भारत के कृषि परिदृश्य की पुनर्कल्पना | 05 Jun 2024

यह एडिटोरियल 04/06/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Challenge for farm sector: How to share growth gains” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय कृषि के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा की गई है और व्यापक नीति सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, न्यूनतम समर्थन मूल्य, सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन, परम्परागत कृषि विकास योजना, कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, एग्रीस्टैक, कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना , प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि  कृषि अवसंरचना कोष। 

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्त्व, भारत के कृषि क्षेत्र से संबंधित वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ।

भारत जब विकसित अर्थव्यवस्था बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है, इसके कृषि क्षेत्र को चुनौतियों भरा एक कठिन रास्ता तय करना पड़ रहा है। अपरिवर्तनीय जलवायु परिवर्तन, विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा आरोपित प्रतिबंध, लघु भू-जोतों की व्यापकता, किसानों की आय की कीमत पर खाद्य कीमतों को कम रखने का वैश्विक दबाव और घटते जलभृत—ये कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण विद्यमान दशाएँ हैं जो किसानों के लिये सम्मानजनक आजीविका सुनिश्चित करने की हमारी क्षमता को सीमित करती हैं।

प्रमुख चुनौती न केवल उत्पादकता में सुधार लाने में है, बल्कि यह सुनिश्चित करने में भी है कि लाभ संवहनीय एवं समावेशी हों। समय आ गया है कि भारत कृषि क्षेत्र में अत्यंत आवश्यक सुधारों की राह पर तेज़ी से आगे बढ़े।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का क्या महत्त्व है?

  • सकल घरेलू उत्पाद में योगदान: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 15-16% है। यह देश के समग्र आर्थिक विकास एवं प्रगति में इस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान, जबकि कई क्षेत्रों में मंदी का अनुभव हुआ, कृषि क्षेत्र प्रत्यास्थी बना रहा और वर्ष 2021-22 में देश के सकल मूल्यवर्द्धन (Gross Value Added- GVA) में 18.8% का योगदान किया।
  • रोज़गार सृजन: वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) के लिये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट से पता चलता है कि देश के नियोजित श्रम बल में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 45.5% है।
    • इससे रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका उजागर होती है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ अधिकांश आबादी कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में संलग्न है।
  • खाद्य सुरक्षा: 1.3 बिलियन से अधिक की आबादी के साथ, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता है।
    • देश की खाद्य मांग को पूरा करने में कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहाँ चावल, गेहूँ, दाल और सब्जियों जैसी विभिन्न प्रमुख फसलों का उत्पादन करता है।
  • विदेशी मुद्रा आय अर्जन: वर्ष 2021 में 56 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के निर्यात के साथ कृषि निर्यात विदेशी मुद्रा आय अर्जन में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता रहा।
    • भारत वर्तमान में दूध और दालों का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक तथा गेहूँ और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • उद्योगों के लिये कच्चा माल प्रदाता: कृषि क्षेत्र न केवल घरेलू खाद्य मांग की पूर्ति करता है बल्कि विभिन्न उद्योगों के लिये कच्चा माल भी प्रदान करता है, जैसे कपड़ा उद्योग के लिये कपास, चीनी उद्योग के लिये गन्ना और खाद्य तेल उद्योग के लिये तिलहन।
    • इससे अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ सुदृढ़ पश्चगामी एवं अग्रगामी संबंध निर्मित होते हैं।
    • यह इथेनॉल अर्थव्यवस्था (Ethanol Economy) के लिये मुख्य आधार के रूप में भी कार्य करता है।
  • रणनीतिक महत्त्व: खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता किसी भी राष्ट्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक आवश्यकता है।
    • एक सुदृढ़ कृषि क्षेत्र विदेशी आयात पर निर्भरता कम करता है और अप्रत्याशित परिस्थितियों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • यह भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
      • भारत, जिसे उपहासपूर्वक ‘भीख का कटोरा’ (begging bowl) कहा जाता था, अब एक शुद्ध कृषि निर्यातक (net agricultural exporter) देश बन गया है।

