मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने एग्जिट पोल की आलोचना की | 16 Oct 2024
चर्चा में क्यों?
भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) ने एग्जिट पोल की विश्वसनीयता और मतगणना के रुझानों के समय से पहले प्रदर्शित होने पर चिंता जताई है। उन्होंने हाल के हरियाणा चुनावों का उदाहरण देते हुए कहा कि एग्जिट पोल ने अवास्तविक उम्मीदें उत्पन्न कीं और राजनीतिक चिंताओं को जन्म दिया।
मुख्य बिंदु
- एग्जिट पोल द्वारा विकृति:
- एक्जिट पोल प्रायः अवास्तविक उम्मीदें स्थापित करते हैं, जिसके कारण अनुमानित और वास्तविक चुनाव परिणामों के बीच काफी अंतर हो जाता है।
- हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनाव में अधिकांश एग्जिट पोल में कॉन्ग्रेस की बड़ी जीत की भविष्यवाणी की गई थी, जिसमें 50 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन वास्तविक नतीजे इन उम्मीदों से मेल नहीं खाते।
- इससे जनता और राजनीतिक दलों में निराशा उत्पन्न हो गई तथा कॉन्ग्रेस ने एग्जिट पोल की सटीकता पर चिंता जताई।
- प्रारंभिक गणना प्रवृत्तियों का समय से पहले प्रदर्शन:
- कुछ समाचार चैनलों ने आधिकारिक मतगणना शुरू होने से पहले शुरुआती रुझान प्रसारित किये, जिससे गलत सूचना और अटकलों को बढ़ावा मिला।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने इस प्रथा की "बकवास" कहकर आलोचना की तथा कहा कि गणना से पहले दिखाए गए प्रारंभिक रुझान का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तथा इससे जनता गुमराह हो सकती है।
- उन्होंने बताया कि वास्तविक मतगणना प्रक्रिया सुबह 8:30 बजे के बाद शुरू होती है तथा सत्यापित परिणाम सुबह 9:30 बजे के बाद निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर पोस्ट किये जाते हैं।
- स्व-नियमन का आह्वान:
- यद्यपि निर्वाचन आयोग सीधे तौर पर एग्जिट पोल को नियंत्रित नहीं करता है, फिर भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने आग्रह किया कि मीडिया और मतदान की निगरानी करने वाली नियामक संस्थाओं को एग्जिट पोल प्रथाओं में सुधार लाने के लिये कड़ा रुख अपनाना चाहिये।
- विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये नमूना आकार, मतदान स्थान और डेटा संग्रह विधियों जैसे कारकों सहित एग्जिट पोल पद्धति में पारदर्शिता आवश्यक है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि मीडिया और मतदान एजेंसियों को नियंत्रित करने वाली संस्थाओं को चुनावों के दौरान गलत सूचना से बचने के लिये बेहतर कार्यप्रणाली लागू करनी चाहिये।
- एक्जिट पोल पद्धति के मुद्दे:
- एक्जिट पोल, मतदान केंद्र से बाहर निकलते समय मतदाताओं के साथ किये गए साक्षात्कारों पर आधारित होते हैं, लेकिन उनकी सटीकता एकत्रित आँकड़ों की गुणवत्ता और नमूने की प्रतिनिधिता पर निर्भर करती है।
- एग्जिट पोल के पीछे की कार्यप्रणाली, जिसमें नमूने का आकार और प्रतिनिधित्व (जाति, धर्म और भूगोल जैसे विभिन्न मतदाता प्रोफाइल को प्रतिबिंबित करना ) शामिल है, पोल की सटीकता निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- स्विंग मॉडल और भविष्यवाणी की चुनौतियाँ:
- एग्जिट पोल पिछले चुनाव के वोट शेयर अनुमानों के आधार पर सीट आवंटन की भविष्यवाणी करने के लिये स्विंग मॉडल का उपयोग करते हैं।
- हालाँकि, हरियाणा जैसे जटिल राजनीतिक माहौल में, जहाँ विभिन्न पार्टियाँ और गठबंधन शामिल हैं, ये स्विंग मॉडल अक्सर मतदाता व्यवहार में बदलाव अथवा गठबंधन में बदलाव को पकड़ने में विफल रहते हैं।
भारत निर्वाचन आयोग
- परिचय:
- भारत का निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य निर्वाचन प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार है।
- इसकी स्थापना संविधान के अनुसार 25 जनवरी 1950 को (राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है) की गई थी। आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में है।
- यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं तथा देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिये होने वाले निर्वाचनों का संचालन करता है।
- इसका राज्यों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के निर्वाचनों से कोई संबंध नहीं है। इसके लिये भारत के संविधान में अलग से राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भाग XV (अनुच्छेद 324-329): यह चुनावों से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग की स्थापना करता है।
- अनुच्छेद 324: चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण निर्वाचन आयोग में निहित होगा।
- अनुच्छेद 325: किसी भी व्यक्ति को धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी विशेष मतदाता सूची में शामिल होने के लिये अपात्र नहीं ठहराया जा सकता या शामिल होने का दावा नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 326: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये चुनाव वयस्क मताधिकार पर आधारित होंगे।
- अनुच्छेद 327: विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति।
- अनुच्छेद 328: किसी राज्य के विधानमंडल की ऐसे विधानमंडल के लिये चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति।
- अनुच्छेद 329: चुनावी मामलों में न्यायालयों द्वारा हस्तक्षेप पर प्रतिबंध।
- निर्वाचन आयोग की संरचना:
- मूलतः निर्वाचन आयोग में केवल एक निर्वाचन आयुक्त होता था, लेकिन निर्वाचन आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 के बाद इसे बहुसदस्यीय निकाय बना दिया गया।
- निर्वाचन आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की संख्या (यदि कोई हो) शामिल होगी, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर निर्धारित करें।
- वर्तमान में, इसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त (EC) शामिल हैं।
- राज्य स्तर पर निर्वाचन आयोग को मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
- आयुक्तों की नियुक्ति एवं कार्यकाल:
- राष्ट्रपति, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 के अनुसार करते हैं।
- उनका कार्यकाल निश्चित रूप से छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन और सेवा शर्तें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य होंगी।
- हटाना:
- वे किसी भी समय त्यागपत्र दे सकते हैं या कार्यकाल समाप्त होने से पहले भी हटाए जा सकते हैं।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से केवल संसद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान ही हटाया जा सकता है, जबकि निर्वाचन आयुक्तों को केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है।