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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की विकास-रोज़गार विसंगति का समाधान

  • 20 Nov 2024
  • 23 min read

यह संपादकीय 18/11/2024 को ‘द हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित “Jobs: Bridging the gap between growth and quality” पर आधारित है। यह लेख भारत की आर्थिक वृद्धि के विरोधाभास को सामने लाता है, जहाँ बढ़ती GDP गुणवत्तापूर्ण रोज़गार में तब्दील होने में विफल रहती है, कम कार्यबल भागीदारी, व्यापक अनौपचारिक नौकरियाँ और सीमित कौशल विकास समानता एवं स्थिरता को खतरे में डालते हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

रोज़गार, श्रम बल भागीदारी दर, युवा बेरोज़गारी, GDP वृद्धि दर, भारत रोज़गार रिपोर्ट- 2024, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, श्रम संहिताएँ, आजीविका और उद्यम हेतु लाभवंचित लोगों की सहायता (स्माइल), PM-DAKSH (प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता सम्पन्न) योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, स्टार्ट-अप इंडिया योजना  

मेन्स के लिये:

भारत में रोज़गार और नौकरी सृजन की वर्तमान स्थिति, रोज़गार और नौकरी सृजन से संबंधित मुद्दे। 

भारत की प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि एक परेशान करने वाली विरोधाभास को छुपाती है: इसके कार्यबल के लिये गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन की कमी। 40% कामकाजी उम्र के व्यक्ति श्रम बाज़ार से विमुख हैं और महिलाओं की भागीदारी कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों तक सीमित है, जिससे रोज़गार की चुनौती गंभीर हो गई है। अनौपचारिक कार्य का बोलबाला है, सामाजिक सुरक्षा दुर्लभ है तथा अधिकांश लोगों के लिये औपचारिक प्रशिक्षण दुर्गम है। एक तकनीकी महाशक्ति होने के बावजूद भारत के एक तिहाई युवा न तो पढ़ाई कर रहे हैं और न ही काम कर रहे हैं। सामाजिक न्याय और सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये विकास तथा समानता के बीच इस अंतर को समाप्त करना आवश्यक हो गया है।

भारत में रोज़गार और नौकरी सृजन की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): सत्र 2017-18 में समग्र श्रम बल भागीदारी दर (15 वर्ष और उससे अधिक) 49.8% से बढ़कर सत्र 2023-24 में 60.1% हो गई है।
    • वेतनभोगी रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी में गिरावट आई है, जबकि स्वरोज़गार में वृद्धि हुई है (सत्र 2017-18 में 51.9% से सत्र 2023-24 में 67.4% तक)।
    • कई महिलाएँ घरेलू उद्यमों में अवैतनिक सहायकों या स्वयं के खाते पर काम करने वाली श्रमिकों के रूप में कार्यरत हैं, जिससे नौकरी के सीमित विकल्प उजागर होते हैं।
  • अनौपचारिक रोज़गार: कार्यबल का एक बहुत बड़ा हिस्सा अनौपचारिक उद्यमों (स्वामित्व और साझेदारी) में नियोजित है।
    • सत्र 2023-24 में, 73.2% श्रमिक अनौपचारिक फर्मों में कार्यरत होंगे, जो सत्र 2022-23 के 74.3% से मामूली गिरावट है, लेकिन सत्र 2017-18 के 68.2% से अभी भी अधिक है।
  • रोज़गार का क्षेत्रीय वितरण: कृषि में श्रमिकों की हिस्सेदारी सत्र 2017-18 में 44.1% से बढ़कर 2023-24 में 46.1% हो गई, जिससे कृषि पर निर्भरता में कमी की दीर्घकालिक प्रवृत्ति में परिवर्तन हुआ है।
    • विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार स्थिर हो गया है, जो सत्र 2023-24 में लगभग 11.4%, जबकि सत्र 2021-22 में यह 11.6% था।
  • बेरोज़गारी के रुझान: 
    • समग्र बेरोज़गारी दर (15 वर्ष और उससे अधिक) वर्ष 2017-18 में 6% से घटकर वर्ष 2023-24 में 3.2% हो गई है।
    • शिक्षित कार्यबल में बेरोज़गारी अनुपातहीन रूप से अधिक है तथा माध्यमिक स्तर या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को नौकरी पाने में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

भारत की आर्थिक वृद्धि गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन में क्यों विफल हो रही है?

