पर्सपेक्टिव: भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचना | 01 Jul 2024
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), विदेशी मुद्रा भंडार,वर्ष 1990-91 का आर्थिक संकट ,भुगतान संतुलन,स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), मूल्यवृद्धि, अवमूल्यन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मेन्स के लिये:भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार तथा भारतीय अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के हालिया आँकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 655.817 अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- इसके अतिरिक्त भारत की विदेशी मुद्रा आस्तियाँ (FCA), जो विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, बढ़कर 576.337 बिलियन अमेरीकी डॉलर हो गई।
- जबकि स्वर्ण भंडार बढ़कर 56.982 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
- RBI के अनुसार, वर्तमान में भारत के पास लगभग 11 महीने के अनुमानित आयात को कवर करने के लिये विदेशी मुद्रा भंडार है।
विदेशी मुद्रा भंडार क्या है?
- विदेशी मुद्रा भंडार एक केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्राओं में आरक्षित रखी गई परिसंपत्तियाँ हैं, जिनमें बॉण्ड, ट्रेजरी बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल हो सकती हैं।
- वर्ष 1990-91 के आर्थिक संकट के पश्चात् सी. रंगराजन तथा वाई. वी. रेड्डी की अध्यक्षता में भुगतान संतुलन पर उच्च स्तरीय समिति ने सिफारिश की थी कि भारत के पास 12 महीने की आयात आवश्यकताओं के लिये विदेशी मुद्रा भंडार होना चाहिये।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के प्रमुख घटक क्या हैं?
- भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में शामिल हैं:
- विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ
- स्वर्ण भंडार
- विशेष आहरण अधिकार
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ आरक्षित स्थिति।
- यह ध्यान देने योग्य बात है कि अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में रखे जाते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार रखने का उद्देश्य क्या है?
- आमतौर पर विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता उन देशों को होती है जो अपने आयातों का भुगतान अपनी मुद्राओं में नहीं कर सकते और उन्हें इस उद्देश्य के लिये विदेशी मुद्राओं की आवश्यकता होती है।
- भारत में विदेशी मुद्रा भंडार मुख्य रूप से मौद्रिक एवं विनिमय दर प्रबंधन की नीतियों में विश्वास को समर्थन के साथ-साथ उसे बनाए रखकर आर्थिक सुरक्षा के उद्देश्य को पूर्ण करता है।
- राष्ट्रीय मुद्रा के समर्थन में हस्तक्षेप करने की क्षमता प्रदान करता है।
- संकट की स्थिति या जब उधार लेने की सुविधा सीमित हो जाती है, तब कटौती को अवशोषित करने के लिये विदेशी मुद्रा तरलता बनाए रखकर बाह्य भेद्यता को सीमित किया जाता है।
बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार का क्या महत्त्व है?
- सरकार के लिये बेहतर स्थिति: विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही बढ़ोतरी भारत के बाहरी और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार तथा RBI को बेहतर स्थिति प्रदान करता है।
- संकट प्रबंधन: यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन (Balance of Payment- BoP) संकट की स्थिति से निपटने में मदद करता है।
- रुपया मूल्यह्रास (Rupee Appreciation): बढ़ते भंडार ने डॉलर के मुकाबले रुपए को मज़बूत करने में मदद की है।
- बाज़ार में विश्वास: भंडार बाज़ारों और निवेशकों को विश्वास का एक स्तर प्रदान करेगा जिससे एक देश अपने बाहरी दायित्वों को पूरा कर सकता है।
क्या हर देश को विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता है?
- नहीं, हर देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार होना ज़रूरी नहीं है। किसी देश द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखना उसके उद्देश्य पर निर्भर करता है।
- विभिन्न देशों में विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग अलग-अलग तरीके से किया जाता है, जैसे सिंगापुर में इसका उपयोग संप्रभु धन निधि के रूप में किया जाता है।
- जबकि भारत में इसे आयात बिल प्रबंधन और रुपए के विनिमय दर प्रबंधन के संबंध में आर्थिक सुरक्षा के लिये बनाए रखा जाता है।
- अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को बड़े विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनकी मुद्राएँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य हैं।
कम विदेशी मुद्रा भंडार की चुनौतियाँ क्या हैं?
