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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-श्रीलंका के बिगड़ते संबंध

  • 11 Sep 2021
  • 11 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 09/09/2021 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “Sri Lanka’s economic crisis poses challenges for India” लेख पर आधारित है। इसमें हाल के दिनों में भारत और श्रीलंका के बीच बिगड़ते संबंधों की चर्चा करते हुए विचार किया गया है कि श्रीलंका का आर्थिक संकट कैसे दोनों देशों के संबंधों को और खराब कर रहा है, जबकि सदियों पुराने इस संबंध को बनाए रखने के लिये भारत क्या कर सकता है।

कोलंबो के साथ भारत की विकास साझेदारी हमेशा माँग-प्रेरित रही है, जहाँ औद्योगिक विकास के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, स्वच्छ जल एवं स्वच्छता तक पहुँच जैसी सामाजिक अवसंरचनाओं को दायरे में लेने वाली परियोजनाएँ शामिल रही हैं।

श्रीलंका के प्रति भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के ही अनुरूप वर्ष 2020 में श्रीलंका की 'इंडिया फर्स्ट' विदेश एवं सुरक्षा नीति अभिव्यक्त हुई थी।

लेकिन हाल के दिनों में चीनी हस्तक्षेप के कारण दोनों देशों के संबंधों में गिरावट आई है। श्रीलंका द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा के साथ स्थिति के और बिगड़ने की संभावना है।

श्रीलंका जैसे देशों के साथ अपने महत्त्वपूर्ण संबंधों को खोने से बचने के लिये भारत को अपनी अंतर्राष्ट्रीय एवं राजनयिक नीतियों के संपोषण और क्षेत्रीय मंचों के पूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।

भारत और श्रीलंका

  • आर्थिक संबंध: अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। श्रीलंका के निर्यात का 60% से अधिक हिस्सा भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते से लाभान्वित होता है। भारत श्रीलंका में एक प्रमुख निवेशक की स्थिति भी रखता है।
    • वर्ष 2005 से 2019 के बीच श्रीलंका को भारत से लगभग 1.7 बिलियन डॉलर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त हुआ।
    • जुलाई 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘सार्क करेंसी स्वैप फ्रेमवर्क 2019-22’ के तहत 400 मिलियन डॉलर तक की निकासी के लिये सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका (CBSL) के साथ एक मुद्रा-विनिमय समझौते पर हस्ताक्षर किया।
  • संबंधों में गिरावट: फरवरी, 2021 से दोनों देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंध खराब होने लगे, जब श्रीलंका घरेलू मुद्दों का हवाला देते हुए कोलंबो पोर्ट पर अपने ईस्ट कंटेनर टर्मिनल प्रोजेक्ट के लिये भारत और जापान के साथ हुई त्रिपक्षीय साझेदारी से पीछे हट गया।
    • हालाँकि, बाद में उसने सार्वजनिक-निजी भागीदारी व्यवस्था के तहत ‘अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड’ को वेस्ट कोस्ट टर्मिनल की पेशकश की।
  • श्रीलंका में आपातकाल: खाद्य पदार्थों जैसे आवश्यक आयात के लिये विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही चिंताजनक कमी को देखते हुए श्रीलंका ने हाल ही में देश में आर्थिक आपातकाल की घोषणा की है।
    • श्रीलंका चीनी, डेयरी उत्पाद, गेहूँ जैसी बुनियादी खाद्य आपूर्ति के लिये भी आयात पर अत्यधिक निर्भर है।
      • रुपये के अवमूल्यन के साथ ही खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2019 के आतंकी हमलों और फिर कोविड महामारी के प्रकोप के कारण देश का पर्यटन क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ और श्रीलंका का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 1.2 बिलियन डॉलर (वर्ष 2019) से घटकर 670 मिलियन डॉलर (वर्ष 2020) रह गया।
    • वर्ष 2020 में उसका सार्वजनिक ऋण-जीडीपी अनुपात 109.7% था, जबकि बाह्य ऋण-जीडीपी अनुपात 62% दर्ज हुआ।

ऋण-जीडीपी अनुपात (Debt-to-GDP Ratio)

