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बिग-टेक का विनियमन: भारत और विश्व

  • 01 Apr 2024
  • 33 min read

यह एडिटोरियल 29/03/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Taking on Big-Tech” लेख पर आधारित है। इसमें ‘बिग टेक’ विरुद्ध अविश्वास प्रवर्तन के लिये अमेरिकी दृष्टिकोण में लंबे समय से प्रतीक्षित बदलाव पर चर्चा की गई है जो एक ऐसा कदम जो कुछ समय के लिये यूरोपीय संघ (EU) द्वारा की गई कार्रवाइयों को प्रतिबिंबित करता है। यह बदलाव भारत सहित वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय है, क्योंकि यह इन कंपनियों को उनके गृह देश द्वारा अब तक प्रदान की गई सुरक्षा कवच को हटाने का संकेत देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI), बिग टेक, फिनटेक, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002, स्टार्ट-अप, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, यूरोपीय संघ डिजिटल सेवा अधिनियम, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020

मेन्स के लिये:

भारत के डिजिटल स्पेस को बदलने में बिग टेक की भूमिका, बिग टेक को विनियमित करने के लिये भारत का वर्तमान दृष्टिकोण, भारत में बिग टेक फर्मों से जुड़ी चुनौतियाँ, प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022।

गूगल (Google) जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकी दिग्गज कंपनी और विभिन्न भारतीय कंपनियों के बीच संघर्ष की शुरूआत कुछ वर्ष पूर्व हुई जब ऐप डेवलपर्स ने भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी। इस शिकायत में आरोप लगाया गया कि गूगल एंड्रॉइड और प्ले स्टोर पारितंत्र में अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति का दुरुपयोग कर रहा है। विशेष रूप से, गूगल सर्च इंजन पर आरोप लगाया गया कि यह ऐप डेवलपर्स पर गूगल के प्रोप्राइटरी बिलिंग सिस्टम का उपयोग करने, अन्यथा किसी अन्य प्रतिस्पर्द्धी की सेवा को चुनने के लिये एक शुल्क का भुगतान करने का दबाव बना रहा है।

स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, जहाँ CCI ने अपने महानिदेशक को मामले की जाँच करने और 60 दिनों के भीतर एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। संभव है कि निष्कर्ष में, जैसा कि CCI द्वारा अनुमान लगाया है, गूगल की कार्रवाइयों को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 का उल्लंघन माना जाएगा।

बिग-टेक फर्मों से संबंधित विभिन्न पहलू:

  • परिचय

  • बिग टेक (Big Tech) शब्द वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली प्रौद्योगिकी कंपनियों को संदर्भित करता है। ये कंपनियाँ अपने विशाल बाजार पूंजीकरण, नवोन्मेषी उत्पादों एवं सेवाओं और व्यापक उपयोगकर्ता आधार के कारण विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण शक्ति एवं प्रभाव रखती हैं।
  • इसके कुछ प्रमुख उदाहरण Google, Facebook, Amazon, Apple आदि हैं।
  • बाज़ार पर प्रभुत्व और प्रभाव:
    • बिग टेक कंपनियाँ आमतौर पर अपने संबंधित बाज़ारों पर हावी होती हैं, जहाँ प्रायः एकाधिकारवादी या अल्पाधिकारवादी स्थिति (monopolistic or oligopolistic positions) रखती हैं। वे उद्योग के रुझान, उपभोक्ता व्यवहार और यहाँ तक कि सार्वजनिक नीति पर भी व्यापक प्रभाव डालती हैं।
      • अमेज़ॅन (Amazon): यह अपने Amazon.com प्लेटफ़ॉर्म और अमेज़ॅन वेब सर्विसेज़ (AWS) के साथ ई-कॉमर्स एवं क्लाउड कंप्यूटिंग पर प्रभुत्व रखता है।
      • गूगल (Google - Alphabet): यह अपने सर्च इंजन और यूट्यूब (YouTube) एवं गूगल एड्स (Google Ads) जैसी सहायक कंपनियों के माध्यम से अधिकांश ऑनलाइन सर्च ट्रैफ़िक और डिजिटल विज्ञापन राजस्व को नियंत्रित करता है।
      • फ़ेसबुक (Facebook - Meta): यह फ़ेसबुक (Facebook), इंस्टाग्राम (Instagram) और व्हाट्सएप (WhatsApp) जैसे अपने प्लेटफ़ॉर्मों के साथ सोशल मीडिया क्षेत्र का नेतृत्व करता है, जहाँ ऑनलाइन संचार और कंटेंट उपभोग को आकार देता है।
  • प्रौद्योगिकीय नवाचार:
    • बिग टेक कंपनियाँ अपने निरंतर नवाचार के लिये जानी जाती हैं, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), क्लाउड कंप्यूटिंग और डिजिटल मनोरंजन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति का नेतृत्व कर रही हैं।
      • एप्पल (Apple): यह iPhone, iPad और MacBook जैसे अपने अग्रणी उत्पादों के साथ-साथ Apple Music और iCloud जैसी सेवाओं के लिये प्रसिद्ध है ।
      • माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft): यह विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम (Windows operating system), ऑफिस सूट (Office suite), एक्सबॉक्स गेमिंग कंसोल (Xbox gaming consoles) और एज़्योर क्लाउड प्लेटफ़ॉर्म (Azure cloud platform) जैसे उत्पादों के साथ सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर एवं क्लाउड सेवाओं में नवाचार को आगे बढ़ा रहा है।
      • टेस्ला (Tesla): यह इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों और स्वायत्त ड्राइविंग तकनीक के साथ ऑटोमोटिव उद्योग को आमूल-चूल रूप से रूपांतरित कर रहा है।
  • डेटा संग्रहण और गोपनीयता संबंधी चिंताएँ:
    • बड़ी टेक कंपनियाँ अपने प्लेटफ़ॉर्मों और सेवाओं के माध्यम से बड़ी मात्रा में उपयोगकर्ता डेटा एकत्र करती हैं, जिससे गोपनीयता, निगरानी और डेटा सुरक्षा के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
      • गूगल: यह सर्च क्वेरी, ईमेल संचार, लोकेशन ट्रैकिंग और ब्राउज़िंग हिस्ट्री के माध्यम से उपयोगकर्ता डेटा एकत्र करता है तथा लक्षित विज्ञापन एवं वैयक्तिकृत सेवाओं को बढ़ावा देता है।
      • फेसबुक: इसके डेटा संग्रह अभ्यासों के लिये इसकी संवीक्षा की जा रही है। इसमें कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल (Cambridge Analytica scandal) भी शामिल है जहाँ राजनीतिक प्रोफ़ाइलिंग के लिये लाखों फेसबुक उपयोगकर्ताओं के डेटा का अनधिकृत उपयोग किया गया था।
      • अमेज़ॅन: यह उत्पाद अनुशंसाओं, मूल्य निर्धारण रणनीतियों और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन को अनुकूलित करने के लिये ग्राहकों की खरीदारी की आदतों एवं प्राथमिकताओं का विश्लेषण करता है।
  • विनियामक संवीक्षा और एंटी-ट्रस्ट (Anti-trust) संबंधी चिंताएँ:
    • बड़ी टेक कंपनियों को प्रायः अपने बाज़ार प्रभुत्व, कथित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी व्यवहार और उपभोक्ता अधिकारों के संभावित उल्लंघन के कारण नियामक संवीक्षा एवं एंटी-ट्रस्ट जाँच का सामना करना पड़ता है।
      • गूगल: कथित एकाधिकारवादी अभ्यासों, अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और इसके सर्च इंजन, विज्ञापन व्यवसाय एवं एंड्रॉइड पारितंत्र से संबंधित एंटी-ट्रस्ट उल्लंघनों के लिये दुनिया भर में सरकारी एजेंसियों और नियामक निकायों द्वारा इसकी  जाँच की जा रही है।
      • फेसबुक: इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे संभावित प्रतिस्पर्द्धियों के अधिग्रहण के साथ ही डिजिटल विज्ञापन एवं सोशल नेटवर्किंग बाज़ारों पर इसके नियंत्रण के बारे में मौजूद चिंताओं को लेकर इसे एंटी-ट्रस्ट मुक़दमों और नियामक जाँच का सामना करना पड़ रहा है।
      • अमेज़ॅन: इसके ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म पर तीसरे पक्ष के विक्रेताओं के साथ व्यवहार, आक्रामक मूल्य निर्धारण (predatory pricing) के आरोपों और खुदरा विक्रेता एवं बाज़ार ऑपरेटर दोनों के रूप में हितों के संभावित टकराव के संबंध में इसकी एंटी-ट्रस्ट समीक्षा की जा रही है।

