प्राथमिक शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन | 01 Mar 2024
यह एडिटोरियल 29/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The economic case for investing in India’s children” लेख पर आधारित है। इसमें प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पर चर्चा की गई है और इस क्षेत्र में वृहत निवेश की आवश्यकता पर बल दिया गया है ।
प्रिलिम्स के लिये:प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECCE), एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS), राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संवर्धित शिक्षण कार्यक्रम, PRAGYATA, PM SHRI स्कूल, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), कृत्रिम बुद्धिमत्ता। मेन्स के लिये:भारत में प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति, पर्याप्त निवेश की आवश्यकता।। |
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (Early Childhood Care and Education- ECCE) में दशकों से कम निवेश और कम अन्वेषण की स्थिति रही है, जबकि जनसांख्यिकीय लाभांश, शिक्षा एवं रोज़गार अवसरों पर देश के के केंद्रित ध्यान को देखते हुए यह बेहद स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारत के बच्चों पर पर्याप्त आर्थिक निवेश किया जाए।
ECCE प्रायः घरेलू या पारिवारिक दायरे तक ही सीमित रहा है, संभवतः इसलिये कि इसे परंपरागत रूप से महिलाओं का कार्य माना जाता रहा है। महिला नेतृत्व वाले विकास पर सरकार के बढ़ते केंद्रित ध्यान के साथ अब देखभाल कार्य और प्रारंभिक बाल्यावस्था को अंततः देश की व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण कार्य के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है।
ECCE की वर्तमान स्थिति:
- निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा:
- संविधान में राज्य की नीति के निदेशक तत्व (DPSP) के अनुच्छेद 45 के तहत उपबंध किया गया था कि “राज्य, इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बच्चों के लिये, चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिये उपबंध करने का प्रयास करेगा।”
- सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio- GER) में सुधार:
- ECCE में निवेश बढ़ाने का तर्क बेहद बुनियादी है जहाँ माना जाता है कि मानव संसाधन किसी राष्ट्र की नींव का निर्माण करते हैं और प्रारंभिक बाल्यावस्था मानव की नींव का निर्माण करती है। धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से, भारतीय विकासशील राज्य ने शिक्षा के लिये माता-पिता की आकांक्षाओं को बढ़ावा दिया है और उन्हें पूरा किया है, जहाँ प्रथम अभिगम्यता को लक्षित करते हुए प्राथमिक स्तर पर 100% GER को पार कर लिया गया है।
- अधिगम प्रतिफल से संबद्ध दुविधाएँ:
- हाल के समय में अधिगम प्रतिफल (लर्निंग आउटकम) के मापन पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के 75वें दौर के आँकड़े और अधिगम प्रतिफल पर NCERT (राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2023) के अध्ययन के साथ ही ASER रिपोर्ट 2023 से पता चलता है कि भारत के बच्चे प्राथमिक स्तर पर उपयुक्त अधिगम प्राप्त करने में विफल रहते हैं और उच्च स्तर पर जाने पर पाठ्यक्रम को समझने में संघर्ष करते हैं।
- छह वर्ष से कम आयु के बच्चों पर केंद्रित ध्यान में वृद्धि:
- सरकार ने जीवन चक्र के आरंभिक हिस्से, यानी छह वर्ष से कम आयु के बच्चों पर ध्यान केंद्रित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जहाँ बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान के लिये ‘बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल- निपुण’ (National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy- NIPUN) भारत मिशन और आँगनवाड़ी प्रणाली के माध्यम से ECCE गुणवत्ता में सुधार के लिये ‘पोषण भी, पढ़ाई भी’ कार्यक्रम जैसी पहल की गई है।
नोट
‘पोषण भी, पढाई भी’:
उद्देश्य:
- पहले हज़ार दिनों के दौरान आरंभिक उत्प्रेरण को बढ़ावा देना और 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये ECCE की सुविधा प्रदान करना।
- आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ECCE पाठ्यक्रम और शैक्षणिक दृष्टिकोण की मूलभूत समझ प्रदान कर उनकी क्षमताओं को बढ़ाना। यह उन्हें ज़मीनी स्तर पर उच्च गुणवत्तापूर्ण खेल-आधारित ECCE प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- आँगनवाड़ी भारत में एक प्रकार का ग्रामीण बाल देखभाल केंद्र है। इसकी स्थापना एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) कार्यक्रम के एक भाग के रूप में की गई थी।
- आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को विकास के विभिन्न क्षेत्रों (शारीरिक एवं क्रियात्मक, संज्ञानात्मक, सामाजिक-भावनात्मक-नैतिक, सांस्कृतिक/कलात्मक) और मूलभूत साक्षरता एवं संख्या ज्ञान (Foundational Literacy and Numeracy- FLN) के विकास के साथ-साथ संबंधित मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाना।
- पोषण 2.0 एवं सक्षम आँगनवाड़ी जैसी पहलों और पोषण क्षेत्र में विभिन्न नवाचारों, पोषण ट्रैकर, फीडिंग विधियाँ,सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आदि के संबंध आँगनवाड़ी सहायिकाओं के ज्ञान को सुदृढ़ करना।
- बजटीय आवंटन:
- 14 लाख आँगनवाड़ी केंद्रों द्वारा छह वर्ष से कम आयु के निर्धनतम आठ करोड़ बच्चों की देखभाल को देखते हुए वर्ष 2023 में शिक्षण-अधिगम सामग्री का परिव्यय तीन गुना कर दिया गया (लगभग 140 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 420 करोड़ रुपए प्रति वर्ष)।
- अंतरिम बजट 2024 में सक्षम आँगनवाड़ी के उन्नयन में तेज़ी लाने का वादा और आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA) एवं सहायकों के लिये आयुष्मान भारत सेवाएँ प्रदान करना उत्साहजनक है।
- उच्च शिक्षा की तुलना में निधि आवंटन में असमानताएँ:
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर वर्ष 2024-25 का बजटीय व्यय, जो केंद्र-राज्य वित्तीय हस्तांतरण का एक बड़ा हिस्सा है, 5.01 लाख करोड़ रुपए है। इसमें से आँगनवाड़ी प्रणाली को लगभग 21,200 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, जो ग्रामीण सड़कों (12,000 करोड़ रुपए) और सिंचाई (11,391 करोड़ रुपए) को आवंटित राशि से कहीं अधिक है।
- लेकिन यह राष्ट्रीय शिक्षा मिशन (37,500 करोड़ रुपए) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ( 38,183 करोड़ रुपए) की तुलना में कम है। उल्लेखनीय है कि उच्च शिक्षा विभाग को लगभग चार करोड़ नामांकित शिक्षार्थियों (जो निस्संदेह भारतीय समाज के अधिक विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों से आते हैं) के लिये 47,619 करोड़ रुपए प्राप्त होते हैं।
- केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर वर्ष 2024-25 का बजटीय व्यय, जो केंद्र-राज्य वित्तीय हस्तांतरण का एक बड़ा हिस्सा है, 5.01 लाख करोड़ रुपए है। इसमें से आँगनवाड़ी प्रणाली को लगभग 21,200 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, जो ग्रामीण सड़कों (12,000 करोड़ रुपए) और सिंचाई (11,391 करोड़ रुपए) को आवंटित राशि से कहीं अधिक है।
भारत में ECCE के समक्ष विद्यमान विभिन्न चुनौतियाँ:
- सामर्थ्य/वहनीयता:
- हालिया शोध के अनुसार, भारत में 3 से 17 वर्ष की आयु के एक बच्चे को निजी स्कूल में पढ़ाने की कुल लागत 30 लाख रुपए है। भारत में प्रारंभिक शिशु देखभाल लागत प्रायः 20-30% के आसपास हो सकती है। इन खर्चों का वित्तीय बोझ ECCE में निवेश करने में बाधा उत्पन्न करता है।
- NSSO की 75वें दौर की रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग 37 मिलियन बच्चों की किसी भी प्रकार की प्रारंभिक शिक्षा सेवा (सार्वजनिक या निजी) तक पहुँच नहीं है।
- अभिगम्यता:
- भौगोलिक स्थिति या पारंपरिक बाल-पालन अभ्यासों जैसे कारकों के कारण प्री-स्कूल एवं डे-केयर जैसे पारंपरिक प्रारंभिक शिक्षा प्रारूप हमेशा सभी परिवारों के लिये अभिगम्य/सुलभ नहीं होते हैं। इसके अलावा, भारत को अधिक कुशल प्रारंभिक शिक्षा शिक्षकों और आवश्यक अवसंरचना की आवश्यकता है।
- उपलब्धता:
- हालाँकि भारत में ECCE में सरकारी निवेश में वृद्धि हुई है, जिसमें डिजिटल लैब और बुनियादी ढाँचे की स्थापना करना भी शामिल है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। देश में ECCE नियामक अंतराल, विखंडन और लक्षित पहल की आवश्यकता से चिह्नित होता है, जो वृद्धि के अवसरों को रेखांकित करता है।
- माता-पिता की कम संलग्नता:
- माता-पिता बच्चे के पहले शिक्षक होते हैं और वे अपने बच्चे को पढ़ना, लिखना या गिनती सिखाने के रूप में उनकी लर्निंग में कई तरीकों से मदद कर सकते हैं। घर पर या बाहर समुदाय के साथ समय बिताने के रूप में वे बच्चों के सामाजिक कौशल के विकास में भी भी मदद कर सकते हैं।
- हालाँकि, उन्हें प्रायः अपने बच्चों की शिक्षा में संलग्न हो सकने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि कार्य व्यस्ततता, परिवहन की कमी, कम साक्षरता कौशल या इस जानकारी का अभाव कि वे प्रारंभिक बाल्यावस्था संबंधी शिक्षा कार्यक्रमों के बारे में कहाँ से या कैसे सूचना प्राप्त करें।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 में व्याप्त खामियाँ:
- 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम,2002 ने प्राथमिक शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 21(A) के तहत एक मूल अधिकार बना दिया। इस संशोधन का उद्देश्य छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना था।
- इसे बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (जिसे RTE अधिनियम भी कहा जाता है) द्वारा समर्थित किया गया, जो वर्ष 2009 में पारित हुआ और वर्ष 2010 में लागू हुआ।
- हालाँकि इस अधिनियम में 6 वर्ष तक के आयु वर्ग के बच्चों के लिये मूलभूत साक्षरता एवं संख्या ज्ञान और प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा के लिये पर्याप्त उपबंध शामिल नहीं किये गए।
- 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम,2002 ने प्राथमिक शिक्षा के अधिकार को अनुच्छेद 21(A) के तहत एक मूल अधिकार बना दिया। इस संशोधन का उद्देश्य छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना था।
- कम सार्वजनिक व्यय:
- इंचियोन घोषणा (Incheon Declaration), जिसका भारत भी हस्ताक्षरकर्ता है, में अपेक्षा की गई है कि सदस्य देश सतत विकास लक्ष्य-4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) की प्राप्ति के लिये अपने सकल घरेलू उत्पाद का 4-6% शिक्षा पर खर्च करेंगे।
- लेकिन केंद्रीय बजट 2024 में शिक्षा के लिये सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 2.9% आवंटित किया गया है, जो वैश्विक औसत 4.7% से पर्याप्त कम है।
ECCE में सुधार के लिये सुझाव:
- ‘डिजिटल पैठ’ का उपयोग :
- आकर्षक और आयु अनुरूप कंटेंट प्रदान करना: स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी की उपलब्धता उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। डिजिटल लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म गतिशील साधन के रूप में उभर रहे हैं जो विशेष रूप से आरंभिक शिक्षार्थियों के लिये उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।
- ये ऐप्स आकर्षक और आयु अनुरूप कंटेंट प्रदान करते हैं, जो बाल मस्तिष्क के लिये एक समृद्ध शैक्षिक अनुभव सुनिश्चित करते हैं।
- यह कनेक्टिविटी शैक्षिक सामग्री को प्रत्यक्ष रूप से माता-पिता और देखभालकर्ताओं तक पहुँचाने की अनुमति देती है, जिससे उनके बच्चों की प्रारंभिक शिक्षण की यात्रा में संलग्न हो सकने की उनकी क्षमता बढ़ जाती है।
- समावेशिता और अभिगम्यता को बढ़ावा देना: इंटरैक्टिव गतिविधियों, जीवंत विज़ुअल और अनुरूप पाठ्यक्रम के माध्यम से, ये प्लेटफ़ॉर्म बच्चों की ‘लर्निंग जर्नी’ को आकार प्रदान करते हैं।
- डिजिटलीकरण के माध्यम से पेश किये जाते लर्निंग मॉड्यूल लागत-प्रभावशीलता और कहीं से भी सुविधाजनक पहुँच प्रदान करते हैं, जिससे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के बच्चों एवं योग्य शिक्षकों तक इनकी अभिगम्यता सुनिश्चित होती है।
- इनका उभार भौतिक बाधाओं को तोड़कर और बच्चों एवं शिक्षकों की एक विस्तृत शृंखला तक पहुँच बनाकर गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा को अधिक समावेशी बनाता है।