  • यह देश के सार्वजनिक ऋण की तुलना उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से करने वाला मीट्रिक है। इसे प्रायः प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • किसी देश के उत्पादन (सकल घरेलू उत्पाद) के साथ उसकी देनदारियों (ऋण) की तुलना कर ऋण-जीडीपी अनुपात उस देश की अपने ऋणों का भुगतान कर सकने की क्षमता को इंगित करता है।
  • उच्च ऋण-जीडीपी अनुपात वाले देश आम तौर पर अपने सार्वजनिक ऋण के भुगतान में कठिनाई झेलते हैं।

संबंधों में चीनी हस्तक्षेप

  • श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता: चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है। श्रीलंका के सार्वजनिक क्षेत्र को चीन द्वारा प्रदत्त ऋण केंद्र सरकार के विदेशी ऋण का लगभग 15% है।
    • श्रीलंका अपने विदेशी ऋण के बोझ को दूर करने के लिये चीनी ऋण पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • भारतीय निर्यात को पीछे छोड़ना: श्रीलंका में चीन का निर्यात वर्ष 2020 में भारत के निर्यात से अधिक हो गया, जो लगभग 3.8 बिलियन डॉलर का था।
    • इसी वर्ष भारत का निर्यात 3.2 बिलियन डॉलर का था।
  • अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश: चीन ने वर्ष 2006-19 के बीच श्रीलंका की आधारभूत संरचना परियोजनाओं में लगभग 12 बिलियन डॉलर का निवेश किया है।
    • चीन को 99 वर्षों के लीज़ के एक अंग के रूप में श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर औपचारिक नियंत्रण भी प्राप्त है।
      • श्रीलंका ने कोलंबो बंदरगाह शहर के आसपास एक विशेष आर्थिक क्षेत्र और एक नए आर्थिक आयोग की स्थापना का निर्णय लिया है जो चीन द्वारा वित्तपोषित होंगे। कोलंबो बंदरगाह भारत के ट्रांस-शिपमेंट कार्गो के 60% का वहन करता है।
    • हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को चीन को पट्टे पर देना यह सुनिश्चित करता है कि चीनी नौसेना की हिंद महासागर में स्थायी उपस्थिति बनी रहेगी जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चिंताजनक स्थिति है।
  • छोटे राष्ट्रों के हितों में बदलाव: श्रीलंका का आर्थिक संकट इसे अपनी नीतियों को बीजिंग के हितों के साथ संरेखित करने के लिये आगे और बाध्य कर सकता है।
    • यह परिदृश्य एक ऐसे समय बना है जब भारत पहले से ही अफगानिस्तान और म्याँमार के साथ कूटनीतिक कठिनाई का सामना कर रहा है।
    • बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी अपने वृहत बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये चीन का रुख कर रहे हैं।

आगे की राह

  • रणनीतिक हितों का संरक्षण: श्रीलंका के साथ ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति का संपोषण भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
  • क्षेत्रीय मंचों का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी संचालित कृषि, समुद्री क्षेत्र विकास, आईटी एवं संचार अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये भारत को BIMSTEC, SAARC, SAGAR और IORA जैसे मंचों का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
    • श्रीलंका के प्रति भारतीय विदेश नीति को, अपनी 'द्वीपीय कूटनीति’ (Island Diplomacy) के एक भाग के रूप में, उभरती वास्तविकताओं और खतरों के अनुरूप विकसित करना होगा।
  • चीन के विस्तार को रोकना: भारत को जाफना में कांकेसंतुराई बंदरगाह (Kankesanturai port) और त्रिंकोमाली में ‘ऑइल तेल टैंक फार्म परियोजना’ पर कार्य करना जारी रखना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चीन श्रीलंका में कोई और घुसपैठ न करे।
    • दोनों देश आर्थिक लचीलेपन के सृजन हेतु निजी क्षेत्र निवेश में वृद्धि के लिये भी सहयोग कर सकते हैं।
  • भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत अपनी आईटी कंपनियों की उपस्थिति का विस्तार कर श्रीलंका में रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है।
    • ये कंपनियाँ हज़ारों प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा कर सकती हैं और इस द्वीप राष्ट्र की सेवा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत-श्रीलंका संबंधों में हाल में आई गिरावट और इसमें चीन की भूमिका की चर्चा कीजिये। उन उपायों के सुझाव दीजिये जिनसे दोनों देश अपने द्विपक्षीय संबंधों की रक्षा कर सकते हैं।

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