नोट

एंटी-ट्रस्ट (Antitrust):

  • एंटी-ट्रस्ट कानून ऐसे विनियम हैं जिनका उद्देश्य एकाधिकारवादी अभ्यासों, मूल्य निर्धारण और अन्य गतिविधियों (जो उपभोक्ताओं को नुकसान पहुँचा सकते हैं या प्रतिस्पर्द्धा को दबा सकते हैं) को नियंत्रित कर बाज़ार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना है।
    • एंटी-ट्रस्ट कानूनों, जिन्हें प्रतिस्पर्द्धा कानूनों (competition laws) के रूप में भी जाना जाता है, का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर विभिन्न प्रकार के उच्च गुणवत्तापूर्ण उत्पादों तक पहुँच प्राप्त हो।
  • एंटी-ट्रस्ट कानूनों का उद्देश्य कंपनियों को एकाधिकार शक्ति प्राप्त करने से रोकना है, जो तब उत्पन्न होता है जब कोई एकल कंपनी या समूह बाज़ार के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है। ऐसे एकाधिकार से उच्च कीमत, निम्न गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और नवाचार की कमी की स्थिति बन सकती है।

‘बिग टेक’ को विनियमित करने के लिये हाल ही में कौन-से कदम उठाये गए हैं?

  • अमेरिका का फेडरल ट्रेड कमीशन (FDC):
    • FDC के अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ यह परिवर्तन आया है। अमेरिकी न्याय विभाग और 16 राज्यों ने एप्पल (Apple) पर स्मार्टफ़ोन बाज़ार पर एकाधिकार करने और इसका दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए मुक़दमा दायर किया है।
      • एप्पल के विरुद्ध मुक़दमा बाज़ार की शक्ति का दुरुपयोग करने के लिये गूगल, फ़ेसबुक और अमेज़ॅन के विरुद्ध मुक़दमों की लंबी होती सूची का अनुसरण करता है। प्रतिद्वंद्वी उत्पादों की कार्यक्षमता को अवरुद्ध करने, दबाने, अपवर्जित करने, कम करने और तीसरे पक्ष के वॉलेट को सीमित करने के रूप में इनकी कार्यप्रणाली एक जैसी है।
  • यूरोपीय संघ (EU) की पहलें:
    • डिजिटल मार्केट एक्ट (DMA), 2022 के प्रावधानों के अनुरूप ‘डिजिटल क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धी एवं निष्पक्ष बाज़ार’ सुनिश्चित करने के उपायों की एक शृंखला के तहत यूरोपीय आयोग ने मार्च 2024 में तथाकथित बिग टेक (एप्पल, मेटा और अल्फ़ाबेट) के विरुद्ध ‘गैर-अनुपालन अन्वेषण’ की शुरूआत की है। यह अमेज़ॅन के मार्केटप्लेस में उसके रैंकिंग अभ्यासों की भी जाँच करेगा।
  • भारत का रुख:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002: भारत में एंटी-ट्रस्ट के मुद्दे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 द्वारा शासित होते हैं और CCI एकाधिकारवादी अभ्यासों पर नियंत्रण रखता है।
      • CCI ने वर्ष 2022 में ‘प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी अभ्यासों’ के लिये विभिन बाज़ारों में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करने के लिये गूगल पर 1,337.76 करोड़ रुपए का अर्थदंड आरोपित किया।
    • प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022: सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022 के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया। विधेयक को अप्रैल 2023 में राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई।
      • CCI किसी उद्यम के भारत में पर्याप्त व्यवसाय संचालन का आकलन करने के लिये आवश्यकताओं को निर्धारित करने वाले विनियम बनाएगा।
      • यह आयोग के समीक्षा तंत्र को, विशेष रूप से डिजिटल एवं अवसंरचना क्षेत्र में, सुदृढ़ बनाएगा, जिनमें से अधिकांश की रिपोर्टिंग पूर्व में नहीं की गई थी, क्योंकि संपत्ति या टर्नओवर मूल्य क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाओं को पूरा नहीं करते थे।

बिग टेक के कार्यकरण से संबद्ध विभिन्न चिंताएँ:

  • घरेलू सेवाओं को प्राथमिकता देना:
    • गैर-अनुपालन जाँच अल्फ़ाबेट द्वारा अपने ग्राहकों को अपने प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में स्वयं के इन-हाउस सेवाओं की ओर ले जाने या निर्देशित करने वाले कथित नियमों के उपयोग पर केंद्रित है। एप्पल की उसके ऐप स्टोर में कथित तौर पर इसी तरह के अभ्यासों के साथ-साथ उसके द्वारा सफ़ारी ब्राउज़र की तैनाती के तरीकों के लिये जाँच की जाएगी। इसी तरह, मेटा की उसके ‘भुगतान या सहमति मॉडल’ के लिये जाँच की जाएगी।
  • EU के डिजिटल मार्केट एक्ट, 2022 (DMA) का गैर-अनुपालन:
    • अल्फ़ाबेट, अमेज़ॅन, एप्पल, बाइटडांस (टिकटॉक की पैरेंट कंपनी) और माइक्रोसॉफ्ट को सितंबर 2023 में ‘गेटकीपर’ के रूप में निर्दिष्ट किया गया था। उनसे उम्मीद की गई कि वे 7 मार्च, 2024 तक DMA के तहत सभी दायित्वों का पूरी तरह से पालन करना शुरू कर देंगे।
    • यूरोपीय आयोग ने DMA प्रावधानों के गैर-अनुपालन की जाँच शुरू करने से पहले इन कंपनियों द्वारा प्रस्तुत अनिवार्य अनुपालन रिपोर्ट का आकलन किया और हितधारकों से प्रतिक्रिया (कार्यशालाओं के संदर्भ में भी) एकत्र की।
  • बिग टेक द्वारा अपनाया गया भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण:
    • यूरोपीय आयोग का लक्ष्य यह आकलन करना है कि क्या गूगल के सर्च परिणाम पूर्वाग्रह रखते हैं, विशेष रूप से यदि कंपनी प्रतिस्पर्द्धियों की सेवाओं पर अपनी स्वयं की सेवाओं को प्राथमिकता देती हो।
      • इसने आशंका जताई कि DMA के अनुपालन के अल्फाबेट के प्रयास गूगल की अपनी सेवाओं की तुलना में गूगल के सर्च रिज़ल्ट पृष्ठ पर थर्ड पार्टी सेवाओं के प्रति निष्पक्ष व्यवहार की गारंटी नहीं भी दे सकते हैं।
      • इसके अलावा, CCI ने भी मार्च 2024 में गूगल द्वारा इसकी प्ले स्टोर मूल्य निर्धारण नीति पर कथित भेदभावपूर्ण अभ्यासों के लिये प्रथम दृष्टया प्रतिस्पर्द्धा कानून का उल्लंघन पाए जाने पर उसके विरुद्ध विस्तृत जाँच का आदेश दिया।

