राजस्थान Switch to English
राजस्थान भारत में हरित ऊर्जा की ओर अग्रसर
चर्चा में क्यों?
हाल के दिनों में, राजस्थान ने 26,800 मेगावाट से अधिक स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के साथ हरित ऊर्जा में भारत के परिवर्तन का नेतृत्व किया है।
मुख्य बिंदु:
- राजस्थान ने वर्ष 2023-24 के पहले 10 महीनों में 39,300 मिलियन यूनिट हरित ऊर्जा का उत्पादन किया, जो वर्ष 2019-20 की इसी अवधि की तुलना में तीन गुना अधिक है।
- राजस्थान में, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का योगदान इसकी विद्युत उत्पादन क्षमता का 64.5% है, जो इसके ऊर्जा पोर्टफोलियो में गुजरात के 47% नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण से काफी अधिक है।
- पवन ऊर्जा उत्पन्न करने में राजस्थान पहले ही तमिलनाडु को पीछे छोड़कर नंबर एक राज्य बन गया है।
पाँच पंचामृत लक्ष्य
- UNFCCC COP 26 में, प्रधानमंत्री ने पाँच पंचामृत लक्ष्यों का अनावरण किया, जिनमें शामिल हैं:
- वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट (GW) गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता हासिल करना।
- वर्ष 2030 तक भारत की 50% ऊर्जा आवश्यकता को नवीकरणीय ऊर्जा (RE) स्रोतों से पूरा करना।
- वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 45% कम करना।
- वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करना।
- वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना।
हरियाणा Switch to English
हरियाणा ने PM कुसुम के तहत 24,484 सौर जल पंपों के लिये विजेताओं की घोषणा की
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (HAREDA) ने प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान योजना (PM कुसुम) के घटक B के हिस्से के रूप में 24,484 सौर जल पंपिंग सिस्टम के प्रावधान, स्थापना और कमीशनिंग के लिये अनुबंध दिये हैं।
मुख्य बिंदु:
- PM कुसुम का घटक B कृषि सिंचाई उद्देश्यों के लिये दो मिलियन स्वतंत्र सौर जल पंपों की स्थापना पर केंद्रित है।
- यह परियोजना व्यक्तिगत किसानों, जल उपयोगकर्त्ता संघों, पशु आश्रयों, किसान-उत्पादक संगठनों, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों और समुदाय-आधारित सिंचाई प्रणालियों जैसे कई लाभार्थियों को लक्षित करती है।
PM कुसुम क्या है?
- परिचय:
- PM-कुसुम भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य सौर ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देकर कृषि क्षेत्र में बदलाव लाना है।
- यह मांग-संचालित दृष्टिकोण पर कार्य करती है। विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) से प्राप्त मांगों के आधार पर क्षमताओं का आवंटन किया जाता है।
- विभिन्न घटकों और वित्तीय सहायता के माध्यम से PM-कुसुम का लक्ष्य 31 मार्च, 2026 तक 30.8 गीगावाट की महत्त्वपूर्ण सौर ऊर्जा क्षमता वृद्धि हासिल करना है।
- PM-कुसुम का उद्देश्य:
- कृषि क्षेत्र का डी-डिजिटलाइज़ेशन: इस योजना का उद्देश्य सौर ऊर्जा संचालित पंपों और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित करके सिंचाई के लिये डीज़ल पर निर्भरता को कम करना है। इसका उद्देश्य सौर पंपों के उपयोग के माध्यम से सिंचाई लागत को कम करके और उन्हें ग्रिड को अधिशेष सौर ऊर्जा बेचने में सक्षम बनाकर किसानों की आय में वृद्धि करना है।
- किसानों के लिये जल और ऊर्जा सुरक्षा: सौर पंपों तक पहुँच प्रदान करके तथा सौर-आधारित सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं को बढ़ावा देकर, इस योजना का उद्देश्य किसानों के लिये जल एवं ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना है।
- पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश: स्वच्छ और नवीकरणीय सौर ऊर्जा को अपनाकर इस योजना का उद्देश्य पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के कारण होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को कम करना है।
- घटक:
- घटक-A: किसानों की बंजर/परती/चरागाह/दलदली/कृषि योग्य भूमि पर 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत ग्राउंड/स्टिल्ट माउंटेड सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना।