  • रोज़गार सृजन में संरचनात्मक मुद्दे: सत्र 2024-25 में लगभग 6.5-7% की सुदृढ़ GDP वृद्धि दर के बावजूद, भारत का रोज़गार सृजन इसके आर्थिक विस्तार के साथ तालमेल नहीं रख पाया है।
    • सरकार के अपने श्रम बल सर्वेक्षणों के अनुसार, देश का श्रमिक-जनसंख्या अनुपात सत्र 2011-12 में 38.6% से घटकर सत्र 2022-23 में 37.3% हो गया है, जो एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है जहाँ आर्थिक विकास बढ़ते कार्यबल के लिये पर्याप्त नौकरियों का सृजन नहीं कर रहा है। 
    • जैसा कि भारत रोज़गार रिपोर्ट- 2024 में उल्लेख किया गया है, उत्पादन प्रक्रियाएँ तेज़ी से पूंजी-प्रधान और श्रम-बचत वाली होती जा रही हैं, जिससे रोज़गार सृजन के प्रयास जटिल हो रहे हैं।
  • कौशल विसंगति संकट: भारत की शिक्षा प्रणाली से लगातार ऐसे स्नातक तैयार हो रहे हैं जिनके कौशल उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं, जिससे बेरोज़गारी और रिक्त पदों की एक साथ विचित्र स्थिति बढ़ती जा रही है। 
    • व्यावहारिक कौशल की तुलना में सैद्धांतिक ज्ञान पर अधिक ध्यान दिये जाने से एक ऐसा कार्यबल तैयार हो गया है, जिसे उद्योग के लिये तैयार होने से पहले महत्त्वपूर्ण पुनर्प्रशिक्षण की आवश्यकता है। 
    • इंजीनियरिंग स्नातकों में रोज़गार योग्यता 60% से अधिक है, जिनमें से केवल 45% ही उद्योग मानकों को पूरा कर पाते हैं।
  • रोज़गार में लैंगिक असमानताएँ: भारत को अपने श्रम बाज़ार में लैंगिक असमानताओं का सामना करना पड़ रहा है। जहाँ पुरुष श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 78.3% है, वहीं महिला LFPR केवल 41.3% पर है जो बहुत पीछे है।
    • यह विसंगति न केवल संभावित कार्यबल को सीमित करती है, बल्कि आधी आबादी की प्रतिभा और कौशल का पूर्ण उपयोग न करके आर्थिक विकास को भी बाधित करती है। 
    • महिला कार्यबल भागीदारी में गिरावट उन प्रणालीगत बाधाओं को उत्पन्न करती है जो महिलाओं को श्रम बाज़ार में प्रवेश करने या उसमें बने रहने से रोकती हैं।
    • इन असमानताओं को दूर करना नौकरी की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास से समाज के सभी वर्गों को लाभ मिले।
  • MSME की तुलना में कॉर्पोरेट प्रोत्साहन पर नीतिगत ध्यान: सरकारी नीतियों ने प्रोत्साहन और सब्सिडी के माध्यम से बड़े निगमों का पक्ष लिया है तथा प्रायः सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) की उपेक्षा की है, जो रोज़गार सृजन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने पर ध्यान केंद्रित करने से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में पर्याप्त रोज़गार सृजन नहीं हो पाया है। 
    • उदाहरण के लिये, हालाँकि मेक इन इंडिया जैसी पहलों के कारण विनिर्माण क्षेत्र में कुछ वृद्धि देखी गई है, लेकिन इसका लाभ विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के विविध अवसरों को बढ़ावा देने के बजाय बड़ी कंपनियों को ही अधिक मिला है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में MSME की चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें औपचारिकीकरण, वित्तीय अभिगम, बाज़ार संपर्क, प्रौद्योगिकी अंगीकरण, डिजिटलीकरण, बुनियादी ढाँचा और कौशल अंतराल शामिल हैं।
  • डिजिटल व्यवधान और पारंपरिक नौकरी विस्थापन: भारत की अर्थव्यवस्था का तीव्र डिजिटलीकरण पारंपरिक रोज़गार पैटर्न को इतनी तेज़ी से बाधित कर रहा है कि नई नौकरी सृजन से इसकी भरपाई नहीं हो सकती। 
    • जबकि डिजिटल परिवर्तन उच्च-कुशल अवसरों का सृजन करता है, यह एक साथ कई मध्यम-कुशल नौकरियों को समाप्त कर देता है जो ऐतिहासिक रूप से स्थिर रोज़गार प्रदान करते थे। 
    • गिग इकॉनमी के विकास से अनुकूलता तो बढ़ी है, लेकिन पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा के बिना बड़े पैमाने पर अनिश्चित रोज़गार का सृजन हुआ है।
    • वर्ष 2023 में गिग इकॉनमी श्रमिकों की संख्या 7.7 मिलियन तक पहुँच गई, लेकिन भारत में 77% से अधिक गिग श्रमिक सालाना 2.5 लाख रुपए से कम कमाते हैं। 
  • नीति कार्यान्वयन अंतराल: रोज़गार सृजन के लिये भारत की महत्त्वाकांक्षी नीतियाँ केंद्र और राज्यों के बीच खराब कार्यान्वयन एवं समन्वय से ग्रस्त हैं।
    • कागज़ पर व्यापक होते हुए भी श्रम संहिताएँ, राज्य स्तरीय विलंब और नौकरशाही बाधाओं के कारण बड़े पैमाने पर क्रियान्वित नहीं हो पाई हैं। 
    • इसके अलावा, अनौपचारिक कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा इन संहिताओं के दायरे से बाहर है, जिससे उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
  • क्षेत्रीय आर्थिक असंतुलन: आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन कुछ शहरी केंद्रों तक ही सीमित रह गया है, जिससे रोज़गार के अवसरों में गंभीर क्षेत्रीय असंतुलन उत्पन्न हो रहा है। 
    • नए विकास केंद्रों के रूप में टियर-2 और टियर-3 शहरों के विकास में पिछड़ने के कारण अस्थिर प्रवासन पैटर्न उत्पन्न हुआ है। 
    • बुनियादी ढाँचे और व्यावसायिक वातावरण में राज्य-स्तरीय असमानताएँ असमान विकास को कायम रखती हैं।

