प्रारंभिक परीक्षा
मौसम पूर्वानुमान पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
- 03 Oct 2024
- 5 min read
स्रोत: द हिंदू
वर्ष 2023-2024 में पड़ने वाली गर्मी ने वैश्विक तापमान को 1.5ºC सीमा से आगे धकेल दिया है, जिससे जलवायु पैटर्न की अप्रत्याशितता बढ़ गई है और हीटवेव, चक्रवात तथा बाढ़ जैसी चरम घटनाओं के बीच वर्तमान पूर्वानुमान मॉडल को चुनौती मिल रही है।
मौसम और जलवायु पूर्वानुमान को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?
- ग्लोबल वार्मिंग:
- ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य मानवीय गतिविधियों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन (CH4) जैसी ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि से है।
- जलवायु पूर्वानुमान पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव:
- मौसम की बढ़ती अप्रत्याशितता:
- बढ़ता तापमान, हीटवेव , तूफान , मानसून और अल नीनो जैसी चरम घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिये वर्तमान पूर्वानुमान मॉडल को भी जटिल बना रहा है।
- वायुमंडलीय गतिशीलता में परिवर्तन:
- बढ़ते तापमान से वायुमंडलीय भंवरों की वृद्धि में तेजी आती है - ये भंवर क्षोभमंडल में छोटे पैमाने पर परिसंचरण होते हैं, जो मौसम प्रणालियों को प्रभावित करते हैं।
- इस तीव्र वृद्धि के कारण मौसम मॉडल में प्रारंभिक स्थितियों की स्मृति कम हो जाती है, जिससे सटीक पूर्वानुमान लगाना थोडा कम हो जाता है, विशेष रूप से उष्ण क्षेत्रों में।
- बढ़ते तापमान से वायुमंडलीय भंवरों की वृद्धि में तेजी आती है - ये भंवर क्षोभमंडल में छोटे पैमाने पर परिसंचरण होते हैं, जो मौसम प्रणालियों को प्रभावित करते हैं।
- पूर्वानुमान मॉडल पर प्रभाव:
- लोरेन्ज़ का "तितली प्रभाव:
- यह दर्शाता है कि तापमान, आर्द्रता और वायु में लघु परिवर्तन जलवायु पूर्वानुमान पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं ।
- लोरेन्ज़ का "तितली प्रभाव:
अन्य कारक:
- डेटा गुणवत्ता और उपलब्धता:
- सटीक पूर्वानुमान व्यापक और उच्च गुणवत्ता वाले डेटा पर निर्भर करते हैं। डेटा अंतराल सटीक पूर्वानुमान लगाने की क्षमता में बाधा डाल सकता है।
- मॉडल की सीमाएँ:
- जलवायु मॉडल, हालाँकि परिष्कृत हैं, लेकिन उनमें अंतर्निहित सीमाएँ हैं क्योंकि वे अक्सर ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को दोहराने में संघर्ष करते हैं और अपनी संरचनाओं के आधार पर अलग-अलग परिणाम दे सकते हैं।
- प्राकृतिक परिवर्तनशीलता:
- मौसम का पैटर्न एल नीनो, ला नीना और हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) जैसी प्राकृतिक घटनाओं से प्रभावित होता है, जो भविष्यवाणियों को और जटिल बना देता है।
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