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चौखंबा III पर पर्वतारोहियों का बचाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दो विदेशी पर्वतारोहियों, मिशेल थेरेसा ड्वोरक (अमेरिका) और फे जेन मैनर्स (ब्रिटेन) को उत्तराखंड के चमोली ज़िले में चौखंबा III चोटी के निकट 6,015 मीटर की ऊँचाई से बचाया गया ।
मुख्य बिंदु
- चौखंबा:
- यह भारत के उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय के गंगोत्री समूह में बद्रीनाथ के पश्चिम में स्थित एक पर्वत शृंखला है। इसमें उत्तर-पूर्व-दक्षिण-पश्चिम रिज के साथ चार शिखर हैं:
- चौखंबा I: 7,138 मीटर (23,419 फीट)
- चौखंबा II: 7,070 मीटर (23,196 फीट)
- चौखंबा III: 6,995 मीटर (22,949 फीट)
- चौखंबा IV: 6,854 मीटर (22,487 फीट)
- यह भारत के उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय के गंगोत्री समूह में बद्रीनाथ के पश्चिम में स्थित एक पर्वत शृंखला है। इसमें उत्तर-पूर्व-दक्षिण-पश्चिम रिज के साथ चार शिखर हैं:
- यह पर्वत गंगोत्री ग्लेशियर के शीर्ष पर स्थित है, जो समूह का पूर्वी आधार है तथा इसकी सबसे ऊँची चोटी चौखंबा I, गंगोत्री शृंखला की सबसे ऊँची चोटी है ।
चमोली ज़िला
- चमोली भारत के उत्तराखंड राज्य का एक जिला है, जिसका प्रशासनिक मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित है।
- यह उत्तर में तिब्बत और उत्तराखंड के कई ज़िलों से घिरा है, जिनमें पिथौरागढ, बागेश्वर, अल्मोडा, पौडी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी शामिल हैं।
- चमोली कई धार्मिक और पर्यटन स्थलों जैसे बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी के लिये प्रसिद्ध है।
- ऐतिहासिक दृष्टि से, चमोली चिपको आंदोलन के जन्मस्थान के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, जो एक अग्रणी पर्यावरण अभियान था।
गंगोत्री ग्लेशियर
- गंगोत्री ग्लेशियर उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित है।
- गंगोत्री ग्लेशियर गढ़वाल हिमालय में चौखंबा पर्वतमाला की उत्तरी ढलान से निकलता है। यह लगभग 30 किमी. लंबा और 0.5 से 2.5 किमी. चौड़ा है।
- गंगोत्री एक घाटी ग्लेशियर नहीं है, बल्कि कई अन्य हिमनदों का एक संयोजन है। इस ग्लेशियर में तीन मुख्य सहायक नदियाँ शामिल हैं, जिनके नाम हैं रक्तवरन (15.90 किमी.), चतुरंगी (22.45 किमी.) और कीर्ति (11.05 किमी.) और 18 से अधिक अन्य सहायक ग्लेशियर।
- गंगा की मुख्य सहायक नदियों में से एक भागीरथी गंगोत्री ग्लेशियर से प्रवाहित होती है। गंगा की पाँच मुख्य धाराएँ हैं - भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, धौलीगंगा और पिंडर, ये सभी उत्तरी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र से निकलती हैं।
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उत्तराखंड में 6,500 फीट की ऊँचाई पर देखा गया मोर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले में 6,500 फीट की असामान्य ऊँचाई पर मोर देखे गए, जो बढ़ती मानवीय गतिविधियों के कारण पारिस्थितिक परिवर्तन का संकेत है।
मुख्य बिंदु
- आमतौर पर 1,600 फीट की ऊँचाई पर दिखने वाला मोर, काफलीगैर (अप्रैल) और कठायतबारा (अक्तूबर) वन शृंखलाओं में देखा गया।
- विशेषज्ञों का मानना है कि मानवीय विस्तार के कारण अधिक ऊँचाई पर गर्म परिस्थितियाँ इस पक्षी के ऊँचाई की ओर प्रवास का कारण हो सकती हैं।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India- WII) के विशेषज्ञों का सुझाव है कि यह मौसमी बदलाव हो सकता है, क्योंकि सर्दियों का निम्न तापमान पक्षी को पीछे हटने के लिये प्रेरित कर सकता है।
मोर