भारत गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन के साथ आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?

  • MSME पारिस्थितिकी तंत्र परिवर्तन: वन-स्टॉप-शॉप मॉडल का अनुसरण करते हुए  परिचालन में सुविधा के लिये GST, बैंकिंग और अनुपालन को मिलाकर एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाए जा सकते हैं।
    • प्रत्येक प्रमुख औद्योगिक ज़िले में साझा बुनियादी अवसंरचना, परीक्षण सुविधाओं और सामान्य प्रौद्योगिकी केंद्रों के साथ क्षेत्र-विशिष्ट क्लस्टर स्थापित किया जाना चाहिये।
    • सरलीकृत ऋण मूल्यांकन के साथ विशेष MSME बैंकों और फिनटेक सॉल्यूशन के माध्यम से लक्षित वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
    • समयबद्ध अनुमोदन और डिजिटल ट्रैकिंग के साथ ज़िला स्तर पर एकल खिड़की अनुमोदन प्रणाली लागू की जानी चाहिये। 
    • प्रौद्योगिकी अंतरण और बाज़ार अभिगम के लिये बड़े निगमों को MSME के साथ जोड़ने के लिये मेंटरशिप नेटवर्क स्थापित किये जाने चाहिये।
  • कौशल-शिक्षा एकीकरण: मानकीकृत मूल्यांकन तंत्र के साथ सभी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के अंतिम वर्ष में उद्योग इंटर्नशिप अनिवार्य किये जा सकते हैं।
    • पाठ्यक्रम प्रासंगिकता और निरंतर फीडबैक तंत्र सुनिश्चित करने के लिये ज़िला स्तर पर उद्योग-आधारित कौशल परिषदों का गठन किया जाना चाहिये।
    • व्यावहारिक परियोजना-आधारित शिक्षा के साथ माध्यमिक विद्यालय स्तर से डिजिटल कौशल, कोडिंग और व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू किया जाना चाहिये।
    • उद्योग साझेदारी और प्लेसमेंट ट्रैकिंग के माध्यम से प्रशिक्षण परिणामों की रियल टाइम मॉनिटरिंग की जानी चाहिये।  
  • स्थानीय आर्थिक विकास: स्थानीय आर्थिक विकास योजनाएँ बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने के लिये नगर सरकारों को वित्तीय तथा प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये।
    • एकीकृत लॉजिस्टिक्स और औद्योगिक बुनियादी ढाँचे के साथ टियर-2 एवं टियर-3 शहरों को जोड़ने वाले विशेष आर्थिक गलियारे विकसित किये जाने चाहिये।
    • नगरपालिका सेवाओं, हरित बुनियादी ढाँचे और डिजिटल सेवाओं पर केंद्रित शहरी रोज़गार गारंटी योजनाएँ शुरू की जा सकती हैं।
    • स्थानीय उद्योग की आवश्यकताओं और भविष्य के विकास क्षेत्रों के अनुरूप शहरी कौशल विकास केंद्र बनाए जाने चाहिये।
  • उन्नत विनिर्माण को बढ़ावा: संतुलित विकास के लिये पूंजी और श्रम-प्रधान दोनों क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एकीकृत विनिर्माण क्षेत्र बनाए जा सकते हैं।
    • प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता उन्नयन के माध्यम से बड़े निर्माताओं को स्थानीय MSME के साथ जोड़ते हुए आपूर्तिकर्त्ता विकास कार्यक्रम बनाए जाने चाहिये। 
    • श्रम-प्रधान उत्पादन लाइनों को बनाए रखते हुए उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों के लिये विशेष कार्यबल प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित किये जाने चाहिये।
    • प्रमुख क्षेत्रों में न्यूनतम रोज़गार-से-निवेश-अनुपात बनाए रखने वाले निर्माताओं को प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये। 
  • सामाजिक सुरक्षा आधुनिकीकरण: सभी कल्याणकारी योजनाओं को जोड़ने वाले एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्मों के माध्यम से पोर्टेबल सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा लागू किये जा सकते हैं। 
    • न्यूनतम मज़दूरी गारंटी और स्वास्थ्य कवरेज सहित एक व्यापक गिग वर्कर सुरक्षा ढाँचा बनाए जाने चाहिये।
    • अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सरकारी सह-योगदान और आसान नामांकन के साथ विशेष योजनाएँ तैयार किये जाने चाहिये। सरलीकृत दावा प्रक्रियाओं के साथ कमज़ोर क्षेत्रों के लिये सूक्ष्म बीमा उत्पाद विकसित किये जाने चाहिये। 
  • ग्रामीण उद्यम विकास: सरलीकृत विनियमन और बुनियादी ढाँचे के समर्थन के साथ ग्राम पंचायतों को सूक्ष्म उद्यम क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से FPO को खाद्य प्रसंस्करण और खुदरा शृंखलाओं से जोड़ते हुए ग्रामीण व्यापार केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये।
    • कृषि-तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रामीण सेवा नवाचार पर ध्यान केंद्रित करते हुए ग्रामीण प्रौद्योगिकी केंद्र बनाए जाने चाहिये। 
    • ऋण गारंटी के साथ SHG-बैंक संपर्क के माध्यम से ग्रामीण उद्यमियों के लिये विशेष ऋण उत्पाद विकसित किये जाने चाहिये। 
  • हरित अर्थव्यवस्था और नौकरी परिवर्तन: नवीकरणीय ऊर्जा, संधारणीय कृषि और पर्यावरण अनुकूल विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए हरित प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये जा सकते हैं।
    • हरित उद्यमों के लिये शिथिल संपार्श्विक आवश्यकताओं और लंबी पुनर्भुगतान अवधि के साथ विशिष्ट वित्तपोषण तंत्र बनाए जाने चाहिये। 
    • साझा पर्यावरणीय बुनियादी ढाँचे और अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं के साथ हरित औद्योगिक पार्क विकसित किये जाने चाहिये।
    • सौर ऊर्जा स्थापना और ईवी रखरखाव सहित हरित नौकरियों के लिये विशेष रूप से कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये। 
  • सेवा क्षेत्र आधुनिकीकरण: स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन और शिक्षा जैसे उच्च विकास वाले सेवा क्षेत्रों के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित किये जा सकते हैं। 
    • वैश्विक मानकों और सर्वोत्तम प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए सेवा क्षेत्र उत्कृष्टता केंद्र बनाए जाने चाहिये।  
    • वेलनेस टूरिज़्म जैसे उभरते सेवा क्षेत्रों के लिये विशेष पाठ्यक्रम तैयार किये जाने चाहिये। भारत के प्रतिस्पर्द्धी लाभों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सेवा क्षेत्र के निर्यात संवर्द्धन की रणनीति विकसित की जानी चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत की रोज़गार चुनौती के लिये एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। संरचनात्मक मुद्दों को हल करके, कौशल विकास को बढ़ावा देकर, समावेशी विकास को बढ़ावा देकर और सामाजिक सुरक्षा को सुदृढ़ करके भारत आर्थिक विकास एवं गुणवत्तापूर्ण रोज़गार सृजन के बीच के अंतर को कम कर सकता है। इससे न केवल समान विकास सुनिश्चित होगा बल्कि भारत मानव पूंजी विकास में वैश्विक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भी स्थापित होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. सतत् आर्थिक वृद्धि के बावजूद, भारत को गुणवत्तापूर्ण और समावेशी नौकरियाँ सृजित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत में नौकरी सृजन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिये और इन चुनौतियों से निपटने के लिये नीतिगत उपाय भी सुझाइये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है?  (2016)  

(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन देना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधीयन (फंडिंग) करना

उत्तर: (a)


प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि— (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

प्रश्न. हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015)

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