- घटक-B: ऑफ-ग्रिड क्षेत्रों में 20 लाख स्टैंड-अलोन सौर पंपों की स्थापना।
- घटक-C: 15 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सोलराइज़ेशन: व्यक्तिगत पंप सोलराइज़ेशन और फीडर लेवल सोलराइज़ेशन।
हरियाणा Switch to English
विभिन्न राज्यों के लिये मनरेगा मज़दूरी दरें संशोधित
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत मज़दूरी को संशोधित किया गया है, जिसमें विभिन्न राज्यों के लिये 4 से 10% के बीच बढ़ोतरी की गई है।
मुख्य बिंदु:
- इस योजना के तहत अकुशल श्रमिकों के लिये हरियाणा में सबसे अधिक मज़दूरी दर 374 रुपए प्रतिदिन है, जबकि अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड में सबसे कम 234 रुपए है।
- इस योजना के तहत वर्ष 2023 मज़दूरी दरों में वृद्धि की गई है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में उन परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हैं, उन्हें एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिनों की गारंटीकृत मज़दूरी रोज़गार प्रदान करना है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS)
- परिचय: मनरेगा विश्व के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- लॉन्च:
- इसे 2 फरवरी 2006 को लॉन्च किया गया था
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम 23 अगस्त 2005 को पारित किया गया था।
- उद्देश्य:
- योजना का प्राथमिक उद्देश्य किसी भी ग्रामीण परिवार के सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है।
- कार्य का कानूनी अधिकार:
- पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत मनरेगा का उद्देश्य अधिकार-आधारित ढाँचे के माध्यम से चरम निर्धनता के कारणों का समाधान करना है।
- लाभार्थियों में कम-से-कम एक-तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये।
- मज़दूरी का भुगतान न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में कृषि मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी के अनुरूप किया जाना चाहिये।
- मांग-प्रेरित योजना:
- मनरेगा की रूपरेखा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग यह है कि इसके तहत किसी भी ग्रामीण वयस्क को मांग करने के 15 दिनों के भीतर काम पाने की कानूनी रूप से समर्थित गारंटी प्राप्त है, जिसमें विफल होने पर उसे 'बेरोज़गारी भत्ता' प्रदान किया जाता है।
- यह मांग-प्रेरित योजना श्रमिकों के स्व-चयन (Self-Selection) को सक्षम बनाती है।
- विकेंद्रीकृत योजना:
- इन कार्यों के योजना निर्माण और कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ सौंपकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को सशक्त करने पर बल दिया गया है।
- अधिनियम में आरंभ किये जाने वाले कार्यों की सिफारिश करने का अधिकार ग्राम सभाओं को सौंपा गया है और इन कार्यों को कम-से-कम 50% उनके द्वारा ही निष्पादित किया जाता है।
बिहार Switch to English
केंद्र सरकार ने 13 महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी रद्द कर दी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बोलीदाताओं से खराब प्रतिक्रिया के बाद केंद्र ने महत्त्वपूर्ण खनिज बोलियों के पहले दौर में प्रस्तावित 20 ब्लॉकों में से 13 की नीलामी रद्द कर दी है।
मुख्य बिंदु:
- इन 13 महत्त्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों को, जिन्हें खराब प्रतिक्रिया मिली, उनमें ग्लौकोनाइट, निकल, क्रोमियम और प्लैटिनम समूह तत्त्व (PGE), पोटाश आदि शामिल हैं। वे बिहार, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में फैले हुए हैं।
- PGE- प्लैटिनम, पैलेडियम, रोडियम, रूथेनियम, इरिडियम और ऑस्मियम ऐसी धातुएँ हैं जिनके भौतिक एवं रासायनिक गुण समान होते हैं तथा प्रकृति में एक साथ पाए जाते हैं।
- इससे पहले सरकार ने जून 2023 में देश के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले 30 खनिजों की सूची जारी की थी। इनमें एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, ताँबा, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हेफनियम, इंडियम, लिथियम, मोलिब्डेनम, नाइओबियम, निकल, प्लैटिनम समूह तत्त्व (PGE), फॉस्फोरस और पोटाश शामिल हैं।
- रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंटियम, टैंटलम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, ज़िरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व (REE) भी इस सूची में मौजूद थे।
महत्त्वपूर्ण खनिज:
- महत्त्वपूर्ण खनिज ऐसे खनिज हैं जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं।
- इन खनिजों की उपलब्धता की कमी या कुछ भौगोलिक स्थानों में निष्कर्षण या प्रसंस्करण की एकाग्रता से आपूर्ति शृंखला की भेद्यता और यहाँ तक कि आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों की घोषणा:
- यह एक गतिशील प्रक्रिया है और यह समय के साथ नई प्रौद्योगिकियों, बाज़ार की गतिशीलता एवं भू-राजनीतिक विचारों के उभार के साथ विकसित हो सकती है।
- विभिन्न देशों के पास अपनी विशिष्ट परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के आधार पर महत्त्वपूर्ण खनिजों की अपनी विशिष्ट सूची हो सकती है।
- खान मंत्रालय के तहत विशेषज्ञ समिति ने भारत के लिये 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों के एक समूह की पहचान की है।
मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश में पहली बार सहकारी समितियाँ RTI के दायरे में
चर्चा में क्यों?
एक हालिया ऐतिहासिक आदेश में, मध्य प्रदेश में अनाज खरीद और राशन दुकानों के संचालन में शामिल सभी सहकारी समितियों को तत्काल प्रभाव से सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI), 2005 के दायरे में खरीद लिया गया है।
मुख्य बिंदु:
- राज्य सूचना आयुक्त (SIC) ने पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये ज़िला पोर्टल पर राशन दुकान विक्रेता के वेतन का सक्रिय खुलासा करना भी अनिवार्य कर दिया है।
- इसका उद्देश्य सहकारी समितियों को RTI अधिनियम के अधीन करके किसानों और आम नागरिकों के लिये न्याय सुनिश्चित करना है।
सहकारी समितियाँ:
- परिचय:
- सहकारी समितियाँ बाज़ार में सामूहिक सौदेबाज़ी की शक्ति का उपयोग करने के लिये लोगों द्वारा ज़मीनी स्तर पर बनाई गई संस्थाएँ हैं।
- इसमें विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाएँ हो सकती हैं, जैसे कि एक सामान्य लाभ प्राप्त करने के लिये सामान्य संसाधन या साझा पूंजी का उपयोग करना, जो अन्यथा किसी व्यक्तिगत निर्माता के लिये प्राप्त करना मुश्किल होगा।
- कृषि में सहकारी डेयरी, चीनी मिलें, कताई मिलें आदि उन किसानों के एकत्रित संसाधनों (Pooled Resources) से बनाई जाती हैं जो अपनी उपज को संसाधित करना चाहते हैं।
- सहकारी समितियाँ बाज़ार में सामूहिक सौदेबाज़ी की शक्ति का उपयोग करने के लिये लोगों द्वारा ज़मीनी स्तर पर बनाई गई संस्थाएँ हैं।
- क्षेत्राधिकार:
- सहकारिता, संविधान के तहत एक राज्य का विषय है जिसका अर्थ है कि वे राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं लेकिन कई समितियाँ हैं जिनके सदस्य और संचालन के क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं।
- बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (MSCS) अधिनियम, 2002 के तहत एक से अधिक राज्यों की सहकारी समितियाँ पंजीकृत हैं।
- इनके निदेशक मंडल में उन सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है जिनमें वे कार्य करते हैं।
- इन समितियों का प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रण केंद्रीय रजिस्ट्रार के पास है एवं कानून यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार का कोई भी अधिकारी उन पर नियंत्रण नहीं रख सकता है।
राज्य सूचना आयोग (SIC)
- इसका गठन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
- इसमें एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (SCIC) और अधिकतम 10 SIC होते हैं जिनकी नियुक्ति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा की जाती है।
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