृथ्वी के सबसे करीब होते हैं) के समय और दूरी को निर्धारित करता है।
‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (PHAs)
- यह किसी एक क्षुद्रग्रह के पृथ्वी के करीब आने की संभावना को इंगित करता है।
- विशेष रूप से ऐसे सभी क्षुद्रग्रह जिनकी ‘मिनिमम ऑर्बिट इंटेरसेक्शन डिस्टेंस’ (MOID) 0.05 खगोलीय इकाई (लगभग 7,480,000 Km) या इससे कम तथा निरपेक्ष परिमाण (H) 22.0 (लगभग 150 MT व्यास) हो, उन्हें संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह माना जाता है।
- ‘मिनिमम ऑर्बिट इंटेरसेक्शन डिस्टेंस’ दो लगभग अतिच्छादित अंडाकार कक्षाओं के बीच न्यूनतम दूरी की गणना करने के लिये एक विधि है।
- खगोलीय इकाई (AU) पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी होती है और यह लगभग 150 मिलियन किमी. है।
- निरपेक्ष परिमाण किसी भी तारे की चमक का एक मापक है, अर्थात् प्रत्येक समय तारे द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा की कुल मात्रा।
- एपोफिस को ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (PHAs) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
टाटा-मिस्त्री निर्णय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के फैसले को बदलते हुए साइरस पल्लोनजी मिस्त्री को टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष और निदेशक के पद से हटाने के टाटा समूह के फैसले को सही ठहराया।
प्रमुख बिंदु:
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन:
- अल्पसंख्यक शेयरधारक या उनके छोटे शेयरधारक प्रतिनिधियों को निजी कंपनी के बोर्ड में स्वचालित रूप से किसी पद का हक़दार नहीं माना गया है।
- कंपनी अधिनियम 2013 में शामिल प्रावधान केवल सूचीबद्ध कंपनियों के छोटे शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, ताकि ऐसी कंपनियों को अपने बोर्ड में कम-से-कम एक निदेशक को ऐसे छोटे शेयरधारकों द्वारा चुना जा सके।
- क्योंकि मिस्त्री परिवार और शापूरजी पल्लोनजी (SP) समूह छोटे शेयरधारक नहीं हैं, लेकिन अल्पसंख्यक शेयरधारक के लिये ऐसा कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है जो उन्हें टाटा संस के बोर्ड में ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व का दावा करने का अधिकार’ प्रदान करता हो।
- जिन निजी कंपनियों के पास अल्पसंख्यक शेयरधारक हैं, वे उनके लिये एक सक्षम प्रावधान बनाने हेतु स्वतंत्र हैं, लेकिन निजी कंपनियों के बोर्ड में अल्पसंख्यक शेयरधारक को सीट प्रदान करने के लिये कोई वैधानिक दात्यित्व शामिल नहीं है।
अल्पसंख्यक शेयरधारक
- अल्पसंख्यक शेयरधारक किसी फर्म या कंपनी के इक्विटी धारक हैं। यदि ये किसी फर्म की इक्विटी पूंजी के 50% से कम स्वामित्व रखते है तो उन्हें फर्म में अपने मताधिकार की शक्ति का उपयोग करने से वंचित होना पड़ता है।
छोटे शेयरधारक
- कंपनी अधिनियम के अनुसार, छोटे शेयरधारक वे शेयरधारक या शेयरधारकों का समूह हैं जो केवल नाम मात्र 20,000 रुपए से कम मूल्य के शेयर रखते हैं।
कंपनी अधिनियम 2013
- यह एक भारतीय कंपनी कानून है, जो एक कंपनी के निगमन, कंपनी की ज़िम्मेदारियों, निदेशकों, शेयरधारकों और इसके विघटन सहित सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
फैसले का महत्व:
- हालाँकि यह निर्णय सीधे तौर पर अल्पसंख्यक शेयरधारकों के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है, ऐसे शेयरधारकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास शेयरधारकों का बहुमत है या वे कंपनी के प्रवर्तकों (Promoters ) के साथ अनुबंधित हैं, साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये उनके पास बोर्ड में पर्याप्त प्रतिनिधित्व भी होना आवश्यक है।
राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)
- NCLAT का गठन नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल NCLT के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने के लिये कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 410 के अंतर्गत किया गया था।
