विविध
सितंबर 2020
- 21 Oct 2020
- 64 min read
PRS की प्रमुख हाइलाइट्स
- कोविड-19
- महामारी रोग (संशोधन) विधेयक, 2020
- कराधान और अन्य कानून (विभिन्न प्रावधानों में राहत) विधेयक, 2020
- दिवाला और दिवालियापन संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2020
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष
- समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
- वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में चालू खाता घाटा GDP के 3.9% पर
- वित्त
- अर्हित वित्तीय संविदा द्विपक्षीय नेटिंग विधेयक, 2020
- बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020
- फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020
- स्टार्टअप इकोसिस्टम के वित्तपोषण पर रिपोर्ट
- श्रम
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्यस्थिति संहिता विधेयक, 2020
- कृषि
- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक, 2020
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020
- खरीफ मौसम वर्ष 2020-21
- रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
- सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक, 2020
- राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019
- आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान विधेयक, 2020
- राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय आयोग विधेयक, 2020
- गृह मामले
- विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2020
- राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक, 2020
- राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय विधेयक, 2020
- जम्मू एवं कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक, 2020
- कॉर्पोरेट मामले
- कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2020
- शिक्षा
- भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक, 2020
- ओपन और दूरस्थ शिक्षा, ऑनलाइन कार्यक्रमों के लिये नियम
- नागरिक उड्डयन
- एयरक्राफ्ट (संशोधन) विधेयक, 2020
- विधि और न्याय
- आभासी न्यायालयों पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
- सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020
- वाणिज्य और उद्योग
- रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से अधिकतम FDI
- सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) आदेश, 2017
- रक्षा
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया, 2020
- कार्मिक
- मिशन कर्मयोगी
- इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी
- 118 मोबाइल एप पर प्रतिबंध
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा
- ग्रीन टर्म अहेड मार्केट
- जल संसाधन
- भूजल निकासी को विनियमित और नियंत्रित करने के लिये दिशा-निर्देश
- सड़क परिवहन
- केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में संशोधन
- फास्टैग
कोविड-19
- महामारी रोग (संशोधन) विधेयक, 2020
महामारी रोग (संशोधन) विधेयक, 2020 [Epidemic Diseases (Amendment) Bill, 2020] संसद में पारित किया गया। यह महामारी रोग अधिनियम,1897 (Epidemic Diseases Act,1897) में संशोधन करता है।
- कराधान और अन्य कानून (विभिन्न प्रावधानों में राहत) विधेयक, 2020
कराधान और अन्य कानून (विभिन्न प्रावधानों में राहत) विधेयक, 2020 (Taxation and Other Laws (Relaxation and Amendment of Certain Provisions) Bill, 2020) को संसद में पारित कर दिया गया। यह विधेयक मार्च 2020 में जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। विधेयक आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act,1961) जैसे कुछ कर कानूनों के अनुपालन में राहत प्रदान करता है। यह राहत COVID-19 के प्रसार के कारण प्रदान की गई है।
- विधेयक IT अधिनियम के अंतर्गत रिटर्न फाइल करने और कटौतियों का दावा करने से संबंधित समय-सीमा को बढ़ाता है। यह केंद्र सरकार को इस बात की अनुमति देता है वह केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के अंतर्गत GST संबंधी अनुपालन और कार्रवाइयों की समयसीमा भी बढ़ा सकता है।
- दिवाला और दिवालियापन संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2020
दिवाला और दिवालियापन संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2020 [Insolvency and Bankruptcy Code (Second Amendment) Bill, 2020] संसद में पारित कर दिया गया है। यह 5 जून, 2020 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है।
- अध्यादेश दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 में संशोधन करता है। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच दिवालियापन के समाधान के लिये एक समयबद्ध प्रक्रिया का प्रावधान करती है।
- दिवालियापन वह स्थिति है जब व्यक्ति या कंपनियाँ अपना बकाया ऋण नहीं चुका पाती हैं।
- विधेयक में 25 मार्च, 2020 के बाद अगले 6 महीने तक किसी भी कंपनी के खिलाफ इनसाॅल्वेंसी की प्रक्रिया न शुरू करने की बात कही गई है। अतः यह केंद्र सरकार को इस अवधि को छह महीने तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
- राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आपदा प्रबंधन के लिये राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष की स्थापना को अनिवार्य किया गया है। गृह मामलों के मंत्रालय ने राज्यों को COVID-19 की रोकथाम के लिये राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund- SDRF) में मौजूद अधिकतम 50% राशि को खर्च करने की अनुमति दी है। यह सीमा पहले अधिकतम 35% निर्धारित थी।
यह अनुमति निम्नलिखित व्यय पर लागू होती है:
(i) क्वारंटाइन, नमूना संग्रह और स्क्रीनिंग की सुविधा।
(ii) COVID-19 के लियेआवश्यक उपकरणों/प्रयोगशालाओं की खरीद।
समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
- वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में चालू खाता घाटा GDP के 3.9% पर
वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) की तुलना में 2020-21 की इसी अवधि में भारत का चालू खाता घाटा 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 2.1%) से बढ़कर 19.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 3.9%) हो गया। यह मुख्य रूप से वर्ष-दर-वर्ष निर्यात के मुकाबले आयात में अत्यधिक गिरावट के कारण हुआ है।
