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जैव विविधता और पर्यावरण

वन्य-जीव संरक्षण, सह-अस्तित्व की सुरक्षा

  • 06 Mar 2025
  • 33 min read

यह एडिटोरियल 05/03/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Living with animals – the challenges and the solution” पर आधारित है। इस लेख में प्रधानमंत्री द्वारा मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिये एक समर्पित केंद्र की घोषणा का उल्लेख किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड, कीस्टोन प्रजातियाँ, काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, रणथंभौर टाइगर रिज़र्व, निपाह वायरस का प्रकोप, जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CBD), कर्नाटक के सोलीगा, मृगावनी राष्ट्रीय उद्यान, गिर शेर, वन धन विकास केंद्र, पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA)

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रभाव आकलन, भारत की पारिस्थितिक और आर्थिक संधारणीयता में वन्यजीव संरक्षण का महत्त्व, भारत के वर्तमान वन्यजीव संरक्षण उपायों से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

हाल ही में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में, भारतीय प्रधानमंत्री ने मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिये समर्पित एक केंद्र की स्थापना की घोषणा की। जबकि जनसंख्या वृद्धि को पारंपरिक रूप से संरक्षण प्रगति के एक प्रमुख संकेतक के रूप में देखा जाता है, अब यह नई चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहा है क्योंकि वन्यजीव तेज़ी से स्थान एवं संसाधनों के लिये मनुष्यों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं। भारत को मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिये इन उभरती चुनौतियों का सक्रिय रूप से समाधान करना चाहिये।

