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उत्तर प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 09 Apr 2025
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भारत रत्न पंडित रविशंकर जयंती

चर्चा में क्यों?

7 अप्रैल, 2025  को सितार वादक और संगीतकार पंडित रविशंकर की 103वीं जयंती मनाई गई

मुख्य बिंदु   

  • पंडित रविशंकर के बारे में: 

 

  • पंडित रविशंकर, जिनका जन्म 7 अप्रैल, 1920 को वाराणसी में हुआ था, भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान सितारवादक और संगीतकार थे। 
  • उनका मूल नाम रवींद्र शंकर चौधरी था और वे अपने पिता श्याम शंकर चौधरी और माता हेमांगिनी देवी के सातवें पुत्र थे।
  • 18 साल की उम्र में उन्होंने सितार सीखना शुरू किया और इसके लिये मैहर के उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा ली। 
  • उन्होंने 25 वर्ष की आयु में प्रसिद्ध गीत "सारे जहाँ से अच्छा" की पुनः रचना की। 
  • उन्होंने वर्ष 1949 से 1956 तक नई दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो के संगीत निदेशक के रूप में कार्य किया। 
  • इसके बाद, 1960 के दशक में वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन और जॉर्ज हैरीसन के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी और प्रस्तुतियाँ दीं, जिससे इसे पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय बनाने में मदद मिली। 
  • पंडित रवि शंकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी दुनिया से परिचित कराया। 
  • वीटल्स के जॉर्ज हैरीसन ने उन्हें 'विश्व संगीत का गॉडफादर' बताया।
  • वर्ष 1986 से 1992 तक वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे।
  • 11 दिसंबर, 2012 को 92 वर्ष की आयु में उनका निधन गया। 
    • सम्मान और पुरस्कार
      • यूनेस्को सद्भावना राजदूत (1999): सांस्कृतिक योगदान के लिये नियुक्त।
      • पद्म भूषण (1967): भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
      • पद्म विभूषण (1981): असाधारण सेवा के लिये दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार।
      • कालिदास सम्मान (1986): भारतीय शास्त्रीय संगीत में उत्कृष्टता के लिये मध्य प्रदेश का प्रमुख पुरस्कार।
      • संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1987): भारत में संगीत के क्षेत्र में श्रेष्ठता का प्रतीक।
      • ग्रैमी पुरस्कार (चार बार): 2013 में मरणोपरांत लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित, विभिन्न श्रेणियों में सम्मानित।
      • उन्हें वर्ष 1999 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त उन्हे अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं: 

    भारतीय शास्त्रीय संगीत

    • परिचयः
      • शास्त्रीय भारतीय संगीत, संगीत का एक जटिल और प्राचीन रूप है जिसकी जड़ें हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों में निहित हैं, जो लगभग 1500 ईसा पूर्व के हैं। 
      • इसे दो मुख्य परंपराओं में विभाजित किया गया है: हिंदुस्तानी संगीत, (जो उत्तर भारत में प्रचलित है) और कर्नाटक संगीत (जो दक्षिण भारत में लोकप्रिय) है।
    • ऐतिहासिक पृष्ठभूमिः 
      • भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति सामवेद जैसे प्राचीन ग्रंथों से हुई है, जो इसकी गहन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं भारतीय परंपराओं से संबंध को प्रदर्शित करता है।
    • महत्त्व 
      • शास्त्रीय संगीत में गुरु-शिष्य परंपरा (शिक्षक-शिष्य परंपरा) की प्रमाणिकता को संरक्षित करते हुए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ज्ञान एवं कौशल का हस्तांतरण सुनिश्चित हुआ है।
      • शास्त्रीय संगीत में नियमों तथा परंपराओं (जैसे कि राग प्रणाली, जो पीढ़ियों से चली आ रही है) का पालन किया गया है, जिससे भारत की संगीत विरासत का संरक्षण सुनिश्चित हुआ है।
      • शास्त्रीय संगीत एक सामान्य सांस्कृतिक सूत्र के रूप में कार्य करते हुए विविध पृष्ठभूमि के लोगों को एकजुट करने में भूमिका निभाता है। 
      • इसकी क्षेत्रीय, भाषायी एवं धार्मिक बाधाओं को कम करने के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में भूमिका है।
      • शास्त्रीय संगीत में विभिन्न क्षेत्रीय शैलियों एवं वाद्ययंत्रों का समायोजन शामिल है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता का परिचायक है। इस समावेशिता से विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव तथा समन्वय को बढ़ावा मिलता है।


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    उत्तर प्रदेश अग्निशमन विभाग गोवा सरकार से सम्मानित

    चर्चा में क्यों?

    1 अप्रैल, 2025 को गोवा सरकार ने उत्तर प्रदेश अग्निशमन विभाग को सम्मानित किया।

    मुख्य बिंदु

    • मुद्दे के बारे में:
      • यह सम्मान समारोह गोवा के अग्निशमन और आपातकालीन सेवा निदेशालय द्वारा प्रदान किया गया।
      • गोवा की राजधानी पणजी में इस सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।
      • यह सम्मान महाकुंभ 2025, प्रयागराज में उत्कृष्ट अग्निशमन और आपदा प्रबंधन सेवाओं के लिये दिया गया।
    • अग्निशमन विभाग की उपलब्धियाँ:
      • 45 दिनों में 185 आग की घटनाओं को नियंत्रित किया, जिनमें से 24 बड़ी आग की घटनाएँ थीं।
      • इसके अलावा, लगभग 86 छोटी आग की घटनाओं पर तुरंत काबू पा लिया गया। 
      • लगभग 16.5 करोड़ रुपए के संभावित नुकसान को बचाया गया।

    कुंभ मेले के बारे में:

    • वर्ष 2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित किया गया, जिसमें 66.30 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आए। 
    • 'कुंभ' शब्द की उत्पत्ति 'कुंभक' (अमरता के अमृत का पवित्र घड़ा) धातु से हुई है।
    • पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्द्धन ने प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन प्रारंभ किया।
    • यह तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है जिसके दौरान प्रतिभागी पवित्र नदी में स्नान या डुबकी लगाते हैं। यह समागम 4 अलग-अलग जगहों पर होता है, अर्थात्:
      • हरिद्वार में गंगा के तट पर।
      • उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर।
      • नासिक में गोदावरी (दक्षिण गंगा) के तट पर।
      • प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर


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