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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रोगाणुरोधी प्रतिरोध: कार्रवाई हेतु तत्काल आह्वान

  • 08 Oct 2024
  • 25 min read

यह संपादकीय 07/10/2024 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित “Virtuous viruses to fight antimicrobial resistance” पर आधारित है। यह लेख रोगाणुरोधी प्रतिरोध के समाधान के रूप में जीवाणुभोजी के बढ़ते महत्त्व को प्रकट करता है, औषध प्रतिरोधी जीवाणु को लक्षित करने की उनकी क्षमता पर प्रकाश डालता है और असफल प्रतिजैविक औषधियों के लिये एक संभावित विकल्प प्रदान करता है। यह फेज़ थेरेपी की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है, विशेष रूप से भारत जैसे देशों के लिये, जो गंभीर औषध प्रतिरोध संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

जीवाणुभोजी, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, प्रतिजैविक, केंद्रीय औषधि नियामक, ई. कोली और क्लेबसिएला न्यूमोनिया, 2019 कोलिस्टिन प्रतिबंध, AMR निगरानी नेटवर्कवन हेल्थ एप्रोच, औषधि और प्रसाधन सामग्री नियमों की अनुसूची H1, आयुष्मान आरोग्य मंदिर, वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी प्रणाली 

मेन्स के लिये:

भारत में AMR की वृद्धि को उत्प्रेरित करने वाले कारक, AMR से निपटने के लिये भारत सरकार की पहल

जीवाणुभोजी या "फेज़ेस" रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते खतरे से निपटने के लिये एक आशाजनक समाधान के रूप में उभर रहे हैं। ये विषाणु, जो स्वाभाविक रूप से जीवाणु का भक्षण करते हैं, न केवल औषध प्रतिरोधी जीवाणु से प्रतिरोध की क्षमता रखते हैं, बल्कि उनमें प्रतिरोध को कम करने की भी क्षमता रखते हैं। फेज़ेस जीवाणु पर आक्रमण करके, उनकी आनुवंशिक सामग्री को अभिधारित करके और उन्हें भीतर से नष्ट करके कार्य करते हैं। अपशिष्ट जल से लेकर मानव आंत तक प्रकृति में उनकी सर्वव्यापकता उन्हें चिकित्सीय विकास के लिये एक आकर्षक विकल्प बनाती है। 

फेज़ थेरेपी की खोज की तत्काल आवश्यकता रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते संकट से स्पष्ट होती है, जिसके कारण वर्ष 2050 तक 40 मिलियन लोगों की मृत्यु होने का अनुमान है। हाल ही में वैज्ञानिक सफलताओं ने स्यूडोमोनास एरुगिनोसा जैसे जीवाणु में प्रतिजैविक प्रतिरोध को व्युत्क्रमित करने हेतु फेज़ की क्षमता को प्रदर्शित किया है, जो अस्पताल में होने वाले जानलेवा संक्रमणों का एक सामान्य कारण है। जैसे-जैसे पारंपरिक प्रतिजैविक अपनी प्रभावकारिता खो रहे हैं, विश्वभर के देश चिकित्सीय फेज़ के क्षेत्र में तीव्र अन्वेषण कर रहे हैं। भारत जैसे देशों के लिये, जो गंभीर औषध प्रतिरोध समस्याओं का सामना कर रहे हैं, फेज़ थेरेपी सुपरबग्स के विरुद्ध प्रतिरोध में एक महत्त्वपूर्ण विकल्प प्रदान कर सकती है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध क्या है? 

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणु, विषाणु, कवक और परजीवी की उन औषधियों के प्रभावों का प्रतिरोध करने की क्षमता को संदर्भित करता है जो कभी उनके विरूद्ध प्रभावी थे, जिनमें प्रतिजैविक, प्रतिविषाणु, प्रतिकवकीय और परजीवीरोधी सम्मिलित हैं। 
  • परिणामस्वरूप, मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण बना रहता है तथा यह दूसरों में भी संचारित हो सकता है, जिससे गंभीर बीमारी, दिव्यांगता और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। 
  • WHO के अनुसार, AMR एक शीर्ष वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा है, जो वर्ष 2019 में 1.27 मिलियन मौतों के लिये प्रत्यक्ष ज़िम्मेदार है और 4.95 मिलियन मौतों में योगदान देता है
    • विश्व बैंक का अनुमान है कि AMR के कारण स्वास्थ्य देखभाल लागत में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हो सकती है तथा वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक की हानि हो सकती है

भारत में AMR की वृद्धि को उत्प्रेरित करने वाले कारक क्या हैं? 

