शासन व्यवस्था
भारत का ऊर्जा विकास
- 10 Jan 2025
- 35 min read
यह एडिटोरियल 03/01/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “India shows the way on energy transformation” पर आधारित है। यह लेख भारत की तीव्र आर्थिक संवृद्धि को दर्शाता है, जिसमें बिजली की मांग में 8% की वृद्धि, इसका महत्त्वाकांक्षी 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य और 2023-24 में 24.2 गीगावाट की वृद्धि के साथ प्रगति शामिल है, साथ ही ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, भंडारण और न्यायसंगत अभिगम में चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
प्रिलिम्स के लिये:बिजली की मांग, नवीकरणीय ऊर्जा, PM-कुसुम, इलेक्ट्रिक बस, हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, COP29, प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना, उजाला योजना, बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली, कोयला आधारित बिजली, ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर, सौर विनिर्माण हेतु PLI योजना, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना मेन्स के लिये:भारत का ऊर्जा परिवर्तन, भारत के ऊर्जा परिवर्तन से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत ने अपनी स्थिति बनाए रखा है, इसकी बढ़ती बिजली की मांग, जो इस वर्ष 8% बढ़ने की उम्मीद है, देश के तीव्रता से डिजिटल परिवर्तन और आर्थिक विस्तार को दर्शाती है। देश का 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा स्थापित करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य सतत् विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसने पहले ही सार्वभौमिक बिजली पहुँच हासिल कर ली है और सत्र 2023-2024 में 24.2 गीगावाट अक्षय ऊर्जा की वृद्धि की है।
यद्यपि भारत की नवीकरणीय ऊर्जा यात्रा महत्त्वपूर्ण प्रगति को दर्शाती है और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक उदाहरण प्रस्तुत करती है, फिर भी ग्रिड अवसंरचना, भंडारण क्षमता एवं न्यायसंगत अभिगम में बहुत बड़ी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिन पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि इस ऊर्जा क्रांति की संवहनीयता तथा सभी नागरिकों के लिये इसके लाभ सुनिश्चित किये जा सकें।
भारत ऊर्जा परिवर्तन की दिशा में कैसे आगे बढ़ रहा है?
- विकेंद्रीकृत ऊर्जा पहुँच समाधान: सौर मिनी ग्रिड और रूफटॉप सोलर पैनल जैसे विकेंद्रीकृत नवीकरणीय समाधान भारत के ऊर्जा विभाजन को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में उभरे हैं।
- टाटा पावर जैसी माइक्रो-ग्रिड पहल, जो 10,000 गाँवों को कवर करती है, उन दूरदराज़ के क्षेत्रों को बिजली प्रदान करती है, जहाँ पहले इसकी सुविधा नहीं थी तथा इसे PM-कुसुम योजना के तहत सब्सिडी द्वारा समर्थन मिलता है।
- इसके अतिरिक्त, सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई के अंगीकरण से न केवल कृषि के लिये बिजली सब्सिडी के 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक के बोझ को कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि प्रतिवर्ष 1.38 बिलियन लीटर डीज़ल की खपत में कमी आने से तेल आयात बिल में भी कमी आएगी।
- ऊर्जा भंडारण-अंतराल चुनौतियों से निपटना: उच्च नवीकरणीय ऊर्जा पहुँच के साथ एक विश्वसनीय ग्रिड सुनिश्चित करने के लिये, भारत बैटरी भंडारण प्रणालियों में निवेश बढ़ा रहा है।
- उदाहरण के लिये, JSW समूह वर्ष 2030 तक भारत में 50 GWh बैटरी विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के लिये तैयार है।
- भारत में सक्रिय ग्लोबल एनर्जी अलायंस फॉर पीपल एंड प्लानेट (GEAPP) ने बैटरी-एकीकृत सौर फार्मों सहित ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की तैनाती शुरू कर दी है।
