बिहार का खराब स्वास्थ्य ढाँचा | 29 Nov 2024

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार सरकार को खराब प्रदर्शन के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन (2016-2022) पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की ऑडिट रिपोर्ट को चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान बिहार विधानसभा और विधान परिषद में प्रस्तुत किया गया था।

  • रिपोर्ट में बिहार की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में गंभीर कमियों को उजागर किया गया है, जिसमें संसाधनों की भारी कमी, बजट का कम उपयोग और प्रणालीगत अकुशलताएँ शामिल हैं तथा संरचनात्मक सुधारों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है।

मुख्य बिंदु

  • स्वास्थ्य सेवाओं में मानव संसाधन की कमी:
    • बिहार में स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, राज्य औषधि नियंत्रक, खाद्य सुरक्षा विंग, आयुष (AYUSH) और मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (MCH) सहित प्रमुख स्वास्थ्य विभागों में 49% पद रिक्त हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रति 1,000 व्यक्तियों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर की सिफारिश के विपरीत, बिहार में प्रति 2,148 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर का अनुपात था (आवश्यक 1,24,919 के तुलना में 58,144 डॉक्टर उपलब्ध थे)।
    • पटना में स्टाफ नर्सों की कमी 18% से लेकर पूर्णिया में 72% तक थी, जबकि जमुई में पैरामेडिक्स की कमी 45% से लेकर पूर्वी चंपारण में 90% तक थी।
    • जनवरी 2022 तक 24,496 पदों में से 13,340 स्वास्थ्य सेवा पदों पर भर्ती लंबित रही।
  • बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं में अंतराल:
    • निरीक्षण किये गये चारों उप-जिला अस्पतालों (SDH) में से किसी में भी कार्यात्मक ऑपरेशन थियेटर (OT) नहीं था, जो भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (IPHS) का उल्लंघन था।
    • 11 परीक्षण-जाँच सुविधाओं में केवल 1% से 67% गर्भवती महिलाओं को आयरन और फोलिक एसिड (IFA) गोलियों का पूरा कोर्स प्राप्त हुआ।
      • वर्ष 2016-22 के दौरान रिपोर्ट किये गए 24 मामलों में से केवल 1 में मातृ मृत्यु समीक्षा की गई।
    • 68 स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में 19% से 100% आवश्यक निदान सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं।
  • दवाओं और उपकरणों की कमी:
    • वर्ष 2016-22 के दौरान 21% से 65% बाह्य रोगी विभागों (OPD) में तथा 34% से 83% अंतः रोगी विभागों (IPD) में आवश्यक दवाएँ उपलब्ध नहीं थीं।
    • मेडिकल कॉलेजों ने वित्त वर्ष 2019-21 में आपूर्ति न होने के कारण 45% से 68% दवाओं की कमी की सूचना दी।
  • बजट उपयोग और नीतिगत अंतराल:
    • बिहार ने वित्त वर्ष 2016-17 और 2021-22 के बीच स्वास्थ्य देखभाल बजट के आवंटित 69,790.83 करोड़ रुपए का केवल 69% खर्च किया, जिससे 21,743.04 करोड़ रुपए अप्रयुक्त रह गए।
    • सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) की तुलना में स्वास्थ्य सेवा पर व्यय 1.33% से 1.73% के बीच रहा तथा राज्य बजट की तुलना में यह 3.31% से 4.41% के बीच रहा।
    • बिहार में बुनियादी ढाँचे और उपकरणों की कमी को दूर करने के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के अनुरूप एक व्यापक स्वास्थ्य नीति का अभाव था।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) प्रदर्शन:

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

  • परिचय:
    • संविधान के अनुच्छेद 148 के अनुसार भारत का CAG भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (IA-AD) का प्रमुख होता है। वह सार्वजनिक खजाने की सुरक्षा और केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर वित्तीय प्रणाली की देख-रेख के लिये ज़िम्मेदार होता है।  
    • CAG वित्तीय प्रशासन में संविधान और संसदीय कानूनों को कायम रखता है और इसे सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग और संघ लोक सेवा आयोग के साथ भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है। 
    • भारत का CAG नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्त्तव्य, शक्तियाँ और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 द्वारा शासित होता है, जिसमें 1976, 1984 और 1987 में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए।
  • नियुक्ति एवं कार्यकाल: 
    • भारत के CAG की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर के साथ एक वारंट द्वारा की जाती है। पदधारी छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर कार्य करता है।
  • स्वतंत्रता: 
    • CAG को केवल संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है, राष्ट्रपति की इच्छा से नहीं।