- आकर्षक और आयु अनुरूप कंटेंट प्रदान करना: स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी की उपलब्धता उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। डिजिटल लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म गतिशील साधन के रूप में उभर रहे हैं जो विशेष रूप से आरंभिक शिक्षार्थियों के लिये उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।
- बुनियादी ढाँचे की कमी को पूरा करना:
- इसके लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश के साथ-साथ स्थापित संस्थानों के माध्यम से व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम और करियर प्रगति रणनीतियाँ शुरू करने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, आरंभिक शिक्षार्थियों के लिये विशेष प्रयोगशालाओं, आधुनिक शिक्षण केंद्र, प्ले एरिया, डिजिटल संसाधन और नवोन्मेषी शिक्षण सामग्री के निर्माण से ECE को व्यापक लाभ प्राप्त होगा।
- भारत की बढ़ती आबादी को समायोजित करने और संरचित पाठ्यक्रम, सुप्रशिक्षित शिक्षकों एवं स्पष्ट अधिगम उद्देश्यों को शामिल करने के लिये ECE केंद्रों का विस्तार करना होगा। ये मूलभूत तत्व मौजूदा बाधाओं को दूर करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इसके लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश के साथ-साथ स्थापित संस्थानों के माध्यम से व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम और करियर प्रगति रणनीतियाँ शुरू करने की आवश्यकता है।
- दृष्टिकोणों की विविधता को चिह्नित करना:
- प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा बहुमुखी प्रकृति रखती है जो विभिन्न पारिवारिक परिस्थितियों एवं प्राथमिकताओं को समायोजित करती है। इसमें संभावनाओं का एक स्पेक्ट्रम शामिल है, जिसमें घर पर माता-पिता द्वारा देखभाल एवं शिक्षा प्रदान करने से लेकर अनौपचारिक या औपचारिक गेमिफ़ाइड लर्निंग विधियों का लाभ उठाना शामिल है।
- बड़े प्री-स्कूल सेटअप भी संरचित शिक्षण अनुभव प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दृष्टिकोणों में इस विविधता को चिह्नित करना बच्चों की देखभाल और प्रारंभिक शिक्षा के लिये एक व्यापक एवं समावेशी ढाँचे के निर्माण हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- निवेश की आवश्यकता:
- आँगनवाड़ी केंद्रों में निवेश: हाल के शोध केंद्र और राज्यों द्वारा आवंटन एवं व्यय के विस्तार के लिये तर्कपुष्ट कारण प्रदान करते हैं।
- मौजूदा सर्वेक्षण डेटा का उपयोग कर अर्द्ध-प्रायोगिक प्रभाव मूल्यांकन से पुष्टि हुई है कि आँगनवाड़ी जाने वाले बच्चों में अन्य बच्चों की तुलना में संज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक (मोटर) कौशल में अधिक सुधार हुआ। इसने विशेष रूप से लिंग और आय से संबंधित अंतर को कम किया है।
- वर्ष 2020 में आयोजित एक अध्ययन के अनुसार, शून्य से तीन वर्ष की आयु तक आँगनवाड़ी प्रणाली के संपर्क में आने वाले बच्चे स्कूल की 0.1-0.3 ग्रेड और पूरी करते हैं।
- आँगनवाड़ी केंद्रों में निवेश: हाल के शोध केंद्र और राज्यों द्वारा आवंटन एवं व्यय के विस्तार के लिये तर्कपुष्ट कारण प्रदान करते हैं।
- ECCE प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये:
- यह निर्धारित करने के लिये कि बुनियादी ढाँचे, क्षमता निर्माण, सामग्री और कर्मी नियुक्ति में से किस पर व्यय किया जाए, सतर्क एवं व्यापक योजना निर्माण की आवश्यकता है।
- सुदृढ़ ECCE के सिद्ध व्यक्तिगत लाभों से सकल घरेलू उत्पाद में संभावित लाभ का अनुमान करना आवश्यक है। महिलाओं के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, जीवन काल, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय, बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि, उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य और यहाँ तक कि सामाजिक अशांति में सुधार का आकलन आवश्यक है।
- नोबेल पुरस्कार विजेता हेकमैन (Heckman) के पेरी प्री-स्कूल अध्ययन में पाया गया कि जिन बच्चों को उच्च गुणवत्तापूर्ण ECCE प्राप्त हुआ, वे कम हिंसक वयस्कों में विकसित हुए। आरंभिक आयु में विकसित किये गए सुदृढ़ सामाजिक-भावनात्मक कौशल भविष्य में छात्र आत्महत्या को रोकने में भी मदद कर सकते हैं।