- इससे भारत को बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करते हुए अपने ग्रिड को स्थिर करने में मदद मिलेगी।
- परिवहन क्षेत्र का विद्युतीकरण: भारत अपने परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा का लाभ उठा रहा है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहन (EV) का समावेश सुनिश्चित करना है।
- इलेक्ट्रिक बसों तथा हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (FAME II) योजनाओं ने उत्सर्जन को कम करते हुए शहरी सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाया है।
- उन्नत रसायन सेल के लिये सरकार की PLI योजना और टेस्ला जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी से प्रेरित होकर, वर्ष 2023 में EV की बिक्री 1.5 मिलियन यूनिट से अधिक हो गई।
- वैश्विक समर्थन और अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व: नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का वैश्विक नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहलों और बाकू में COP29 में समान ऊर्जा वित्तपोषण के लिये इसके प्रयास से स्पष्ट है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का लक्ष्य अपनी 'टुवर्ड्स 1000' रणनीति के माध्यम से वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश प्राप्त करना है।
- भारत ने हरित प्रौद्योगिकी और क्लाइमेट फाइनेंस की निशुल्क सुलभता का समर्थन किया, जबकि COP29 में विकसित देशों की एकतरफा कार्रवाई की आलोचना की।
- ये प्रयास वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में भारत की भूमिका को दृढ़ करते हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा और स्थायित्व के बीच संतुलन: भारत की ऊर्जा रणनीति नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव और अधिकतम मांग के दौरान विश्वसनीय कोयला आधारित बिजली की आवश्यकता के बीच संतुलन स्थापित करती है।
- भारत की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता में लिग्नाइट सहित कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 1960 के दशक के बाद पहली बार 50% से नीचे आ गई, लेकिन इससे बिजली की मांग में वृद्धि के बीच स्थिरता भी सुनिश्चित हुई।
- अकेले वर्ष 2024 के अप्रैल और नवंबर के दौरान, भारत ने लगभग 15 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि की, जो वर्ष 2023 में इसी अवधि के दौरान जोड़े गए 7.57 गीगावाट से लगभग दोगुनी है।
- सरकार का चरणबद्ध दृष्टिकोण संवहनीय विकल्पों को बढ़ावा देते हुए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- ऊर्जा दक्षता में निवेश: उत्सर्जन को कम करने और सामर्थ्य में सुधार के लिये ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण हैं।
- प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना के अंतर्गत की गई पहलों से 68 मिलियन टन से अधिक CO2 उत्सर्जन में कटौती हुई है।
- उजाला योजना के तहत पिछले एक दशक में पूरे भारत में 36 करोड़ से अधिक LED बल्ब वितरित किये गए हैं, जिससे प्रतिवर्ष 19,153 करोड़ रुपए की बचत हुई है।
- ये प्रयास मांग-पक्ष प्रबंधन और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति पर भारत के दोहरे फोकस को दर्शाते हैं।
- अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता का दोहन: भारत अपने नवीकरणीय पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिये अपतटीय पवन ऊर्जा का अन्वेषण कर रहा है।
- हाल ही में, भारत ने तमिलनाडु और गुजरात में अपनी पहली 1 गीगावाट अपतटीय पवन परियोजनाओं को मंज़ूरी दी, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 140 गीगावाट स्थापित क्षमता हासिल करना है।