भारत की पारिस्थितिकी और आर्थिक संधारणीयता के लिये वन्यजीव संरक्षण क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • पारिस्थितिक संतुलन और जलवायु अनुकूलन सुनिश्चित करना: वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र की संधारणीयता बनाए रखने, जैव-विविधता सुनिश्चित करने और जलवायु पैटर्न को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • बाघों एवं हाथियों जैसी प्रमुख/कीस्टोन प्रजातियों के नष्ट होने से खाद्य शृंखलाएँ बाधित होती हैं, जिससे शाकाहारी जानवरों की जनसंख्या में वृद्धि होती है और आवासों का क्षरण होता है। 
    • वन्य जीव गतिविधियों द्वारा पोषित वन और आर्द्रभूमि, कार्बन सिंक एवं जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रतिरोधक के रूप में कार्य करते हैं।
    • प्रजातियों की सुरक्षा से प्राकृतिक परागण, बीज प्रसार और रोग नियंत्रण सुनिश्चित होता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिये आवश्यक हैं।
    • उदाहरण के लिये, काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के गैंडे घास के मैदानों के स्वास्थ्य को बनाए रखने, शाकाहारी आबादी का समर्थन करने और मृदा अपरदन को रोकने में मदद करते हैं। 
  • जल-संसाधनों को सुरक्षित करना और मरुस्थलीकरण को रोकना: विविध वन्य जीवन द्वारा समर्थित वन, आर्द्रभूमि और घास के मैदान, जल विज्ञान चक्र एवं भूजल पुनर्भरण को नियंत्रित करते हैं। 
    • वनों के संरक्षण से नदी के प्रवाह को बनाए रखने, गाद जमने को रोकने तथा बाढ़ और भूस्खलन की गंभीरता को कम करने में मदद मिलती है। 
      • वन्यजीव मृदा की उर्वरता बनाए रखने और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में रेगिस्तान के प्रसार को रोकने में भी भूमिका निभाते हैं।
    • उदाहरण के लिये, काले हिरण बीज प्रसार में भूमिका निभाते हैं, विशेष रूप से खेजड़ी वृक्षों (प्रोसोपिस सिनेरेरिया) के लिये, जो थार रेगिस्तान में मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • सतत् आजीविका और पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा देना: वन्यजीव-आधारित पर्यटन लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और संरक्षण प्रयासों के लिये राजस्व उत्पन्न करता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। 
    • राष्ट्रीय उद्यान, बाघ अभयारण्य और पक्षी अभयारण्य अंतर्राष्ट्रीय व घरेलू पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जिससे स्थायी आजीविका के अवसर उत्पन्न होते हैं।
    • अच्छी तरह से प्रबंधित पारिस्थितिकी पर्यटन यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ मिले तथा अवैध शिकार एवं निर्वनीकरण पर निर्भरता कम हो। 
    • उदाहरण के लिये, रणथंभौर टाइगर रिज़र्व का राजस्व पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण 45 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो गया है।
      • हालिया रिपोर्टों के अनुसार, वन्यजीव पर्यटन व्यापक पर्यटन क्षेत्र के लिये एक प्रमुख प्रेरक है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 5-6.5% का योगदान देता है।
  • जूनोटिक रोगों की रोकथाम और एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण सुनिश्चित करना: संरक्षण, मानव और वन्य प्रजातियों के बीच प्राकृतिक अवरोधों को बनाए रखकर वायरस प्रसार की संभावना को कम करता है। 
    • अवैध वन्यजीव व्यापार और निर्वनीकरण के कारण वन्यजीवों की संख्या अज्ञात रोगाणुओं के संपर्क में आ जाती है, जिससे स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये सख्त वन्यजीव विनियम आवश्यक हो जाते हैं।
    • उदाहरण के लिये, केरल में निपाह वायरस प्रकोप (वर्ष 2021) चमगादड़ों की आबादी को प्रभावित करने वाले आवास विखंडन से संबद्ध था।
      • संरक्षण को सुदृढ़ करने से जैव-विविधता बरकरार रहती है और घातक बीमारियों की उत्त्पत्ति एवं प्रसार कम होता है।
  • कृषि उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना: वन्यजीव संरक्षण मधुमक्खियों, तितलियों और पक्षियों जैसे परागणकों के अस्तित्व को सुनिश्चित करता है, जो कृषि उपज के लिये आवश्यक हैं। 
    • उल्लू, सर्प और बिग कैट प्रजाति जैसे प्राकृतिक शिकारी कीटों की आबादी को नियंत्रित करते हैं, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है। 
    • वन जैव-विविधता मृदा की उर्वरता और जल धारण क्षमता को बढ़ाती है, जिससे संधारणीय कृषि पद्धतियों में योगदान मिलता है। 
      • गिद्धों की संख्या में कमी के कारण आवारा कुत्तों की संख्या में वृद्धि हुई, जिससे रेबीज़ जैसी बीमारियाँ फैल गईं।
  • संवैधानिक और वैश्विक पर्यावरण प्रतिबद्धताओं को पूरा करना: यह पर्यावरण और वन्य जीवन की सुरक्षा एवं सुधार के लिये अनुच्छेद 48A और अनुच्छेद 51A(g) के तहत संवैधानिक कर्त्तव्य को पूरा करता है।
    • CITES, जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CBD) और पेरिस समझौते जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में, भारत अपनी जैव-विविधता को संरक्षित करने के लिये बाध्य है। 
    • वन्यजीव संरक्षण को सुदृढ़ करना संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), विशेष रूप से SDG 13 (जलवायु परिवर्तन कार्रवाई) और SDG 15 (थालिय जीवों की सुरक्षा) के अनुरूप है। 
  • स्वदेशी और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा: वन्यजीव संरक्षण भारत के स्वदेशी समुदायों से गहराई से जुड़ा हुआ है, जिनकी आजीविका और परंपराएँ प्रकृति पर निर्भर हैं।
    • कर्नाटक के सोलीगा और राजस्थान के बिश्नोई जैसी कई जनजातियों ने ऐतिहासिक रूप से जैव-विविधता की रक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • वन्यजीव संरक्षण से पवित्र उपवनों, धार्मिक स्थलों और स्थायी संसाधन प्रबंधन से संबंधित पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों का भी संरक्षण होता है।