- ECCE में अनुसंधान की आवश्यकता:
- प्रारंभिक बाल्यावस्था के विकास के व्यापक आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों पर अग्रणी शिक्षाविदों के अध्ययन के आधार पर भारतीय संदर्भ में व्यवस्थित सघन शोध करने की आवश्यकता है।
- साक्ष्य-आधारित नीति तैयार करने के लिये, प्रारंभिक बाल्यावस्था के विषय में भौतिक संसाधनों, धन एवं उच्च गुणवत्तापूर्ण प्रतिभा के अपर्याप्त आवंटन की अवसर लागत को समझना महत्त्वपूर्ण है।
- प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल के प्रभाव का पता लगाने के लिये अनुदैर्ध्य अध्ययन करने की आवश्यकता है। इसमें आँगनवाड़ी प्रणाली का अध्ययन करना भी शामिल है ECCE के लिये दुनिया की सबसे बड़ी सार्वजनिक प्रावधान प्रणाली बनी हुई है।
- प्रारंभिक बाल्यावस्था के विकास के व्यापक आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों पर अग्रणी शिक्षाविदों के अध्ययन के आधार पर भारतीय संदर्भ में व्यवस्थित सघन शोध करने की आवश्यकता है।
- NEP 2020 के अधिदेश को प्रभावी ढंग से लागू करना:
- NEP 2020 के अनुसार बच्चे के मस्तिष्क का 85% से अधिक संचयी विकास आरंभिक छह वर्षों में संपन्न होता है, जो बच्चे के समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिये शुरुआती वर्षों में मस्तिष्क को सही देखभाल एवं उत्प्रेरण प्रदान करने की आवश्यकता को उजागर करता है।
- इस अद्यतन नीति में कहा गया है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित परिवारों के बच्चों पर विशेष ध्यान देने के साथ, सभी छोटे बच्चों को उच्च गुणवत्तापूर्ण ECCE तक राष्ट्रव्यापी पहुँच प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है।
- मूलभूत शिक्षण पाठ्यक्रम: पाठ्यक्रम को 3 से 8 वर्ष की आयु के लिये दो खंडों में विभाजित किया गया है: 3-6 वर्ष की आयु के ECCE छात्रों के लिये बुनियादी शिक्षण पाठ्यक्रम और 6-8 वर्ष की आयु के प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिये कक्षा I और II।
- सार्वभौमिक पहुँच: 3-6 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्री-स्कूलों, आँगनवाड़ियों और बालवाटिका में निःशुल्क, सुरक्षित एवं उच्च गुणवत्तापूर्ण ECCE तक पहुँच प्राप्त हो।
- प्रारंभिक कक्षा: पाँच वर्ष की आयु से पहले प्रत्येक बच्चे को ‘प्रारंभिक कक्षा’ या ‘बालवाटिका’ (कक्षा 1 से पहले) में स्थानांतरित कर दिया जाये, जहाँ ECCE-योग्य शिक्षक खेल-आधारित शिक्षा प्रदान करें।
- बहुआयामी शिक्षण: मूलभूत साक्षरता एवं संख्या ज्ञान (FLN) के निर्माण के लिये खेल, गतिविधि और पूछताछ-आधारित शिक्षा पर वृहत रूप से बल देने वाली एक लचीली शिक्षण पद्धति अपनाई जाए।
निष्कर्ष:
ECCE में निवेश भारत के भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है, फिर भी वर्षों से इसकी अनदेखी की गई है। सरकार ने ECCE को मानव विकास के लिये आधारभूत मानते हुए इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है, जिसकी ‘निपुण भारत’ और ‘पोषण भी, पढ़ाई भी’ जैसी पहलों से पुष्टि होती है। ECCE के लिये हाल का बजटीय आवंटन एक सकारात्मक प्रवृत्ति को दर्शाता है, लेकिन बेहतर संज्ञानात्मक कौशल और शैक्षिक उपलब्धि जैसे सिद्ध लाभों को देखते हुए अभी और विभिन्न प्रयासों की आवश्यकता है।
संपूर्ण प्रभाव को समझने और प्रभावी नीतियाँ बनाने के लिये भारतीय संदर्भ में शोध आवश्यक है। चूँकि भारत अभूतपूर्व विकास का लक्ष्य रखता है, ECCE में निवेश उसके बच्चों और राष्ट्र के लिये समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।
अभ्यास प्रश्न: भारत में प्रारंभिक शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच में सुधार लाने से संबंधित चुनौतियों एवं इस दिशा में की गई पहलों पर चर्चा कीजिये। इसमें प्रौद्योगिकी क्या भूमिका निभा सकती है?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न 1. भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का शिक्षा पर प्रभाव है? (वर्ष 2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 और 2 उत्तर- (D) मेन्सप्रश्न1. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |