सामाजिक न्याय
प्रवासी श्रमिकों का पंजीकरण
- 23 Jul 2021
- 10 min read
यह एडिटोरियल 22/07/2021 को ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Why the Supreme Court order on registration of migrant workers is welcome’’ लेख पर आधारित है। इसमें प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण हेतु सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के संबंध में चर्चा की गई है।
प्रवासन पर नवीनतम उपलब्ध सरकारी आँकड़ों (वर्ष 2011 की जनगणना) के अनुसार, भारत में वर्ष 2011 में 45.6 करोड़ (जनसंख्या का 38%) प्रवासी थे, जबकि 2001 में इनकी संख्या 31.5 करोड़ (जनसंख्या का 31%) रही थी।
प्रवासी श्रमिक कोविड-19 महामारी से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं क्योंकि राज्यविहीनता की उनकी स्थिति के कारण वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा सके। इस प्रकार, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों (लगभग 93%, निम्नस्तरीय रोज़गार में संलग्न अधिकांश प्रवासी श्रमिकों सहित) को वर्तमान में कार्यान्वित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकने में सक्षम बनाने की आवश्यकता है।
प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं और कठिनाइयों पर सर्वोच्च न्यायालय का हाल का निर्णय इतिहास में एक क्रांतिकारी निर्णय के रूप में दर्ज किया जाएगा जिसने कोविड-19 महामारी के समय मानवीय पीड़ा को कम करने का प्रयास किया है।
इस निर्णय में अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों के महत्त्वपूर्ण योगदान को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया गया है, भले ही वे प्रायः अस्थायी रोज़गार में संलग्न होते हैं। हालाँकि इस निर्णय के सुचारू कार्यान्वयन की अपनी चुनौतियाँ भी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्त्व
- स्वघोषणा स्वीकार करने का निर्देश: प्रचलित अभ्यास से विराम लेते हुए निर्णय में कहा गया है कि कल्याणकारी कार्यक्रमों तक श्रमिकों की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये संबंधित प्राधिकार आईडी कार्ड पर ज़ोर नहीं देंगे और श्रमिकों की "स्वघोषणा" को स्वीकार करेंगे (ज्ञात हो कि ऐसा ही प्रावधान सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 में मौजूद था)।
- एक ऐसे देश में जहाँ दस्तावेज़ निर्धारित करते हैं कि किन लोगों की राज्य के संसाधनों तक पहुँच होगी और किसे नागरिकता दी जाएगी, किसे नहीं—वहाँ दस्तावेज़ की आवश्यकता को समाप्त किये जाने का निर्णय बेहद क्रांतिकारी है।
- कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच को सार्वभौमिक बनाने का निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में यह भी कहा गया है कि दस्तावेज़ीकरण की कमी को राज्य द्वारा अपने उत्तरदायित्वों से बचने के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, विशेषकर एक ऐसे समय जब देश महामारी का सामना कर रहा है।
- यद्यपि दीर्घकालिक लक्ष्य यह है कि सभी प्रवासी श्रमिकों को पंजीकृत किया जाए ताकि कल्याणकारी योजनाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित हो।
- यह समाजवादी एजेंडे में विश्वास को प्रेरित करता है: सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय एक ऐसे समय भारत के मूल समाजवादी एजेंडे में विश्वास को प्रेरित करता है जब नव-उदारवादी नीतियों ने समाज के सबसे कमज़ोर लोगों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा हेतु किये गए उपायों को चुनौती दी है तथा औद्योगिक क्षेत्र लागत में कटौती करने और प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये श्रम मानकों के मामले में शर्मनाक “race to the bottom” के दृष्टिकोण पर अमल कर रहे हैं।
- यह निर्णय एक स्वागत योग्य संकेत है कि देश का उच्चतम न्यायालय समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों की दशा-दिशा पर नज़र बनाए हुए है।
प्रवासियों की समस्याएँ
- श्रमिकों के पंजीकरण में देरी: श्रम और रोज़गार मंत्रालय के राष्ट्रीय डेटाबेस पर श्रमिकों को पंजीकृत करने में देरी उनकी पहुँच को अवरुद्ध करने वाली प्रमुख बाधा है।
- श्रम विभाग में व्याप्त बाधाएँ: श्रम विभाग में पंजीकरण से संबंधित प्रक्रियाओं पर दिशा-निर्देशों की कमी और हार्ड कॉपी में प्रस्तुत डेटा को पोर्टल पर अपलोड करने में देरी (क्योंकि इसे किसी अन्य द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अद्यतन नहीं किया जा सकता) सहित कई बाधाएँ मौजूद हैं।
- प्रशासनिक समस्याएँ: प्रवासियों को पंजीकरण में डिजिटल निरक्षरता, भ्रष्टाचार, नौकरशाही अक्षमता और विभिन्न दस्तावेज़ों की आवश्यकता (तब भी जबकि आधार कार्ड ही पर्याप्त होता) जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- अतिसंवेदनशील समूहों का बहिर्वेशन: समाज में व्याप्त भेदभाव के कारण मुस्लिम तथा दलित जातियों जैसे अतिसंवेदनशील समूहों के बहिर्वेशन की स्थिति और भी बदतर है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश ने श्रम भर्ती और रोज़गार के उन उलझे हुए प्रतिरूपों को चुनौती दी है जो वर्तमान नव-उदारवादी संदर्भ में जड़ें जमा चुके हैं।
आगे की राह
- पंजीकरण प्रक्रिया को तेज़ करना: पंजीकरण के बिना वर्तमान में कार्यान्वित कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित नहीं की जा सकती। इसलिये सभी प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण हेतु इस प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- मौजूदा कानूनों का प्रवर्तन: सभी श्रमिकों को श्रम एवं प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा हेतु वर्तमान में प्रवर्तित तीन कानूनों—अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979; भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996; और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008—के तहत पंजीकृत किया जाना चाहिये।
- ONORC योजना का शीघ्रातिशीघ्र आरंभ:
- उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ (ONORC) योजना के तहत प्रवासी श्रमिकों के बीच वितरण के लिये राज्यों को अतिरिक्त खाद्यान्न आवंटित करना चाहिये।
- इस प्रणाली के आरंभ के लिये लाभार्थियों के पास राशन कार्ड, आधार कार्ड और राशन की दुकानों में इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल (ePoS ) होना आवश्यक है।
- श्रम विभागों में सुधार की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की पूर्ति के लिये श्रम विभागों के पास कर्मियों और आवश्यक क्षमता का गंभीर अभाव है जिसे दूर करने की आवश्यकता है।
- विभागों में संगठनात्मक परिवर्तन लाने के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
निष्कर्ष
देश के समग्र विकास के लिये सामाजिक सुरक्षा उपायों के दायरे में सभी असंगठित श्रमिकों को शामिल किया जाना आवश्यक है।
इस प्रकार, प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का हाल का आदेश समाज के सबसे कमज़ोर लोगों के अधिकारों के पक्ष में खड़ा है और अर्थव्यवस्था में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान को चिह्नित करता है।
अभ्यास प्रश्न: यद्यपि प्रवासी श्रमिक प्रायः अस्थायी रोज़गार में संलग्न होते हैं लेकिन, अर्थव्यवस्था उनका योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस कथन के आलोक में प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय की चर्चा कीजिये।