उत्तर प्रदेश Switch to English
अनाधिकृत निर्माणों को ध्वस्त करने हेतु नए नियम
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने अनाधिकृत निर्माणों को ध्वस्त करने से पहले एजेंसियों के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- ध्वस्तीकरण को अंतिम रूप देने से पहले नोटिस अवश्य दिया जाना चाहिये तथा व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर भी प्रदान किया जाना चाहिये।
मुख्य बिंदु
- ध्वस्तीकरण के नये नियम:
- अनिवार्य कारण बताओ सूचना एवं प्रतीक्षा अवधि:
- कारण बताओ सूचना जारी किये बिना कोई भी ध्वस्तीकरण कार्य नहीं किया जाना चाहिये।
- एजेंसियों को ध्वस्तीकरण का आदेश देने से पहले नोटिस प्राप्ति की तारीख से 15 दिन तक प्रतीक्षा करनी होगी। नियम अपील का अवसर प्रदान करते हैं, अंतिम आदेश के बाद 15 दिनों के लिये ध्वस्तीकरण में देरी होनी चाहिये।
- मालिकों/कब्ज़ेदारों को अनाधिकृत संरचनाओं को स्वयं हटाने या ध्वस्त करने के लिये 15 दिन का समय दिया जाना चाहिये।
- पारदर्शिता उपाय:
- नोटिस, उत्तर और आदेश सहित सभी कार्यों का दस्तावेजीकरण करने के लिये तीन महीने के भीतर एक डिजिटल पोर्टल स्थापित किया जाना चाहिये।
- नोटिस ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) कार्यालय को ईमेल के माध्यम से स्वचालित पावती के साथ भेजे जाने चाहिये।
- व्यक्तिगत सुनवाई के विवरण अवश्य दर्ज किये जाने चाहिये।
- विध्वंस आदेश एवं अनुपालन:
- अंतिम आदेश में निम्नलिखित का उल्लेख होना चाहिये:
- क्या संरचना समझौता योग्य है (शुल्क देकर नियमित किया जा सकता है)।
- अनाधिकृत/गैर-शमनीय भागों का विवरण।
- विध्वंस क्यों आवश्यक है?
- इन नियमों का पालन न करने पर अधिकारियों के विरुद्ध अवमानना कार्यवाही और अभियोजन चलाया जा सकता है।
- अंतिम आदेश में निम्नलिखित का उल्लेख होना चाहिये:
- कानूनी एवं प्रशासनिक टिप्पणियाँ:
- नये नियमों में कई कदम पहले से ही विभिन्न अधिनियमों के अंतर्गत मौजूद हैं।
- नई सुविधाओं का उद्देश्य ध्वस्तीकरण में पारदर्शिता और स्थिरता में सुधार लाना है।
- ज़ल्दबाजी में किये गए ध्वस्तीकरण और पुराने ध्वस्तीकरण आदेशों के लंबित रहने के कारण कदाचार और अनाधिकृत निर्माण को बढ़ावा मिलता है।
- नगर निगम के अधिकारियों ने अनुपालन की पुष्टि की और स्पष्ट किया कि अस्थायी अतिक्रमणों से उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम, 1959 के तहत निपटा जाएगा।
- अनिवार्य कारण बताओ सूचना एवं प्रतीक्षा अवधि:
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राजस्थान Switch to English
राजस्थान में नई सौर परियोजना
चर्चा में क्यों?
जैक्सन ग्रीन (भारत) और ब्लूलीफ एनर्जी (सिंगापुर) ने राजस्थान में 1 गीगावाट के सौर परियोजनाओं के विकास के लिये साझेदारी की है, जिसमें 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर (3,400 करोड़ रुपये) का निवेश किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- परियोजना का दायरा एवं समय-सीमा:
- 1 गीगावाट पोर्टफोलियो में ऋण और इक्विटी के माध्यम से वित्तपोषित तीन सौर परियोजनाएँ शामिल हैं।
- परियोजनाओं में अंतरराज्यीय (InSTS) और अंतरराज्यीय (ISTS) ट्रांसमिशन प्रणाली परियोजनाएँ शामिल हैं।
- राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RUVNL), भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड (SECI) और राष्ट्रीय जलविद्युत निगम लिमिटेड (NHPC) लिमिटेड से बोली के माध्यम से 25-वर्षीय विद्युत क्रय समझौते (PPA) प्राप्त किये गए।
- तीनों सौर परियोजनाओं के 2025-2026 के दौरान क्रमशः शुरू होने की संभावना है।
- नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार लक्ष्य:
- इस साझेदारी का लक्ष्य 2030 तक भारतीय ग्रिड में 5 गीगावाट से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा जोड़ना है।
- राजस्थान की परियोजनाएँ प्रतिवर्ष 1,800 GWh (गीगावाट घंटे) हरित ऊर्जा उत्पन्न करेंगी, जो 1.5 मिलियन घरों को विद्युत देने के लिये पर्याप्त होगी।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- इस परियोजना से 25 वर्षों में 22 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन को रोका जा सकेगा।
- यह सड़कों से 5 मिलियन कारों को हटाने के बराबर है।
- रोज़गार सृजन एवं आर्थिक लाभ:
- इस पहल से निर्माण और परिचालन चरणों के दौरान रोज़गार सृजित होंगे।
- वित्तीय एवं बैंकिंग सहायता:
- इस लेनदेन के लिये अर्न्स्ट एंड यंग (EY) को निवेश बैंकर के रूप में नियुक्त किया गया था।
- जैक्सन ग्रीन सुरक्षित ऋण सुविधाएँ:
- फर्स्ट अबू धाबी बैंक (मुंबई) से 2.96 बिलियन रुपए।
- HSBC (हांगकांग और शंघाई बैंकिंग कॉर्पोरेशन) से 600 मिलियन रुपए।
- यह निधि घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय EPC (इंजीनियरिंग, खरीद एवं निर्माण) परिचालनों को सहायता प्रदान करेगी।
विद्युत क्रय समझौता (PPA)
- ये विद्युत उत्पादकों और खरीददारों (आमतौर पर सार्वजनिक उपयोगिताओं) के बीच दीर्घकालिक समझौते (आमतौर पर 25 वर्ष) होते हैं।
- इसमें उत्पादकों को निश्चित दरों पर बिजली आपूर्ति करने के लिये प्रतिबद्ध करना शामिल है, जिससे महत्त्वपूर्ण उत्पादन क्षमता सुनिश्चित हो सके।
- वे अनुकूल नहीं होते और गतिशील बाज़ार स्थितियों के अनुकूल ढलने में असमर्थ होते हैं।
इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (EPC) मॉडल
- इस मॉडल के तहत लागत पूरी तरह से सरकार द्वारा वहन की जाती है।
- सरकार ने निजी कंपनियों से इंजीनियरिंग ज्ञान के लिये बोलियाँ आमंत्रित की हैं।
- कच्चे माल की खरीद और निर्माण लागत सरकार द्वारा वहन की जाती है।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी न्यूनतम है और यह केवल इंजीनियरिंग विशेषज्ञता के प्रावधान तक ही सीमित है।
- इस मॉडल की एक चुनौती यह है कि इससे सरकार पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है।
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बिहार Switch to English
बिहार सरकार ने मध्याह्न भोजन मेनू में किया बदलाव
चर्चा में क्यों?
बिहार सरकार ने राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन (पीएम पोषण शक्ति निर्माण या पीएम पोषण) मेनू में महत्त्वपूर्ण बदलावों की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य छात्रों को दिये जाने वाले भोजन के पोषण मूल्य और विविधता को बढ़ाना है।
मुख्य बिंदु
- भोजन में बदलाव इस उद्देश्य से किया गया है कि बच्चों को संतुलित और पोषणयुक्त आहार प्राप्त हो, जिससे उनके स्वास्थ्य में सुधार और अध्ययन के परिणामों में वृद्धि हो सके।
- इस अद्यतन मेनू में सोयाबीन और दाल जैसे प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों के साथ-साथ विभिन्न मौसमी सब्जियों को शामिल करने पर ज़ोर दिया गया है, ताकि छात्रों के लिये संतुलित आहार सुनिश्चित किया जा सके।
- मध्याह्न भोजन योजना स्कूली बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के लिये सरकार द्वारा शुरू की गई एक महत्त्वपूर्ण पहल है, जिससे छात्रों की उपस्थिति दर में वृद्धि होगी और उनके समग्र विकास को समर्थन मिलेगा।
- ये परिवर्तन बिहार के सभी सरकारी स्कूलों में लागू किये जाएँगे, जो बच्चों के लिये अधिक स्वस्थ और अनुकूल शिक्षण वातावरण को बढ़ावा देने के लिये राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
मध्याह्न भोजन योजना (MDMS)
- परिचय:
- मिड डे मिल स्कीम अर्थात् मध्याह्न भोजन योजना विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा स्कूल पोषण कार्यक्रम है, जो कक्षा 1 से 8 तक के सरकारी स्कूलों में नामांकित छात्रों को कवर करता है।
- इस योजना का मूल उद्देश्य स्कूलों में नामांकन बढ़ाना है।
- नोडल मंत्रालय: शिक्षा मंत्रालय
- पृष्ठभूमि: यह कार्यक्रम पहली बार 1925 में मद्रास नगर निगम में वंचित बच्चों के लिये शुरू किया गया था।
- केंद्र सरकार ने 1995 में कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के लिये पायलट आधार पर एक केंद्र प्रायोजित योजना शुरू की थी और अक्तूबर 2007 तक MDMS को कक्षा 8 तक बढ़ा दिया गया था।
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उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में वनाग्नि पर प्रभावी नियंत्रण
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्य वन संरक्षक (CCF) को अत्यधिक संवेदनशील ज़िलों में वनाग्नि के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिये हैं।
मुख्य बिंदु
- अग्नि नियंत्रण हेतु नोडल अधिकारियों की नियुक्ति:
- वन विभाग के 10 वरिष्ठ अधिकारियों को ज़िला स्तरीय नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया।
- उनकी भूमिका बेहतर अग्नि प्रबंधन के लिये ज़िला स्तर पर संसाधनों और विभागों का समन्वय करना है।
- ज़िला स्तर पर प्रबंधन, नियंत्रण, निगरानी, सहयोग और समन्वय को दृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- अग्नि-पूर्व मौसम की तैयारियाँ:
- उत्तराखंड वन विभाग ने वनों में आग लगने के मौसम से पहले नोडल अधिकारियों की नियुक्ति के लिये एक कार्यालय आदेश जारी किया है।
- नोडल अधिकारी अग्नि प्रबंधन तैयारियों और ज़िला स्तरीय नियंत्रण उपायों की समीक्षा करेंगे।
- अग्नि नियंत्रण में सामुदायिक भागीदारी:
- इसके साथ ही, वन अग्नि नियंत्रण एवं प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने के लिये उत्तराखंड वन विभाग अल्मोड़ा वन प्रभाग के अंतर्गत राज्य के सभी प्रभागों में 'शीतलाखेत' मॉडल को दोहराने के लिये फील्ड कर्मियों, राज्य पर्यावरण प्राधिकरण (SEA) और वन अग्नि प्रबंधन समितियों के साथ अनुसंधान कर रहा है।
- अल्मोड़ा वन प्रभाग के अंतर्गत विकसित 'शीतलाखेत' मॉडल को राज्य के सभी प्रभागों में अपनाया जा रहा है।
जंगल की आग (वनाग्नि)
- वन की आग को झाड़ी या वनस्पति की आग या वनाग्नि भी कहा जाता है, इसे किसी प्राकृतिक सेटिंग जैसे जंगल, चरागाह, ब्रशलैंड या टुंड्रा में पौधों के किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन का उपभोग करता है और पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे, हवा, स्थलाकृति) के आधार पर विस्तारित होता है।
- जंगल में लगी आग को जलाने के लिये ईंधन, ऑक्सीजन और ऊष्मा स्रोत जैसे तीन आवश्यक तत्त्वों की आवश्यकता होती है।
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