उत्तर प्रदेश Switch to English
ऑपरेशन भेड़िया
चर्चा में क्यों
हाल ही में वन विभाग ने मेहसी तहसील में भेड़ियों के एक झुंड के हमलों की एक शृंखला के बाद ‘ऑपरेशन भेड़िया (Wolf)’ शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप पिछले 45 दिनों में छह बच्चों और एक महिला की मौत हो गई और लगभग 30 घायल हो गए।
मुख्य बिंदु
- ऑपरेशन भेड़िया: इसका उद्देश्य हाल के हमलों के लिये ज़िम्मेदार भेड़ियों के एक झुंड को पकड़ना और बेअसर करना है।
- प्रौद्योगिकियाँ और रणनीतियाँ: भेड़ियों का पता लगाने और उन पर नज़र रखने के लिये ड्रोन कैमरों एवं थर्मल ड्रोन मैपिंग का उपयोग।
- भेड़ियों को सुरक्षित रूप से पकड़ने के लिये उन्हें बेहोश करने की मंज़ूरी मिल गई है।
- मुख्य वन्यजीव वार्डन अनुसूची I के किसी वन्यजीव के शिकार की अनुमति दे सकते हैं, यदि वह मानव के लिये खतरा उत्पन्न करता है तथा इसके लिये कारण बताते हुए लिखित आदेश जारी कर सकते हैं।
- भेड़िया: इसे IUCN द्वारा "सबसे कम चिंताजनक (Least Concern)" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध किया गया है और CITES के परिशिष्ट I में शामिल किया गया है।
- WPA, 1972 में अनुसूचियाँ:
- अनुसूची I: कठोर दंड के साथ लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करता है; कुछ विशिष्ट मामलों को छोड़कर शिकार पर प्रतिबंध लगाता है (जैसे- काला हिरण, हिम तेंदुआ)।
- अनुसूची II: कुछ प्रजातियों के लिये उच्च सुरक्षा और व्यापार निषेध (जैसे- असमिया मैकाक, भारतीय कोबरा)।
- अनुसूची III और IV: उल्लंघन के लिये कम दंड के साथ गैर-लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करता है (जैसे- चीतल, फ्लेमिंगो)।
- अनुसूची V: उन कृमि प्रजातियों की सूची बनाता है जिनका शिकार किया जा सकता है (जैसे- सामान्य कौवे, चूहे)।
- अनुसूची VI: निर्दिष्ट पौधों की खेती और व्यापार को नियंत्रित करता है, जिसके लिये पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है (जैसे- नीला वांडा, कुथ)।
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भूस्खलन से बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भूस्खलन के कारण भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाला ज्योतिर्मठ-मलारी मार्ग तथा कर्णप्रयाग-ग्वालदम राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध हो गया।
मुख्य बिंदु
- भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन से पागलनाला, पातालगंगा और नंदप्रयाग में राजमार्ग अवरुद्ध हो गया है।
- ज्योतिर्मठ-मलारी मार्ग: नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के भीतर एक ऊँची पहाड़ी सड़क, जो ज्योतिर्मठ (1,934 मीटर) और मलारी (3,033 मीटर) को जोड़ती है।
- धौलीगंगा नदी के किनारे अत्यधिक ढलान और कई घुमावदार मोड़ हैं, जो सर्दियों में बर्फबारी एवं नदी के बाढ़ के कारण समय-समय पर क्षति का सामना करते हैं।
- धौलीगंगा: इसका उद्गम वसुधारा ताल से होता है, जो संभवतः उत्तराखंड की सबसे बड़ी हिमनद झील है।
- धौलीगंगा अलकनंदा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में से एक है, अन्य सहायक नदियाँ नंदाकिनी, पिंडर, मंदाकिनी और भागीरथी हैं।
- यह विष्णुप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है।
- नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान: भारत के उत्तराखंड में नंदा देवी (7,816 मीटर) की चोटी के आस-पास स्थित; इसमें नंदा देवी अभयारण्य शामिल है, जो चोटियों से घिरा एक हिमनद बेसिन है और ऋषि गंगा द्वारा अपवाहित है।
- वर्ष 1982 में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित, इसका नाम बदलकर नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया; वर्ष 1988 में इसे UNESCO विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया गया।
भूस्खलन
- भूस्खलन गुरुत्वाकर्षण के कारण ढलान से नीचे चट्टान, धरती या मलबे की गति है, जो अक्सर भारी बारिश, भूकंप या ढलान की अस्थिरता जैसे कारकों से शुरू होती है। इसके परिणामस्वरूप सामग्री का विस्थापन होता है, जिससे महत्त्वपूर्ण क्षति और विनाश हो सकता है।
मध्य प्रदेश Switch to English
दो नए ज़िलों का प्रस्ताव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश में नए ज़िले बनाने की तैयारी की जा रही है, जिसमें संभवतः सागर ज़िले से बीना और छिंदवाड़ा ज़िले से जुन्नारदेव को शामिल किया जाएगा, जिससे कुल ज़िलों की संख्या 57 हो जाएगी।
मुख्य बिंदु:
- बीना: सागर ज़िले में मालवा के पठार पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण रेलवे जंक्शन और औद्योगिक शहर।
- जुन्नारदेव: छिंदवाड़ा ज़िले की एक तहसील जिसे ज़िला का दर्जा दिलाने के लिये प्रयास जारी हैं। अगर इसे ज़िला बनाया जाता है तो इसमें परासिया और अन्य विधानसभा क्षेत्र शामिल हो सकते हैं।
- हाल के ज़िला गठन:
- मैहर: सितंबर 2023 में सतना ज़िले से अलग होकर 55वाँ ज़िला बना। इसमें दो विधानसभा क्षेत्र और तीन सीमेंट कारखाने हैं।
- पांढुर्णा: यह 54वाँ ज़िला बना, जो दलहन फसलों के लिये प्रसिद्ध छिंदवाड़ा ज़िले से पांढुर्णा और सौसर तहसीलों को मिलाकर बनाया गया।
- मऊगंज: 15 अगस्त, 2023 को रीवा ज़िले से अलग होकर 53वाँ ज़िला बना, जिसमें चार तहसील और दो विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।
- छोटे ज़िले बनाने के लाभ:
- छोटे ज़िलों का विकास आसान होता है, जनता और प्रशासन के बीच बेहतर संवाद होता है, सरकारी योजनाओं का तेज़ी से क्रियान्वयन होता है तथा कानून-व्यवस्था में सुधार होता है।
- वित्तीय स्वतंत्रता और सड़क, विद्युत् तथा जल जैसी आवश्यक सेवाओं तक बेहतर पहुँच।
- प्रस्तावित नए ज़िले: उज्जैन से नागदा और गुना से चाचौड़ा नये ज़िले प्रस्तावित हैं, जिन पर चर्चा कमल नाथ सरकार के दौरान शुरू हुई थी।
मालवा का पठार
- यह पठार ज्वालामुखी मूल का है और इसका नाम "मालवा" संस्कृत शब्द "मालव" से लिया गया है, जो धन की देवी लक्ष्मी के निवास के हिस्से को संदर्भित करता है।
- मालवा का पठार उत्तर-मध्य भारत में स्थित है, जो मध्य प्रदेश और दक्षिण-पूर्वी राजस्थान को कवर करता है। यह मध्य भारत पठार, बुंदेलखंड उच्च भूमि, विंध्य पर्वतमाला एवं गुजरात के मैदानों से घिरा हुआ है।
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जागर लोक संस्कृति उत्सव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने जागर लोक संस्कृति उत्सव में राज्य की समृद्ध लोक संस्कृति का जश्न मनाया और सच्चिदानंद सेमवाल की पुस्तक उत्तराखंड का लोक पुत्र प्रीतम भरतवाण का विमोचन किया तथा उत्तराखंड की लोक संस्कृति के ब्रांड एंबेसडर के रूप में प्रीतम भरतवाण की प्रशंसा की।
मुख्य बिंदु:
- जागर लोक संस्कृति उत्सव: यह उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपराओं का उत्सव है।
- जागर: यह शमनवाद का एक हिंदू रूप है जो उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों क्षेत्रों में प्रचलित है।
- शमनवाद एक वैश्विक आध्यात्मिक अभ्यास है, जिसमें एक शमन आत्मिक विश्व के साथ बातचीत करने, उपचार करने, आत्माओं के साथ संवाद करने और आत्माओं का मार्गदर्शन करने के लिये चेतना की परिवर्तित अवस्था में प्रवेश करता है।
- एक अनुष्ठान के रूप में जागर एक तरीका है जिसमें देवताओं और स्थानीय देवताओं को उनकी सुप्त अवस्था से जगाया जाता है तथा उनसे अनुग्रह या उपाय मांगे जाते हैं।
- प्रीतम भरतवाण: वे उत्तराखंड की पारंपरिक संस्कृति और लोक कलाओं को बढ़ावा देने के लिये जाने जाते हैं।
- सरकार द्वारा पुनरुद्धार और मान्यता प्रयास:
- पारंपरिक मेलों को उनके मूल स्वरूप में पुनरुद्धार करने और कलाकारों को बेहतर मंच प्रदान करने के प्रयास चल रहे हैं।
- जागर गायन शैली को मान्यता दिलाने के लिये पहल की जा रही है।
- गुरु-शिष्य परंपरा और कला दीर्घाओं के माध्यम से लोक कला एवं संस्कृति से संबंधित लिपियों के संरक्षण तथा प्रकाशन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
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पितृ छाया एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने मंदिरों के दर्शन के लिये मुंबई से उत्तराखंड तक एक विशेष ट्रेन चलाने की योजना की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु
- पितृ छाया एक्सप्रेस: यह ट्रेन पूर्वजों के सम्मान के लिये समर्पित है, जो हरिद्वार में तर्पण, ऋषिकेश, पंच प्रयाग और बद्रीनाथ में ब्रह्म कपाल जैसे महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थलों को कवर करती है।
- यह श्राद्ध (पितृ पक्ष) अवधि के दौरान पूर्वजों को "तर्पण" करने की हिंदू परंपरा से मेल खाता है।
नोट: मानसखंड एक्सप्रेस एक और ट्रेन है जो जून 2024 में शुरू हुई है, जो उत्तराखंड के लोकप्रिय स्थलों को कवर करती है, जिसमें ट्रेन यात्रा, भोजन, राज्य के भीतर सड़क यात्रा, दर्शनीय स्थल एवं होटल या होमस्टे में आवास शामिल हैं।
- कवर किये गए गंतव्य: पुनागिरी मंदिर, नानकमत्ता गुरुद्वारा, चंपावत में चाय बागान, हाट कालिका मंदिर, पाताल भुवनेश्वर मंदिर, जागेश्वर मंदिर, गोलू देवता मंदिर, कैंची धाम, कसार देवी मंदिर, सूर्य मंदिर कटारमल और नैना देवी मंदिर।
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