भारत के वर्तमान वन्यजीव संरक्षण उपायों से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC): तीव्र शहरीकरण, बुनियादी अवसंरचना के विस्तार और कृषि भूमि पर अतिक्रमण के कारण आवास विखंडित हो गए हैं, जिससे वन्यजीवों को मानव बस्तियों की ओर संक्रमण के लिये विवश होना पड़ा है। 
    • इससे फसल की क्षति, पशुधन का शिकार और मानव हताहतों की संख्या बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिशोध में हत्याएँ होती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, गुजरात में 300 से अधिक शेर अब गिर के संरक्षित क्षेत्र (PA) के बाहर रहते हैं, जिससे मानव-शेर संघर्ष (शेर जीव-गणना, 2020) बढ़ रहा है।
      • पिछले 5 वर्षों में, भारत में हाथियों के हमलों में 52 मानव हताहत हुए हैं तथा विद्युत-आघात, रेल दुर्घटनाओं, अवैध शिकार और जहर के कारण 552 हाथियों की अप्राकृतिक मौतें हुई हैं।
  • अपर्याप्त आवास प्रबंधन और वहन क्षमता संबंधी समस्याएँ: वन्यजीव नीतियाँ जीव-संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं और एक हद तक पर्याप्त आवास, भोजन व जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने में चूक जाती हैं। 
    • हाथी और बाघ जैसी कई प्रजातियों को बड़े भू-भाग की आवश्यकता होती है, लेकिन घटते जंगल उनके प्राकृतिक सीमा को बाधित कर रहे हैं।
    • सुंदरबन में बाघों की आबादी बढ़ी है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण आवास के विखंडन ने बाघों को गाँवों में आने पर विवश कर दिया है।
    • उदाहरण के लिये, मृगावनी राष्ट्रीय उद्यान का विस्तार 22% घटकर 280.29 हेक्टेयर रह गया।
      • एक महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमि, पल्लीकरनई शहरीकरण के कारण उल्लेखनीय रूप से संकुचित हुई है, जिससे चेन्नई में जैव-विविधता और सुभेद्य समुदायों को खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • वन्यजीव पुनर्वास और संरक्षण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव: राजनीतिक और क्षेत्रीय हित प्रायः स्थानांतरण प्रयासों में वैज्ञानिक सिफारिशों को दरकिनार कर देते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद गुजरात द्वारा गिर शेरों को मध्य प्रदेश में स्थानांतरित करने से अस्वीकार करना इस मुद्दे को उजागर करता है। 
    • यदि शिकार आधार और रोग नियंत्रण जैसे पारिस्थितिक कारकों पर विचार नहीं किया जाता है तो अनियोजित स्थानांतरण भी विफल हो सकता है।
      • चीतों को नामीबिया से भारत में पुनः लाया गया था, लेकिन कुनो राष्ट्रीय उद्यान में कई बार उनकी मृत्यु होने से उनके आवास की उपयुक्तता पर चिंता उत्पन्न हो गई है।
  • वन्यजीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बढ़ता तापमान, अनियमित वर्षा और चरम मौसमी घटनाएँ जानवरों के प्रवास पैटर्न को बदल रही हैं तथा आवासों को नष्ट कर रही हैं। 
    • आर्द्रभूमि के संकुचन और हिमनदों के स्खलन से विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्रों पर निर्भर प्रजातियों के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है। 
    • मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों सहित समुद्री व तटीय जैव-विविधता भी बढ़ते समुद्री स्तर के कारण खतरे में है।
    • उदाहरण के लिये, असम के काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में बाढ़ में 150 से अधिक जानवर डूब गए, जिनमें से नौ दुर्लभ एक सींग वाले गैंडे थे।
      • भारत में अत्यधिक गर्मी जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करती है और इससे लू लगने के कारण उड़ान के दौरान ही पक्षी बेहोश हो जाते हैं।
      • इसके अलावा, भारत की 33.6% तटीय रेखा क्षरण की समस्या से ग्रस्त है, जिससे तटीय जैव-विविधता को खतरा है।
  • अपर्याप्त वन्यजीव गलियारे और विखंडित संपर्क: कई संरक्षित क्षेत्र अलग-अलग हिस्सों के रूप में मौजूद हैं, जिससे पशु संख्या के बीच प्राकृतिक आवागमन के पैटर्न और आनुवंशिक आदान-प्रदान में बाधा उत्पन्न हो रही है। 
    • राजमार्ग, रेलवे एवं बिज़ली लाइनों जैसी बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ आवासों को और अधिक विखंडित करती हैं, जिससे पशु मृत्यु दर में वृद्धि होती है। 
      • हरित गलियारे बनाने के प्रयासों के बावजूद, भूमि-उपयोग संघर्ष निर्बाध संपर्क में बाधा डालते हैं।
    • रेलवे के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 तक तीन वर्षों में मवेशी, शेर एवं तेंदुए सहित 32,000 से अधिक जानवर रेलवे पटरियों पर मारे गए।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण और संसाधनों का अप्रभावी उपयोग: प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट लायन जैसी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं के बावजूद, संरक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वित्तपोषण अपर्याप्त है। 
    • कई राज्य वन विभाग कर्मचारियों की कमी और पुराने उपकरणों की समस्या से जूझ रहे हैं, जिससे शिकार-रोधी एवं पर्यावास प्रबंधन के प्रयास सीमित हो रहे हैं। 
      • निजी क्षेत्र और समुदाय-आधारित वित्तपोषण मॉडल का अभी भी कम उपयोग किया जा रहा है।
    • प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) की निधियों का अभी तक पुर्णतः उपयोग नहीं हो पाया है, जिससे वनरोपण परियोजनाओं और वन्यजीवों के लिये पारिस्थितिकी तंत्र पुनरुद्धार में विलंब हो रहा है। 
  • बढ़ता अवैध शिकार और वन्यजीवों का अवैध व्यापार: सख्त कानूनों के बावजूद, पशु अंगों की उच्च मांग के कारण संगठित अवैध शिकार नेटवर्क और वन्यजीवों का अवैध व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है। 
    • भारत, नेपाल, म्याँमार और चीन के बीच तस्करी के मार्ग सक्रिय बने हुए हैं, जो बाघ की खाल, गैंडे के सींग और पैंगोलिन के शल्कों की कालाबाज़ारी को बढ़ावा देते हैं।
      • डिजिटल प्लेटफॉर्म भी अवैध वन्यजीव व्यापार के लिये नए बाज़ार बन गए हैं।
    • वर्ष 2024 में, असम के काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में एक गैंडे के सींग की तस्करी करने वाले रैकेट का भंडाफोड़ किया गया, जिससे अंतर्राष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट से संबंध उजागर हुए।
      • इसके अलावा, विश्व में सबसे अधिक तस्करी किये जाने वाले वन्य स्तनपायी, 1,203 पैंगोलिन का 2018-2022 तक भारत में अवैध वन्यजीव व्यापार के लिये अवैध शिकार किया गया।  वर्ष 2018-2022 के दौरान भारत में अवैध वन्यजीव व्यापार के लिये विश्व में सर्वाधिक तस्करी किये जाने वाले वन्य स्तनपायी 1,203 पैंगोलिनों का अवैध शिकार किया गया।
  • विकास और संरक्षण लक्ष्यों के बीच संघर्ष: आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है, क्योंकि कई परियोजनाओं को पारिस्थितिकी संबंधी चिंताओं के बावजूद मंजूरी मिल जाती है। 
    • खनन, बांध निर्माण और औद्योगिक विस्तार को प्रायः वन्यजीव संरक्षण से अधिक प्राथमिकता दी जाती है। 
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के कमज़ोर प्रवर्तन के कारण कई परियोजनाएँ अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ आगे बढ़ रही हैं।
    • उदाहरण के लिये, ग्रेट निकोबार विकास परियोजना ने निकोबार मेगापोड जैसी मूल प्रजातियों के आवास विनाश पर चिंता जताई है।
  • कमज़ोर सामुदायिक भागीदारी और लाभ-साझाकरण तंत्र: यद्यपि स्थानीय समुदाय संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, कई नीतियाँ उन्हें हितधारकों के रूप में शामिल करने में विफल रहती हैं। 
    • संरक्षित क्षेत्रों के निकट रहने वाले समुदायों के लिये आर्थिक प्रोत्साहन की कमी के कारण असंतोष उत्पन्न होता है और कभी-कभी वे अवैध शिकार या वनों की कटाई में शामिल हो जाते हैं। 
    • इकोटूरिज़्म-संचालित संरक्षण जैसे सफल मॉडल का कई राज्यों में कम उपयोग किया जाता है।
      • गिर में मालधारी पशुपालक ऐतिहासिक रूप से शेरों के साथ रहते आए हैं, लेकिन बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष से यह रिश्ता खतरे में पड़ गया है।
    • मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और असम जैसे पूर्वोत्तर भारतीय राज्य समुदाय के नेतृत्व वाली संरक्षण परियोजनाओं में अग्रणी बन गए हैं, लेकिन अन्य राज्य काफी पीछे हैं। 
  • वन्यजीव संरक्षण में प्रौद्योगिकी अंगीकरण में कमी: भारत संरक्षण प्रयासों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ड्रोन और उपग्रह ट्रैकिंग जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने में धीमा रहा है।
    • उन्नत निगरानी से अवैध शिकार पर अंकुश लगाने, आवास परिवर्तनों की निगरानी करने तथा पशुओं की गतिविधियों पर नज़र रखने में मदद मिल सकती है, लेकिन वित्तपोषण और प्रशिक्षण के अभाव के कारण कार्यान्वयन सीमित है। 
    • प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान, जैसे कि HWC के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली, को व्यापक रूप से अपनाए जाने की आवश्यकता है।
    • ट्रेलगार्ड एक उन्नत कैमरा ट्रैप है जिसे विशिष्ट प्रजातियों, जैसे बाघों, का पता लगाने और उनकी छवियों को तुरंत प्रसारित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
      • हालाँकि, इसका कार्यान्वयन और अंगीकरण अभी भी न्यूनतम बना हुआ है।

वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को गति देने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) शमन रणनीतियों को सुदृढ़ करना: भारत को HWC को कम करने के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, प्रभावित समुदायों के लिये बेहतर मुआवज़ा और आवास पुनर्स्थापन जैसे सक्रिय उपायों को अपनाना चाहिये।
    • उच्च संघर्ष वाले क्षेत्रों से कमज़ोर समुदायों का पुनर्वास उनकी सहमति और उचित पुनर्वास के साथ किया जाना चाहिये। 
    • संरक्षित क्षेत्रों (PA) के आसपास सुरक्षित वन्यजीव गलियारे, इको-ब्रिज और बफर ज़ोन, मानव बस्तियों को बाधित किये बिना पशुओं के आवागमन को सुविधाजनक बना सकते हैं। 
    • नियंत्रित पशु-चारण कार्यक्रम जैसे समुदाय-नेतृत्व वाली पहल से पशुधन पर शिकार को कम किया जा सकता है।
      • C-DAC द्वारा विकसित सुरक्षा मित्र का प्रभावी उपयोग किया जाना चाहिये।
  • संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार और सुदृढ़ीकरण: भारत के कई राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य बढ़ती वन्यजीव आबादी को सहारा देने के लिये बहुत अपर्याप्त हैं, इसलिये उनके विस्तार एवं बेहतर कनेक्टिविटी की आवश्यकता है। 
    • राज्य सरकारों को अधिक पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों और सामुदायिक रिज़र्वों की पहचान करनी चाहिये तथा उन्हें नामित करना चाहिये, साथ ही मुख्य क्षेत्रों में सख्त सुरक्षा लागू की जानी चाहिये। 
    • अवैध अतिक्रमण को रोकने के लिये स्थायी आजीविका के साथ संरक्षित क्षेत्रों के आसपास बफर ज़ोन विकसित किये जाने चाहिये। 
      • उदाहरण के लिये, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में तराई आर्क लैंडस्केप (TAL) परियोजना भारत और नेपाल में वितरित व्याघ्र आवासों को सफलतापूर्वक समेकित करती है।
  • वैज्ञानिक और वन्यजीव पुनर्वास हेतु पारदर्शी नीतियों को लागू करना: प्रजातियों का स्थानांतरण पारिस्थितिक व्यवहार्यता पर आधारित होना चाहिये, जिसमें विज्ञान समर्थित दृष्टिकोण के साथ शिकार आधार, रोग नियंत्रण और आनुवंशिक विविधता सुनिश्चित की जानी चाहिये। 
    • कुनो में चीता की मौत जैसी विफलताओं से बचने के लिये एक समर्पित राष्ट्रीय वन्यजीव स्थानांतरण बोर्ड को ऐसे प्रयासों की देखरेख करनी चाहिये।
    • काज़ीरंगा से मानस राष्ट्रीय उद्यान तक गैंडों के सफल स्थानांतरण से मानस राष्ट्रीय उद्यान में गैंडों की आबादी पुनर्जीवित हो गई है।
  • अवैध शिकार विरोधी तंत्र और वन्यजीव अपराध नियंत्रण को दृढ़ करना: सख्त कानूनों के बावजूद, अवैध शिकार और वन्यजीव व्यापार बड़े पैमाने पर जारी है, जिसके लिये ड्रोन, थर्मल कैमरा एवं AI-संचालित ट्रैकिंग जैसी तकनीक का उपयोग करके निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता है। 
    • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) को अधिक कार्मिकों और अंतर-एजेंसी समन्वय के साथ मज़बूत बनाने से प्रवर्तन में सुधार हो सकता है।
    • अवैध शिकार करने वाले गिरोहों को रोकने के लिये वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2022 के तहत सख्त दंड संहिता लागू किया जाना चाहिये।
    • इस संबंध में भारत भूटान से प्रेरणा ले सकता है, जिसने SMART (स्थानिक निगरानी और रिपोर्टिंग टूल) गश्त की राष्ट्रीय शुरुआत की है।