- NCLAT 1 दिसंबर, 2016 से प्रभावी दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016-IBC) की धारा 61 के तहत NCLT द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिये एक अपीलीय अधिकरण भी है।
- NCLAT भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील भी सुनता है ।
- NCLAT, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India) द्वारा दिये गए निर्णयों से असहमत पक्ष के लिये भी अपीलीय निकाय के रूप में कार्य करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता (Independence of Bangladesh) की स्वर्ण जयंती, राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मजीबुर्रहमान (Bangabandhu Sheikh Mujibur Rahman) की जन्म शताब्दी और भारत तथा बांग्लादेश के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने के उत्सव में भाग लेने के लिये बांग्लादेश की यात्रा की।
प्रमुख बिंदु
ऐतिहासिक कड़ियों का संयुक्त समारोह:
- बांग्लादेश ने बंगबंधु शेख मजीबुर्रहमान को वर्ष 2020 का गांधी शांति पुरस्कार (Gandhi Peace Prize) प्रदान करने पर भारत को धन्यवाद दिया।
- ढाका में बंगबंधु-बापू डिजिटल प्रदर्शनी का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया गया।
- भारत-बांग्लादेश मित्रता की 50वीं वर्षगाँठ को चिह्नित करने के लिये:
- दोनों पक्षों ने संबंधित स्मारक डाक टिकट जारी किये।
- 6 दिसंबर को मैत्री दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इसी दिन भारत ने वर्ष 1971 में बांग्लादेश को मान्यता दी थी।
- भारत ने दिल्ली विश्वविद्यालय में बंगबंधु पीठ की स्थापना की घोषणा की।
- बांग्लादेश ने बांग्लादेश-भारत सीमा पर मुजीब नगर से नादिया तक ऐतिहासिक सड़क का नाम (मुक्ति संग्राम के दौरान इस सड़क के ऐतिहासिक महत्त्व को याद करते हुए) शाधिनोता शोरोक (Shadhinota Shorok) रखने के बांग्लादेश के प्रस्ताव पर विचार करने के लिये भारत को धन्यवाद दिया।
जल संसाधन सहयोग:
- बांग्लादेश ने तीस्ता नदी जल के बँटवारे पर लंबे समय से लंबित अंतरिम समझौते के समाधान के लिये अपने अनुरोध को दोहराया।
- दोनों सरकारों द्वारा जनवरी 2011 में मसौदा समझौते पर पहले ही सहमति दे दी गई है।
- भारत ने बांग्लादेश की तरफ से लंबित फेनी नदी के पानी के बंटवारे के लिये अंतरिम समझौते के मसौदे को जल्द अंतिम रूप देने का अनुरोध किया, इस पर दोनों पक्षों ने वर्ष 2011 में सहमति जताई थी।
- साथ ही दोनों देशों ने संबंधित जल मंत्रालयों को मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमटी, धारला और दुधकुमार नामक छः अन्य नदियों के पानी के बँटवारे संबंधी अंतरिम समझौते को भी जल्द पूरा करने का निर्देश दिया।
- दोनों प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त तकनीकी समिति को निर्देश दिया कि वह गंगा जल साझेदारी संधि (Ganges Water Sharing Treaty), 1996 के अनुसार बांग्लादेश द्वारा प्राप्त गंगा जल के इष्टतम उपयोग के लिये गंगा-पद्मा बैराज की व्यवहार्यता का शीघ्रता से अध्ययन करे।
विकास के लिये व्यापार नीतियों पर ज़ोर:
- दोनों पक्षों ने व्यापार नीतियों, विनियमों और प्रक्रियाओं की भविष्यवाणी और गैर-टैरिफ बाधाओं को हटाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- दोनों देशों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये समन्वित तरीके से ज़मीनी सीमा शुल्क स्टेशनों/भूमि बंदरगाहों (Land Customs Station/Land Port) के बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं के उन्नयन हेतु तत्काल ज़ोर देने का आह्वान किया गया।
- द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिये मानकों हेतु सामंजस्य और समझौतों व प्रमाणपत्रों की मान्यता के महत्त्व को दोहराया गया।
- बांग्लादेश मानक और परीक्षण संस्थान (Bangladesh Standards and Testing Institute) और भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standard) क्षमता निर्माण तथा परीक्षण एवं लैब सुविधाओं के विकास के लिये सहयोग करेंगे।
- भारत ने अल्प विकसित देश (Least Developed Country) के दर्जे से जल्द बाहर आने पर बांग्लादेश को बधाई दी।
- दोनों पक्षों ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (Comprehensive Economic Partnership Agreement) में प्रवेश करने की संभावनाओं पर चल रहे संयुक्त अध्ययन के जल्द पूरा किये जाने पर ज़ोर दिया।
- बांग्लादेश ने जूट क्षेत्र के पुनरुद्धार और आधुनिकीकरण के लिये अपनी जूट मिलों में भारतीय निवेश को आमंत्रित किया।
- भारत ने कटिहार - परबतीपुर - बोर्नगर क्रॉस बॉर्डर इलेक्ट्रिसिटी इंटरकनेक्शन के कार्यान्वयन के लिये तौर-तरीकों को जल्द अंतिम रूप देने का अनुरोध किया।
- दोनों पक्षों ने भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन और मैत्री सुपर थर्मल पॉवर परियोजना की इकाई-1 के कार्यान्वयन में प्रगति का जायजा लिया।
समृद्धि के लिये कनेक्टिविटी:
- भारत ने वर्ष 1965 से पहले के रेल संपर्क को पुनर्जीवित करने की बांग्लादेश की पहल पर आभार व्यक्त किया।
- बांग्लादेश ने भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना (India – Myanmar-Thailand Trilateral Highway Project) पहल में भागीदारी के प्रति अपनी उत्सुकता दोहराई।
- दोनों देशों के बीच बेहतर संपर्क और यात्रियों व माल की आवाजाही को आसान बनाने के लिये दोनों पक्षों ने बांग्लादेश, भारत और नेपाल के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके BBIN मोटर वाहन समझौते (BBIN Motor Vehicles Agreement) को शीघ्र लागू करने पर सहमति व्यक्त की, ताकि सामानों और यात्रियों की आवाजाही शुरू हो सके। आगे चलकर भूटान को भी इसमें शामिल किया जा सकता है।
- कोलकाता से चट्टग्राम के ज़रिये अगरतला तक माल की आवाजाही के लिये चट्टग्राम और मोंगला बंदरगाह के इस्तेमाल हेतु ट्रांस-शिपमेंट समझौते को जल्द लागू किये जाने का अनुरोध किया।
- भारत ने अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार पर प्रोटोकॉल के एक भाग के रूप में मुंशीगंज और पनगाँव में ट्रांस-शिपमेंट व्यवस्था के लिये भी अनुरोध किया।
- हाल ही में दक्षिण त्रिपुरा में फेनी नदी पर मैत्री सेतु (भारत और बांग्लादेश के बीच) का उद्घाटन किया गया।
- बांग्लादेश ने पूर्वोत्तर भारत खासतौर से त्रिपुरा के लोगों द्वारा चट्टग्राम और सिलहट अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के इस्तेमाल की पेशकश की।
सार्वजनिक स्वास्थ्य में सहयोग:
- बांग्लादेश ने भारत में बने ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका कोविशील्ड वैक्सीन (Oxford Astra Zeneca Covishield) की 3.2 मिलियन खुराक देने के लिये भारत सरकार को धन्यवाद दिया।
सीमा प्रबंधन और सुरक्षा सहयोग:
- बांग्लादेश ने मानवीय आधार पर पद्मा नदी के ज़रिये 1.3 किमी. के जलमार्ग का निवेदन दोहराया है।
- भारत ने त्रिपुरा-बांग्लादेश क्षेत्र से शुरुआत करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सभी लंबित क्षेत्रों में बाड़ लगाने का आग्रह किया।
- रक्षा सहयोग: कार्यक्रमों के लगातार आदान-प्रदान और प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण में सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया।
- भारत ने बांग्लादेश को भारत से रक्षा आयात के लिये $500 मिलियन की लाइन ऑफ क्रेडिट की पेशकश की है।
- दोनों पक्षों ने आपदा प्रबंधन, पुनर्निर्माण और शमन पर एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये जाने का स्वागत किया।
सहयोग के नए क्षेत्र:
- विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग, बिग डेटा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा व प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं के नए और उभरते क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की ज़रूरत को स्वीकार किया गया।
- भारत ने बांग्लादेश के 50 युवा उद्यमियों को भारत आने और अपने विचारों को साझा करने के लिये आमंत्रित किया।
क्षेत्र और विश्व में भागीदार:
- दोनों देश संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर साझा उद्देश्यों के लिये साथ मिलकर काम करना जारी रखने पर सहमत हुए।
- दोनों पक्षों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसे क्षेत्रीय संगठनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, विशेष रूप से कोविड-19 के बाद की स्थिति में।
- बांग्लादेश ने मार्च 2020 में सार्क नेताओं की वीडियो कॉन्फ्रेंस बुलाने और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में वैश्विक महामारी के प्रभाव से निपटने के लिये सार्क आपातकालीन प्रतिक्रिया निधि (SAARC Emergency Response Fund) बनाए जाने का प्रस्ताव रखने हेतु भारत को धन्यवाद दिया।
- बांग्लादेश ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वह अक्तूबर 2021 में पहली बार इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association) की अध्यक्षता ग्रहण करेगा। अतः उसने हिंद महासागर क्षेत्र में अधिक समुद्री सुरक्षा तथा रक्षा पर काम करने के लिये भारत से सहयोग का आग्रह किया।
- भारत ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (New Development Bank) में शामिल होने के बांग्लादेश के फैसले का स्वागत किया।
दोनों प्रधानमंत्रियों की अन्य घोषणाएँ:
- भारतीय सशस्त्र बलों के शहीदों, जिन्होंने वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम में अपने जीवन का बलिदान किया, के सम्मान में आशूगंज, ब्राह्मणबारिया में एक स्मारक की आधारशिला रखी गई।
- पाँच पैकेजों वाले (अमीन बाज़ार-कालियाकोर, रूपपुर-ढाका, रूपपुर- गोपालगंज, रूपपुर- धामराई, रूपपुर-बोगरा) रूपपुर पॉवर इवैक्यूएशन प्रोजेक्ट (Rooppur Power Evacuation Project) के लिये आधारशिला समारोह।
- तीन बॉर्डर हाटों यथा- नलीकाटा (भारत)- सायदाबाद (बांग्लादेश), रिनगकु (भारत)- बागान बारी (बांग्लादेश) और भोलागुंज (भारत)- भोलागुंज (बांग्लादेश) का उद्घाटन।
- बॉर्डर हाट का उद्देश्य स्थानीय बाज़ारों के माध्यम से स्थानीय उपज के विपणन की एक पारंपरिक प्रणाली की स्थापना करके दोनों देशों की सीमाओं के पार दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को लाभ पहुँचाना है।
- बांग्लादेश में ढाका को और भारत की तरफ न्यू जलपाईगुड़ी को जोड़ने वाली मिताली एक्सप्रेस (Mitali Express) यात्री ट्रेन का उद्घाटन।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार
चर्चा में क्यों?
पाकिस्तान ने भारत के साथ सभी प्रकार के व्यापार निलंबित करने के दो साल पुराने फैसले को आंशिक रूप से बदलते हुए भारत से कपास और चीनी आयात करने की घोषणा की।
- अगस्त 2019 में पाकिस्तान सरकार द्वारा व्यापार को रद्द करने का निर्णय (भारत सरकार के अनुच्छेद 370 में संशोधन करने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद) लिया गया था।
प्रमुख बिंदु:
पाकिस्तान का व्यापार प्रतिबंध:
- अगस्त 2019 में भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को निलंबित करने का पाकिस्तान का निर्णय जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक परिवर्तनों का परिणाम था।
- हालाँकि व्यापार को निलंबित करने का एक अंतर्निहित कारण भारत द्वारा पाकिस्तानी आयातों पर लगाया गया 200% सीमा शुल्क था, जिसके एक साल बाद भारत ने पुलवामा आतंकवादी हमले के पश्चात् पाकिस्तान के मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा रद्द कर दिया था।
- इसकी वजह से दोनों देशों के बीच व्यापार अत्यधिक प्रभावित हुआ।
- भारत से पाकिस्तान को होने वाला निर्यात लगभग 60% की गिरावट के साथ 816.62 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रह गया और वित्तीय वर्ष 2019-20 में उसका आयात 97% गिरावट के साथ 13.97 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रह गया।
प्रतिबंध से पूर्व भारत-पाकिस्तान व्यापार:
- वर्षों से भारत का पाकिस्तान के साथ व्यापार अधिशेष है, आयात और निर्यात की तुलना में व्यापार को हमेशा राजनीति से जोड़ा गया है।