- पूंजी खाते में ऐसा लेन-देन शामिल होता है जो कि भारत में संस्थाओं की परिसंपत्ति/देयता स्थिति में परिवर्तन करता है।
- पूंजी खाते में शुद्ध प्रवाह 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2019-20 की पहली तिमाही) से गिरकर 0.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। इसका मुख्य कारण यह था कि वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में 18.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर के विदेशी निवेश का शुद्ध प्रवाह वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में गिरकर 0.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
वित्त
- अर्हित वित्तीय संविदा द्विपक्षीय नेटिंग विधेयक, 2020
अर्हित वित्तीय संविदा द्विपक्षीय नेटिंग विधेयक, 2020 (Bilateral Netting of Qualified Financial Contracts Bill, 2020) को संसद में पारित कर दिया गया। यह विधेयक अर्हित वित्तीय संविदा की द्विपक्षीय नेटिंग और क्लोज़-आउट नेटिंग प्रबंधों के लिये कानूनी संरचना प्रदान करता है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- द्विपक्षीय नेटिंग: दो पक्षों के बीच सौदे से उत्पन्न दावों की भरपाई को नेटिंग कहा जाता है जिसमें एक पक्ष से दूसरे पक्ष को देय या प्राप्त राशि का निर्धारण किया जाता है।
- अर्हित वित्तीय संविदा (QFC): QFC ऐसी द्विपक्षीय संविदा है जिसे संबंधित प्राधिकरण ने QFC के तौर पर अधिसूचित किया है। संबंधित प्राधिकरण भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI), पेंशन कोष नियामकऔर विकास प्राधिकरण (PFRDA) या अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) हो सकता है।
- प्रयोज्यता: विधेयक के प्रावधान दो अर्हित बाज़ार भागीदारों के बीच QFC पर लागू होंगे जिनमें से कम-से-कम एक पक्ष निर्दिष्ट प्राधिकरण (RBI, SEBI, IRDAI, PFRDA या IFSCA) द्वारा विनियमित होता है।
- नेटिंग का लागू होना: विधेयक में प्रावधान है कि QFC की नेटिंग उस स्थिति में लागू की जाएगी जब संविदा में नेटिंग का एग्रीमेंट हो।
- नेटिंग एग्रीमेंट एक ऐसा एग्रीमेंट है जिसमें दो या उससे अधिक QFC से संबंधित राशि की नेटिंग का प्रावधान होता है।
- नेटिंग एग्रीमेंट में संपार्श्विक व्यवस्था भी शामिल हो सकती है।
- संपार्श्विक व्यवस्था एक किस्म की सुरक्षा होती है जो कि नेटिंग एग्रीमेंट में एक या उससे अधिक QFC को दी जाती है। इसमें संपत्तियों के लिये वचनबद्धता या संपार्श्विक या तीसरे पक्ष के गारंटर को टाइटल ट्रांसफर करने से संबंधित समझौता शामिल हो सकता है।
- क्लोज़-आउट नेटिंग की व्यवस्था: क्लोज़-आउट नेटिंग का अर्थ है संबंधित QFC के सभी दायित्वों का समाप्त होना। यह QFC से उत्पन्न होने वाले वर्तमान और भविष्य के दायित्वों का परिसमापन करता है, जिस पर नेटिंग समझौता लागू होता है। इस प्रक्रिया को डिफॉल्ट या समाप्ति की घटना (जैसा कि नेटिंग एग्रीमेंट में निर्दिष्ट हो, जोकि एक या दोनों पक्षों को एग्रीमेंट के अंतर्गत लेन-देन को समाप्त करने का अधिकार देती हो) की स्थिति में शुरू किया जा सकता है। क्लोज़-आउट नेटिंग के अंतर्गत शुद्ध राशि निम्नलिखित के ज़रिये निर्धारित की जाएगी:
(i) पक्षों द्वारा किये गए नेटिंग एग्रीमेंट के अनुसार।
(ii) पक्षों के बीच एग्रीमेंट के जरिये।
(iii) मध्यस्थता के ज़रिये।
- बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020
बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 [Banking Regulation (Amendment) Bill, 2020] संसद में पारित हो गया है। यह बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 (Banking Regulation Act, 1949) में संशोधन करता है। यह अधिनियम बैंकों की लाइसेंसिंग, प्रबंधन और परिचालन से संबंधित विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करता है।
- फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020
फैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 को लोकसभा में पेश किया गया। यह विधेयक फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011 में संशोधन करता है और फैक्टरिंग बिज़नेस करने वाली संस्थाओं के दायरे को बढ़ाता है।
- फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम, 2011 के अंतर्गत फैक्टरिंग बिज़नेस एक ऐसा बिज़नेस होता है जिसमें एक संस्थान (जिसे फ़ैक्टर कहा जाता है) दूसरे संस्थान (जिसे एसाइनर कहा जाता है) की प्राप्तियों को एक राशि के बदले प्राप्त करता है।
- प्राप्य वह कुल राशि होती है जो किसी वस्तु, सेवा या सुविधा के उपयोग के कारण ग्राहकों (जिन्हें ऋणी कहा जाता है) पर बकाया होती है या जिसका भुगतान उनके द्वारा किया जाना होता है।
- फैक्टर बैंक एक पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी या कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत कंपनी हो सकती है। विधेयक के मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- फैक्टर्स का पंजीकरण: अधिनियम के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) के साथ पंजीकरण किये बिना कोई भी कंपनी फैक्टरिंग व्यवसाय में संलग्न नहीं हो सकती है। अगर किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (Non-Banking Financial Company- NBFC) को फैक्टरिंग व्यवसाय करना हो तो:
- फैक्टरिंग व्यवसाय में उसकी वित्तीय संपत्ति, और
- फैक्टरिंग व्यवसाय से उसकी आय दोनों को उसके सकल संपत्ति या शुद्ध आय के 50% से अधिक या RBI द्वारा अधिसूचित सीमा से अधिक होना चाहिये। विधेयक में NBFC के लिये फैक्टरिंग व्यवसाय की इस सीमा को हटा दिया गया है।
- लेन-देन का पंजीकरण: अधिनियम के अंतर्गत फैक्टर्स को अपने पक्ष में प्राप्तियों के (Assignment) के प्रत्येक विवरण का पंजीकरण करना होगा। इन विवरणों को 30 दिनों की अवधि के दौरान केंद्रीय रजिस्ट्री में रिकॉर्ड किया जाना चाहिये जो कि वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम-सरफेसी (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest- SARFAESI), 2002 के अंतर्गत गठित हो। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो कंपनी का अनुपालन न करने के कारण प्रत्येक अधिकारी को तब तक प्रतिदिन 5 हज़ार रुपए तक का ज़ुर्माना भरना पड़ सकता है जब तक कि डिफॉल्ट जारी रहता है।