- डेनमार्क की ऊर्जा साझेदारी जैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से समर्थित यह क्षेत्र निवेश आकर्षित कर सकता है तथा उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय कमी ला सकता है।
- अपतटीय पवन ऊर्जा भारत के सौर ऊर्जा अभियान का पूरक बन सकती है, जिससे अधिक संतुलित नवीकरणीय विकल्प सुनिश्चित हो सकेगा।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना: निजी निवेश भारत के ऊर्जा परिवर्तन के लिये केंद्रीय है।
- अडानी समूह वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन हासिल करने के लिये विदेशों में 10 गीगावाट की जलविद्युत परियोजनाएँ बनाने की योजना बना रहा है।
- भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड ने लगभग 5,000 मौजूदा आंतरिक दहन इंजन (ICE) संचालित ट्रकों को हाइड्रोजन ICE ट्रकों में रूपांतरित करने की योजना बनाई है, जिससे ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में सार्वजनिक-निजी तालमेल के महत्त्व को बल मिलता है।
भारत के ऊर्जा परिवर्तन से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- नवीकरणीय ऊर्जा का अस्थायित्व/आंतरायिकता और विश्वसनीयता: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर तीव्रता से हो रहे संक्रमण को सौर और पवन ऊर्जा के अस्थायित्व/आंतरायिकता के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- मज़बूत ऊर्जा भंडारण बुनियादी अवसंरचना की कमी से अधिकतम मांग के दौरान लगातार बिजली आपूर्ति करने की ग्रिड की क्षमता सीमित हो जाती है।
- भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) का बुनियादी अवसंरचना अपर्याप्त है, जिसमें 213 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के बावजूद केवल 33 मेगावाट भंडारण क्षमता है।
- महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हाल ही में हुई ब्लैकआउट की घटनाएँ, पंप हाइड्रो और उन्नत बैटरी प्रणालियों जैसी ग्रिड स्थिरीकरण प्रौद्योगिकियों में अधिक निवेश की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
- आधारभूत ऊर्जा के लिये कोयले पर निर्भरता: नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि के बावजूद, भारत में बिजली उत्पादन में कोयले का वर्चस्व बना हुआ है, जिससे डीकार्बोनाइज़ेशन प्रयासों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
- वर्ष 2024 की गर्मियों के दौरान भारत कोयला आधारित बिजली पर बहुत अधिक निर्भर रहा, जिससे अधिकतम मांग 260 गीगावाट से अधिक रही।
- हालाँकि, कोयला आधारित उत्सर्जन भारत की वैश्विक प्रतिबद्धताओं को कमज़ोर करता है, जिसमें वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प भी शामिल है। नवीकरणीय एकीकरण के साथ कोयले के उपयोग को संतुलित करना एक बहुत बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है।
- हरित ऊर्जा के लिये अपर्याप्त वित्तीय सहायता: हरित ऊर्जा में संक्रमण के लिये पूंजी की आवश्यकता होती है, तथा वित्तपोषण में कमी के कारण प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है, विशेष रूप से बड़े पैमाने पर नवीकरणीय परियोजनाओं के लिये।
- भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के लिये 10.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी निवेश की आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा, PM-कुसुम जैसी योजनाओं के तहत सब्सिडी वितरण में विलंब के कारण सौर सिंचाई प्रणालियों के अंगीकरण की गति धीमी हो गई है, जिससे किसानों एवं ग्रामीण विद्युतीकरण प्रभावित हो रहा है।
- ग्रिड अवसंरचना और एकीकरण संबंधी मुद्दे: भारत का पुराना ग्रिड अवसंरचना नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती हिस्सेदारी के प्रबंधन में संघर्ष कर रहा है, जिसके कारण सौर और पवन ऊर्जा में लगातार कटौती हो रही है।
- पुराने टर्बाइनों के कारण तमिलनाडु के विद्युत उत्पादन में पवन ऊर्जा का हिस्सा घटकर मात्र 15% रह गया है।
