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उत्तर प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 25 Feb 2025
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सोलर डिहाइड्रेशन टेक्नोलॉजी

चर्चा में क्यों?

किसानों की आय बढ़ाने और फसल की बर्बादी को कम करने के उद्देश्य से IIT कानपुर ने एक नई सौर निर्जलीकरण तकनीक (Solar Dehydration Technology) विकसित की है।

मुख्य बिंदु 

  • उद्देश्य:
    • यह तकनीक फलों और सब्ज़ियों को सौर ऊर्जा के माध्यम से सुखाने की सुविधा प्रदान करती है। यह एक कुशल और टिकाऊ तरीका है।
    • इसका उद्देश्य किसानों की आमदनी बढ़ाना और फसल की बर्बादी को कम करना है।
    • किसान इस तकनीक का उपयोग करके अपनी फसलों को लंबे समय तक संरक्षित रख सकते हैं और उचित मूल्य मिलने पर उन्हें बेच सकते हैं।
  • लाभ:
    • सोलर डिहाइड्रेशन एक पर्यावरण अनुकूल तरीका है, जो ऊर्जा की बचत करता है और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
    • सौर ऊर्जा का उपयोग करने से परंपरागत ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता कम होती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम
    • इस पहल के तहत हाल ही में 30 किसानों को सोलर डिहाइड्रेशन तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया है। किसानों को टमाटर के प्री-ट्रीटमेंट और सोलर ड्राईिंग की लाइव डेमोंस्ट्रेशन दी गई, जिससे वे इस तकनीक को अपनी खेती में लागू कर सकेंगे। 
  • अन्य संस्थाओं का सहयोग:
    • इस प्रोजेक्ट में NABARD का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा है। 
    • इसके साथ ही, CSJM विश्वविद्यालय के फूड प्रोसेसिंग विभाग के साथ मिलकर इस तकनीक के लिये स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) और गुणवत्ता प्रोटोकॉल तैयार किये गए हैं।

नाबार्ड (NABARD) 

  • नाबार्ड कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये एक शीर्ष बैंक है। 
  • इसकी स्थापना शिवरमन समिति की सिफारिशों के आधार पर संसद के एक अधिनियम द्वारा 12 जुलाई, 1982 को की गई थी। 
  • इसका कार्य कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों के संवर्द्धन और विकास के लिये ऋण प्रवाह को उपलब्ध कराना है।
  • इसके साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के अन्य संबद्ध आर्थिक क्रियाओं को समर्थन प्रदान कर गाँवों का सतत् विकास करना है।

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गंगा जल की शुद्धता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाकुंभ 2025 में गंगा जल की शुद्धता को लेकर संदेह दूर करने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने एक विज्ञप्ति जारी की।

मुख्य बिंदु 

मुद्दे के बारे में:

  • गंगा जल की शुद्धता का दावा:
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने एक विज्ञप्ति जारी कर एक वैज्ञानिक के हवाले से महाकुंभ में गंगा जल की शुद्धता के बारे में ‘संदेह को दूर’ करने का प्रयास किया और कहा कि नदी का जल ‘क्षारीय जल की तरह’ शुद्ध है।
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के संदर्भ में यह विज्ञप्ति जारी की है, जिसमें महाकुंभ में गंगा जल की गुणवत्ता पर संदेह जताया गया था।
  • CPCB की रिपोर्ट:
    •  CPCB की रिपोर्ट में कहा गया था कि महाकुंभ की शुरुआत में संगम पर पानी की जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) 3.94 मिलीग्राम प्रति लीटर थी।
    • 14 जनवरी को यह 2.28 मिलीग्राम प्रति लीटर और 15 जनवरी को घटकर 1 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई।
    • हालाँकि 24 जनवरी को BOD बढ़कर 4.08 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई और 29 जनवरी को यह 3.26 मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई।
  • डॉ. अजय कुमार सोनकर का शोध:
    • पद्मश्री डॉ. अजय कुमार सोनकर ने गंगा जल की पवित्रता को साबित करने के लिये वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ संदेह को खारिज किया।
    • उन्होंने महाकुंभ के विभिन्न प्रमुख स्नान घाटों से पानी के नमूने एकत्र किये और उनकी सूक्ष्म जाँच की।
    • उन्होंने पाया कि करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान के बावजूद गंगा जल में बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं हुई।
    • पानी के Ph स्तर में भी कोई गिरावट नहीं देखी गई।
  • प्राकृतिक वायरस की उपस्थिति:
    • गंगा जल में 1,100 प्रकार के प्राकृतिक वायरस, जिसे "बैक्टीरियोफेज" कहा जाता है, होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करते हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB):

जैविक ऑक्सीजन मांग (Biological Oxygen Demand-BOD):

  • ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है, वह BOD कहलाती है। 
  • जल प्रदूषण की मात्रा को BOD के माध्यम से मापा जाता है। परंतु BOD के माध्यम से केवल जैव अपघटक का पता चलता है साथ ही यह बहुत लंबी प्रक्रिया है। इसलिये BOD को प्रदूषण मापन में प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • गौरतलब है कि उच्च स्तर के BOD का मतलब पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा को विघटित करने हेतु अत्यधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।


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