- विधेयक 30 दिनों की इस अवधि को हटाता है और यह कहता है कि समय,अवधि, पंजीकरण के तरीके और देर से पंजीकरण के भुगतान शुल्क के विनियमन द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है।
- फैक्टर्स का पंजीकरण: अधिनियम के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) के साथ पंजीकरण किये बिना कोई भी कंपनी फैक्टरिंग व्यवसाय में संलग्न नहीं हो सकती है। अगर किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (Non-Banking Financial Company- NBFC) को फैक्टरिंग व्यवसाय करना हो तो:
- इसके अतिरिक्त विधेयक में कहा गया है कि जहाँ व्यापार प्राप्तियों को व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (Trade Receivable Discounting System-TReDS) के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है वहीं फैक्टर की तरफ से लेन-देन के विवरणों से संबंधित TReDS द्वारा केंद्रीय रजिस्ट्री में उपक्रमों को फाइल किया जाना चाहिये। उल्लेखनीय है कि TReDS एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म है जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उपक्रमों की ट्रेडिंग प्राप्तियों के वित्तपोषण को सुगम बनाता है।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम के वित्तपोषण पर रिपोर्ट
वित्त संबंधी स्थायी समिति (अध्यक्ष: जयंत सिन्हा) ने स्टार्टअप इकोसिस्टम के वित्तपोषण पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने सुझाव दिया कि स्टार्टअप में निवेश अवसरों को व्यापक बनाने और घरेलू निवेशकों की भागीदारी में सुधार के लिये कराधान और अन्य विनियमन में बदलाव किया जाए।
श्रम
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्यस्थिति संहिता विधेयक, 2020
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्यस्थिति संहिता विधेयक, 2020 को संसद में पारित कर दिया गया है। यह संहिता स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं कार्यस्थितियों को विनियमित करने वाले 13 मौजूदा अधिनियमों को एकीकृत करती है।
कृषि
- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक, 2020
किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 [Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020] को संसद में पारित किया गया है। विधेयक जून 2020 में जारी अध्यादेश का स्थान लेता है।
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 [Essential Commodities (Amendment) Bill, 2020] को संसद में पारित किया गया है। यह विधेयक 5 जून, 2020 को जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। यह विधेयक आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 [Essential Commodities Act, 1955] में संशोधन करता है।
- खरीफ मौसम वर्ष 2020-21
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers) ने खरीफ मौसम वर्ष 2020-21 के लिये खाद्यान्न और वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान जारी किया है। इस संबंध कुछ तथ्य इस प्रकार हैं:
- खरीफ वर्ष 2019-20 की तुलना में खरीफ वर्ष 2020-21 में खाद्यान्न उत्पादन में 0.8% की गिरावट हुई। यह गिरावट मुख्य रूप से दालों के उत्पादन में 20.6% की गिरावट के कारण हुई।
- मूँगफली के उत्पादन में 14% की वृद्धि और सोयाबीन के उत्पाद में 21.1% की वृद्धि अनुमानित है।
- वर्ष 2020-21 में कपास के उत्पादन में 4.6% की वृद्धि का अनुमान है और गन्ने का उत्पादन 12.4% बढ़कर लगभग 400 मिलियन टन होने का अनुमान है।
- रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2020-21 में रबी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices- MSP) को मंज़ूरी दी है।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण
- सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक, 2020
सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक, 2020 [Assisted Reproductive Technology (Regulation) Bill, 2020] को लोकसभा में पेश किया गया। यह सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं के विनियमन का प्रावधान करने का प्रयास करता है।
- राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019
राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019 (National Commission for Indian System of Medicine Bill, 2019) संसद में पारित किया गया है। यह विधेयक भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1970 को निरस्त करता है।
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राष्ट्रीय आयोग विधेयक- 2020 (भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी)
राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019
- आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान विधेयक, 2020
आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान विधेयक, 2020 (Institute of Teaching and Research in Ayurveda Bill, 2020) को संसद में पारित किया गया। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
- विलय: विधेयक तीन आयुर्वेद संस्थानों का विलय कर एक संस्थान आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान बनाने का प्रयास करता है। प्रस्तावित संस्थान गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जामनगर के परिसर में स्थित होगा। विधेयक इस संस्थान को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित करता है।
संस्थान के कार्य: संस्थान के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) आयुर्वेद की स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा (फार्मेसी सहित) का प्रावधान।
(ii) आयुर्वेद में स्नातक और स्नातकोत्तर अध्ययन के लिये पाठ्यक्रम और करिकुलम निर्दिष्ट करना।
(iii) आयुर्वेद की विभिन्न शाखाओं में अनुसंधान की सुविधा प्रदान करना।
(iv) आयुर्वेद और फार्मेसी में परीक्षाएँ संचालित करना, डिग्री, डिप्लोमा और दूसरे डिस्टिंक्शंस और टाइटिल देना।
- राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय आयोग विधेयक, 2020
राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय आयोग विधेयक, (National Commission for Allied and Healthcare Professions Bill) 2020 को राज्यसभा में पेश किया गया। विधेयक संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय की शिक्षा तथा अभ्यास को विनियमित एवं मानकीकृत करने का प्रयास करता है। विधेयक की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- परिभाषा: विधेयक के अनुसार ‘संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय’ उस सहयोगी, तकनीशियन या प्रौद्योगिकीविद् को कहा जाएगा जो कि किसी बीमारी, रोग, चोट या क्षति के निदान और उपचार में सहयोग देने के लिये प्रशिक्षित हो। इसके अतिरिक्त संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय को विधेयक के अंतर्गत डिप्लोमा या डिग्री प्राप्त होनी चाहिये। डिप्लोमा या डिग्री की अवधि कम-से-कम 2,000 घंटे (दो से चार वर्ष की अवधि के दौरान) होनी चाहिये।
- संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय: विधेयक अनुसूची में संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय की कुछ मान्यता प्राप्त श्रेणियों को निर्दिष्ट करता है। इनमें लाइफ साइंस प्रोफेशनल, ट्रॉमा एंड बर्न केयर प्रोफेशनल, सर्जिकल और एनेस्थीसिया टेक्नोलॉजी से संबंधित प्रोफेशनल, फिजियोथेरेपिस्ट तथा न्यूट्रिशन साइंस प्रोफेशनल शामिल हैं।
- राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय आयोग: विधेयक राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसाय आयोग की स्थापना करता है जो कि नीतियाँ और मानक बनाने, सभी पंजीकृत व्यवसायों के लिये ऑनलाइन केंद्रीय रजिस्टर बनाने और उसका रखरखाव करने, शिक्षण तथा प्रशिक्षण के बुनियादी मानदंड बनाने तथा समान प्रवेश और निकास परीक्षाओं का प्रावधान करने लिये उत्तरदायी होगा।
- राज्य परिषदें: राज्य सरकार को विधेयक पारित होने के छह महीने के भीतर संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा परिषदों का गठन करना होगा। यह व्यावसायिक आचरण/आचार को लागू करने, राज्य स्तरीय रजिस्टरों का रख-रखाव करने, संस्थानों का निरीक्षण और समान प्रवेश एवं निकास परीक्षाएँ सुनिश्चित करने के लिये उत्तरदायी होगा।
- अपराध और सज़ा: राज्य रजिस्टर या राष्ट्रीय रजिस्टर में नामांकित योग्य संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा व्यवसायी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को अभ्यास करने की अनुमति नहीं है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 50,000 रुपए के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
गृह मामले
- विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2020
विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2020 [Foreign Contribution (Regulation) Amendment Bill, 2020] को संसद में पारित किया गया है। यह विधेयक विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 [Foreign Contribution (Regulation) Act, 2010] में संशोधन करता है।
- राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक, 2020
राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय विधेयक, 2020 (National Forensic Sciences University Bill, 2020) को संसद में पारित कर दिया गया। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विश्वविद्यालय की स्थापना: विधेयक गुजरात फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधी नगर (गुजरात फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय अधिनियम, 2008 के अंतर्गत स्थापित) तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय अपराध विज्ञान और फोरेंसिक विज्ञान संस्थान (Lok Nayak Jayaprakash Narayan National Institute of Criminology and Forensic Sciences), नई दिल्ली को राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करता है। विधेयक इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित करता है। विधेयक 2008 के अधिनियम को रद्द करता है। विश्वविद्यालय परिसरों में दोनों विश्वविद्यालयों के परिसर और दूसरे अन्य परिसरों को अधिसूचित किया जा सकता है।
- कार्य: विश्वविद्यालय के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) फोरेंसिक विज्ञान, एप्लाइड बिहेवियरल विज्ञान, कानून और अपराध विज्ञान में प्रशिक्षण तथा अनुसंधान का प्रावधान।
(ii) कॉलेजों, स्कूलों और अनुसंधान प्रयोगशालाओं की स्थापना तथा उनका संचालन।
(iii) पाठ्यक्रम निर्धारित करना, परीक्षाएँ कराना और डिग्री एवं अन्य उपाधियाँ प्रदान करना।
- राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय विधेयक, 2020
राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय विधेयक, 2020 (Rashtriya Raksha University Bill, 2020) को संसद में पारित कर दिया गया है। विधेयक की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- विश्वविद्यालय की स्थापना: विधेयक रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय, गुजरात [रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 (Raksha Shakti University Act, 2009) के अंतर्गत स्थापित] को गुजरात में राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करता है। विधेयक इस विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित करता है। यह विधेयक 2009 के अधिनियम को रद्द करता है।
- कार्य: विश्वविद्यालय के कार्यों में शामिल हैं:
(i) पुलिस विज्ञान में निर्देश और अनुसंधान प्रदान करना जिसमें कोस्टल पुलिसिंग और साइबर सुरक्षा शामिल है।
(ii) कॉलेजों की स्थापना और उनका संचालन।
(iii) पाठ्यक्रम निर्धारित करना, परीक्षाएँ संचालित करना और डिग्री एवं अन्य उपाधियाँ प्रदान करना।
- जम्मू एवं कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक, 2020
जम्मू और कश्मीर आधिकारिक भाषा विधेयक, (Jammu and Kashmir Official Languages Bill) 2020 को संसद में पारित किया गया। विधेयक कुछ भाषाओं को केंद्रशासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर की आधिकारिक भाषाएँ घोषित करने का प्रयास करता है।
