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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रुपए का मूल्यह्रास

  • 22 Dec 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अवमूल्यन बनाम मुद्रा का मूल्यह्रास, भारतीय रुपए का मूल्यह्रास।

मेन्स के लिये:

भारतीय रुपए के वर्तमान मूल्यह्रास का कारण और प्रभाव।

चर्चा में क्यों? 

सितंबर-दिसंबर 2021 की तिमाही में भारतीय मुद्रा में 2.2% की गिरावट आई। मुद्रा का यह मूल्यह्रास (Depreciation of Currency) देश के शेयर बाज़ार से 4 बिलियन डॉलर मूल्य के वैश्विक फंडों के बाहर निकलने के कारण है।

  • मुद्रा के मूल्य में आई इस गिरावट ने भारतीय रुपए को एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बना दिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • मूल्यह्रास के बारे में:
    • मुद्रा का मूल्यह्रास/अवमूल्यन अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है।
    • रुपए के मूल्यह्रास का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का कमज़ोर होना।
      • इसका मतलब है कि रुपया अब पहले की तुलना में कमज़ोर है।.
      • उदाहरण के लिये पहले एक अमेरिकी डाॅलर 70 रुपए के बराबर हुआ करता था। अब एक अमेरिकी डाॅलर 76 रुपए के बराबर है जिसका अर्थ है कि डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन हुआ है यानी एक डॉलर को खरीदने में अधिक रुपए लगते हैं।
  • भारतीय रुपए के मूल्यह्रास का प्रभाव:
    • रुपए में गिरावट भारतीय रिज़र्व बैंक के लिये एक दोधारी तलवार (नकारात्मक एवं सकारात्मक) की भांँति होती है। 
      • सकारात्मक प्रभाव: एक कमज़ोर मुद्रा महामारी के समय नए आर्थिक सुधार के बीच निर्यात को प्रोत्साहित कर सकती है।
      • नकारात्मक प्रभाव: यह आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम उत्पन्न करता है और केंद्रीय बैंक के लिये ब्याज दरों को रिकॉर्ड स्तर पर लंबे समय तक बनाए रखना मुश्किल बना सकता है।

मुद्रा का अभिमूल्यन और अवमूल्यन

  • लचीली विनिमय दर प्रणाली (Floating Exchange Rate System) में बाज़ार की ताकतें (मुद्रा की मांग और आपूर्ति) मुद्रा का मूल्य निर्धारित करती हैं।
  • मुद्रा अभिमूल्यन : यह किसी अन्य मुद्रा की तुलना में एक मुद्रा के मूल्य में वृद्धि है।
    • सरकार की नीति, ब्याज दर, व्यापार संतुलन और व्यापार चक्र सहित कई कारणों से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होती है।
    • मुद्रा अभिमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को हतोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा देश की वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है।
  • मुद्रा अवमूल्यन: यह एक लचीली विनिमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है।
    • आर्थिक बुनियादी संरचना, राजनीतिक अस्थिरता या जोखिम से बचने के कारण मुद्रा अवमूल्यन हो सकता है।
    • मुद्रा अवमूल्यन किसी देश की निर्यात गतिविधि को प्रोत्साहित करता है क्योंकि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है, जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा संबंधित देश की वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है।

अवमूल्यन और मूल्यह्रास

  • सामान्य तौर पर अवमूल्यन और मूल्यह्रास प्रायः एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग किये जाते हैं।
  • उन दोनों का एक ही प्रभाव है- मुद्रा के मूल्य में गिरावट जो आयात को अधिक महँगा बनाती है, और निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
  • हालाँकि उन्हें लागू करने के तरीके में अंतर है।
  • अवमूल्यन तब होता है जब किसी देश का केंद्रीय बैंक अपनी विनिमय दर को एक निश्चित या अर्द्ध-स्थिर विनिमय दर में कम करने का निर्णय लेता है।
  • मूल्यह्रास तब होता है जब एक मुद्रा के मूल्य में अस्थायी विनिमय दर में गिरावट होती है।
  • भारतीय रुपए के वर्तमान मूल्यह्रास का कारण:
    • रिकॉर्ड-उच्च व्यापार घाटा: उच्च आयात के बीच नवंबर में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर लगभग 23 बिलियन डॉलर हो गया।
      • यह बढ़ता व्यापार घाटा तेल की कीमतों में उछाल से प्रेरित है।
    • आरबीआई और फेडरल रिज़र्व के बीच नीतिगत अंतर: अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बेहतर विकास और फेडरल रिज़र्व (यूएस सेंट्रल बैंक) द्वारा पेश किये गए अनुकूल ब्याज की उम्मीदों के अनुरूप USD को मज़बूत करना।
      • रिज़र्व बैंक अपने भंडार का निर्माण करने और किसी भी अस्थिरता के लिये खुद को तैयार करने हेतु लगातार डॉलर खरीद रहा है।
    • पूंजी का बहिर्वाह: शेयरों से विदेशी पूंजी के पलायन ने बेंचमार्क ‘एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स इंडेक्स’ को अक्तूबर 2021 में अब तक के उच्चतम स्तर से लगभग 10% कम कर दिया है।
    • ओमीक्रोन संबंधी चिंताएँ: वर्तमान में ओमीक्रोन वायरस संस्करण संबंधी चिंताएँ वैश्विक बाज़ारों में हलचल मचा रही हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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