भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र का विकास | 10 Mar 2025
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
"जैव रसायन और जैव प्रौद्योगिकी में उभरते नवाचार" सम्मेलन में, केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास और हिमालयी क्षेत्र (विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर) की जैव प्रौद्योगिकी क्षमता पर प्रकाश डाला।
भारत में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- परिचय: यह जैविक प्रणालियों, जीवों या उनके घटकों का उपयोग करके ऐसे उत्पाद और प्रौद्योगिकियों के निर्माण पर केंद्रित है जिससे कृषि एवं चिकित्सा उद्योग को लाभ पहुँचता हो।
प्रकार:
- विकास और संभावना: भारत की जैव अर्थव्यवस्था एक दशक (2014-24) में 10 गुना से अधिक बढ़ी है जो वर्ष 2014 के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है तथा वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक करने का लक्ष्य है।
- जम्मू और कश्मीर में संभावनाएँ: समृद्ध वनस्पति और औषधीय पौधों की विविधता फार्मास्यूटिकल और हर्बल उद्योगों के लिये संभावनाएँ प्रदान करती है।
- जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान जलवायु लचीलेपन और उत्पादकता के लिये उच्च ऊँचाई वाली फसलों को अनुकूलित कर सकता है।
- अरोमा मिशन, फ्लोरीकल्चर क्रांति (व्यावसायिक फूलों की कृषि)।
- जम्मू और कश्मीर में संभावनाएँ: समृद्ध वनस्पति और औषधीय पौधों की विविधता फार्मास्यूटिकल और हर्बल उद्योगों के लिये संभावनाएँ प्रदान करती है।
- वर्ष 2024 में प्रमुख उपलब्धियाँ: विश्व की पहली मानव पेपिलोमावायरस (HPV) वैक्सीन का विकास।
- 'नेफिथ्रोमाइसिन' की खोज, एक अभूतपूर्व स्वदेशी एंटीबायोटिक।
- हीमोफीलिया के लिये पहला सफल जीन थेरेपी प्रयोग।
- सरकार की प्रमुख पहल: BioE3 नीति, राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF), बायो-राइड योजना (2014: 50 बायोटेक स्टार्टअप, 2025: 9,000)।
- वैश्विक नवाचार में प्रगति: भारत की वैश्विक नवाचार सूचकांक 2024 में रैंकिंग वर्ष 2014 के 80 वें स्थान से सुधारकर 39 वें स्थान पर पहुँच गई है।
- जैव-विनिर्माण में भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरे तथा विश्व स्तर पर 12वें स्थान पर है।
- विश्व के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों में अब 5,352 से अधिक भारतीय शोधकर्त्ता शामिल हैं।
अरोमा मिशन (लैवेंडर क्रांति)
- परिचय: जम्मू-कश्मीर में प्रारंभ हुई यह पहल भारत के अरोमा उद्योग को बढ़ावा देती है, जिसमें सुगंधित फसलों और आवश्यक तेल उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाता है।
- केंद्रित क्षेत्र: लेमनग्रास, लैवेंडर, वेटिवर, पामारोसा आदि की कृषि, जिनसे प्राप्त सुगंधित तेलों का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों, सुगंध चिकित्सा (अरोमाथेरेपी) और खाद्य स्वाद बढ़ाने में किया जाता है।
- नोडल एजेंसी: CSIR-केंद्रीय औषधीय एवं सुगंधित पौधा संस्थान (CSIR-CIMAP), लखनऊ।
- संभावित प्रभाव: इसमें प्रति वर्ष 2000 टन से अधिक तेल उत्पादन, जिसकी वार्षिक कीमत लगभग 300 करोड़ रुपए, 60 लाख ग्रामीण रोज़गार और किसानों के लिये प्रति हेक्टेयर वार्षिक आय 60,000–70,000 रुपए शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रारंभिकप्रश्न. माइकोराइजल (कवकमूलीय) जैव प्रौद्योगिकी को निम्नीकृत स्थलों के पुनर्वासन में उपयोग में लाया गया है क्योंकि कवकमूल के द्वारा पौधों में (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 उत्तर: (D) प्रश्न. वर्तमान में, वैज्ञानिक एक गुणसूत्र पर जीन या डीएनए अनुक्रमों की व्यवस्था या सापेक्ष स्थिति निर्धारित कर सकते हैं। इस ज्ञान से हमें क्या फायदा होता है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (C) |