- आधिकारिक भाषा: विधेयक कश्मीरी, डोगरी, उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी को केंद्रशासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर में आधिकारिक उद्देश्य से उपयोग होने वाली आधिकारिक भाषाएँ घोषित करता है। यह प्रावधान उस तारीख से लागू होगा जिस तारीख को केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन अधिसूचित होगा। विधेयक में प्रावधान है कि केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभा इन आधिकारिक भाषाओं काम करेगी।
- अंग्रेज़ी का उपयोग: विधेयक स्पष्ट करता है कि अधिनियम के लागू होने से पहले जिन प्रशासनिक और विधायी उद्देश्यों के लिये अंग्रेज़ी का उपयोग होता था उनके लिये अब भी अंग्रेज़ी का उपयोग होता रहेगा।
कॉर्पोरेट मामले
- कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2020
कंपनी (संशोधन) विधेयक, [Companies (Amendment) Bill] 2020 संसद में पारित कर दिया गया। यह विधेयक कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) में संशोधन करता है। इसकी मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अपराधों में परिवर्तन: यह विधेयक तीन प्रमुख परिवर्तन करता है। पहला, वह 23 प्रशम्य (Compoundable) अपराधों को संस्थानिक मध्यस्थता के अंतर्गत लाता है जिसमें ज़ुर्माना/कारावास की जगह ज़ुर्माना लगाया जाएगा। दूसरा, 11 अपराधों के लिये कारावास के स्थान पर सिर्फ जुर्माना लगाया जाएगा। तीसरा, सात अपराधों को हटा दिया गया है।
- कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व (CSR): अधिनियम के अंतर्गत एक निर्दिष्ट राशि के मूल्य, टर्नओवर या लाभ कमाने वाली कंपनियों से CSR समितियों का गठन करने और पिछले तीन वित्तीय वर्षों में अपने औसत शुद्ध लाभ का 2% अपनी CSR नीति पर खर्च करने की अपेक्षा की जाती है। विधेयक उन कंपनियों को CSR समितियों के गठन से छूट देता है जिनकी CSR देनदारी प्रतिवर्ष अधिकतम 50 लाख रुपए है। इसके अतिरिक्त किसी वित्तीय वर्ष में अपने CSR बाध्यता से अधिक धनराशि खर्च करने पर अगले वित्तीय वर्ष की CSR बाध्यता में अतिरिक्त राशि जुड़ सकती है।
- विदेशी क्षेत्राधिकारों में प्रत्यक्ष सूची: विधेयक केंद्र सरकार को इस बात का अधिकार देता है कि वह सार्वजनिक कंपनियों की कुछ श्रेणियों को विदेशी क्षेत्राधिकार में प्रतिभूतियों की श्रेणियों को सूचीबद्ध करने की अनुमति दे सकती है।
शिक्षा
- भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक, 2020
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक, 2020 [Indian Institutes of Information Technology Laws (Amendment) Bill, 2020] को संसद में पारित किया गया है। यह विधेयक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2014 (Indian Institutes of Information Technology Act, 2014) और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) अधिनियम, 2017 [Indian Institutes of Information Technology (Public-Private Partnership) Act, 2017] में संशोधन करता है।
- ओपन और दूरस्थ शिक्षा, ऑनलाइन कार्यक्रमों के लिये नियम
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (ओपन और दूरस्थ शिक्षा एवं ऑनलाइन कार्यक्रम) विनियम, 2020 को अधिसूचित किया। विनियम ओपन और दूरस्थ शिक्षा मोड और ऑनलाइन मोड के माध्यम से डिग्री या डिप्लोमा प्रदान करने के लिये न्यूनतम मानकों को निर्धारित करते हैं। संस्थान केवल उन्हीं ओपन और दूरस्थ शिक्षा या ऑनलाइन कार्यक्रमों को पेश करते हैं जिन्हें कक्षा शिक्षण के परंपरागत मोड के अंतर्गत पेश किया जाता है। विनियम निम्नलिखित प्रावधान करते हैं:
- ओपन और दूरस्थ शिक्षा (ODL) कार्यक्रम: उच्च शिक्षण संस्थानों को ODL मोड में कार्यक्रम पेश करने के लिये निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना होगा:
1. राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (National Assessment and Accreditation Council -NAAC) द्वारा 3.01 (4 में से) का न्यूनतम प्रत्यायन स्कोर।
2. आवेदन के समय दो पूर्ववर्ती चक्रों में कम-से-कम एक में राष्ट्रीय संस्थान रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institute Ranking Framework- NIRF) के अंतर्गत शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में स्थान। - ऑनलाइन पाठ्यक्रम: संस्थानों को ऑनलाइन कार्यक्रमों की पात्रता के लिये निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना होगा:
1. NAAC प्रत्यायन स्कोर का 3.26 या उससे अधिक (4 में से) होना।
2. तीन पूर्ववर्ती चक्रों में से कम-से-कम एक में NIRF के अंतर्गत शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में स्थान।
ऐसे पात्र संस्थान UGC की मंज़ूरी के साथ ऑनलाइन कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं।
- कार्यक्रम: पात्र संस्थान निर्दिष्ट प्रतिबंधित कार्यक्रमों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में डिग्री या डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रदान कर सकते हैं। प्रतिबंधित कार्यक्रमों में इंजीनियरिंग, चिकित्सा, वास्तुकला, कानून और कृषि आदि क्षेत्र शामिल हैं।
- गुणवत्ता मानक: ODL या ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की पेशकश करने वाले सभी संस्थानों को आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन के लिये एक केंद्र की स्थापना करनी चाहिये। इस केंद्र का प्रमुख एक निदेशक (एसोसिएट प्रोफेसर या उससे उच्च पद का) होगा। यह केंद्र ODL और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये व्यवस्था सुनिश्चित करेगा। ODL और ऑनलाइन कार्यक्रमों के कुल क्रेडिट परंपरागत मोड के उन्हीं कार्यक्रमों के समान होंगे।
नागरिक उड्डयन
- एयरक्राफ्ट (संशोधन) विधेयक, 2020
एयरक्राफ्ट (संशोधन) विधेयक, 2020 [Aircraft (Amendment) Bill, 2020] को संसद द्वारा पारित कर दिया गया है। विधेयक एयरक्राफ्ट अधिनियम, 1934 (Aircraft Act, 1934) में संशोधन का प्रयास करता है। अधिनियम सिविल एयरक्राफ्ट की मैन्युफैक्चरिंग, उन पर कब्ज़ा, इस्तेमाल, परिचालन, बिक्री, आयात और निर्यात तथा एयरोड्रोम्स की लाइसेंसिंग को विनियमित करता है। विधेयक के मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अथॉरिटीज़: विधेयक नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अंतर्गत तीन मौजूदा निकायों को अधिनियम के तहत वैधानिक निकाय बनाता है। ये अथॉरिटीज़ हैं:
1. नागर विमानन महानिदेशालय (Directorate General of Civil Aviation- DGCA)
2. नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (Bureau of Civil Aviation Security- BCAS)
3. विमान दुर्घटना जाँच ब्यूरो (Aircraft Accidents Investigation Bureau- AAIB)।
इनमें से प्रत्येक निकाय का एक डायरेक्टर जनरल होगा, जिसकी नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी।
- DGCA कानून या कानून के अंतर्गत अधिसूचित नियमों में निर्दिष्ट सुरक्षा निरीक्षण और नियामक कार्यों को पूरा करेगा (इनमें नागरिक वायु विनियम, वायु सुरक्षा और वायु सुरक्षा मानक शामिल हो सकते हैं)। BCAS अधिनियम के अंतर्गत निर्दिष्ट नागरिक उड्डयन सुरक्षा से संबंधित विनियामक निरीक्षण कार्यों को पूरा करेगा (ये हवाई अड्डे के संचालक, एयरलाइंस संचालक और उनकी सुरक्षा एजेंसियों के लिये हो सकते हैं)। AAIB विमान दुर्घटनाओं और हादसों से संबंधित जाँच करेगा।
- अपराध और सज़ा: अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न अपराधों के लिये अधिकतम दो वर्ष की सज़ा या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों सज़ा हो सकती है। इन अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं:
(i) एयरक्राफ्ट में हथियार, विस्फोटक या दूसरी खतरनाक वस्तुएँ ले जाना।
(ii) अधिनियम के अंतर्गत किसी निर्दिष्ट नियम का उल्लंघन करना।
(iii) एयरोड्रोम रेफ्रेंस प्वाइंट के इर्द-गिर्द के रेडियस में बिल्डिंग बनाना या दूसरे प्रकार के कंस्ट्रक्शन करना। विधेयक इन सभी अपराधों पर जुर्माने को बढ़ाकर 10 लाख रुपए से एक करोड़ रुपए तक करता है।
विधि और न्याय
- आभासी न्यायालयों पर स्थायी समिति की रिपोर्ट
कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति (अध्यक्ष: भूपेन्द्र यादव) ने आभासी न्यायालयों की कार्यपद्धति पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने इस बात पर ज़ोर दिया कि देश के पारिस्थितिकी तंत्र में आभासी अदालतों को एकीकृत करने की आवश्यकता है। मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- डिजिटल डिवाइड: समिति ने कहा कि बड़े पैमाने पर अधिवक्ताओं और वादियों को बुनियादी ढाँचा और हाई स्पीड जैसी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं जो आभासी सुनवाई के लिये बहुत आवश्यक हैं। इस समस्या को हल करने के लिये निजी एजेंसियों को शामिल करने की संभावनाओं को तलाशा जाना चाहिये ताकि उन लोगों तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग उपकरणों की सुविधा सुनिश्चित हो सके जो कि तकनीक के जानकर (Tech-savvy) नहीं हैं। इससे वे लोग न्यायालयों से जुड़ पाएंगे।
- कनेक्टिविटी डिवाइड: कनेक्टिविटी डिवाइड पर समिति ने सुझाव दिया कि सरकार को राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन का समय पर कार्यान्वयन करने के लिये प्रयासों में तेज़ लानी चाहिये।
- स्किल डिवाइड: इस पर समिति ने सुझाव दिया है कि देश के सभी न्यायालय परिसरों में प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिये ताकि अधिवक्ताओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम करने के लिये ज़रूरी दक्षता हासिल हो। समिति ने यह सुझाव भी दिया कि भारतीय बार परिषद (Bar Council of India) को कॉलेजों में कानून के पाठ्यक्रम के साथ कंप्यूटर पाठ्यक्रम को भी एक विषय के तौर पर शुरू करना चाहिये।
- अधीनस्थ न्यायालय: समिति ने कहा कि निचली अदालतों में बुनियादी ढाँचा मौजूद नहीं हैं और उन्हें आभासी न्यायालयों को अपनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। चूँकि आभासी न्यायालयों में शुरुआत में अधिक निवेश की आवश्यकता होती है, इसलिये समिति ने सुझाव दिया कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल जैसे वित्तपोषण के नए तरीकों की तलाश की जानी चाहिये।
- आभासी न्यायालयों को जारी रखना: समिति ने सुझाव दिया कि कुछ निर्दिष्ट प्रकार की अपीलों और अंतिम सुनवाइयों (जहाँ शारीरिक उपस्थिति आवश्यक नहीं) में सभी पक्षों की सहमति से प्रायोगिक आधार पर आभासी सुनवाइयों की मौजूदा प्रणाली को जारी रखा जाए।
- आगे का रास्ता: समिति ने सुझाव दिया कि बार संघों और बार परिषदों (Bar Associations and Bar Councils) के सदस्यों के परामर्श से पायलट आधार पर पूर्ण रूप से आभासी न्यायालय प्रणाली को लागू किया जाए। समिति ने यह सुझाव भी दिया कि जिन मामलों में व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है, उन सभी को आभासी न्यायालयों में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिये। जिन मामलों में कानून और तथ्यों की व्याख्या करनी हो तथा बड़ी संख्या में गवाहों की जाँच करनी हो, उनमें मैनुअल प्रक्रियाओं (जैसे कि शिकायत दर्ज करना और सम्मन जारी करना) के डिजिटलीकरण के लिये हाइब्रिड मॉडल को अपनाया जा सकता है और सुनवाई फिज़िकल अदालतों में की जा सकती है।
सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 अधिसूचित किया गया। इन नियमों को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है। अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण और संरक्षण का प्रावधान करता है। नियमों में मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएँ शामिल हैं:
- पहचान प्रमाणपत्र जारी करना: अधिनियम के अंतर्गत ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पहचान प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट को आवेदन करना होगा। आवेदन के लिये नियमों में अपेक्षा की गई है कि आवेदनपत्र के साथ लैंगिक पहचान वाला एक शपथ पत्र जमा कराया जाएगा।
- नाबालिग की स्थिति में माता-पिता या अभिभावक यह आवेदन कर सकते हैं। जिस बच्चे को देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होगी उसके लिये किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अंतर्गत गठित बाल कल्याण समिति आवेदन करेगी।
- प्रमाणपत्र को 30 दिनों के भीतर जारी किया जाना चाहिये। ज़िला मजिस्ट्रेट ट्रांसजेंडर को पहचानपत्र भी जारी करेगा। ज़िला मजिस्ट्रेट किसी आवेदक को उस स्थिति में प्रमाणपत्र जारी कर सकता है यदि वह उसके क्षेत्राधिकार में पिछले 1 वर्ष से लगातार रह रहा हो।