- इसके अतिरिक्त, राज्य की पवन ऊर्जा पुनःशक्तीकरण नीति में खामियों के कारण इसकी क्षमता का पूर्ण उपयोग करने में बाधा उत्पन्न हुई है।
- नवीकरणीय ऊर्जा के लिये ग्रिड कनेक्टिविटी में सुधार लाने के उद्देश्य से निर्मित ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर में विलंब हो रहा है।
- ऊर्जा पहुँच असमानता: वर्ष 2018 में सार्वभौमिक ग्राम विद्युतीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के बावजूद, ऊर्जा पहुँच असमानताएँ बनी हुई हैं, विशेष रूप से दूर-दराज़ और ग्रामीण क्षेत्रों में।
- हाल के सर्वेक्षण से पता चला है कि 2.4% भारतीय घर अभी भी बिजली से वंचित हैं, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और बिहार जैसे उत्तरी व पूर्वी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित हैं।
- आयातित प्रौद्योगिकी पर निर्भरता: भारत का नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार बहुत हद तक आयातित सौर मॉड्यूल, बैटरी और पवन टर्बाइनों पर निर्भर करता है, जिससे यह क्षेत्र भू-राजनीतिक जोखिमों तथा आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- सत्र 2023-24 में भारत ने 7 बिलियन डॉलर मूल्य के सौर उपकरण आयात किये, जिसमें से 62.6% की आपूर्ति चीन द्वारा की गई।
- सौर विनिर्माण हेतु PLI योजना एक कदम आगे है, लेकिन अभी तक महत्त्वपूर्ण घरेलू क्षमता हासिल नहीं की जा सकी है।
- भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये विशाल भूमि की आवश्यकता होती है, जिसके कारण प्रायः स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष और जैव विविधता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- उदाहरण के लिये, राजस्थान और गुजरात में सौर पार्कों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों ने विस्थापन के मुद्दों तथा पारिस्थितिकी व्यवधानों को उजागर किया।
- वर्ष 2024 में जैसलमेर के बइया गाँव के निवासियों ने अडानी सौर ऊर्जा परियोजना के निर्माण को रोकने के लिये प्रदर्शन किया।
- इसके अतिरिक्त, अध्ययनों से पता चलता है कि पश्चिमी घाटों में पवन फार्मों ने प्रवासी पक्षियों के पैटर्न को प्रभावित किया है, जिससे संधारणीय परियोजना नियोजन की आवश्यकता बढ़ गई है।
- उदाहरण के लिये, राजस्थान और गुजरात में सौर पार्कों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों ने विस्थापन के मुद्दों तथा पारिस्थितिकी व्यवधानों को उजागर किया।
भारत में अधिक कुशल और धारणीय ऊर्जा परिवर्तन के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- नवीकरणीय प्रौद्योगिकी के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना: आयात पर निर्भरता कम करने के लिये, भारत को अपने घरेलू नवीकरणीय विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना होगा, विशेष रूप से सौर मॉड्यूल, पवन टर्बाइन और बैटरी प्रणालियों में।
- सौर विनिर्माण के लिये PLI योजना का विस्तार करने से गीगा-फैक्ट्रियों में अधिक निवेश आकर्षित हो सकता है। उन्नत बैटरी प्रौद्योगिकी के लिये रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के गठबंधन जैसे ग्लोबल लीडर्स के साथ साझेदारी से स्थानीय क्षमता को और बढ़ावा मिल सकता है।
- इससे भारत को भू-राजनीतिक जोखिमों और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों से सुरक्षा मिलेगी।
- हरित हाइड्रोजन की ओर संक्रमण: नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त हरित हाइड्रोजन इस्पात, सीमेंट और भारी परिवहन जैसे कठिन क्षेत्रों को कार्बन मुक्त कर सकता है।
- सरकार के राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन में इलेक्ट्रोलिसिस प्रौद्योगिकी के लिये सब्सिडी तथा अनुसंधान एवं विकास के लिये सहायता शामिल होनी चाहिये।