- वर्ष 2016 में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी लॉन्च पैड्स पर उरी आतंकी हमले और भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद संबंधों में तनाव के कारण भारत में पाकिस्तान का निर्यात वित्तीय वर्ष 2015-16 के 2.17 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वित्तीय वर्ष 2016-17 में लगभग 16% गिरावट के साथ 1.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- निरंतर तनाव के बावजूद हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार में कुछ वृद्धि हुई है।
- वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारतीय निर्यात लगभग 6% वृद्धि दर के साथ 1.92 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया तथा वित्तीय वर्ष 2018-19 में इसमें लगभग 7% की बढ़ोतरी हुई।
- हालाँकि पाकिस्तान से आयात में न्यूनतम वृद्धि के चलते वित्तीय वर्ष 2016-17 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2017-18 में यह 7.5% वृद्धि के साथ 488.56 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
प्रमुख व्यापारिक उत्पाद:
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में पाकिस्तान भारत के शीर्ष 50 व्यापारिक भागीदारों में से एक था, लेकिन वित्तीय वर्ष 2019-20 में मोस्ट फेवर्ड नेशन की सूची से पाकिस्तान को बाहर कर दिया गया था।
- यह अनुमान लगाया गया था कि देशों के बीच व्यापार प्रतिबंध पाकिस्तान को अधिक प्रभावित करेगा, क्योंकि पाकिस्तान अपने वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स उद्योगों हेतु कच्चे माल के लिये भारत पर सर्वाधिक निर्भर था।
- पाकिस्तान को भारतीय निर्यात:
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में पाकिस्तान को कपास और जैविक रसायनों का भारतीय निर्यात का लगभग आधा भाग प्राप्त हुआ।
- अन्य प्रमुख वस्तुओं में प्लास्टिक, टैनिंग/ रंगाई के अर्क और परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी तथा यांत्रिक उपकरण शामिल थे।
- प्रतिबंध के बाद कई वस्तुओं के आयात में भारी गिरावट आई, जबकि कपास का आयात पूरी तरह से बंद हो गया।
- केवल दवा उत्पादों के आयात में वृद्धि हुई है। पाकिस्तान ने अब तक कोविड -19 महामारी के दौरान दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये दवा उत्पादों और जैविक रसायनों का आयात किया है।
- पाकिस्तान से भारतीय आयात:
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में पाकिस्तान से भारत को आयातित प्रमुख वस्तुओं में खनिज ईंधन, तेल, खाद्य फल, नारियल, नमक, सल्फर, पत्थर ,प्लास्टर सामग्री, अयस्क, लावा, राख, खाल और चमड़ा आदि शामिल थे।
पाकिस्तान द्वारा व्यापार प्रतिबंध हटाया जाना:
- कच्चे माल में कमी: पाकिस्तान ने कपास के आयात पर प्रतिबंध हटाने का निर्णय लिया है, क्योंकि कपास की घरेलू पैदावार कम होने के कारण पाकिस्तान का वस्त्र उद्योग कच्चे माल की कमी का सामना कर रहा है।
- भारत से सस्ता आयात: अमेरिका और ब्राज़ील जैसे- देशों से कपास और चीनी का आयात करना तुलनात्मक रूप से काफी महँगा पड़ता है और डिलीवरी में भी काफी समय लगता है।
- उच्च घरेलू मांग और कीमतें: चीनी पर आयात प्रतिबंध हटाने का निर्णय उसकी उच्च घरेलू मांग और उच्च कीमतों से भी प्रेरित है।
- भारत से आयात करने का निर्णय पाकिस्तान के स्थानीय बाज़ार में कीमतों को स्थिर करने का एक उपाय है।
निहितार्थ
- चयनित वस्तुओं यथा- चीनी और कपास में व्यापार की अनुमति देने के पाकिस्तान के निर्णय से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों के सामान्य होने की संभावना और अधिक बढ़ गई है।
- भारत के लिये यह एक अच्छा समय है कि वह उत्पादों पर 200% आयात शुल्क में कमी की संभावनाओं का पता लगाए ताकि उद्योगों को लाभ मिल सके।
- तीन वर्ष के अंतराल के बाद भारत द्वारा खेल संबंधी वीज़ा देने, दिल्ली में सिंधु जल आयुक्तों की बैठक आयोजित करने, नियंत्रण रेखा पर शांति और भारत तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच संदेशों का आदान-प्रदान जैसे उपायों के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार होने की संभावना है।