- संशोधित प्रमाणपत्र जारी करना: यदि व्यक्ति ने सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी कराई है तो सर्जरी करने वाले अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक या मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा जारी एक प्रमाणपत्र भी जमा करना होगा। उस व्यक्ति का पुरुष या महिला जेंडर वाला संशोधित प्रमाणपत्र 15 दिनों के भीतर जारी किया जाएगा।
- अपील: यदि पहचान प्रमाणपत्र का आवेदन रद्द कर दिया जाता है, तो आवेदक 90 दिनों के भीतर इस फैसले के विरुद्ध (अधिसूचित अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष) अपील कर सकता है।
- कल्याणकारी उपाय: केंद्र और राज्य सरकार चिकित्सा बीमा, ट्रांसजेंडर छात्रों के लिये छात्रवृत्ति और सस्ते आवास आदि कल्याणकारी योजनाएँ तैयार कर सकती है। सभी शैक्षणिक संस्थानों में एक ऐसी समिति होनी चाहिये जिससे उत्पीड़न या भेदभाव की स्थिति में ट्रांसजेंडर व्यक्ति संपर्क कर सके। इसके अतिरिक्त सभी प्रतिष्ठानों में एक समान अवसर नीति तथा शिकायत अधिकारी होना चाहिये।
वाणिज्य और उद्योग
- रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से अधिकतम FDI
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) ने रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) नीति में परिवर्तनों को अधिसूचित कर दिया है। यह नीति क्षेत्र की उन कंपनियों पर लागू होती है जो उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 [Industries (Development & Regulation) Act, 1951] और आयुध अधिनियम, 1959 (Arms Act, 1959) के अंतर्गत लाइसेंसिंग के अधीन हैं।
- सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) आदेश, 2017
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) ने सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) आदेश, [Public Procurement (Preference to Make in India) Order], 2017 में संशोधन किया है। संशोधन सरकारी खरीद अनुबंधों में स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं को प्राथमिकता देने का प्रावधान करता है। 2017 का आदेश स्थानीय सामग्री की मात्रा के आधार पर आपूर्तिकर्त्ताओं को वर्गीकृत करता है:
(i) वर्ग- I स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता (50% या उससे अधिक)।
(ii) वर्ग- II स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता (20%-50%)।
(iii) गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता (20% से कम)।
भारत में मूल्य संवर्द्धन की मात्रा स्थानीय सामग्री होती है जिसकी गणना किसी वस्तु के कुल मूल्य से आयातित सामग्री की मात्रा को घटाकर (कुल मूल्य के प्रतिशत के रूप में) की जाती है। संशोधन के मुख्य प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अनेक बोलीकर्त्ताओं के अनुबंधों में भी प्राथमिकता का प्रावधान: वर्ग- I के आपूर्तिकर्त्ताओं को दी जाने वाली प्राथमिकता उन निविदाओं पर लागू होती है जिसमें कई बोली लगाने वालों को अनुबंध दिया जाता है। इसमें प्राथमिकता इस प्रकार है:
(i) जहाँ पर्याप्त स्थानीय क्षमता है वहाँ अन्य आपूर्तिकर्त्ताओं की भागीदारी को प्रतिबंधित करना।
(ii) यह सुनिश्चित करना कि कम-से-कम 50% अनुबंध वर्ग- I के आपूर्तिकर्त्ताओं द्वारा पूरा किया जाए, जो इस शर्त के अधीन है कि उन आपूर्तिकर्त्ताओं का मूल्य प्राथमिकता की सीमा के भीतर आता हो। प्राथमिकता का दायरा वह अधिकतम सीमा होती है जिसमें वर्ग- I के आपूर्तिकर्त्ताओं द्वारा उद्धृत मूल्य अनुबंध के लिये मिली सबसे कम बोली से अधिक हो सकता है। - विदेशी भागीदारी के लिये संयुक्त उपक्रम: जिन वस्तुओं की खरीद के लिये नोडल मंत्रालय ने यह अधिसूचित नहीं किया है कि उसके पास पर्याप्त स्थानीय क्षमता है, उन निविदाओं को विदेशी कंपनियाँ भर सकती हैं। एक सीमा से अधिक वाले अधिसूचित अनुबंधों के लिये विदेशी कंपनियाँ किसी भारतीय कंपनी के साथ संयुक्त उपक्रम के माध्यम से भागीदार बन सकती हैं।
- स्थानीय सामग्री की सीमा: संशोधन वर्ग- I और वर्ग- II के आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये स्थानीय सामग्री की सीमा को क्रमशः 50% और 20% पर बरकरार रखता है। जो स्पष्ट करता है कि ये न्यूनतम सीमाएँ हैं और यह कि नोडल मंत्रालय सिर्फ स्थानीय सामग्री की अधिकतम सीमा निर्दिष्ट कर सकता है। उल्लेखनीय है कि मंत्रालय की सामग्री की न्यूनतम सीमा से छूट देने की शक्ति अब भी लागू होती है।
- विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर प्रतिबंध: आदेश में नोडल मंत्रालय को अनुमति दी गई है कि वह कुछ देशों की कंपनियों को खरीद अनुबंध में भाग लेने से प्रतिबंधित कर सकता है यदि उसे पता चलता है कि उन्हीं वस्तुओं के भारतीय आपूर्तिकर्त्ताओं को इन देशों की सरकारी खरीद में भाग लेने से रोका गया है। ऐसे देशों की कंपनियों को रोकने या न रोकने का निर्णय लेने का अधिकार नोडल मंत्रालय के विवेकाधीन है। संशोधन सिर्फ मंत्रालय द्वारा प्रकाशित वस्तुओं की एक सीमित सूची के अतिरिक्त बाकी सभी खरीद अनुबंधों में इन देशों की कंपनियों को भाग लेने से रोकता है।
रक्षा
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया, 2020
रक्षा मंत्रालय ने रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure- DAP), 2020 का मसौदा जारी किया है। DAP मसौदा रक्षा खरीद प्रक्रिया, 2016 का स्थान लेता है। यह 1 अक्तूबर, 2020 से 30 सितंबर, 2025 तक या संशोधित होने तक जारी रहेगा।
कार्मिक
- मिशन कर्मयोगी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सिविल सेवा सदस्यों के लिये राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम (National Programme for Civil Services Capacity Building- NPCSCB) शुरु करने की मंज़ूरी प्रदान की है।
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी
- 118 मोबाइल एप पर प्रतिबंध
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology) ने 118 एप्स को इस आधार पर प्रतिबंधित कर दिया कि वे देश की संप्रभुता, अखंडता, रक्षा और सुरक्षा तथा सार्वजनिक व्यवस्था के लिये खतरा हैं। इन एप्स में पबजी मोबाइल लाइट, एलीपे और बाइडू शामिल हैं। मोबाइल और गैर-मोबाइल इंटरनेट सक्षम उपकरणों पर इन एप्स का उपयोग नहीं किया जा सकता है। जून 2020 में मंत्रालय ने इसी तरह के आधार पर TikTok, Shareit, UC Browser और Cam Scanner सहित 59 मोबाइल एप्स पर प्रतिबंध लगाया था।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा
- ग्रीन टर्म अहेड मार्केट
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry for New and Renewable Energy) ने 1 सितंबर, 2020 को ग्रीन टर्म अहेड मार्केट (Green Term Ahead Market- GTAM) की शुरुआतकी की। टर्म अहेड मार्केट, ऐसा मार्केट प्लेटफॉर्म है जिसमें उर्जा का अधिकतम 11 दिनों की अवधि के आधार कारोबार किया जा सकता है। GTAM से अक्षय ऊर्जा की अल्पकालिक खरीद में प्रतिस्पर्द्धी मूल्य और पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। मार्केट की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- GTAM अनुबंधों को सोलर नवीकरणीय विद्युत दायित्त्वों (Renewable Power Obligations- RPO) और गैर-सोलर RPO में वर्गीकृत किया जाएगा। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली की न्यूनतम निर्दिष्ट मात्रा के उत्पादन या खरीद के लिये RPO अनिवार्य है। अनुबंधों की परिभाषा में ग्रीन इंट्रा डे, डे अहेड कंटीजेंसी, दैनिक या साप्ताहिक अनुबंध शामिल हैं।
- GTAM अनुबंधों के माध्यम से खरीदी गई बिजली को खरीदार पर लागू RPO लक्ष्य के अंतर्गत माना जाएगा।
- प्राइज़ टाइम प्रायोरिटी/प्राथमिकता के आधार पर मूल्य तय किये जाएंगे। प्राइज़ टाइम प्रायोरिटी के आधार पर बोलियों और प्रस्तावों को उनके निष्पादन के मूल्य के आधार पर रैंक प्रदान की जाती है। एक ही मूल्य की दो बोलियों या प्रस्तावों की स्थिति में व्यापार प्लेटफॉर्म में पहले दर्ज की गई बोली या प्रस्ताव को पहला रैंक दिया जाएगा।
जल संसाधन
- भूजल निकासी को विनियमित और नियंत्रित करने के लिये दिशा-निर्देश
जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) ने देश में भूजल निकासी को विनियमित और नियंत्रित करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं । ये दिशा-निर्देश वर्ष 2018 के उन दिशा-निर्देशों को प्रतिस्थापित करते हैं जिन्हें वर्ष 2019 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रद्द कर दिया था। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा था कि वर्ष 2018 के दिशा-निर्देश अपरिहार्य हैं और अगर इन्हें लागू किया गया तो भूजल का स्तर तेज़ी से गिरेगा तथा जलाशयों को नुकसान होगा। नए दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC): भूजल निकासी करने वाले सभी उद्योगों, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और खनन परियोजनाओं को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण या संबंधित राज्य भूजल प्राधिकरण से NOC लेने की आवश्यकता होगी।
- छूट: उपभोक्ताओं की कुछ श्रेणियों को भूजल निकासी के लिये NOC लेने से छूट दी जाएगी। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
1. पेयजल और घरेलू उपयोग के लिये ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में व्यक्तिगत घरेलू उपभोक्ता।
2. सशस्त्र बलों के संस्थापन एवं ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की स्थापना।
3. कृषि संबंधी गतिविधियाँ।
4. प्रतिदिन 10 घन मीटर से कम पानी निकलने वाले सूक्ष्म और लघु उपक्रम। - कृषि उपयोग: राज्य किसानों को बिजली मुफ्त या सब्सिडी पर देने की नीति पर विचार कर सकते हैं। वे जल मूल्य निर्धारण नीति बनाने तथा फसल चक्रीकरण, विविधीकरण तथा अन्य उपायों पर विचार कर सकते हैं ताकि किसान भूजल पर बहुत अधिक निर्भर न रहें।
भूजल का ऐब्स्ट्रैक्शन शुल्क: दिशा-निर्देशों में विभिन्न प्रकार के प्रयोक्ताओं के लिये भूजल संक्षेपण (Abstraction) शुल्क की दरें भी अलग-अलग हैं। सभी आवासीय अपार्टमेंट, ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, उद्योगों, खनन, और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को भूजल निकासी की मात्रा और मूल्यांकन इकाई की श्रेणी के आधार पर संक्षेपण शुल्क का भुगतान करना होगा।
ज़ुर्माना: दिशा-निर्देशों में बिना NOC के भूजल निकासी पर उद्योगों, खनन और बुनियादी ढाँचे के प्रयोक्ताओं के लिये न्यूनतम एक लाख रुपए का मुआवज़ा निर्दिष्ट किया गया है। इसके बाद जल निकासी की मात्रा और उल्लंघन की अवधि के आधार पर इसे और बढ़ाया जा सकता है।
सड़क परिवहन
- केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में संशोधन
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) ने केंद्रीय मोटर वाहन (11वां संशोधन) नियम [Central Motor Vehicles (Eleventh Amendment) Rules], 2020 को अधिसूचित किया। केंद्रीय मोटर वाहन नियम (Central Motor Vehicle Rules), 1989 मोटर वाहनों के लिये लाइसेंस और परमिट तथा मानदंडों को विनियमित करता है। मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- ई-चालान: अधिकृत अधिकारी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से (या ऑटो जनरेशन के माध्यम से) चालान जारी कर सकता है।
- इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणपत्र: 1989 के नियमों में कहा गया था कि निरीक्षण के दौरान आवश्यक प्रमाण-पत्रों की वैध भौतिक प्रतिलिपि को मंज़ूर किया जाएगा। संशोधित नियम ड्राइवरों और कंडक्टरों को निरीक्षण और नियामक अनुपालन की स्थिति में वैध इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण-पत्र तथा फॉर्म रखने की अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त दस्तावेज़ों को ज़ब्त करने की स्थिति में प्रमाण-पत्र एक निर्दिष्ट पोर्टल के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सौंपे जा सकते हैं।
- फास्टैग
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एक मसौदा अधिसूचना जारी की है जिसमें प्रस्ताव रखा गया है कि वर्ष 2017 से पहले बेचे गए सभी वाहनों में फास्टैग (FASTag) को अनिवार्य किया जाए। इसके अतिरिक्त यह भी प्रस्ताव रखा गया है कि केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधनों के माध्यम से थर्ड-पार्टी इंश्योरेंस लेना अनिवार्य किया जाना चाहिये।
फास्टैग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा संचालित एक इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली है। इसे वर्ष 2017 में नए चार पहिया वाहनों के पंजीकरण हेतु अनिवार्य किया गया था।