- सामर्थ्य और अभिगम सुनिश्चित करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों के निकट बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन हब विकसित किये जाने चाहिये।
- यह भारत के अपने प्रचुर सौर संसाधनों का लाभ उठाते हुए हरित हाइड्रोजन उत्पादन में वैश्विक अग्रणी बनने के लक्ष्य के अनुरूप है।
- ट्रांसमिशन और वितरण अवसंरचना का आधुनिकीकरण: नवीकरणीय ऊर्जा की परिवर्तनशीलता से निपटने के लिये एक सुदृढ़ और स्मार्ट ग्रिड प्रणाली महत्त्वपूर्ण है।
- स्मार्ट मीटर, AI-आधारित ग्रिड प्रबंधन और पूर्वानुमानित प्रबंधन प्रौद्योगिकियों में निवेश से दक्षता में वृद्धि हो सकती है।
- पुनर्विकसित वितरण क्षेत्र योजना (RDSS) में समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक (AT&C) हानियों को कम करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- वृत्ताकार अर्थव्यवस्था सिद्धांतों को एकीकृत करना: ऊर्जा प्रणालियों में चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं के अंगीकरण से अपशिष्ट और संसाधन उपयोग को कम किया जा सकता है।
- सौर पैनलों के पुनर्चक्रण और बंद हो चुके पवन टर्बाइनों के घटकों के पुनः उपयोग जैसी पहलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- कोयले पर निर्भर क्षेत्र शहरी अपशिष्ट का स्थायी प्रबंधन करने के लिये अपशिष्ट-से-ऊर्जा-निर्माण परियोजनाओं पर विचार कर सकते हैं।
- ये उपाय ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसर प्रदान करते हुए संसाधन दक्षता सुनिश्चित करते हैं।
- कोयला-निर्भर राज्यों के लिये न्यायसंगत ऊर्जा परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना: झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे कोयला-निर्भर राज्यों के लिये न्यायसंगत परिवर्तन सामाजिक-आर्थिक व्यवधानों से बचने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- कोयला श्रमिकों के लिये कौशल विकास कार्यक्रम, नवीकरणीय ऊर्जा में वैकल्पिक रोज़गार तथा राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता, एक सुगम परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं।
- कोयला क्षेत्रों में हरित उद्योग स्थापित करने से मौजूदा बुनियादी अवसंरचना का उपयोग करते हुए आर्थिक विविधीकरण सुनिश्चित होता है।
- न्यायोचित परिवर्तन कार्यढाँचा भारत के समतापूर्ण विकास उद्देश्यों के अनुरूप है तथा यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी समुदाय पीछे न रह जाए।
- ऊर्जा भंडारण समाधान का विस्तार: नवीकरणीय ऊर्जा की समस्या के समाधान के लिये लिथियम-आयन, सॉलिड-स्टेट बैटरी और पंप हाइड्रो जैसी स्केलेबल एवं किफायती ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों में निवेश करना आवश्यक है।
- हाल की बैटरी स्वैपिंग नीतियों को छोटे इलेक्ट्रिक वाहनों और ग्रामीण अनुप्रयोगों के लिये विस्तारित किया जाना चाहिये।
- उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना के तहत ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने से लागत और आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
- ऊर्जा भंडारण से अक्षय ऊर्जा की चौबीसों घंटे उपलब्धता सुनिश्चित होगी, ग्रिड से निरंतर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित होगी और अधिकतम मांग को पूरा किया जा सकेगा।
- भूमि के दोहरे उपयोग के लिये कृषि-वोल्टाइक को बढ़ावा देना: कृषि पद्धतियों के साथ सौर पैनलों को एकीकृत करना, जिसे कृषि-वोल्टाइक के रूप में जाना जाता है, भूमि उपयोग को अनुकूलित कर सकता है और किसानों को लाभान्वित कर सकता है।
- फसलों के ऊपर सौर पैनल लगाकर किसान अतिरिक्त बिजली बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं, साथ ही फसलों को खराब मौसम से बचा सकते हैं।
- सब्सिडी या बाय-बैक गारंटी के माध्यम से इसे बढ़ाने से ग्रामीण ऊर्जा तक पहुँच में सुधार होगा, जबकि कृषि भूमि पर दबाव कम होगा।
- उद्योगों में अपशिष्ट ऊष्मा पुनर्प्राप्ति: भारत के ऊर्जा-गहन उद्योग, जैसे सीमेंट, इस्पात और रसायन, बड़ी मात्रा में अपशिष्ट ऊष्मा उत्पन्न करते हैं, जो प्रायः अप्रयुक्त रह जाती है।
- बड़े पैमाने की विनिर्माण इकाइयों में अपशिष्ट ऊष्मा पुनर्प्राप्ति प्रणालियों (WHRS) को अनिवार्य करने से समग्र ऊर्जा खपत और उत्सर्जन में कमी आ सकती है।
- उदाहरण के लिये, सीमेंट संयंत्रों में ऐसी प्रणालियों के अंगीकरण से ऊर्जा की बचत हुई है तथा कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है।
- WHRS स्थापना के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने से उद्योगों में इसकी स्वीकृति में तीव्रता आ सकती है।
- स्वच्छ परमाणु ऊर्जा के लिये लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) की खोज: स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) एक नवीन परमाणु प्रौद्योगिकी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो स्केलेबल और सुरक्षित स्वच्छ ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं।
- इन रिएक्टरों के लिये पारंपरिक परमाणु संयंत्रों की तुलना में कम प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे ये भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये आदर्श बन जाते हैं।
- अमेरिका जैसे देशों के साथ साझेदारी करके, जो SMR तकनीक में आगे बढ़ रहे हैं, भारत कम उत्सर्जन बनाए रखते हुए ऊर्जा विकल्पों में विविधता ला सकता है। SMR दूरदराज़ के क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड ऊर्जा अनुप्रयोगों के लिये भी क्षमता रखते हैं।
- कार्बन अवशोषण और उपयोग (CCU) के लिये नीतिगत समर्थन: कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइज़ेशन टेक्नोलॉजीज़ (CCU) जीवाश्म ईंधन आधारित उद्योगों को कार्बन मुक्त करने के भारत के प्रयासों को पूरक बना सकती हैं।
- ताप विद्युत, इस्पात और सीमेंट जैसे क्षेत्रों में CCU के अंगीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये नीतियाँ स्थापित करने से उत्सर्जन को मूल्यवान उप-उत्पादों (जैसे: औद्योगिक-ग्रेड कार्बोनेट या सिंथेटिक ईंधन) में बदला जा सकता है।
- भारत के उभरते स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को किफायती CCU प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिये प्रेरित किया जा सकता है, जिससे महंगे आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- शहरी नियोजन में ऊर्जा परिवर्तन: भारत के बढ़ते शहरों की बढ़ती ऊर्जा मांगों के प्रबंधन के लिये शहरी विकास में ऊर्जा-कुशल बुनियादी अवसंरचना को एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है।
- हरित भवन मानदंड, ज़िला शीतलन प्रणालियाँ तथा मेट्रो और इलेक्ट्रिक बसों जैसे ऊर्जा-कुशल सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने से शहरी ऊर्जा गहनता में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन जैसे कार्यक्रमों को शहरी विस्तार की योजना बनाते समय धारणीय ऊर्जा समाधानों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- कम ऊर्जा वाले शहरी डिज़ाइनों को अपनाकर, शहर राष्ट्रीय ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों में योगदान दे सकते हैं।
- भूतापीय ऊर्जा का दोहन: यद्यपि अभी तक इसका कम ही अन्वेषण किया गया है, फिर भी भारत के लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे क्षेत्रों में भू-तापीय ऊर्जा की संभावनाएँ मौजूद हैं।
- विशेष रूप से तापन अनुप्रयोगों के लिये प्रायोगिक भू-तापीय परियोजनाओं का विकास, नवीकरणीय ऊर्जा संयोजन में विविधता ला सकता है।