  • समुदाय-नेतृत्व वाली संरक्षण पहल को प्रोत्साहित करना: स्थानीय समुदायों को पारिस्थितिकी-पर्यटन, संधारणीय वन उपज संग्रहण और संरक्षण से जुड़े आजीविका कार्यक्रमों जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से संरक्षण में हितधारक बनाया जाना चाहिये।
    •  संयुक्त वन प्रबंधन समितियों (JFMC) को वनों की सुरक्षा और अवैध शिकार को रोकने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये। 
    • वन धन विकास केंद्र जैसी पहल संरक्षित क्षेत्रों के निकट समुदायों को वैकल्पिक आय स्रोत प्रदान कर सकती है, जिससे वनों पर उनकी निर्भरता कम हो सकती है।
  • बेहतर वन्यजीव निगरानी के लिये प्रौद्योगिकी अंगीकरण: AI, GIS मैपिंग और सैटेलाइट इमेजरी का लाभ उठाने से पशु आबादी पर नज़र रखने, अवैध शिकार के प्रयासों का पता लगाने और वास्तविक काल आवास परिवर्तनों की निगरानी करने में मदद मिल सकती है। 
    • रेडियो कॉलर और GPS ट्रैकिंग का विस्तार बाघों एवं हाथियों जैसी प्रमुख प्रजातियों के अलावा अन्य सुभेद्य जीव-जंतुओं तक भी किया जाना चाहिये।
    • AI-संचालित मॉडल प्रजातियों पर जलवायु प्रभावों का पूर्वानुमान कर सकते हैं और अनुकूली संरक्षण रणनीतियों का सुझाव दे सकते हैं।
      • भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) ने वन्यजीवों के अध्ययन और निगरानी के लिये eDNA (पर्यावरण DNA) का उपयोग करने हेतु एक पायलट परियोजना स्थापित की है, जो सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावास क्षरण पर ध्यान देना: वन्यजीव संरक्षण को जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये ताकि चरम मौसमी की घटनाओं से पर्यावासों की सुरक्षा की जा सके। 
    • देशी प्रजातियों का उपयोग करके वनरोपण अभियान, आर्द्रभूमि का जीर्णोद्धार तथा मानव-प्रेरित वन्य आग को कम करने से पारिस्थितिकी तंत्र की संधारणीयता में सुधार हो सकता है। 
    • समुद्री जैव-विविधता की रक्षा के लिये संरक्षण योजनाओं में मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों जैसे तटीय पारिस्थितिकी तंत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
      • उदाहरण के लिये, चेन्नई में मियावाकी वनरोपण पद्धति का उपयोग क्षीण हो चुके शहरी हरित क्षेत्रों को तेज़ी से पुनर्स्थापित करने के लिये किया जा रहा है।
  • वन्यजीव संरक्षण के लिये भूमि उपयोग और बुनियादी अवसंरचना की नीतियों में सुधार: राजमार्गों और रेलवे जैसी रैखिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में वन्यजीवों के आवागमन के लिये अंडरपास एवं ओवरपास जैसी पर्यावरण-संवेदनशील योजना को शामिल किया जाना चाहिये।
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया को मज़बूत किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आर्थिक विकास के लिये संरक्षण संबंधी चिंताओं को नजरअंदाज़ न किया जाए। 
      • उदाहरण के लिये, नागपुर-मुंबई एक्सप्रेसवे में सड़क दुर्घटनाएँ कम करने के लिये वन्यजीव ओवरपास शामिल किये गए हैं।
    • पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों में निर्वनीकरण को रोकने के लिये भूमि परिवर्तन नियमों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: 

भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयास एक ऐसे मोड़ पर हैं, जहाँ विकास की ज़रूरतों के साथ पारिस्थितिक अखंडता को संतुलित करने के लिये सक्रिय रणनीतियाँ आवश्यक हैं। आवास संपर्क को सुदृढ़ करना, तकनीक का लाभ उठाना और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित कर सकता है। एक समग्र दृष्टिकोण से न केवल भारत के समृद्ध वन्यजीवों की रक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि इसके पारिस्थितिक और आर्थिक भविष्य को भी सुरक्षा मिलेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक बढ़ती हुई चुनौती है, जो आवास विखंडन और जलवायु परिवर्तन के कारण और भी गंभीर हो गई है। इस संघर्ष को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारकों पर चर्चा कीजिये और मानव-वन्यजीव सतत् ् सह-अस्तित्व के लिये प्रभावी रणनीति सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से भौगोलिक क्षेत्र में जैव-विविधता के लिये संकट हो सकते हैं?  (2020)

  1. वैश्विक तापन
  2. आवास का विखण्डन
  3. विदेशी जाति का संक्रमण
  4. शाकाहार को प्रोत्साहन

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न 2. यदि किसी पौधे की विशिष्ट जाति को वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI में रखा गया है, तो इसका क्या तात्पर्य है?  (2012)

(a) उस पौधे की खेती करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता है।
(b) ऐसे पौधे की खेती किसी भी परिस्थिति में नहीं हो सकती।
(c) यह एक आनुवंशिकत: रूपांतरित फसली पौधा है।
(d) ऐसा पौधा आक्रामक होता है और पारितंत्र के लिये हानिकारक होता है।

उत्तर: (a)


मेन्स  

प्रश्न. भारत में जैव विविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैव विविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है?  (2018)

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