- ‘पीफाउल’, मोर की विभिन्न प्रजातियों का सामूहिक नाम है। नर मोर को ‘पीकॉक’ (Peacock) कहा जाता है, जबकि मादा मोर को ‘पीहेन’ (Peahen) कहा जाता है।
- मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी भी है।
- मोर (पावो क्रिस्टेटस) फासियानिडे परिवार से संबंधित है। ये उड़ने वाले सभी पक्षियों में सबसे बड़े हैं।
- ‘फासियानिडे’ एक ‘तीतर’ परिवार है, जिसके सदस्यों में जंगली अथवा घरेलू मुर्गी, मोर, तीतर और बटेर शामिल हैं।
- मोर की दो सबसे अधिक पहचानी जाने वाली प्रजातियाँ हैं:
- नीला मोर/भारतीय मोर भारत और श्रीलंका में पाया जाता है।
- हरा या जावाई मोर (पावो म्यूटिकस) म्याँमार (बर्मा) और जावा में पाया जाता है।
- पर्यावास:
- भारतीय मोर, मूलतः भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।
- यह प्रजाति वर्तमान में सबसे अधिक मध्य केरल में पाई जाती है, इसके बाद राज्य के दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम हिस्सों का स्थान है।
- वर्तमान में केरल में तकरीबन 19% क्षेत्र इस प्रजाति का आवासीय क्षेत्र है और यह वर्ष 2050 तक 40-50% तक बढ़ सकता है।
- वे वनों के किनारों और कृषियोग्य क्षेत्रों में रहने के लिये अच्छी तरह से अनुकूलित हैं।
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उत्तराखंड में जलविद्युत परियोजना को हरित मंजूरी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड में फाटा ब्युंग जलविद्युत परियोजना के लिये नई मंजूरी पर्यावरण, वन और वन्यजीव मंजूरी पर निर्भर है।
मुख्य बिंदु
- परियोजना:
- यह रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी नदी पर 76 मेगावाट की रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना है।
- वर्ष 2013 में बादल प्रस्फोटन से आई बाढ़ के दौरान इस परियोजना को अत्यधिक नुकसान हुआ था।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वन एवं राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife- NBWL) की मंजूरी पर ज़ोर दिया।
- चिंताएँ:
- हिमनद झील के प्रस्फोटन से आने वाली बाढ़ एक बड़ी चिंता का विषय है।
- इस स्थल के निकट 24 झीलें हैं, जिनमें से 6 को गंभीर माना गया है।
मंदाकिनी नदी
- यह उत्तराखंड में अलकनंदा नदी की एक सहायक नदी है ।
- यह नदी रुद्रप्रयाग और सोनप्रयाग क्षेत्रों के बीच लगभग 81 किलोमीटर तक बहती है और चोराबाड़ी ग्लेशियर से निकलती है।
- मंदाकिनी नदी सोनप्रयाग में सोनगंगा नदी से मिल जाती है और उखीमठ में मध्यमहेश्वर मंदिर के पास से बहती है।
- अपने मार्ग के अंत में यह अलकनंदा में गिरती है, जो गंगा में मिल जाती है।
हिमनद झील के प्रस्फोटन से बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood- GLOF)
- परिचय:
- हिमनद झील के प्रस्फोटन से आने वाली बाढ़ विनाशकारी होती है, यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब हिमनद झील का बाँध कमज़ोर हो जाता है और जल तेज़ प्रवाह के साथ बहने लगता है।
- इस प्रकार की बाढ़ आमतौर पर हिमनदों के तेज़ी से पिघलने, अत्यधिक वर्षा, झील में जल के बढ़ने के कारण आती है।
- फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में अचानक बाढ़ आई, जिसके बारे में संदेह है कि यह GLOF के कारण आई थी।
- कारण:
- ये बाढ़ अनेक कारकों से उत्पन्न हो सकती है, जिनमें हिमनद के आयतन में परिवर्तन, झील के जल स्तर में परिवर्तन और भूकंप शामिल हैं।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय के अधिकांश भागों में जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के पीछे हटने से अनेक नई हिमानी झीलों का निर्माण हुआ है, जो GLOF का प्रमुख कारण हैं।
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