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झारखंड

झारखंड की जनजातियों की अधिकारों के लिये लड़ाई

  • 12 Nov 2024
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों के लिये, राजनीतिक दलों ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की योजना की घोषणा की, लेकिन आश्वासन दिया कि आदिवासी समुदायों को इसके प्रावधानों से बाहर रखा जाएगा और उनके अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा पर ज़ोर दिया।

  • झारखंड के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में आदिवासियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उनके संघर्षों ने कई ऐतिहासिक आंदोलनों को जन्म दिया है।

मुख्य बिंदु

  • झारखंड में ब्रिटिश नियंत्रण और आदिवासी प्रतिरोध:
    • भौगोलिक संदर्भ: झारखंड, जो मुख्य रूप से पूर्वी भारत में छोटा नागपुर पठार पर स्थित है, 1765 में ब्रिटिश नियंत्रण में आया जब मुगलों ने अंग्रेज़ों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर दीवानी अधिकार प्रदान किये, जिससे उन्हें राजस्व एकत्र करने की अनुमति मिल गई।
    • जनजातीय निवासी: झारखंड के पठारी क्षेत्र में लंबे समय से मुंडा, संथाल, उरांव, हो (HO)और बिरहोर जैसी जनजातियाँ निवास करती रही हैं, जिनमें से आधे से अधिक जनजातीय श्रमिकों की प्राथमिक आजीविका कृषि रही है, जो राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति औसत 44.7% से अधिक है।
  • औपनिवेशिक नीतियाँ और जनजातीय विद्रोह:
    • अंग्रेज़ों ने वाणिज्यिक कृषि और खनन की शुरुआत की, जिससे कई जनजातियों को उनकी भूमि से बेदखल होना पड़ा। इस शोषण के कारण आदिवासी नेताओं ने अपने अधिकारों की रक्षा और ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिये आंदोलन आयोजित किये।
    • विद्वान राम दयाल मुंडा और बिशेश्वर प्रसाद केशरी ने 1769-93 को प्रतिरोध का प्रारंभिक चरण बताया, जिसके बाद के दशक में खुले विद्रोह का दौर आया।

प्रमुख जनजातीय विद्रोह:

  • ढाल विद्रोह (1767-1777):
    • नेता: धालभूम (अब पश्चिम बंगाल में) के पूर्व राजा जगन्नाथ धाल ने ब्रिटिश घुसपैठ के विरुद्ध पहले महत्त्वपूर्ण विद्रोह का नेतृत्व किया।
    • ब्रिटिश प्रतिक्रिया: विद्रोह 10 वर्षों तक चला, जिसके कारण अंग्रेज़ों को 1777 में ढाल को पुनः शासक के रूप में बहाल करना पड़ा। इस विद्रोह ने निरंतर जनजातीय प्रतिरोध की शुरुआत को चिह्नित किया।
  • मुंडा विद्रोह (1899-1900):
    • नेता: बिरसा मुंडा के नेतृत्व में विद्रोह का उद्देश्य ब्रिटिश नियंत्रण को उखाड़ फेंकना, बाहरी लोगों को बाहर निकालना और एक स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना था।
    • उद्देश्य और रणनीति: मुंडाओं ने गुरिल्ला रणनीति अपनाई और औपनिवेशिक अधिकारियों, साहूकारों और मिशनरियों को निशाना बनाया।
    • परिणाम: बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में 1900 में जेल में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन विद्रोह ने एक स्थायी प्रभाव छोड़ा और बिरसा को मुंडाओं के बीच एक नायक के रूप में मनाया गया।
  • ताना भगत आंदोलन (1914):
    • संस्थापक: उरांव जनजाति के जतरा भगत ने पारंपरिक प्रथाओं की ओर लौटने का आह्वान किया और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध लगान-मुक्ति अभियान चलाया।
    • गठबंधन: ताना भगत क्रांतिकारी कॉन्ग्रेस कार्यकर्त्ताओं के साथ शामिल हो गए और सत्याग्रह, असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में भाग लिया।
    • विरासत: इस आंदोलन ने अहिंसा और सामूहिक कार्रवाई के विचारों को प्रस्तुत किया, जिसने बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता आंदोलन को प्रभावित किया।
  • झारखंड आंदोलन और राज्य का दर्जा:
    • 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में झारखंड की पहचान का पुनरुत्थान हुआ, जिसमें अखिल झारखंड छात्र संघ (1986) और झारखंड समन्वय समिति (1987) का गठन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप झारखंड आंदोलन और अंततः 2000 में राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
    • झारखंड आंदोलन ने 200 वर्षों में झारखंड की संस्कृति के क्रमिक विघटन को उजागर किया, खासकर ब्रिटिश शासन के दौरान। आज, आदिवासी समुदाय भूमि विवाद, कम साक्षरता दर, गरीबी और औद्योगिक विकास के बीच शोषण जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

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