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संसद टीवी संवाद


भारतीय अर्थव्यवस्था

आत्मनिर्भर भारत में उद्योग जगत का योगदान

  • 25 Aug 2021
  • 13 min read

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री ने भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के वार्षिक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि उद्योग को आत्मनिर्भर भारत अभियान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

  • उन्होंने यह भी बताया कि भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक क्षेत्र एवं व्यापार करने में सुविधा प्रदान करने के लिये कर एवं व्यापार में सुगमता (EoDB) से जुड़ी नीतियों में क्या परिवर्तन किया गया है।

शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ

  • निवेशक के अनुकूल माहौल: प्रधानमंत्री ने भारत में व्यापार के माहौल को निवेशक एवं व्यापार के अनुकूल बताया और कहा कि जहाँ तक उद्योगों का संबंध है, यहाँ बहुत सारी संभावनाएँ हैं।
  • नए अवसर का फायदा उठाना: उन्होंने कहा कि उद्योगों के नेतृत्व में भारत नए अवसरों को भुनाएगा।
    • फिलहाल नई उभरती स्थितियाँ हैं जिनसे जुड़े नए नीतिगत पहलें भी हैं, जिन्हें भारत को अपने फायदे के अनुसार उपयोग करना होगा।
  • मेक इन इंडिया को पुनर्परिभाषित करना: प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया के विचार को फिर से परिभाषित किया और मेड बाई इंडिया के बजाय मेक इन इंडिया पर ज़ोर दिया।
    • कोई भी विदेशी कंपनी जो भारत में आती है और भारत में कुछ बनाती है, वह भी भारत में निर्मित उत्पादों का एक हिस्सा है।
    • यह विचार बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे FDI और FPI बढ़ावा मिलेगा है।
  • व्यापार में सुगमता और कराधान: व्यापार करने में आसानी पर ज़ोर दिया गया है और अतीत की गलतियों में सुधार के रूप में पूर्वव्यापी कर संशोधन विधेयक की शुरुआत का हवाला दिया।
  • भारत में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र: शिखर सम्मेलन ने देश में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और भारत में यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स (स्टार्टअप, जिनका बाज़ार मूल्यांकन कम-से-कम 1 बिलियन डॉलर है) की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि पर प्रकाश डाला।
    • इन 60 में से लगभग 21 यूनिकॉर्न महामारी के वर्षों के दौरान प्रकाश में आए।
  • कृषि को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ना: कृषि सुधार जो अब तक निलंबित रहे हैं, इन पर एक बार फिर से ज़ोर दिया जाएगा।
    • शिखर सम्मेलन में कृषि कानूनों की मदद से कृषि को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने पर भी ध्यान दिया गया।

उद्योगों के लिये सरकार की पहल

  • सीमा शुल्क लागू करना:  सौर ऊर्जा के क्षेत्र में लंबे समय से चीन से सौर पैनलों के आयात का मुद्दा लंबित था और भारतीय उद्योग जगत उपयुक्त प्रोत्साहन की मांग कर रहा था ताकि भारत में सौर पैनलों का निर्माण शुरू हो सके।
    • इस संबंध में भारत सरकार ने 1 अप्रैल, 2022 से सौर मॉड्यूल पर 40% और सौर सेल पर 25% मूल सीमा शुल्क (BCD) लगाने का निर्णय लिया है।
    • इस कदम से आयात महँगा होगा और स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • इसके अलावा भारत में हर साल लगभग 10-15 गीगावाट सौर बिट्स के साथ पर्याप्त मांग पैदा हो रही है।
  • स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन: सभी क्षेत्रों में स्टार्टअप, विशेष रूप से महामारी के बीच विकास की पहचान रहे हैं।
    • ये स्टार्टअप ही थे जो नवीन विचारों के साथ आए और अपना संचालन बढ़ाया और उनमें से कुछ यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स भी बन गए।
    • स्टार्टअप इंडिया अभियान वर्ष 2016 में उद्यमियों का समर्थन करने और भारत को नौकरी खोजने वाले देश के बजाय नौकरी देने वाले देश में बदलने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • घरेलू उद्योगों को टैरिफ आधारित विशेषाधिकार: टैरिफ में कमी के माध्यम से भारत को एक प्रतिस्पर्द्धी स्थान बनाने की पिछली नीतियों के विपरीत सरकार ने टैरिफ आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करने की बात की है।
    • यदि किसी विदेशी कंपनी को भारत में प्रतिस्पर्द्धा करनी है, तो वह देश के भीतर ही वस्तुओं का उत्पादन करेगी या सेवाएँ प्रदान करेगी क्योंकि भारत में वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात करके भारतीय उत्पादों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने पर अब उन्हें बढ़े हुए टैरिफ का सामना करना पड़ेगा।
    • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्द्धा की भावना को बढ़ाना नहीं है, बल्कि टैरिफ संरक्षण प्रदान करके उन्हें प्रोत्साहित करना है।

