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बिहार में सतत् विकास
चर्चा में क्यों?
कॉर्नेल विश्वविद्यालय में टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन (TCI) के अनुसार, बिहार कृषि क्षेत्र में तीन परिवर्तनकारी तकनीकों को लागू करके सतत् विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर सकता है।
मुख्य बिंदु:
- नीति संक्षिप्त में इस बात पर बल दिया गया है कि बिहार चावल उत्पादन और पशु-पालन से जुड़े ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम कर सकता है, उत्पादकता को बनाए रखते हुए यहाँ तक कि सुधार भी कर सकता है।
- नीति संक्षिप्त में TCI की शून्य-भूख, शून्य-कार्बन खाद्य प्रणाली परियोजना के भीतर किये गए एक अध्ययन पर चर्चा की गई है, जिसका उद्देश्य उत्पादकता के स्तर को बनाए रखते हुए बिहार में कृषि उत्सर्जन को कम करने की रणनीति विकसित करना है।
- भारत के GHG उत्सर्जन में राष्ट्रीय स्तर पर कृषि का योगदान 20% है, जिसमें बिहार कुपोषण से प्रभावित राज्यों में से एक है, खासकर छोटे बच्चों में।
- TCI शोध के अनुसार, बिहार धान की कृषि के लिये वैकल्पिक नमी और शुष्कता, मवेशियों के प्रजनन के लिये उन्नत कृत्रिम गर्भाधान तथा अपने पशुधन क्षेत्र में एंटी-मीथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट्स को अपनाकर प्रत्येक वर्ष 9.4-11.2 मीट्रिक टन उत्सर्जन कम कर सकता है।
- शोध से पता चलता है कि वैकल्पिक नमी और शुष्कता, उन्नत प्रजनन तकनीक तथा एंटी-मीथेनोजेनिक फीड बिहार को उत्पादकता को नुकसान पहुँचाए बिना अपने कृषि उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- नीति में बिहार के चार कृषि जलवायु क्षेत्रों में से प्रत्येक के लिये उत्सर्जन में कमी का विवरण प्रस्तुत किया गया। वैकल्पिक नमी और शुष्कता के लिये बिहार के दक्षिण-पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में सबसे अधिक संभावित शमन स्तर हैं।
- बिहार के चार कृषि जलवायु क्षेत्र: ज़ोन-I, उत्तरी जलोढ़ मैदान, ज़ोन-II, उत्तर पूर्व जलोढ़ मैदान, ज़ोन-III A दक्षिण पूर्व जलोढ़ मैदान और ज़ोन-III B, दक्षिण पश्चिम जलोढ़ मैदान।
नोट: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने एंटी-मीथेनोजेनिक फ़ीड सप्लीमेंट ‘हरित धारा’ (HD) विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन भी बढ़ सकता है
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बिहार के लिये विशेष श्रेणी का दर्जा
चर्चा में क्यों?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से विशेष श्रेणी का दर्जा दिये जाने की राज्य की पुरानी मांग को दोहराया।
- इस दर्जे से बिहार को केंद्र से मिलने वाले कर राजस्व में वृद्धि होगी।
मुख्य बिंदु:
- मुख्य चिंताओं में से एक बिहार की प्रति व्यक्ति आय का कम होना है, जो देश में सबसे कम ₹60,000 के आस-पास है। इसके अलावा, राज्य विभिन्न मानव विकास संकेतकों में राष्ट्रीय औसत से पीछे है।
- इसके अलावा, बिहार की राजकोषीय स्थिति पर राज्य के विभाजन जैसे कारकों का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिसके कारण उद्योग झारखंड के हिस्से में चले गए, सिंचाई के लिये पर्याप्त जल संसाधनों की कमी और लगातार प्राकृतिक आपदाएँ आईं।
- बिहार के वर्ष 2022 के जाति आधारित सर्वेक्षण से पता चलता है कि राज्य के लगभग एक तिहाई लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं।
- वर्ष 2023 में, बिहार सरकार ने अनुमान लगाया कि विशेष श्रेणी का दर्जा दिये जाने से राज्य को 94 लाख करोड़ गरीब परिवारों के कल्याण पर खर्च करने के लिये पाँच वर्षों में अतिरिक्त 2.5 लाख करोड़ रुपए प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- ऐतिहासिक रूप से, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को कमज़ोर कानून व्यवस्था के कारण वृद्धि में धीमी गति तथा उच्च गरीबी स्तर का सामना करना पड़ा, जिससे विकास को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले निवेश हतोत्साहित हुए।
- लेकिन अब, देश के सबसे तेज़ी से बढ़ते राज्यों में से एक के रूप में न्यूनतम बिंदु से प्रारंभ करने के बावजूद, बिहार ने हाल के वर्षों में अपनी प्रति व्यक्ति आय के स्तर और अपनी समग्र अर्थव्यवस्था के आकार को तेज़ गति से बढ़ाने में सफलता प्राप्त की है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2022-23 में बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) राष्ट्रीय औसत 7.2% के मुकाबले 10.6% बढ़ा, जबकि वास्तविक रूप से प्रति व्यक्ति आय का स्तर वर्ष 2023 में 9.4% बढ़ा।
विशेष श्रेणी का दर्जा (Special Category Status- SCS)
- परिचय:
- विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) एक वर्गीकरण है जो केंद्र द्वारा कुछ राज्यों को भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक प्रतिकूलताओं के आधार पर विकास में सहायता के लिये दिया जाता है।
- यह योजना पाँचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर वर्ष 1969 में शुरू की गई थी।
- राज्य को विशेष दर्जा देने के लिये विचारणीय कारक:
- पहाड़ी और दुर्गम
- कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा
- अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर रणनीतिक स्थान
- आर्थिक और अवसंरचनात्मक पिछड़ापन
- राज्य के वित्त की गैर-व्यवहार्य प्रकृति
- 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है।
- विशेष दर्जा प्राप्त राज्य: अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा तथा उत्तराखंड।
उत्तराखंड Switch to English
'होम ऑफ हिमालयाज़' पहल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB) ने सुरम्य आदि कैलाश और ओम पर्वत के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये प्राइम फोकस टेक्नोलॉजीज़ (PFT) के साथ साझेदारी की है। PFT अपनी AI क्षमता और असाधारण मीडिया सेवाओं के लिये प्रसिद्ध है।
- इस साझेदारी का उद्देश्य 'होम ऑफ हिमालयाज़' पहल के तहत क्षेत्र के वीडियो बनाना है।
मुख्य बिंदु:
- UTDB और PFT के बीच सहयोग से उत्तराखंड को वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी, जिससे इसके विविध परिदृश्य, समृद्ध विरासत एवं अद्वितीय पर्यटन अनुभव प्रदर्शित होंगे।
- PFT द्वारा शुरू की गई "होम ऑफ हिमालयाज़" पहल दो प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित है:
- उत्तराखंड पर्यटन ब्रांड पहचान को नया स्वरूप देना
- पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री तैयार करना।
- 'होम ऑफ हिमालयाज़' पहल वैश्विक मान्यता की ओर उत्तराखंड की यात्रा में एक परिवर्तनकारी उपलब्धि है।
उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB)
- यह राज्य में पर्यटन से संबंधित सभी मामलों पर सरकार को सलाह देता है। वैधानिक बोर्ड की अध्यक्षता उत्तराखंड सरकार के पर्यटन मंत्री करते हैं और उत्तराखंड के मुख्य सचिव इसके उपाध्यक्ष हैं।
- पर्यटन के प्रमुख सचिव/सचिव मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं। इसमें निजी क्षेत्र से पाँच गैर-सरकारी सदस्य और पर्यटन से संबंधित मामलों के विशेषज्ञ भी होते हैं।
आदि कैलाश और ओम पर्वत
- आदि कैलाश को शिव , छोटा कैलाश, बाबा कैलाश या जोंगलिंगकोंग चोटी के नाम से जाना जाता है, यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में हिमालय पर्वत शृंखला में स्थित एक पर्वत है।
- ओम पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा का भी एक हिस्सा है, जिसमें तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की यात्रा शामिल है।
- आदि कैलाश और ओम पर्वत के पूजनीय पर्वत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में भारत-चीन सीमा पर स्थित हैं।
- भगवान शिव के भक्तों के लिये दोनों चोटियाँ धार्मिक महत्त्व रखती हैं।
झारखंड Switch to English
आदिवासियों के भूमि अधिकार और SC/ST अधिनियम
चर्चा में क्यों?
हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को आदेश दिया कि वे आदिवासी लोगों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने तथा उन संपत्तियों पर उनका स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिये त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया जहाँ विवादों के बाद न्यायालय के निर्णय उनके पक्ष में आए हैं।
- इस बात पर ज़ोर देते हुए कि अनुसूचित जनजातियाँ सबसे अधिक हाशिये पर और वंचित जनसंख्या रही हैं, अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत पंजीकृत सभी मामलों का प्राथमिकता के आधार पर निपटारा किया जाए।
मुख्य बिंदु:
- भारतीय संविधान 'जनजाति' शब्द को परिभाषित करने का प्रयास नहीं करता है, तथापि, 'अनुसूचित जनजाति' शब्द को संविधान में अनुच्छेद 342 (i) के माध्यम से शामिल किया गया था।
- 'राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात, लोक अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों के भागों या उनके समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये यथा स्थिति, उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में "अनुसूचित जातियाँ" समझा जाएगा।
- संविधान की पाँचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्र वाले प्रत्येक राज्य में एक जनजाति सलाहकार परिषद स्थापित करने का प्रावधान है।
- आदिवासी समुदायों के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक है सुरक्षित भूमि अधिकारों की कमी। कई जनजातियाँ वन क्षेत्रों या दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहती हैं जहाँ भूमि और संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को अक्सर मान्यता नहीं दी जाती है, जिसके कारण विस्थापन तथा भूमि का अलगाव होता है।
- SC/ST अधिनियम 1989 संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो SC और ST समुदायों के सदस्यों के विरुद्ध भेदभाव पर रोक लगाने तथा उनके विरुद्ध अत्याचार को रोकने के लिये बनाया गया है।
- यह अधिनियम 11 सितंबर 1989 को भारतीय संसद में पारित किया गया तथा 30 जनवरी 1990 को अधिसूचित किया गया।
झारखंड Switch to English
अबुआ आवास योजना
चर्चा में क्यों?
हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री ने ‘अबुआ आवास’ योजना के प्रथम चरण में 2 लाख घरों के निर्माण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के निर्देश दिये तथा इस योजना में अनियमितता एवं लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर ज़ोर दिया।
मुख्य बिंदु:
- यह योजना पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने नवंबर 2023 में उन लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिये शुरू की थी जो PM आवास योजना (PMAY) के तहत लाभ से वंचित थे।
- अबुआ आवास योजना (वर्ष 2023 में शुरू) के तहत, राज्य सरकार अगले दो वर्षों में 15,000 करोड़ रुपए से अधिक व्यय करके ज़रूरतमंद लोगों को अपने स्वयं की निधि से आवास प्रदान करेगी।
- योजना के तहत गरीबों, वंचितों, मज़दूरों, किसानों, आदिवासियों, पिछड़ों और दलितों को 3 कमरे के आवास उपलब्ध करवाएँ जाएँगे।
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY)
- यह एक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक 2 करोड़ (20 मिलियन) आवास बनाने का लक्ष्य रखते हुए शहरी गरीबों को किफायती घर उपलब्ध कराना है।
- इस योजना के दो मूल घटक हैं:
- प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY-U) शहरी गरीब लोगों की आवास आवश्यकताओं पर ध्यान देती है। शहरी गरीबों को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है, जो वार्षिक घरेलू आय पर निर्भर करते हैं:
- (i) आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS), (ii) निम्न आय वर्ग (LIG) (iii) मध्यम आय वर्ग (MIG)। इसके अतिरिक्त, शहरी जनसंख्या के भीतर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग भी इस योजना के लिये आवेदन कर सकते हैं।
- प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY-R) ग्रामीण भारत में रहने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों को संपत्ति का मालिक बनने में सहायता करने के लिये लाई गई है। ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में आवासों में सभी आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ होंगी, जैसे-विद्युत, स्वच्छ जल, एक अच्छी तरह से विकसित सीवेज सिस्टम, एक स्वच्छता सुविधा आदि।
- प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY-U) शहरी गरीब लोगों की आवास आवश्यकताओं पर ध्यान देती है। शहरी गरीबों को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है, जो वार्षिक घरेलू आय पर निर्भर करते हैं:
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