उधवा झील | झारखंड | 03 Feb 2025
चर्चा में क्यों?
रामसर अभिसमय ने भारत में चार नए आद्रभूमियों को मान्यता प्रदान की है, जिससे देश में ऐसे नामित स्थलों की कुल संख्या बढ़कर 89 हो गई है।
मुख्य बिंदु
- रामसर सूची में नए नाम शामिल:
- सक्कराकोट्टई पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु)
- थेरथंगल/ तीर्थंगल/ Therthangal पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु)
- खेचेओपलरी वेटलैंड (सिक्किम)
- उधवा झील (झारखंड)
- राज्यवार वितरण:
- तमिलनाडु में भारत में सबसे अधिक रामसर स्थल हैं, जहाँ 20 आर्द्रभूमियाँ हैं।
- सिक्किम और झारखंड अपने नए पदनाम के साथ पहली बार रामसर सूची में शामिल हुए हैं।
- भारत की वैश्विक रैंकिंग:
- भारत में एशिया में सबसे अधिक रामसर स्थल हैं और विश्व स्तर पर इसका स्थान तीसरा है:
- यूनाइटेड किंगडम (176 स्थल/ साइट्स)
- मेक्सिको (144 स्थल/ साइट्स)
- पिछले दशक में, भारत के रामसर स्थलों की संख्या 26 से बढ़कर 89 हो गई तथा मात्र तीन वर्षों में 47 स्थल इसमें जोड़े गए।
- आर्द्रभूमि का महत्त्व:
- आर्द्रभूमि ऐसे क्षेत्र होते हैं जो अस्थायी, मौसमी या स्थायी रूप से जल से आवृत रहते हैं।
- वे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- उधवा झील:
- स्थान:
- यह झारखंड के साहेबगंज ज़िले में स्थित है।
- यह उधवा नामक एक छोटे से गाँव में स्थित है, जिसका नाम महाभारत में भगवान कृष्ण के मित्र संत उद्धव के नाम पर रखा गया है।
- यह झारखंड की पहली रामसर सूचीबद्ध आर्द्रभूमि है।
- स्थापना:
- वर्ष 1991 में इस अभयारण्य की स्थापना इस क्षेत्र में पाई जाने वाली विविध पक्षी प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिये की गई थी।
- झारखंड में एकमात्र पक्षी अभयारण्य के रूप में नामित यह अभयारण्य क्षेत्र की प्राकृतिक विरासत और जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- नदियाँ:
- अभयारण्य में दो जल निकाय हैं- पटौरन और बरहेल, जो एक जल चैनल द्वारा आपस में जुड़े हुए हैं। पटौरन तुलनात्मक रूप से एक स्वच्छ जल निकाय है।
रामसर अभिसमय
- रामसर अभिसमय एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिस पर वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में UNESCO के तत्वावधान में हस्ताक्षर किये गये थे, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों का संरक्षण करना है।
- भारत में यह अधिनियम 1 फरवरी, 1982 को लागू हुआ, जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल घोषित किया गया।
- मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के उन आर्द्रभूमि स्थलों का रजिस्टर है, जहाँ तकनीकी विकास, प्रदूषण या अन्य मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक चरित्र में परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं या होने की संभावना है।
- इसे रामसर सूची के भाग के रूप में रखा गया है।
सरना कोड | झारखंड | 03 Feb 2025
चर्चा में क्यों?
झारखंड स्थित राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति ने देशभर के अनुसूचित जनजाति संघों से आगामी जनगणना में अलग सरना धर्म कोड की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का आग्रह किया है।
मुख्य बिंदु
- जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन:
- राष्ट्रीय आदिवासी समन्वय समिति 28 फरवरी, 2025 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़े प्रदर्शन का नेतृत्व करेगी, जिसमें जनगणना में अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिये एक अलग धर्म कॉलम की मांग की जाएगी।
- विरोध का आह्वान केंद्रीय सरना समिति सहित अन्य आदिवासी समूहों के बीच भी प्रसारित किया गया है, जिन्होंने अलग सरना धर्म कोड की मांग पर ज़ोर दिया है।
- मुख्य रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी संगठन दशकों से जनगणना में धर्म के लिये अलग कॉलम की मांग कर रहे हैं।
- 2011 की जनगणना में आंदोलन का प्रभाव:
- 2011 की जनगणना में इस आंदोलन के कारण 4.9 लाख लोगों ने 'अन्य' कॉलम में अपना धर्म सरना अंकित किया।
- इनमें से 80% से अधिक उत्तरदाता झारखंड से थे, जिससे इस मांग के प्रति प्रबल क्षेत्रीय समर्थन उजागर होता है।
- वर्ष 2011 के पश्चात, विशेष रूप से पूर्वी और मध्य भारत में आदिवासी समुदायों की बढ़ती एकजुटता के साथ, अलग सरना धर्म कोड की मांग ने महत्त्वपूर्ण रूप से गति प्राप्त की है।
सरना धर्म
- परिचय:
- सरना धर्म एक प्रकृति-पूजक विश्वास है, जिसे भारत के कई जनजातीय समुदायों द्वारा अपनाया गया है। इसे सरना धर्म या पवित्र वनों का धर्म भी कहा जाता है।
- वे मुख्य रूप से ओडिशा, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे आदिवासी क्षेत्रों में केंद्रित हैं।
- सरना धर्म की विशेषताएँ:
- वे जल, वन और ज़मीन सहित प्रकृति की पूजा करते हैं।
- वे वनों की रक्षा में विश्वास रखते हैं और पेड़ों और पहाड़ों की पूजा करते हैं। वे मूर्तियों की पूजा नहीं करते।
- वे वर्ण व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं।
- वे सरहुल त्योहार मनाते हैं, जो नए साल का त्योहार है।
कान्हा टाइगर रिज़र्व | मध्य प्रदेश | 03 Feb 2025
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले के कान्हा टाइगर रिज़र्व में एक बाघिन मृत पाई गई।
मुख्य बिंदु
- शव की खोज:
- वन अधिकारियों को कान्हा टाइगर रिज़र्व के परसनटोला बीट स्थित मुक्की वन परिक्षेत्र में दो वर्षीय बाघिन का शव मिला।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के दिशा-निर्देशों और मध्य प्रदेश के मुख्य वन्यजीव संरक्षक के निर्देशों के बाद अधिकारियों ने स्थल को सुरक्षित कर लिया और जाँच शुरू कर दी।
- शवपरीक्षा (पोस्ट-मार्टम):
- विशेषज्ञ वन्यजीव चिकित्सकों की एक टीम ने पोस्ट-मार्टम किया।
- अधिकारियों ने पुष्टि की कि शरीर के सभी अंग सुरक्षित हैं तथा उन्होंने शिकार को मृत्यु का कारण मानने से मना कर दिया।
- उन्हें संदेह है कि बाघिन की मौत किसी अन्य बाघ के साथ क्षेत्र संघर्ष में हुई।
- कान्हा टाइगर रिज़र्व:
- यह मध्य प्रदेश के दो ज़िलों- मंडला और बालाघाट- में 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है।
- वर्तमान कान्हा क्षेत्र को दो अभयारण्यों, हालोन और बंजार में विभाजित किया गया था। वर्ष 1955 में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया और 1973 में इसे कान्हा टाइगर रिज़र्व बना दिया गया।
- कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद की गई थी।
- इसका गठन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (जैसा कि 2006 में संशोधित किया गया) के प्रावधानों के तहत किया गया था, ताकि इसे निर्दिष्ट की गई शक्तियों और कार्यों के अनुसार बाघ संरक्षण को सशक्त किया जा सके।
वेटलैंड सिटी मान्यता: वैश्विक सूची | राजस्थान | 03 Feb 2025
चर्चा में क्यों?
इंदौर और उदयपुर रामसर अभिसमय के तहत आर्द्रभूमि शहर (वेटलैंड सिटी) के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाले पहले दो भारतीय शहर बन गए हैं।
मुख्य बिंदु
- आर्द्रभूमि संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय मान्यता:
- वेटलैंड सिटी मान्यता उन शहरों को मान्यता देती है जो अपने प्राकृतिक और मानव निर्मित वेटलैंड्स के संरक्षण को प्राथमिकता देते हैं।
- वेटलैंड सिटी मान्यता पर सलाहकार समिति ने इंदौर और उदयपुर सहित 31 नए शहरों को मान्यता प्रदान की, जिससे मान्यता प्राप्त वैश्विक शहरों की संख्या 74 हो गई।
- भोपाल को मान्यता प्राप्त करने में असफलता मिली:
- भोपाल, जिसे इंदौर और उदयपुर के साथ नामित किया गया था, को भोज आर्द्रभूमि पर पारिस्थितिक प्रभाव की चिंताओं के कारण मान्यता नहीं मिली।
- नागरिक समूहों ने आर्द्रभूमि के जलग्रहण क्षेत्र से होकर गुजरने वाली प्रस्तावित सड़क परियोजना के संबंध में चिंता व्यक्त की है, जिससे स्थानीय जल निकायों और वन्य जीवन को जोखिम हो सकता है।
- वेटलैंड सिटी मान्यता हेतु मानदंड:
- शहरों को छह अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को पूरा करना होगा, जिनमें शामिल हैं:
- आर्द्रभूमि और उनकी पारिस्थितिकी सेवाओं का संरक्षण करना।
- स्थानीय जनसंख्या के लिये स्थायी सामाजिक-आर्थिक लाभ सुनिश्चित करना।
- वेटलैंड सिटी मान्यता की वैश्विक स्थिति:
- चीन 22 मान्यता प्राप्त शहरों के साथ वैश्विक सूची में शीर्ष पर है, जबकि फ्रांस 9 शहरों के साथ दूसरे स्थान पर है।
- मान्यता कार्यक्रम शहरी और अर्ध-शहरी आर्द्रभूमि के सतत उपयोग को बढ़ावा देता है।
वेटलैंड सिटी प्रमाणन (WCA)
- WCA एक स्वैच्छिक मान्यता प्रणाली है, जिसे रामसर अभिसमय द्वारा 12 अनुबंध पक्षों के सम्मेलन (COP) 2015 के दौरान स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य उन शहरों को मान्यता देना है जिन्होंने अपने शहरी आर्द्रभूमि की सुरक्षा के लिये असाधारण कदम उठाए हैं।
- WCA 6 वर्षों के लिये मान्य होता है।
- इस योजना का उद्देश्य शहरी और अर्द्ध-शहरी आर्द्रभूमि के संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना है, साथ ही स्थानीय जनसंख्या के लिये स्थायी सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान करना है।
घग्घर जल | हरियाणा | 03 Feb 2025
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा गठित एक संयुक्त समिति ने पाया कि घग्गर नदी का जल नहाने के लिये अनुपयुक्त है। समिति ने नदी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक पाया।
मुख्य बिंदु
- सर्वेक्षण और नमूना संग्रहण:
- समिति के सदस्यों और विभाग के प्रतिनिधियों ने सुखना चोई में प्रदूषण स्रोतों की पहचान करने के लिये दिसंबर 2023 में एक सर्वेक्षण किया।
- सर्वेक्षण से पता चला कि हरियाणा में मनसा देवी कॉम्प्लेक्स, राजीव कॉलोनी और इंदिरा कॉलोनी के साथ-साथ सोही बैंक्वेट हॉल के पास की झुग्गियाँ ठोस और तरल अपशिष्ट को सीधे तौर पर सीवर में छोड़ रही हैं।
- समिति ने विकास नगर पुल पर पंचकूला नाले से नमूने एकत्रित किये, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि BOD (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड/ जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग) और TSS (कुल निलंबित ठोस/ टोटल सस्पेंडेड सॉलिड्स) का स्तर अंतर्देशीय सतही जल निर्वहन के लिये पर्यावरणीय मानकों से अधिक था।
- घग्गर नदी में प्रदूषण का स्तर:
- समिति ने ज़ीरकपुर में अंबाला-चंडीगढ़ राजमार्ग पुल के पास, जहाँ सुखना चोई नदी घग्गर नदी में मिलती है, घग्गर नदी के ऊपरी और निचले हिस्से से जल के नमूने एकत्र किये।
- निष्कर्ष:
- pH मान बाहरी स्नान के लिये स्वीकार्य सीमा के भीतर थे।
- दोनों स्थानों पर BOD का स्तर बाहरी स्नान के लिये प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंड को पूरा करने में विफल रहा।
- अनुशंसाएँ:
- चंडीगढ़ नगर निगम को चाहिये कि:
- नालियों की नियमित सफाई सुनिश्चित करना।
- ठोस अपशिष्ट को गिरने से रोकने के लिये उन पुलिया बिंदुओं पर लोहे की जालियाँ लगाई जाएँगी जहाँ सड़कें नाले को पार करती हैं।
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को चाहिये कि:
- पंचकूला नगर निगम को चाहिये कि:
- सुनिश्चित करना कि एसटीपी कुशलतापूर्वक कार्य करें तथा नालियों के माध्यम से सुखना चोई में अनुपचारित अपशिष्ट को प्रवेश करने से रोकें।
जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD)
- BOD, जल में कार्बनिक पदार्थों के चयापचय की जैविक प्रक्रिया में सूक्ष्मजीवों द्वारा उपयोग की जाने वाली घुलित ऑक्सीजन की मात्रा है।
- जितना अधिक कार्बनिक पदार्थ होगा (जैसे, सीवेज और प्रदूषित जल निकायों में), उतना अधिक BOD होगा ; और जितना अधिक BOD होगा, मछलियों जैसे उच्चतर पशुओं के लिये घुलित ऑक्सीजन की मात्रा उतनी ही कम उपलब्ध होगी।
- इसलिये BOD किसी जल निकाय के जैविक प्रदूषण का एक विश्वसनीय माप है।