संबंधित मुद्दे

  • उपभोक्ताओं की पसंद सीमित करना: प्रस्तावित नीतियाँ प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहित करती हैं। यह उद्योगों को एक ऐसे बाज़ार की आशा में अधिक निवेश करने के लिये प्रोत्साहित कर रहा है जो आयात के माध्यम से होने वाली प्रतिस्पर्द्धा के खिलाफ निरपेक्ष रहेगा।
    • यह कुछ हद तक सफल हो सकता है लेकिन कुछ बिंदुओं पर बेहतर विकल्प और खुली एवं स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा के लिये उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग आवश्यक होगी।
  • टैरिफ बाधाएँ उपभोक्ताओं पर बोझ: घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये बनाई गई टैरिफ बाधाएँ बहुत लंबे समय तक नहीं चल सकती हैं।
    • मॉड्यूल पर जो 40% शुल्क लगाया गया है, वह लगभग 20-30 पैसे अधिक टैरिफ है, जो अंततः उपभोक्ताओं को चुकाना होगा।
    • ग्राहकों को उच्च टैरिफ का बोझ नहीं उठाना होगा।
  • टैरिफ संरक्षण, एक अल्पकालिक विशेषाधिकार: घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के अलावा भारतीय निर्माताओं को निर्यात पर ध्यान देना होगा और इसलिये विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी होना आवश्यक है।
    • यह प्रोत्साहन उन्हें चीनी आपूर्त्तिकर्त्ताओं से बचाने के लिये एक अल्पकालिक विशेषाधिकार है। लंबे समय में इन निर्माताओं को आगे बढ़कर विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनना होगा।
    • साथ ही यह कदम केवल सीमित क्षेत्रों के लिये ही फायदेमंद है। जिन क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा काफी अधिक है, वहाँ कुछ संशोधनों की आवश्यकता होगी।
  • बार-बार नियामक संस्था में परिवर्तन: उद्योग को टैरिफ बाधाओं के अलावा और भी बहुत कुछ चाहिये। उन्हें एक स्थायी नियामक संस्था की आवश्यकता है जो कि अधिकांश क्षेत्रों में नहीं है।
    • लगभग हर तिमाही में होने वाले नियामक संस्था में परिवर्तन बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिये समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।
    • एक अधिक स्पष्ट समय-सीमा की भी आवश्यकता है ताकि विभिन्न क्षेत्रों में सभी नीतिगत परिवर्तनों की योजना निरंतरता के साथ या सुनियोजित ढंग से बनाई जाए ताकि त्वरित रूप से व्यवसायी या उद्योग जगत के सामने समस्या न आए।
  • केंद्र और राज्यों के बीच सहमति का अभाव: केंद्र और राज्य सरकारों के निर्देशों में बहुत अंतर है; शायद ही कोई आम सहमति हो।
    • केंद्र और राज्यों की विभिन्न नीतियों के संदर्भ में उद्योगों को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

आगे की राह

  • वैश्विक मानकों के साथ तालमेल बिठाना: भारत सरकार ने उद्योग जगत को बेहतर बनाने के लिये जो कार्य किया जा रहा है उसे भी वैश्विक परिवेश की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिये।
    • वर्तमान में लंदन इंटर-बैंक की पेशकश दर (LIBOR) 0.15-0.16% जितनी कम है और साथ ही सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) पर दर लगभग 5%-5.5% है।
    • इस तरह पूंजी जुटाने के अधिक अवसर हैं। ग्लोबल पेंशन फंड्स, प्राइवेट इक्विटी प्लेयर्स और ECB लेंडर्स के रूप में भारत में बहुत सारे नए निवेश आ रहे हैं।
    • ये सभी बहुत ही आकर्षक रिटर्न वाले फंड हैं जो फंड की तलाश करने वाले सभी लोगों के लिये काफी अनुकूल हैं।
    • ज़रूरत इस बात की है कि भारत सरकार को यह देखना होगा कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार वर्तमान में कहाँ खड़ा है एवं भारतीय बाज़ार कहाँ पर। साथ ही, दोनो को एक सतह पर लाने की कोशिश की जाए।
  • उद्योग और कृषि के बीच सहयोग: भारतीय कृषि को जिस चीज़ की तत्काल आवश्यकता है, वह है अधिक-से-अधिक निवेश और नवीनतम तकनीक का समावेश।
    • भारतीय उद्योग भारतीय कृषि के साथ निम्न तरीके से जुड़ सकता है:
      • इसमें अधिक संसाधनों का निवेश करना।
      • खेती और सिंचाई प्रक्रियाओं में नवीनतम तकनीकों का प्रयोग करना।
      • भंडारण की सुविधा उपलब्ध कराना।
      • किसानों को शोषण से बचाने के उपायों के साथ उपज को बाज़ार में लाने की स्वतंत्रता प्रदान करना।
      • इससे भारतीय उद्योगों, कृषि क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अवसरों में वृद्धि होगी।
  • घरेलू निर्माताओं को दीर्घकालिक समाधान प्रदान करना: घरेलू निर्माताओं के लिये टैरिफ आधारित सुरक्षा उनकी समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान नहीं है।
    • यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इस प्रकार का कदम केवल एक अल्पकालिक समाधान है। बुनियादी ढाँचे में सुधार और यह सुनिश्चित करना कि उचित और प्रतिस्पर्द्धी दर पर उद्योगों को पूंजी उपलब्ध कराई जाए,अधिक आवश्यक है।
    • बाज़ार में सुधार भूमि और श्रम के संदर्भ में हो ताकि भारतीय उद्योग अपनी वास्तविक क्षमता के साथ उभर कर सामने आ सके।

निष्कर्ष

सरकार और उद्योग जगत को आगे बढ़कर आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिये मिलकर काम करना चाहिये।

सरकार की ओर से बहुत सारे नीतिगत बदलाव किये गए हैं और उद्योग जगत ने भी वास्तव में कड़ी मेहनत की है लेकिन कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिन पर दोनों हितधारकों को ध्यान देना चाहिये।

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