भारत के कृषि क्षेत्र से संबंधित वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • खंडित भू-जोत या भू-स्वामित्व: दशकों से जनसंख्या वृद्धि और उत्तराधिकार कानूनों के परिणामस्वरूप कृषि भूमि का विभाजन छोटे-छोटे टुकड़ों में होता जा रहा है।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा कृषि परिवारों के स्थिति आकलन सर्वेक्षण (SAS) के अनुसार, दो हेक्टेयर से भी कम भूमि के स्वामी कृषि परिवारों का प्रतिशत वितरण 89.4% है, जो कृषि के मशीनीकरण, आकारिक मितव्ययिता या ‘इकोनॉमिज़ ऑफ स्केल’ और समग्र उत्पादकता में बाधा उत्पन्न करता है।
  • जलवायु परिवर्तन का संकट: अनियमित मानसून पैटर्न, बढ़ता तापमान और फसल पैदावार एवं कृषि योजना-निर्माण में अप्रत्याशित व्यवधान।
    • वर्ष 2022 में भारत ने ग्रीष्म लहरों (heat waves) की एक आरंभिक शृंखला का अनुभव किया, जिससे उसका गेहूँ उत्पादन प्रभावित हुआ और देश को गेहूँ निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा।
      • जलवायु परिवर्तन से प्रेरित चक्रवात की घटनाएँ भारतीय कृषि पर गंभीर प्रभाव डालती हैं, जहाँ वे व्यापक पैमाने पर फसल क्षति एवं मृदा क्षरण का कारण बनती हैं। इससे भारी आर्थिक हानि और आपूर्ति शृंखला में विकृति की स्थिति बनती है।
      • इसके अलावा, अनुकूलन उपायों के अंगीकरण के अभाव में भारत में वर्षा-सिंचित चावल की पैदावार वर्ष 2050 तक 20% कम हो सकती है।
  • जल की कमी: भारत जल संकट का सामना कर रहा है, जहाँ कई भूभागों में भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है।
    • जल की कमी के साथ ही अपर्याप्त सिंचाई अवसंरचना के कारण कृषि उत्पादकता सीमित हो जाती है।
    • केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, भारत के मुख्य जलाशयों में जल स्तर 23% तक गिर गया है।
      • इसके अलावा, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSPs) चावल जैसे जल-गहन फसलों को प्रभावित करता है। चूँकि भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, इसलिये यह माना जाता है कि हम न केवल चावल का निर्यात कर रहे हैं, बल्कि अपने जल का भी निर्यात कर रहे हैं।
  • बाज़ार की अक्षमता और मूल्य में उतार-चढ़ाव: किसानों को प्रायः सुविकसित बाज़ारों तक पहुँच की कमी और अपनी उपज के लिये उचित मूल्य के अभाव का सामना करना पड़ता है।
    • बिचौलियों और जटिल आपूर्ति शृंखला के कारण फ़ार्म-गेट मूल्यों (वह मूल्य जो किसानों को वास्तव में प्राप्त होता है) तथा उपभोक्ता मूल्यों के बीच बड़ा अंतराल उत्पन्न होता है।
  • अपर्याप्त भंडारण एवं परिवहन सुविधाएँ: खराब भंडारण अवसंरचना और अपर्याप्त परिवहन नेटवर्क के कारण कटाई उपरांत होने वाली हानि (Post-harvest losses) एक प्रमुख चिंता का विषय है।
    • शीघ्र खराब होने वाले फल एवं सब्जियाँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं, जिसके कारण उपज की बर्बादी और किसानों की आय में कमी की स्थिति बनती है।
    • भारत में हर वर्ष लगभग 74 मिलियन टन खाद्य बर्बाद हो जाता है, जो खाद्य उत्पादन का 22% है।
  • ऋण और बीमा तक सीमित पहुँच: कई किसान, विशेषकर लघु एवं सीमांत किसान, वहनीय ऋण और फसल बीमा योजनाओं तक पहुँच पाने के लिये संघर्ष करते हैं।
    • इससे नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करने, अवसंरचना में सुधार करने और कृषि संबंधी आघातों से निपटने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • मृदा क्षरण और संसाधन ह्रास: रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग, असंतुलित फसल पैटर्न और अपर्याप्त मृदा संरक्षण अभ्यासों के कारण मृदा क्षरण एवं आवश्यक पोषक तत्वों की कमी जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
    • इससे भूमि की उर्वरता और दीर्घकालिक उत्पादकता कम हो जाती है।
  • अकुशल कृषि नीति: केंद्र एवं राज्य की नीतियों के बीच परस्पर अंतर्निहित जटिल जाल और प्रभावी क्रियान्वयन का अभाव प्रायः प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है।
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSPs) को लेकर उभरे हाल के विवाद नीति और वास्तविक स्थिति के बीच के अंतर को उजागर कर इस चुनौती की ओर ध्यान दिलाते हैं।
      • इसके अलावा, गेहूँ एवं चावल के उत्पादन पर MSPs के प्रभाव के कारण रासायनिक उर्वरकों का व्यापक उपयोग हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप प्रोटीन की कमी वाले खाद्य आम लोगों, विशेषकर बच्चों तक पहुँच रहे हैं और इससे प्रच्छन्न भुखमरी (hidden hunger) की समस्या बढ़ रही है।
    • शांता कुमार समिति ने अपनी 2015 की रिपोर्ट में खुलासा किया कि केवल 6% भारतीय किसान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य से लाभान्वित होते हैं।
  • गतिहीन विकास: लगभग 42% श्रम शक्ति के नियोजन के बावजूद, कृषि क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 15% का योगदान देता है।
    • ये अक्षमताएँ न केवल आर्थिक विकास में बाधा डालती हैं, बल्कि गरीबी एवं आय असमानता की समस्या को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, और बढ़ाती हैं।

कृषि से संबंधित भारत सरकार की प्रमुख पहलें

भारत के कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • कृषि-पारिस्थितिकी गहरीकरण का क्रियान्वयन: पारंपरिक उच्च-इनपुट कृषि पर निर्भर रहने के बजाय, कृषि-पारिस्थितिकी गहरीकरण (Agroecological Intensification) के ऐसे तरीकों का पता लगाना तथा उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिये जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं की नकल करते हैं, जैव विविधता को बढ़ाते हैं और प्रत्यास्थता का निर्माण करते हैं।
    • इसमें पर्माकल्चर (permaculture), कृषि-वानिकी (agroforestry) और पुनर्योजी कृषि (regenerative agriculture) जैसे अभ्यास शामिल हो सकते हैं।
    • शून्य बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming- ZBNF) को भी व्यवहार में लाया जा सकता है।
  • कृषि नवाचार संकुलों की स्थापना: कृषि नवाचार संकुलों (Innovation Clusters) या कृषि-उद्यानों (agri-parks) का विकास करना जो अनुसंधान संस्थानों, एग्री-टेक स्टार्टअप्स, किसान सहकारी समितियों और संबंधित उद्योगों को एक सहयोगी पारितंत्र में एक साथ लाते हैं।
    • सिंगापुर के ‘एग्री-फूड इनोवेशन पार्क’ को एक मॉडल की तरह देखा जा सकता है।
  • ड्रोन आधारित परिशुद्ध कृषि का क्रियान्वयन: परिशुद्ध कृषि अनुप्रयोगों—जैसे लक्षित फसल निगरानी, परिवर्तनीय दर इनपुट अनुप्रयोग और कीट एवं रोग प्रकोप का शीघ्र पता लगाने के लिये ड्रोन प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना। इससे दक्षता में सुधार होगा और संसाधन अपव्यय को कम किया जा सकेगा।
  • फसल सुधार के लिये जेनेटिक एडिटिंग तकनीक: पारंपरिक प्रजनन विधियों की तुलना में अधिक परिशुद्ध एवं कुशल तरीके से जलवायु-प्रत्यास्थी, रोग-प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों को विकसित करने के लिये ‘CRISPR-Cas9’ जैसी जेनेटिक एडिटिंग तकनीकों की क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
    • मक्का के मामले में, CRISPR-Cas9 प्रणाली का उपयोग कर ARGOS8 के नए किस्मों को उत्पादित किया गया, जिसे जंगली किस्म की तुलना में सूखे के प्रति अधिक सहिष्णु पाया गया।
  • कृषि विस्तार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना: कृषि विस्तार सेवाओं के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना तथा किसानों को समयबद्ध एवं स्थानीय सलाह, प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करने के लिये निजी कंपनियों, एग्री-टेक स्टार्टअप एवं गैर-सरकारी संगठनों की विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
    • वर्तमान में कृषि सब्सिडी के लिये समर्पित भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 2% को कृषि क्षमता और अवसंरचना संवर्द्धन के लिये पुनःआवंटित किया जा सकता है।