  • ग्राहकों के लिये विकल्प कम करना:
    • अक्टूबर 2020 में अमेरिकी न्याय विभाग (DoJ) ने गूगल पर “सर्च और सर्च विज्ञापन बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी एवं अपवर्जनकारी अभ्यासों के माध्यम से गैर-कानूनी रूप से एकाधिकार बनाए रखने” का आरोप लगाया और इससे “प्रतिस्पर्द्धी हानि का समाधान” करने की मांग की।
      • DoJ के अनुसार, इस आचरण ने उपभोक्ताओं को उनके सर्च की गुणवत्ता को कम करने, विकल्पों को कम करने और नवाचार में बाधा डालने के रूप में नुकसान पहुँचाया है। अमेज़ॅन को भी अपने मार्केटप्लेस में लिस्टिंग को इसी तरह व्यवस्थित करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
  • पारितंत्र बंधन (Ecosystem Captitvity) के बारे में चिंताएँ:
    • यूरोपीय आयोग यह आकलन करना चाह रहा है कि क्या एप्पल उपयोगकर्ताओं को iOS पर किसी भी प्री-इंस्टॉल्ड (या वर्तमान में डिफ़ॉल्ट) सॉफ़्टवेयर एप्लीकेशन को आसानी से अन-इंस्टॉल करने या डिफ़ॉल्ट सेटिंग्स को बदलने में सक्षम बनाता है और क्या उन्हें पसंद का स्क्रीन या इंटरफेस प्रदान करता है जो उन्हें डिफ़ॉल्ट सेवाओं के बदले प्रभावी ढंग से एवं आसानी से विकल्प चुनने की अनुमति देता हो। 
      • जाँच की आवश्यकता आयोग की इस चिंता से उत्पन्न हुई है कि संभव है कि एप्पल द्वारा किये गए उपाय उपयोगकर्ताओं को “एप्पल पारितंत्र के साथ वास्तव में अपनी पसंद की सेवाओं का उपयोग करने” से बाधित कर रहे हैं जो वास्तव में “पारितंत्र बंधन या पारितंत्र की क़ैद” से संबद्ध चिंता के समान है।
  • मेटा की ‘बाइनरी-चॉइस’ से संबद्ध चिंताएँ:
    • मेटा ने एक सब्स्क्रिप्शन मॉडल प्रस्तुत किया है जो EU, यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र (EEA) और स्विट्ज़रलैंड के लोगों को बिना किसी विज्ञापन के फेसबुक एवं इंस्टाग्राम का उपयोग करने का विकल्प प्रदान करता है। वैकल्पिक रूप से, वे अपने लिये प्रासंगिक विज्ञापन देखते हुए (दूसरे शब्दों में वैयक्तिकृत विज्ञापन के लिये सहमति के साथ) इन सेवाओं का निःशुल्क उपयोग जारी रख सकते हैं।
      • यह मॉडल नियामकों को पर्याप्त आश्वस्तिकारी नहीं लगा। माना गया कि मॉडल की ‘बाइनरी चॉइस’ की पेशकश उपयोगकर्ताओं की सहमति नहीं होने की स्थिति में वास्तविक विकल्प नहीं भी प्रदान कर सकती है; इस प्रकार, ‘गेटकीपर्स’ द्वारा व्यक्तिगत डेटा के संचय को रोकने का उद्देश्य पूरा नहीं भी हो सकता है।
  • नियामक निर्वात:
    • बिग टेक कंपनियों द्वारा द्रुत गति से नवाचार और उन्नति आगे बढ़ाने के कारण, नियामक केवल प्रतिक्रिया दे सकने में ही सक्षम हैं, पूर्व-तैयारी कर सकने में नहीं। इन दिग्गज प्लेटफ़ॉर्मों का कहना है कि वे केवल मध्यस्थ हैं और इसलिये, उन्हें कंटेंट के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • मनमाना मूल्य निर्धारण:
    • गैर-डिजिटल क्षेत्र में मूल्य निर्धारण बाज़ार शक्तियों के माध्यम से होता है। लेकिन डिजिटल क्षेत्र में नियम बड़े पैमाने पर बड़े प्लेटफ़ॉर्मों द्वारा तय किये जाते हैं। इन प्लेटफ़ॉर्मों पर उपभोक्ता स्वयं उत्पाद भी हैं। बिग टेक फर्मों द्वारा गेटकीपिंग के साथ ही नेटवर्क इफ़ेक्ट और ‘विनर्स-टेक-इट-ऑल’ जैसी अवधारणाएँ समस्या को और बढ़ा देती हैं।

बिग टेक को विनियमित करने के लिये कौन-से कदम उठाये जा सकते हैं?

वित्त संबंधी स्थायी समिति ने दिसंबर, 2022 में 'बिग टेक कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति की प्रमुख टिप्पणियों और सिफारिशों में शामिल हैं:

  • डिजिटल बाज़ारों का विनियमन:
    • डिजिटल बाज़ार लाखों उपयोगकर्ताओं वाली इंटरनेट-आधारित कंपनियों से निर्मित है। भौतिक बाज़ारों के विपरीत, डिजिटल बाज़ारों में प्रायः कंपनी के आकार के साथ रिटर्न बढ़ता हुआ देखा जाता है, जो लर्निंग और नेटवर्क प्रभावों से प्रेरित होता है।
    • इससे कुछ प्रमुख खिलाड़ी नीतियों और एंटी-ट्रस्ट उपायों के लागू होने से पहले ही तेज़ी से उभर सकते हैं। समिति ने वस्तुस्थिति के बाद मूल्यांकन करने के मौजूदा अभ्यास के बजाय बाज़ारों पर एकाधिकार कायम होने से पहले ही प्रतिस्पर्द्धी व्यवहार का मूल्यांकन कर लेने का सुझाव दिया।
  • डिजिटल गेटकीपर्स:
    • समिति ने सुझाव दिया कि भारत को डिजिटल बाज़ारों में उन प्रमुख खिलाड़ियों की पहचान करनी चाहिये जो प्रतिस्पर्द्धा को नुकसान पहुँचा सकते हैं और उन्हें राजस्व, बाज़ार पूंजीकरण एवं उपयोगकर्ता आधार जैसे कारकों के आधार पर व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण डिजिटल मध्यस्थों (Important Digital Intermediaries- SIDIs) के रूप में वर्गीकृत करना चाहिये। SIDIs के लिये फिर निर्दिष्ट किया जाना चाहिये कि वे अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के अपने प्रयासों की रूपरेखा बताते हुए भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया करें।
  • डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम:
    • समिति ने माना कि भारत को डिजिटल बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपने प्रतिस्पर्द्धा कानून को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। इस बाज़ार के आर्थिक चालक कुछ खिलाड़ियों को पारितंत्र पर हावी होने में मदद करते हैं।
    • समिति ने सिफ़ारिश की कि सरकार को एक निष्पक्ष, पारदर्शी एवं प्रतिस्पर्द्धी डिजिटल पारितंत्र सुनिश्चित करने के लिये एक डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम पेश करना चाहिये।
  • स्व-प्राथमिकता (Self-Preferencing):
    • किसी इकाई के पास मंच प्रदान करने और उसी मंच पर प्रतिस्पर्द्धा करने की दोहरी भूमिका हो सकती है। स्व-प्राथमिकता ऐसा अभ्यास है जहाँ कोई मंच अपनी स्वयं की सेवाओं या अपनी सहायक कंपनियों की सेवाओं का पक्षधर होता है।
    • समिति ने कहा कि प्लेटफ़ॉर्म तटस्थता की कमी से डाउनस्ट्रीम बाज़ारों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसने सिफ़ारिश की कि SIDIs को पहुँच में मध्यस्थता करते समय अपने प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में स्वयं द्वारा प्रदत्त सेवाओं का पक्षधर नहीं होना चाहिये।
  • डेटा उपयोग:
    • समिति ने पाया कि वृहत उपयोगकर्ता डेटा तक पहुँच रखने वाले प्रमुख बाज़ार खिलाड़ी और बड़े होते जा रहे हैं, जबकि नए प्रतिस्पर्द्धी पकड़ हासिल करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। इसे संबोधित करने के लिये यह अनुशंसा की गई कि SIDIs को उन अंतिम उपयोगकर्ताओं के व्यक्तिगत डेटा को संसाधित नहीं करना चाहिये जो SIDIs की मुख्य सेवाओं पर निर्भर थर्ड पार्टी सेवाओं का उपयोग करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, उन्हें अपनी मुख्य सेवाओं के व्यक्तिगत डेटा को अन्य मुख्य सेवाओं के डेटा के साथ विलय नहीं करना चाहिये, न ही उन्हें स्पष्ट उपयोगकर्ता सहमति के बिना अपनी मुख्य सेवाओं के व्यक्तिगत डेटा का उपयोग अन्य अलग से प्रदान की गई सेवाओं में करना चाहिये। उपयोगकर्ताओं को अन्य प्लेटफ़ॉर्म सेवाओं में स्वचालित रूप से साइन-इन नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि उन्होंने ऐसा करने के लिये स्पष्ट रूप से सहमति न दी हो।
  • CCI का पुनरुद्धार:
    • CCI भारत में बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा को नियंत्रित करता है। समिति की राय है कि डिजिटल बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समस्या से निपटने के लिये CCI को सशक्त  किया जाना चाहिये। इसने CCI में एक विशेष डिजिटल बाज़ार इकाई के निर्माण का सुझाव दिया।
      • यह इकाई: (i) स्थापित और उभरते SIDIs की निगरानी करेगी, (ii) SIDIs को निर्दिष्ट करने के मामले में केंद्र सरकार को सिफ़ारिशें देगी, और (iii) डिजिटल बाज़ारों से संबंधित मामलों पर न्याय-निर्णयन करेगी।
  • थर्ड पार्टी एप्लीकेशन (Third-Party Applications):
    • समिति ने पाया कि गेटकीपर इकाइयाँ थर्ड पार्टी एप्लीकेशन की इंस्टॉलिंग या संचालन को प्रतिबंधित करती हैं। उसने माना कि SIDIs को थर्ड पार्टी सॉफ़्टवेयर एप्लीकेशन की इंस्टॉलिंग और उपयोग की अनुमति देनी चाहिये और इसे प्रौद्योगिकीय रूप से सक्षम करना चाहिये।
      • ऐसे सॉफ़्टवेयर एप्लीकेशन या सॉफ़्टवेयर एप्लीकेशन स्टोर प्लेटफ़ॉर्म की प्रासंगिक मुख्य सेवाओं के अलावा अन्य माध्यमों से अभिगम्य होने चाहिये। हालाँकि, SIDIs से किसी विदेशी प्रतिद्वंद्वी की सरकार को डेटा हस्तांतरित नहीं किया जाना चाहिये।
  • बंडलिंग और टाइंग (Bundling and Tying):
    • कई डिजिटल कंपनियाँ उपभोक्ताओं को संबंधित सेवाएँ खरीदने के लिये बाध्य करती हैं। समिति ने कहा कि इससे मूल्य निर्धारण में विषमता पैदा होती है और बाज़ार से प्रतिस्पर्द्धा समाप्त हो जाती है।
    • यह अग्रणी खिलाड़ियों को एक मुख्य मंच से दूसरे मंच पर अपनी बाज़ार शक्ति का लाभ उठाने में भी सक्षम बनाता है। यह राय दी गई कि SIDIs द्वारा व्यवसायों या अंतिम उपयोगकर्ताओं को अपनी मुख्य प्लेटफ़ॉर्म सेवा का उपयोग करने में सक्षम होने के लिये किसी भी अन्य सेवा की सदस्यता लेने के लिये विवश नहीं किया जाना चाहिये।
  • एंटी-स्टीयरिंग (Anti-Steering):
    • एंटी-स्टीयरिंग प्रावधान ऐसे खंड हैं जिनमें कोई प्लेटफ़ॉर्म अपने व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं को अपने ग्राहकों को प्लेटफ़ॉर्म द्वारा प्रदान किये गए ऑफ़र के अलावा अन्य ऑफ़र की ओर ले जाने से रोकता है।
    • समिति ने सिफ़ारिश की कि SIDIs को अपने प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँच के लिये ऐसे अन्य उत्पादों या सेवाओं की खरीद/उपयोग की शर्त नहीं रखनी चाहिये जो उस प्लेटफ़ॉर्म का अंग नहीं हैं या उसके लिये अंतर्भूत नहीं हैं।

