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राज्य स्तरीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार 2024
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सरकार ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत राष्ट्रीय प्रयासों के साथ जुड़कर ऊर्जा संरक्षण पर ज़ोर दे रही है।
इन पुरस्कारों का उद्देश्य विशेष रूप से बढ़ती पर्यावरणीय चिंताओं के आलोक में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने में विभिन्न क्षेत्रों में योगदान को मान्यता देना है।
मुख्य बिंदु
- पुरस्कार का उद्देश्य:
- ऊर्जा दक्षता प्रथाओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले उद्योगों, वाणिज्यिक भवनों, सरकारी संस्थानों, शैक्षिक संस्थानों, अस्पतालों और व्यक्तियों को मान्यता देकर ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना।
- नियामक ढाँचा: ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 पर आधारित , जो मार्च 2002 में लागू हुआ, जिसमें ऊर्जा संसाधनों के कुशल उपयोग के लिये दिशानिर्देश निर्धारित किये गए।
- प्रशासनिक निकाय:
- हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (Haryana Renewable Energy Development Agency- HAREDA) हरियाणा के भीतर अधिनियम के प्रावधानों के समन्वय, विनियमन और प्रवर्तन के लिये ज़िम्मेदार राज्य नामित एजेंसी (State Designated Agency- SDA) के रूप में कार्य करती है। यह हरियाणा के अक्षय ऊर्जा विभाग के अधिकार क्षेत्र में है।
- पुरस्कार श्रेणियाँ:
- पात्र क्षेत्र: उद्योग, वाणिज्यिक भवन, सरकारी संस्थान, शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, नगर निकाय और व्यक्ति।
- मानदंड: मान्यता ऊर्जा संरक्षण के लिये अभिनव उपायों, नवीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग और ऊर्जा उपयोग में दक्षता सुधार पर आधारित है। विशिष्ट क्षेत्रों में शामिल हैं:
- ऊर्जा संरक्षण में नवाचार
- ऊर्जा-कुशल प्रथाओं को अपनाना
- ऊर्जा में अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएँ
- पुरस्कार विवरण:
- पुरस्कार में 2 लाख रुपए तक की राशि शामिल है, जो पुरस्कार की विशिष्ट श्रेणी पर निर्भर करता है। पुरस्कार का उद्देश्य विजेताओं द्वारा ऊर्जा-बचत के प्रयासों को प्रोत्साहित करना और वित्तीय रूप से समर्थन देना है।
- ये पुरस्कार विद्युत् की खपत को कम करने और सतत् विकास को समर्थन देने के राज्य के व्यापक प्रयासों का हिस्सा हैं।
- हालिया घटनाक्रम:
- वर्ष 2024 संस्करण इन पहलों को जारी रखता है, संस्थानों और व्यक्तियों को ऊर्जा संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने वाले आवेदन प्रस्तुत करने के लिये प्रोत्साहित करता है। आवेदन प्रस्तुत करने की समय सीमा और दिशा-निर्देश हरियाणा अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (HAREDA) की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध कराए गए हैं।
ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001
- नियामक ढाँचा
- ऊर्जा दक्षता अधिनियम ऊर्जा दक्षता के लिये मानक और नीतियाँ स्थापित करता है, तथा केंद्र और राज्य सरकारों को ऊर्जा उपयोग को विनियमित करने का अधिकार देता है।
- ऊर्जा लेखापरीक्षा
- प्राधिकारी उन भवनों के ऊर्जा लेखापरीक्षा (Audits) का निर्देश दे सकते हैं जहाँ ऊर्जा-गहन उद्योग संचालित होते हैं।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE)
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) का गठन EC अधिनियम के कार्यक्रमों की देखरेख और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया गया था। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो के कार्यों में प्रमाणन, जन जागरूकता अभियान और पायलट परियोजनाएँ शामिल हैं।
- कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग
- ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 सरकार को कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना शुरू करने की अनुमति देता है।
- ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र
- सरकार उन उद्योगों को ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र जारी कर सकती है जो अपनी आवंटित ऊर्जा से कम ऊर्जा खपत करते हैं। ये प्रमाणपत्र उन ग्राहकों को विक्रय किये जा सकते हैं जो अपनी आवंटित ऊर्जा से ज़्यादा खपत करते हैं।
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मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने एग्जिट पोल की आलोचना की
चर्चा में क्यों?
भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) ने एग्जिट पोल की विश्वसनीयता और मतगणना के रुझानों के समय से पहले प्रदर्शित होने पर चिंता जताई है। उन्होंने हाल के हरियाणा चुनावों का उदाहरण देते हुए कहा कि एग्जिट पोल ने अवास्तविक उम्मीदें उत्पन्न कीं और राजनीतिक चिंताओं को जन्म दिया।
मुख्य बिंदु
- एग्जिट पोल द्वारा विकृति:
- एक्जिट पोल प्रायः अवास्तविक उम्मीदें स्थापित करते हैं, जिसके कारण अनुमानित और वास्तविक चुनाव परिणामों के बीच काफी अंतर हो जाता है।
- हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनाव में अधिकांश एग्जिट पोल में कॉन्ग्रेस की बड़ी जीत की भविष्यवाणी की गई थी, जिसमें 50 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन वास्तविक नतीजे इन उम्मीदों से मेल नहीं खाते।
- इससे जनता और राजनीतिक दलों में निराशा उत्पन्न हो गई तथा कॉन्ग्रेस ने एग्जिट पोल की सटीकता पर चिंता जताई।
- प्रारंभिक गणना प्रवृत्तियों का समय से पहले प्रदर्शन:
- कुछ समाचार चैनलों ने आधिकारिक मतगणना शुरू होने से पहले शुरुआती रुझान प्रसारित किये, जिससे गलत सूचना और अटकलों को बढ़ावा मिला।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने इस प्रथा की "बकवास" कहकर आलोचना की तथा कहा कि गणना से पहले दिखाए गए प्रारंभिक रुझान का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तथा इससे जनता गुमराह हो सकती है।
- उन्होंने बताया कि वास्तविक मतगणना प्रक्रिया सुबह 8:30 बजे के बाद शुरू होती है तथा सत्यापित परिणाम सुबह 9:30 बजे के बाद निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर पोस्ट किये जाते हैं।
- स्व-नियमन का आह्वान:
- यद्यपि निर्वाचन आयोग सीधे तौर पर एग्जिट पोल को नियंत्रित नहीं करता है, फिर भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने आग्रह किया कि मीडिया और मतदान की निगरानी करने वाली नियामक संस्थाओं को एग्जिट पोल प्रथाओं में सुधार लाने के लिये कड़ा रुख अपनाना चाहिये।
- विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये नमूना आकार, मतदान स्थान और डेटा संग्रह विधियों जैसे कारकों सहित एग्जिट पोल पद्धति में पारदर्शिता आवश्यक है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि मीडिया और मतदान एजेंसियों को नियंत्रित करने वाली संस्थाओं को चुनावों के दौरान गलत सूचना से बचने के लिये बेहतर कार्यप्रणाली लागू करनी चाहिये।
- एक्जिट पोल पद्धति के मुद्दे:
- एक्जिट पोल, मतदान केंद्र से बाहर निकलते समय मतदाताओं के साथ किये गए साक्षात्कारों पर आधारित होते हैं, लेकिन उनकी सटीकता एकत्रित आँकड़ों की गुणवत्ता और नमूने की प्रतिनिधिता पर निर्भर करती है।
- एग्जिट पोल के पीछे की कार्यप्रणाली, जिसमें नमूने का आकार और प्रतिनिधित्व (जाति, धर्म और भूगोल जैसे विभिन्न मतदाता प्रोफाइल को प्रतिबिंबित करना ) शामिल है, पोल की सटीकता निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- स्विंग मॉडल और भविष्यवाणी की चुनौतियाँ:
- एग्जिट पोल पिछले चुनाव के वोट शेयर अनुमानों के आधार पर सीट आवंटन की भविष्यवाणी करने के लिये स्विंग मॉडल का उपयोग करते हैं।
- हालाँकि, हरियाणा जैसे जटिल राजनीतिक माहौल में, जहाँ विभिन्न पार्टियाँ और गठबंधन शामिल हैं, ये स्विंग मॉडल अक्सर मतदाता व्यवहार में बदलाव अथवा गठबंधन में बदलाव को पकड़ने में विफल रहते हैं।
भारत निर्वाचन आयोग
- परिचय:
- भारत का निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य निर्वाचन प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार है।
- इसकी स्थापना संविधान के अनुसार 25 जनवरी 1950 को (राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है) की गई थी। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में है।
- यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं तथा देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिये होने वाले निर्वाचनों का संचालन करता है।
- इसका राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के निर्वाचनों से कोई संबंध नहीं है। इसके लिये भारत के संविधान में अलग से राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 324: चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण निर्वाचन आयोग में निहित होगा।
- अनुच्छेद 325: किसी भी व्यक्ति को धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी विशेष मतदाता सूची में शामिल होने के लिये अपात्र नहीं ठहराया जा सकता या शामिल होने का दावा नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 326: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
- अनुच्छेद 327: विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति।
- अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल की ऐसे विधानमंडल के लिये चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति।
- अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप पर प्रतिबंध।
- निर्वाचन आयोग की संरचना:
- मूलतः निर्वाचन आयोग में केवल एक निर्वाचन आयुक्त होता था, लेकिन निर्वाचन आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 के बाद इसे बहुसदस्यीय निकाय बना दिया गया।
- निर्वाचन आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की संख्या (यदि कोई हो) शामिल होगी, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर निर्धारित करें।
- वर्तमान में, इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त (EC) शामिल हैं।
- राज्य स्तर पर निर्वाचन आयोग को मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
- आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यकाल:
- राष्ट्रपति, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 के अनुसार करते हैं।
- उनका कार्यकाल निश्चित रूप से छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन और सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य होंगी।
- हटाना:
- वे किसी भी समय त्यागपत्र दे सकते हैं या कार्यकाल समाप्त होने से पहले भी हटाए जा सकते हैं।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से केवल संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही हटाया जा सकता है, जबकि निर्वाचन आयुक्तों को केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है।
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