- भू-तापीय ऊर्जा एक स्थिर, कम प्रबंधन और बिना रुकावट के निरंतर एवं एक समान दर पर ऊर्जा प्रदान प्रदान करती है, जो चरम जलवायु वाले दूरस्थ क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
- आइसलैंड जैसे भूतापीय प्रौद्योगिकी में अनुभवी देशों के साथ साझेदारी से इस क्षेत्र में भारत की क्षमता में तीव्रता आ सकती है।
- बायोमास आधारित ज़िला तापन प्रणालियाँ: कृषि अवशेषों से स्थायी रूप से प्राप्त बायोमास का उपयोग हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे ठंडे क्षेत्रों में ज़िला तापन प्रणालियों के लिये किया जा सकता है।
- ऐसी प्रणालियाँ पारंपरिक कोयला या डीज़ल-आधारित हीटिंग प्रणालियों को प्रतिस्थापित कर सकती हैं, जिससे उत्सर्जन और ऊर्जा लागत में कमी आएगी।
- बायोमास संग्रहण और प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करने की नीतियों के साथ-साथ समुदाय-नेतृत्व वाले संचालन से इन प्रणालियों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित की जा सकती है।
- यह दृष्टिकोण कृषि अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा पहुँच चुनौतियों दोनों से निपटने में सहायक है।
- कॉर्पोरेट्स के लिये नवीकरणीय ऊर्जा खरीद अनिवार्य: ऊर्जा परिवर्तन में निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिये, सरकार कॉर्पोरेट ऊर्जा व्यय में नवीकरणीय ऊर्जा खरीद का एक प्रतिशत अनिवार्य कर सकती है।
- बड़े ऊर्जा-प्रधान उद्योगों, IT फर्मों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को कैप्टिव अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करने या डेवलपर्स से हरित ऊर्जा क्रय के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- इससे भारत के नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) बाज़ार को बढ़ावा मिलेगा तथा नवीकरणीय ऊर्जा में बड़े पैमाने पर निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
- वाहन-से-ग्रिड (V2G) प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करना: वाहन-से-ग्रिड (V2G) प्रौद्योगिकी इलेक्ट्रिक वाहनों को उपयोग में न होने पर ग्रिड में बिजली वापस भेजने की अनुमति देती है, इस प्रकार यह विकेंद्रीकृत ऊर्जा भंडारण इकाइयों के रूप में कार्य करती है।
- V2G सक्षम EV के लिये प्रोत्साहन और स्मार्ट ग्रिड के साथ एकीकरण से चरम मांग को संतुलित करने में मदद मिल सकती है।
- शहरी केंद्रों में इस तकनीक को लागू करने से स्टैंड-अलोन ऊर्जा भंडारण प्रणालियों पर निर्भरता कम हो सकती है। यह दृष्टिकोण ग्रिड स्थायित्व को बढ़ाता है और साथ ही इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देता है।
निष्कर्ष:
भारत का ऊर्जा परिवर्तन एक स्थायी, समावेशी भविष्य की दृष्टि से प्रेरित है, जिसमें स्वच्छ प्रौद्योगिकियों, विकेंद्रीकृत समाधानों और मज़बूत नीतियों का लाभ उठाया जा रहा है। यद्यपि अक्षय ऊर्जा के विस्तार, विकेंद्रीकृत अभिगम और निजी क्षेत्र की भागीदारी में प्रगति देखी जा रही है, फिर भी ग्रिड अस्थायित्व, कोयले पर निर्भरता और ऊर्जा अभिगम में अंतराल जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा भंडारण एवं हरित हाइड्रोजन जैसे नवाचारों में निवेश करके, भारत एक अधिक समुत्थानशील ऊर्जा प्रणाली का निर्माण कर सकता है। कोयले पर निर्भर राज्यों के लिये न्यायोचित बदलावों को प्राथमिकता और ऊर्जा दक्षता में सुधार व्यापक लाभ सुनिश्चित करेंगे, जिससे राष्ट्रीय विकास एवं वैश्विक सतत् विकास लक्ष्यों (SDG 7 और SDG 13) दोनों को समर्थन मिलेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण में प्रमुख चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करते हुए भंडारण तथा ग्रिड अवसंरचना में सीमाओं पर विचार प्रस्तुत कीजिये। एक धारणीय और न्यायसंगत ऊर्जा भविष्य सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |