ब्रिक्स का विस्तार: पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती | 09 Sep 2023
यह एडिटोरियल 06/09/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘The implications of the expansion of BRICS’’ लेख पर आधारित है। इसमें ‘ब्रिक्स’ के हालिया विस्तार के साथ-साथ सहयोग को बढ़ावा देने और पश्चिमी नियंत्रण से बाहर के संस्थानों के निर्माण करने के उनके प्रयासों के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:ब्रिक्स, न्यू डेवलपमेंट बैंक, ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था मेन्स के लिये:नए ब्रिक्स सदस्यों के भू-रणनीतिक मूल्य, ब्रिक्स की आलोचनाएँ, ब्रिक्स सदस्यता विस्तार को आकार देने वाले क्षेत्रीय विकास |
हाल ही में, जोहान्सबर्ग में आयोजित 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (15th BRICS summit) के दौरान यह घोषणा की गई कि मौजूदा पाँच सदस्यीय ब्रिक्स समूह (जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं) ने छह नए देशों को इसमें शामिल होने के लिये आमंत्रित करने की इच्छा ज़ाहिर की है। इन नए आमंत्रित सदस्यों में पश्चिम एशिया से ईरान, सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात; अफ्रीका से मिस्र एवं इथियोपिया; एवं लैटिन अमेरिका से अर्जेंटीना शामिल हैं।
ब्रिक्स (BRICS) बहुध्रुवीयता का पक्षसमर्थन करने, रणनीतिक स्वायत्तता पर बल देने और अपने विविधतापूर्ण सदस्यों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के रूप में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के भविष्य को आकार दे रहा है। ब्रिक्स पश्चिमी टिप्पणीकारों की ओर से आलोचना झेलने के बीच वैश्विक राजनीति में एक अनूठा रास्ता बना रहा है और हाल में संपन्न हुआ इसका शिखर सम्मेलन आधुनिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण क्षण बन गया है।
ब्रिक्स के उद्देश्य (Objectives of BRICS)
- उभरते वैश्विक द्विपक्षीय विभाजन की अस्वीकृति: भारत और ब्रिक्स के अन्य सदस्य देश उभरते वैश्विक द्विपक्षीय विभाजन (Emerging Global Binary Divide) को अस्वीकृत करते हैं, जो दो विपक्षी एवं प्रभुत्वशाली शक्तियों के अस्तित्व वाले विश्व की विशेषता रखता है, जिसकी तुलना प्रायः एक नए शीत युद्ध (Cold War) से की जाती है। वे इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं और इसे अदूरदर्शितापूर्ण मानते हैं।
- रणनीतिक स्वायत्तता का दावा: भारत सहित ब्रिक्स के सभी सदस्य देश अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के लिये मुखर रहने की प्रतिबद्धता पर बल दे रहे हैं। इसका तात्पर्य यह है कि वे किसी विशेष महाशक्ति या गुट के साथ गठबंधन करने के बजाय वैश्विक मंच पर स्वतंत्र निर्णय और नीति निर्माण में सक्षमता चाहते हैं।
- बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: ब्रिक्स देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Multipolar World Order) की वकालत कर रहे हैं। वे एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं जहाँ सत्ता और प्रभाव कुछ प्रमुख देशों के हाथों में केंद्रित होने के बजाय कई प्रमुख हितधारकों के बीच वितरित हो।
- मतों और हितों के सम्मान की मांग: ब्रिक्स सदस्य देश मांग कर रहे हैं कि उनकी आवाज़ सुनी जाए और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनके हितों का सम्मान किया जाए। यह एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी वैश्विक शासन प्रणाली की इच्छा का सुझाव देता है जहाँ उभरती अर्थव्यवस्थाओं की चिंताओं को ध्यान में रखा जाता है।
पश्चिमी नेतृत्व वाले संगठनों के प्रति ब्रिक्स के क्या विचार हैं?
- असमान वोटिंग शक्ति: ब्रिक्स देशों की प्राथमिक चिंताओं में से एक है अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (WB) जैसी संस्थाओं के भीतर वोटिंग शक्ति का असमान वितरण।
- ये संगठन पश्चिमी देशों, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों को उनके वित्तीय योगदान के कारण अधिक शक्तियाँ या प्रभाव सौंपते हैं। ब्रिक्स सदस्यों का तर्क है कि यह असमानता नीतियों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को आकार देने की उनकी क्षमता को कम कर देती है।
- प्रतिनिधित्व का अभाव: ब्रिक्स देशों का तर्क है कि इन संस्थानों का नेतृत्व और इनके निर्णय लेने वाले निकाय वैश्विक अर्थव्यवस्था की विविधता का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। उनका मानना है कि इन संस्थानों को ब्रिक्स सदस्यों जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक प्रभाव और योगदान को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करना चाहिये।
ब्रिक्स की आलोचनाएँ
- साझा दृष्टिकोण का अभाव: पश्चिमी टिप्पणीकार इस आधार पर ब्रिक्स की आलोचना करते हैं कि इसके पास स्पष्ट और ससंजक साझा दृष्टिकोण का अभाव है। इसका तात्पर्य यह है कि संभव है कि इसके पाँच सदस्यों के पास वैश्विक मुद्दों पर एकीकृत और सुसंगत दृष्टिकोण का अभाव हो या वे साझा उद्देश्यों की दिशा में कार्यशील नहीं हों।
- महज एक ‘टॉक-शॉप’ होना: ब्रिक्स पर ठोस कार्रवाई करने या सार्थक परिणाम प्राप्त करने वाले संगठन के बजाय चर्चा और संवाद करने वाले एक मंच होने का आरोप लगाया जाता है।
- दूसरे शब्दों में, इसे एक ऐसे मंच के रूप में देखा जाता है जहाँ इन देशों के नेता चर्चा में तो शामिल होते हैं, लेकिन कोई ठोस परिणाम या समाधान नहीं निकाल पाते।
- कोई सार्थक उपलब्धि नहीं: आलोचकों का तर्क है कि ब्रिक्स ने अभी तक कोई ठोस या महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल नहीं की है जो एक ब्लॉक/मंच के रूप में इसके अस्तित्व को उचित ठहरा सके। वे तर्क दे सकते हैं कि समूह की गतिविधियों का वैश्विक मामलों पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ा है या प्रमुख चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रहा है
ब्रिक्स पश्चिम के नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था को किस प्रकार चुनौती दे रहा है?
- ब्रिक्स संवाद की सतत् और व्यापक प्रकृति: वर्ष 2009 से ही ब्रिक्स सदस्य देश वार्षिक शिखर बैठकें आयोजित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, ब्रिक्स के ढाँचे को विभिन्न मंत्रिस्तरीय और विशेषज्ञ सम्मेलनों द्वारा समर्थित किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह केवल एक शिखर सम्मेलन नहीं है बल्कि निरंतर जुड़ाव के लिये एक मंच भी है।
- वैकल्पिक संस्थाएँ: पश्चिमी प्रभुत्व वाली संस्थाओं के प्रति अपने असंतोष की प्रतिक्रिया ब्रिक्स देशों ने वैकल्पिक वित्तीय संस्थाओं की स्थापना के लिये कदम उठाये हैं। इसका सबसे उल्लेखनीय उदाहरण न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना है, जिसे ब्रिक्स बैंक और आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (Contingent Reserve Arrangement- CRA) के रूप में भी जाना जाता है।
- NDB का लक्ष्य सदस्य देशों और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आधारभूत संरचना और सतत् विकास परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण प्रदान करना है। इस पहल को पश्चिमी संस्थानों पर निर्भरता कम करने के एक उपाय के रूप में देखा जाता है।
- CRA अल्पकालिक भुगतान संतुलन (balance-of-payments) दबाव का सामना कर रहे सदस्य देशों की सहायता करने का लक्ष्य रखता है।
- स्थानीय मुद्राओं का उपयोग: ब्रिक्स सदस्य आपस में और अन्य व्यापारिक भागीदारों के साथ आंतरिक व्यापार और वित्तीय लेनदेन में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने पर सहमत हुए हैं।
- यह अमेरिकी डॉलर जैसी प्रमुख वैश्विक मुद्राओं पर निर्भरता कम करने और अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन में अपनी मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।
- सुधार की वकालत: ब्रिक्स देश मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधारों की वकालत कर रहे हैं। वे एक अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण और निष्पक्ष वैश्विक प्रणाली की मांग रखते हैं जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं के हितों और आवाज़ों को ध्यान में रखे।
- इस सुधार एजेंडे में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और वैश्विक शासन संरचनाओं में बदलाव का आह्वान शामिल है।
- संवृद्ध आर्थिक प्रभाव: ब्रिक्स समूह के पास सामूहिक रूप से व्यापक आर्थिक शक्ति है। ब्रिक्स सदस्यता के विस्तार ने इसके प्रभाव को और बढ़ा दिया है। यह समूह विश्व की जनसंख्या, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), वैश्विक व्यापार और ऊर्जा उत्पादन के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
- ऊर्जा क्षेत्र पर प्रभाव: ऊर्जा क्षेत्र पर ब्रिक्स के विस्तार का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ना तय है। नए सदस्यों को शामिल करने के साथ, ब्रिक्स देश सामूहिक रूप से दुनिया के तेल का एक बड़ा हिस्सा उत्पादित करते हैं, जिससे वे वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों में एक महत्त्वपूर्ण हितधारक बन जाते हैं। यह ऊर्जा नीतियों और बाज़ारों को आकार देने की उनकी क्षमता को रेखांकित करता है।
नए ब्रिक्स सदस्यों का भू-रणनीतिक महत्त्व
- ऊर्जा संसाधन: सऊदी अरब और ईरान जैसे पश्चिम एशियाई देशों का नए सदस्यों के रूप में शामिल होना उनके पर्याप्त ऊर्जा संसाधनों के कारण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सऊदी अरब एक प्रमुख तेल उत्पादक है और इसके तेल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा चीन और भारत जैसे ब्रिक्स देशों को जाता है।
- प्रतिबंधों का सामना करने के बावजूद ईरान ने अपने तेल उत्पादन और निर्यात में वृद्धि की है, जो मुख्य रूप से चीन की ओर निर्देशित है। यह ब्रिक्स सदस्यों के बीच ऊर्जा सहयोग और व्यापार के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
- ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं का विविधीकरण: रूस चीन और भारत के लिये तेल का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता रहा है। नए सदस्यों के शामिल होने के साथ रूस अपने ऊर्जा निर्यात के लिये अतिरिक्त बाज़ार की तलाश कर रहा है, जो ब्रिक्स के भीतर विविधिकृत ऊर्जा स्रोतों की क्षमता को दर्शाता है।
- रणनीतिक भौगोलिक उपस्थिति: मिस्र और इथियोपिया ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ और लाल सागर में रणनीतिक अवस्थिति रखते हैं, जो महत्त्वपूर्ण समुद्री व्यापार मार्गों के निकट होने के कारण अत्यधिक भू-रणनीतिक महत्त्व रखता है। उनकी उपस्थिति इस क्षेत्र में ब्रिक्स के भू-राजनीतिक महत्त्व को बढ़ाती है।
- लैटिन अमेरिकी आर्थिक प्रभाव: लैटिन अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में अर्जेंटीना के प्रवेश से ब्रिक्स समूह के आर्थिक प्रभाव की वृद्धि हुई है। लैटिन अमेरिका ऐतिहासिक रूप से वैश्विक शक्तियों के लिये रुचि का क्षेत्र रहा है और अर्जेंटीना का समावेश दुनिया के इस हिस्से में ब्रिक्स की उपस्थिति को सुदृढ़ करता है।
ब्रिक्स सदस्यता विस्तार को आकार देने वाले क्षेत्रीय घटनाक्रम
- स्वतंत्र विदेश नीति: सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, दोनों ही स्वतंत्र विदेश नीति पथ पर आगे बढ़ रहे हैं (विशेषकर वर्ष 2020 के बाद से)। इसका अर्थ यह है कि उन्होंने अपनी संप्रभुता पर बल देने और ऐसे विदेश नीति निर्णयों पर आगे बढ़ने की राह चुनी है जो उनके अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हों, न कि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी बाहरी शक्तियों द्वारा अत्यधिक प्रभावित हों।
- कतर पर पाबंधियों की समाप्ति: जनवरी 2021 में कतर पर पाबंधियों की समाप्ति करने का सऊदी अरब का निर्णय भी इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जाता है। इसके परिणामस्वरूप खाड़ी क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव आया, जहाँ इसने क्षेत्रीय विवादों को सुलझाने और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार लाने की इच्छा का संकेत दिया।
- ईरान-UAE संबंध: संयुक्त अरब अमीरात ने ईरान के साथ संबंधों को सामान्य कर लिया है और यह खाड़ी क्षेत्र, अदन की खाड़ी, लाल सागर और ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ में अपनी समुद्री उपस्थिति का विस्तार करने की इच्छा रखता है।
- ब्रिक्स में ईरान के शामिल होने से क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और चाबहार बंदरगाह (जिससे भारत संबद्ध है) के माध्यम से कनेक्टिविटी परियोजनाओं के पुनरुद्धार के अवसर मिल रहे हैं।
निष्कर्ष
ब्रिक्स समूह के विस्तार से इसके भू-रणनीतिक महत्त्व की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ब्रिक्स ने हाल ही में संपन्न हुए अपने शिखर सम्मेलन के माध्यम से इस बात पर बल दिया है कि उनकी ‘‘रणनीतिक साझेदारी अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण, निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’’ के निर्माण की दिशा में प्रेरित होगी। ब्रिक्स की सदस्यता के हालिया विस्तार ने एक ऐसे समूह को आकार दिया है जो वैश्विक धारणाओं और हितों के अनुरूप है तथा सामूहिक रूप से विस्तारित समूह को व्यापक आर्थिक शक्ति प्रदान करता है। एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर बल देने के समूह के प्रयासों को ‘‘आधुनिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़’’ के रूप में वर्णित किया गया है।
अभ्यास प्रश्न: मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और इसकी रणनीतियों को आकार देने में ब्रिक्स की उभरती भूमिका और इसके विस्तार के संबंध में चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये” (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (B) प्रश्न. हाल ही में चर्चा में रहा 'फोर्टालेजा डिक्लेरेशन' किससे संबंधित है? (2015) (a) आसियान उत्तर : B प्रश्न. BRICS के रूप में ज्ञात देशों के समूह के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (B) |