  • प्रतिजैविक औषधियों का अति प्रयोग और दुरुपयोग: भारत में प्रतिजैविक औषधि बिना डॉक्टर के पर्चे के व्यापक रूप से उपलब्ध हैं तथा स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और आम जनता दोनों में उन्हें अधिक मात्रा में औषध निर्देशन या उनका दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति शामिल है। 
    • वर्ष 2022 के लैंसेट अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत के निजी क्षेत्र में उपयोग किये जाने वाले 47% से अधिक प्रतिजैविक संरूपण को केंद्रीय औषधि नियामक द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था।
      • इस अनियंत्रित उपलब्धता के कारण इसका व्यापक और प्रायः अनावश्यक उपयोग हो रहा है। 
    • हाल ही में हुए एक सरकारी सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय अस्पतालों में भर्ती 38% से अधिक मरीज़ों को कई प्रतिजैविक औषधियाँ दी जाती हैं, इनमें से 55% से अधिक औषधियाँ विश्व स्वास्थ्य संगठन के "वॉच" समूह से संबंधित हैं, जो गंभीर संक्रमणों के लिये आरक्षित है।
    • इसके अतिरिक्त, WHO ग्लोबल सिस्टमैटिक रिव्यू से पता चला है कि यद्यपि कोविड-19 मामलों में समीक्षित 76,176 में से केवल 6% में जीवाणु या कवकीय सह-संक्रमण था, जिसमें से 62% को प्रतिजैविक दिये गए थे।
      • यह अति प्रयोग प्रतिरोध को प्रोत्साहित करता है, जिससे जीवाणु विकसित होते हैं और मानक उपचारों को सहन कर पाते हैं। 
  • स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में अपर्याप्त संक्रमण नियंत्रण और स्वच्छता प्रथाएँ: स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में खराब संक्रमण नियंत्रण प्रथाएँ भारत में AMR में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। 
    • अस्पताल में होने वाले संक्रमणों की उच्च दर (प्रति 1,000 गहन चिकित्सा इकाई (ICU) रोगी दिवसों में 9.06 संक्रमण), जिसमें प्रायः औषध प्रतिरोधी जीवाणु सम्मिलित होते हैं, प्रचलित हैं। 
  • अस्पतालों में, विशेषकर संसाधनों की कमी वाले सार्वजनिक क्षेत्रों में, कभी-कभी सख्त संक्रमण नियंत्रण उपायों को कार्यान्वित करने के लिये आधारिक संरचना का अभाव होता है। 
    • उदाहरण के लिये, अध्ययनों से पता चला है कि भारतीय अस्पतालों में बहु-दवा प्रतिरोधी संक्रमणों की संख्या बढ़ रही है तथा गहन चिकित्सा इकाइयों (ICU) में  ई. कोली और क्लेबसिएला न्यूमोनिया के प्रतिरोधी उपभेदों की रिपोर्ट भी मिली है।
  • कृषि और पशुपालन में प्रतिजैविक का उपयोग: भारत में, प्रतिजैविकों का उपयोग सामान्य तौर पर कृषि में पशुओं में वृद्धि को प्रोत्साहित करने और रोग का प्रतिरोध करने के लिये किया जाता है, जब अवशेष मानव खाद्य शृंखला में प्रवेश करते हैं तो AMR की वृद्धि होती है। 
    • कृषि क्षेत्र में प्रतिजैविक का अनियमित प्रयोग चिंता का विषय है, जिसके अवशेष पोल्ट्री और डेयरी उत्पादों में पाए जाते हैं। 
  • विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन में, मुर्गियों के प्रतिदर्शों के यकृत, मांसपेशियों और गुर्दे के ऊतकों में प्रतिजैविक औषधियों के अवशेष पाए गए।
    • भारत सरकार ने खाद्य-उत्पादक पशुओं में प्रतिजैविक के उपयोग के लिये दिशानिर्देशों के माध्यम से इसे विनियमित करने हेतु आवश्यक कदम उठाए हैं, जैसे कि केंद्र ने  वर्ष 2019 में कोलिस्टिन प्रतिबंध के बाद खाद्य-उत्पादक पशुओं में क्लोरैम्फेनिकॉल और नाइट्रोफ्यूरान पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है, फिर भी प्रवर्तन एक चुनौती बना हुआ है और कई क्षेत्रों में प्रथाएँ जारी हैं।
  • औषध अपशिष्ट द्वारा पर्यावरण प्रदूषण: भारत प्रतिजैविक सहित वर्गीय औषधियों के विश्व के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
    • हालाँकि, औषध अपशिष्ट निपटान के संबंध में ढीले नियमों के कारण पर्यावरण में काफी प्रदूषण हुआ है। 
    • इसे औषध निर्माण केंद्रों के आसपास के क्षेत्रों में आसानी से पाया जा सकता है, जैसे कि भारत के हैदराबाद में मुसी नदी में पाए जाने वाले फ्लोरोक्विनोलोन समूह के प्रतिजैविक, जो पर्यावरण में प्रतिरोधी जीवाणु की संवृद्धि को प्रोत्साहित करते हैं।
  • औषधि गुणवत्ता नियंत्रण में चुनौतियाँ: औषधि क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार प्रायः नियामक निरीक्षण से आगे निकल जाता है, जिसके परिणामस्वरूप घटिया प्रतिजैविकों का उत्पादन होता है। 
    • अपर्याप्त सक्रिय अवयवों या संदूषण के कारण घटिया गुणवत्ता वाले प्रतिजैविक प्रतिरोध में शामिल होते हैं, क्योंकि वे जीवाणु को प्रभावी रूप से नष्ट करने में विफल रहते हैं।
    • इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने औषध कंपनियों के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन की सर्वोत्तम विनिर्माण प्रथाओं का पालन करने के लिये वर्ष 2023 में 6 महीने और 12 महीने की समय सीमा निर्धारित की है।
      • यद्यपि, उद्योग के पैमाने को देखते हुए, अनुपालन असमान बना हुआ है, जिसने निरंतर नियामक सतर्कता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
  • जन जागरूकता का अभाव: AMR के विषय में लोगों की समझ सीमित है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। कई मरीज़ प्रतिजैविकों के उपभोग को समय से पहले बंद कर देते हैं या उन्हें गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं, उन्हें इसके दीर्घकालिक परिणामों का पता नहीं होता। 
    • समुदाय-आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, 24% प्रतिभागी रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के स्तर में वृद्धि के परिणामों से अनभिज्ञ थे। (ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन)
    • प्रतिक्रियास्वरूप, केरल जैसे राज्यों ने ज़िम्मेदारीपूर्वक प्रतिजैविक उपयोग के महत्त्व पर समुदायों को शिक्षित करने के लिये स्थानीय समितियों का गठन करना शुरू कर दिया है।
    • इन प्रयासों के बावजूद, व्यापक जनसंख्या में जागरूकता की कमी AMR को उत्प्रेरित कर रही है। 

AMR से निपटने के लिये भारत सरकार की क्या पहल हैं? 

  • AMR निगरानी नेटवर्क: राज्य मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं के साथ सुदृढ़ीकृत किया गया है, जिसमें 26 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 36 स्थानों को सम्मिलित किया गया (अगस्त 2022 तक)।
    • ICMR का AMR निगरानी और अनुसंधान नेटवर्क 30 तृतीयक देखभाल अस्पतालों (निजी और सरकारी दोनों) में औषध प्रतिरोधी संक्रमणों की निगरानी करता है।
  • AMR पर राष्ट्रीय कार्य योजना: वर्ष 2017 में वन हेल्थ एप्रोच के साथ शुरू की गई , जिसमें कई मंत्रालय शामिल थे।
    • AMR पर दिल्ली घोषणापत्र पर मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षर, रोकथाम प्रयासों के लिये समर्थन का वचन।
  • अनुसंधान एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: ICMR ने AMR अनुसंधान और नई औषधि के विकास के लिये नॉर्वे और जर्मनी के साथ साझेदारी की।
  • जागरूकता और विनियमन:
    • भारतीय औषधि महानियंत्रक ने 40 फिक्स्ड-डोज़ कॉम्बिनेशन (FDC) पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • पोल्ट्री आहार में कोलिस्टिन पर प्रतिबंध लगाने के लिये कृषि और पशुपालन विभागों के साथ सहयोग।
    • स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक मंचों के माध्यम से जागरूकता अभियान समुचित प्रतिजैविक उपयोग और हाथ की स्वच्छता पर केंद्रित होते हैं।

AMR की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • स्वास्थ्य देखभाल विन्यास में प्रतिजैविक प्रबंधन कार्यक्रमों का सुदृढ़ीकरण: स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय दिशानिर्देश 2020 का पालन करते हुए, सभी अस्पतालों में अनिवार्य प्रतिजैविक प्रबंधन कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया जा सकता है।
    • इन कार्यक्रमों में प्रतिजैविक औषध विधि की नियमित जाँच, औषधनिर्देशकों को प्रतिपुष्टि तथा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के लिये निरंतर शिक्षा शामिल होनी चाहिये।
    • देश भर में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को उचित प्रतिजैविक उपयोग पर वास्तविक समय मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये ई-संजीवनी टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म जैसी डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा सकता है।
    • अनुभवजन्य प्रतिजैविक औषध विधि को कम करने के लिये त्वरित निदान परीक्षणों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, भारतीय स्टार्टअप मॉड्यूल इनोवेशन ने मूत्र मार्ग के संक्रमण के लिये एक त्वरित परीक्षण विकसित किया है जो प्रतिजैविक चयन का मार्गदर्शन कर सकता है, जिससे संभावित रूप से अनावश्यक व्यापक विस्तार वाले प्रतिजैविक के उपयोग को कम किया जा सकता है।
  • बिना औषध निर्देश के प्रतिजैविकों की बिक्री पर विनियमन: औषधि और प्रसाधन सामग्री नियमों की अनुसूची H1 के कार्यान्वयन को सुदृढ़ किया जा सकता है, जो बिना डॉक्टर के पर्चे के कुछ प्रतिजैविक औषधियों की बिक्री को प्रतिबंधित करता है। 
    • प्रारूप औषधि एवं प्रसाधन सामग्री संशोधन नियम, 2023 में प्रस्तावित ई-फार्मेसी मॉडल के समान प्रतिजैविकों की बिक्री के लिये एक डिजिटल पदांकन प्रणाली की शुरुआत की जा सकती है।
    • यह प्रणाली प्रतिजैविक वितरण प्रारूप पर दृष्टि रखने और असामान्य बिक्री को चिह्नित करने में सहायता कर सकती है। 
    • औषधशालाओं का नियमित निरीक्षण किया जा सकता है तथा अनुपालन न करने पर कठोर दंड का प्रावधान किया जा सकता है। 
    • लोकप्रिय मीडिया और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का लाभ उठाते हुए प्रतिजैविक औषधियों के स्व-उपचार के खतरों के विषय में जन जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है।
  • कृषि और पशुपालन में प्रतिजैविकों के उपयोग का विनियमन: पशुओं में वृद्धि उत्प्रेरक के रूप में प्रतिजैविक औषधियों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने से संबंधित  AMR (2022-2026) उपायों पर राष्ट्रीय कार्य योजना को पूरी तरह से कार्यान्वित किया जा सकता है।
    • कृषि में प्रतिजैविकों के उपयोग के लिये एक सुदृढ़ निगरानी प्रणाली की स्थापना की जा सकती है, जो यूरोपीय पशु चिकित्सा रोगाणुरोधी उपभोग निगरानी (ESVAC) कार्यक्रम के समान हो। 
    • प्रतिजैविक औषधियों के विकल्प को प्रोत्साहित किया जा सकता है, जैसे प्रोबायोटिक्स और बेहतर पशुपालन पद्धतियाँ। 
  • औषध निर्माण में अपशिष्ट जल उपचार में सुधार: औषध निर्माण पर सख्त पर्यावरणीय नियम कार्यान्वित किये जा सकते हैं, जिसमें उन्नत अपशिष्ट जल उपचार प्रौद्योगिकियों को अनिवार्य बनाना शामिल है। 
    • प्रतिजैविक औषधियों के निर्माताओं के लिये "ग्रीन फार्मेसी" प्रमाणन को कार्यान्वित किया जा सकता है, जो यूरोपीय संघ के गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) प्रमाणन के समान सख्त पर्यावरणीय मानकों को पूरा करते हैं। 