निष्कर्ष:

यूरोपीय आयोग और CCI ने निष्पक्ष एवं प्रतिस्पर्द्धी डिजिटल बाज़ारों की सुनिश्चितता के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं और प्पल, मेटा, अल्फाबेट और अमेज़ॅन जैसी तकनीकी दिग्गज कंपनियों के विरुद्ध गैर-अनुपालन जाँच शुरू की है। ये जाँच कथित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी अभ्यासों पर केंद्रित है, जिसमें उपयोगकर्ताओं को अपनी सेवाओं के उपयोग, रैंकिंग अभ्यासों और सदस्यता मॉडल की ओर ले जाना शामिल है। ये जाँच ‘गेटकीपर्स’ को विनियमित करने और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के डिजिटल बाज़ार अधिनियम के उद्देश्य से संरेखित है। हालाँकि, एप्पल जैसी कंपनियों ने DMA के प्रावधानों के विरुद्ध तर्क दिया है और कहा है कि संभव है कि वे उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिये व्यापक लाभों के अनुकूल नहीं सिद्ध हों।

अभ्यास प्रश्न: एंटी-ट्रस्ट कानून निष्पक्ष बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार की सुनिश्चितता के लिये बड़ी तकनीकी कंपनियों की एकाधिकारवादी प्रथाओं को किस प्रकार संबोधित करते हैं? व्याख्या कीजिये।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न: भारत में कानून के प्रावधानों के तहत 'उपभोक्ताओं' के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)

  1. उपभोक्ताओं को खाद्य परीक्षण के लिये नमूने लेने का अधिकार है।
  2. जब कोई उपभोक्ता किसी उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराता है तो कोई शुल्क नहीं देना होता है।
  3. उपभोक्ता की मृत्यु के मामले में उसका कानूनी उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c

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