  • कृषि-लॉजिस्टिक्स और कोल्ड चेन अवसंरचना का विकास करना: कटाई उपरांत होने वाली हानियों को न्यूनतम करने और शीघ्र खराब होने वाली खाद्य वस्तुओं के लिये बाज़ार पहुँच की संवृद्धि के लिये कुशल कृषि-लॉजिस्टिक्स एवं कोल्ड चेन अवसंरचना के विकास को प्राथमिकता दी जाए।
    • भारत में ‘किसान रेल’ पहल को परिवहन के अन्य साधनों में भी पहलों के माध्यम से पूरक सहयोग प्रदान किया जा सकता है।
  • आदर्श कृषि नीति: सहकार्यात्मक तरीके से एक केंद्रीय आदर्श कृषि नीति तैयार की जा सकती है, जो राज्यों को संवहनीय अभ्यासों को बढ़ावा देने, कुशल संसाधन उपयोग करने और बेहतर अवसंरचना एवं बाज़ार पहुँच के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाने के लिये मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है।
    • यद्यपि राज्य का अनुकूलन अत्यंत आवश्यक है, तथापि एक एकीकृत ढाँचा भारत के लिये अधिक प्रत्यास्थी कृषि भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
    • यह उपयुक्त समय है कि अशोक दलवाई समिति की अनुशंसा के अनुरूप कृषि विपणन को समवर्ती सूची में शामिल किया जाए।
      • इसने वाणिज्य, उपभोक्ता कार्य और कृषि को शामिल करते हुए एक स्थायी अंतर-मंत्रालयी समिति के गठन का भी सुझाव दिया है।
      • यह समिति घरेलू एवं वैश्विक कीमतों की निगरानी करेगी और आवश्यक बदलावों की सिफ़ारिश करेगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत का कृषि क्षेत्र इसकी अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है। हालाँकि, यह कई बाधाओं से जूझ रहा है। इन चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये और ऐसे समाधानों के सुझाव दीजिये जो मौजूदा सरकारी नीतियों की सीमाओं से परे जाकर प्रभावी सिद्ध हों।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)

  1. कृषि संपत्तियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी 
  2. कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद 
  3. खेतिहर परिवारों की उपभोग आवश्यकता 
  4. फसल के बाद का खर्च 
  5. पारिवारिक आवास का निर्माण एवं ग्राम कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना

निम्नलिखित कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. राष्ट्रव्यापी 'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' का उद्देश्य है- 
  2. सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना।  
  3. मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर किसानों को दिये जाने वाले ऋण की मात्रा का आकलन करने में बैंकों को सक्षम बनाना।  
  4. खेतों में उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग की जाँच करना।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 3
(C) केवल 2 और 3
(D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (B)


मेन्स:

प्रश्न. विज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या हैं? 

प्रश्न. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी० एम० एफ० बी० वाइ०) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।(2016)