- आर्थिक संकट: कम विदेशी मुद्रा भंडार से भुगतान संतुलन का संकट उत्पन्न हो सकता है, जैसा कि वर्ष 1990-91 के दौरान भारत में तथा हाल के वर्षों में श्रीलंका जैसे देशों में देखा गया।
- निवेशकों का विश्वास: कम विदेशी मुद्रा भंडार का अर्थ है देश की अर्थव्यवस्था में निवेशकों का कम विश्वास, जिसके कारण निवेश में बदलाव आता है।
- आयात लागत में वृद्धि: विदेशी मुद्रा भंडार कम होने के कारण, देश को कच्चे तेल, मशीनरी और कच्चे माल जैसे आवश्यक आयातों को वहन करने में कठिनाई हो सकती है, जिससे आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
- मुद्रास्फीति का दबाव: कम विदेशी मुद्रा भंडार के कारण डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जिससे आयात महँगा हो जाता है। आयात लागत में यह वृद्धि वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकती है, जिससे समग्र मुद्रास्फीति में योगदान होता है।
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA)
- FCA ऐसी संपत्तियाँ हैं जिनका मूल्यांकन देश की स्वयं की मुद्रा के अलावा किसी अन्य मुद्रा के आधार पर किया जाता है।
- FCA, विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है। इसे डॉलर के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- FCA पर विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्रा की कीमतों में अभिमूल्यन (Appreciation) या अवमूल्यन (Depreciation) का प्रभाव पड़ता है।
विशेष आहरण अधिकार
- विशेष आहरण अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) द्वारा वर्ष 1969 में अपने सदस्य देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति के रूप में बनाया गया था।
- SDR न तो एक मुद्रा है और न ही IMF पर इसका दावा किया जा सकता है। बल्कि यह IMF के सदस्यों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने योग्य मुद्राओं पर एक संभावित दावा है। इन मुद्राओं के लिये SDR का विनियमन किया जा सकता है।
- SDR के मूल्य की गणना ‘बास्केट ऑफ करेंसी’ में शामिल मुद्राओं के औसत भार के आधार पर की जाती है। इस बास्केट में पाँच देशों की मुद्राएँ शामिल हैं- अमेरिकी डॉलर, यूरोप का यूरो, चीन की मुद्रा रॅन्मिन्बी, जापानी येन और ब्रिटेन का पाउंड।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में आरक्षित भंडार:
- रिज़र्व ट्रेन्च का तात्पर्य मुद्रा के आवश्यक कोटे के एक हिस्से से है जो प्रत्येक सदस्य देश को IMF को प्रदान करना होता है, जिसका उपयोग अपने स्वयं के उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
- रिज़र्व ट्रेन्च का उपयोग सदस्य देश अपने स्वयं के प्रयोजनों के लिये कर सकते हैं। इस मुद्रा का प्रयोग सामान्यतः आपातकाल स्थिति में किया जाता है।
आगे की राह
- निर्यात बढ़ाएँ: निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिये नीतियों को लागू करना।
- FDI को बढ़ावा देना: स्थिर, दीर्घकालिक पूंजी लाने के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हेतु अनुकूल वातावरण बनाना।
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना: आयात पर निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिये आवश्यक वस्तुओं के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना।
- रणनीतिक वस्तु भंडार: वैश्विक मूल्य अस्थिरता से निपटने हेतु कच्चे तेल जैसे महत्त्वपूर्ण आयातों के लिये रणनीतिक भंडार स्थापित करना।
- लचीली विनिमय दरें: बाहरी झटकों को अवशोषित करने और भंडार पर दबाव कम करने के लिये अधिक लचीली विनिमय दर नीतियों की अनुमति देना।
- पारदर्शी नीतियाँ: निवेशकों का विश्वास बनाए रखने हेतु पारदर्शी एवं सुसंगत आर्थिक नीतियाँ अपनाना।
- आपूर्ति शृंखला प्रबंधन: व्यवधानों को कम करने एवं दक्षता बढ़ाने के लिए उन्नत आपूर्ति शृंखला प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना।
UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. वर्ष 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के बाद भारत में निम्नलिखित में से कौन-से प्रभाव देखे गए? (2017)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी मदें चालू खाता का भाग हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) |