एग्जिट पोल
प्रिलिम्स के लिये:एग्जिट पोल, लोकसभा चुनाव, विकासशील समाज अध्ययन पीठ (CSDS), निर्वाचन आयोग, संविधान का अनुच्छेद 324 मेन्स के लिये:चुनाव के नतीजों पर एग्जिट पोल का प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पाँच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना तथा मिज़ोरम के एग्जिट पोल के नतीजे जारी किये गए।
- हाल के कई चुनावों में एग्जिट पोल अविश्वसनीय रहे हैं, जिससे विरोधाभासी परिणाम सामने आए हैं।
एग्जिट पोल क्या हैं?
- एग्जिट पोल मतदाताओं के साथ किया जाने वाला सर्वेक्षण है, जब वे निर्वाचन के दौरान मतदान केंद्र से बाहर निकलते हैं।
- इसका उद्देश्य लोगों ने कैसे मतदान किया तथा उनकी जनसांख्यिकीय विशेषताओं के बारे में जानकारी एकत्रित करना है।
- ये सर्वेक्षण आधिकारिक परिणाम घोषित होने से पूर्व चुनाव परिणामों के प्रारंभिक पूर्वानुमान प्रदान करते हैं।
- वर्ष 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन द्वारा एक एग्जिट पोल आयोजित किया गया था।
एग्जिट पोल की सटीकता का आकलन कैसे किया जा सकता है?
- सैंपलिंग के तरीके: एग्जिट पोल आयोजित करने में प्रयोग किये जाने वाले सैंपलिंग तरीकों की विश्वसनीयता महत्त्वपूर्ण है। एक स्पष्ट रूप से तैयार किया गया तथा प्रतिनिधियों की प्रतिदर्श संख्या से सटीक परिणाम प्राप्त होने की अधिक संभावना है।
- एक अच्छे अथवा सटीक, जनमत सर्वेक्षण के लिये कुछ सामान्य मानदंड आवश्यक हैं जिसमें एक बड़ा और विविध नमूना तथा बिना किसी पूर्वाग्रह के स्पष्ट रूप से निर्मित प्रश्नावली शामिल है।
- संरचित प्रश्नावली: सर्वेक्षण, एग्जिट पोल की तरह, फोन पर अथवा व्यक्तिगत रूप से संरचित प्रश्नावली का उपयोग कर कई उत्तरदाताओं का साक्षात्कार करके डेटा एकत्र करते हैं।
- सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ के अनुसार, "एक संरचित प्रश्नावली के बिना, डेटा को न तो सुसंगत रूप से एकत्र किया जा सकता है तथा न ही वोट शेयर अनुमान पर पहुँचने के लिये व्यवस्थित रूप से विश्लेषण किया जा सकता है।"
- जनसांख्यिकीय प्रतिनिधित्व: यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सर्वेक्षण की गई आबादी जनसांख्यिकी रूप से समग्र मतदान आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। यदि कुछ समूहों का प्रतिनिधित्व अधिक या कम है, तो यह भविष्यवाणियों की सटीकता को प्रभावित कर सकता है।
- एक बड़ा प्रतिदर्श आकार महत्त्वपूर्ण है, लेकिन जो सबसे ज्यादा मायने रखता है वह यह है कि प्रतिदर्श कितनी अच्छी तरह से प्रतिदर्श के आकार के बजाय बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।
एग्जिट पोल की क्या आलोचनाएँ की जाती हैं?
- एग्जिट पोल को संचालित करने वाली एजेंसी यदि पक्षपाती है तो निष्कर्ष विवादास्पद हो सकते हैं।
- ये सर्वेक्षण प्रश्नों के चयन, शब्दों और समय तथा प्रतिदर्श की प्रकृति से प्रभावित हो सकते हैं।
- आलोचकों ने तर्क दिया कि कई ओपिनियन और एग्जिट पोल उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा प्रेरित एवं प्रायोजित होते हैं तथा जनता की भावनाओं या विचारों को प्रतिबिंबित करने के बजाय चुनाव में मतदाताओं द्वारा चुने गए विकल्पों पर विकृत प्रभाव डाल सकते हैं।
भारत में एग्जिट पोल का नियमन कैसे होता है?
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए उसमें उल्लिखित अवधि के दौरान प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से एग्जिट पोल के संचालन और उनके परिणामों के प्रसार पर रोक लगाती है, यानी पहले चरण में मतदान शुरू होने के निर्धारित घंटे और आधे घंटे के बीच। सभी राज्यों में अंतिम चरण के लिये मतदान समाप्ति के निर्धारित समय के बाद।
- एग्जिट पोल के उपयोग को विनियमित करने के लिये चुनाव आयोग ज़िम्मेदार है। चुनाव आयोग के मुताबिक, एग्जिट पोल केवल एक निश्चित अवधि के दौरान ही आयोजित किये जा सकते हैं। यह अवधि मतदान केंद्र बंद होने के समय से शुरू होती है और अंतिम बूथ बंद होने के 30 मिनट बाद समाप्त होती है।
- मतदान अवधि के दौरान अथवा मतदान के दिन एग्जिट पोल आयोजित नहीं किये जा सकते।
- संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग द्वारा दिशा-निर्देश समाचार पत्रों और समाचार चैनलों को चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों एवं एग्जिट पोल के नतीजे प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- निर्वाचन आयोग समाचार पत्रों और चैनलों को एग्जिट एवं ओपिनियन पोल के नतीजों को प्रसारित करने के अतिरिक्त मतदाताओं की प्रतिदर्श संख्या, मतदान प्रक्रिया का विवरण, त्रुटि की संभावना तथा मतदान एजेंसी की पृष्ठभूमि के बारे में बताना अनिवार्य करता है।
- आखिरी चरण का मतदान पूरा होने तक एग्जिट पोल के प्रकाशन पर प्रतिबंध रहेगा।
- एग्जिट पोल के प्रकाशन पर प्रतिबंध के अतिरिक्त निर्वाचन आयोग एग्जिट पोल आयोजित करने वाले सभी मीडिया आउटलेट का आयोग के साथ पंजीकृत होना अनिवार्य करता है।
आगे की राह
- पारदर्शिता और ठोस मतदान प्रणाली:
- एग्जिट पोल आयोजित करने की पद्धति में पारदर्शिता के महत्त्व पर बल दिया जाना चाहिये।
- मतदान एजेंसियों को मतदाताओं की प्रतिदर्श संख्या के आकलन के तरीके, प्रश्नावली संरचना और प्रतिवादी चयन के मानदंड जैसे विवरणों का खुलासा करना चाहिये।
- नियामक सुधार:
- उभरती चुनौतियों का समाधान करने और एग्जिट पोल परिणामों की रिपोर्टिंग में निष्पक्षता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिये निर्वाचन अधिकारियों, मीडिया और मतदान एजेंसियों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों से परिष्कृत दिशा-निर्देश तैयार किये जा सकते हैं।
- निर्वाचन प्राधिकारियों के साथ सहयोग:
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मतदान एजेंसियों और निर्वाचन अधिकारियों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इसके लिये निर्वाचन आयोग चुनावी प्रक्रिया के विषय में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है, मतदाता जनसांख्यिकी पर डेटा साझा कर सकता है तथा एग्जिट पोल के कारण होने वाले संभावित व्यवधानों को कम करने के उपाय प्रस्तुत कर सकता है।
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
मेन्स:प्रश्न. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम.) के इस्तेमाल के संबंधी हाल के विवाद के आलोक में भारत में चुनावों की विश्वस्यता सुनिश्चित करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? (2018) प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017) |