    • इस क्षेत्र के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने हेतु डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज़ जैसे उद्योग के अग्रणी लोगों के साथ सहयोग किया जा सकता है, जिसने भारत में अपनी 88% सुविधाओं में शून्य तरल निर्वहन प्रणाली को कार्यान्वित किया है।
    • नवीन अपशिष्ट जल उपचार प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान में निवेश किया जा सकता है, जैसे कि औषध अपशिष्ट उपचार के लिये उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रियाएँ।
  • संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण उपायों को संवर्द्धन: नियमित संक्रमण नियंत्रण संपरीक्षा की शुरुआत की जा सकती है और उन्हें अस्पताल मान्यता प्रक्रियाओं से जोड़ा जा सकता है। 
    • आयुष्मान आरोग्य मंदिर  जैसी पहलों का उपयोग करते हुए, स्वास्थ्य सुविधाओं में भीड़भाड़ को कम करने और स्वच्छता में सुधार के लिये आधारिक संरचना के सुधार में निवेश किया जा सकता है।
    • स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में राष्ट्रव्यापी हाथ स्वच्छता अभियान को कार्यान्वित किया जा सकता है, जिसमें हैंड सैनिटाइजर के उपयोग को प्रोत्साहित करना तथा देखभाल के सभी स्थानों पर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करना शामिल है, ताकि इन उत्पादों के कम लागत वाले उत्पादन के लिये भारत की क्षमता का लाभ उठाया जा सके।
  • AMR निगरानी का विस्तार और सुदृढ़ीकरण: ICMR के AMR निगरानी नेटवर्क को तीव्र रूप से अग्रेषित किया जा सकता है ताकि अधिक से अधिक स्थानों को सम्मिलित किया जा सके। AMR निगरानी को मौजूदा रोग निगरानी कार्यक्रमों, जैसे कि एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP) के साथ एकीकृत करना। 
    • पशुपालन और डेयरी विभाग के अंतर्गत हाल ही में स्थापित वन हेल्थ सपोर्ट यूनिट के मॉडल का अनुसरण करते हुए, पर्यावरण और पशु स्वास्थ्य क्षेत्रों सहित AMR निगरानी के लिये वन हेल्थ एप्रोच को कार्यान्वित किया जा सकता है 
    • प्रतिरोधी रोगाणुओं के उद्भव और प्रसार पर दृष्टि रखने के लिये संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण जैसी उन्नत जीनोमिक निगरानी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
    • डेटा संग्रहण और रिपोर्टिंग पद्धतियों को मानकीकृत करने के लिये वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध निगरानी प्रणाली (GLASS) जैसी अंतर्राष्ट्रीय पहलों के साथ सहयोग किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने के लिये बहुआयामी उपागम की आवश्यकता है, जिसमें पारंपरिक प्रतिजैविक औषधियों के एक आशाजनक विकल्प के रूप में बैक्टीरियोफेज़ थेरेपी को अंगीकृत करना भी शामिल है। नियामक ढाँचे का सुदृढ़ीकरण, सार्वजनिक जागरूकता वर्द्धन और प्रभावी संक्रमण नियंत्रण उपायों का कार्यान्वयन AMR की संवृद्धि को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण है। विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देकर और अनुसंधान को प्राथमिकता देकर, भारत इस बढ़ते सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे से निपट सकता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

रोगाणुरोधी प्रतिरोध भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये एक बड़ा खतरा है, जिसका स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। AMR से निपटने के लिये सरकार के प्रयासों का परीक्षण कीजिये और चर्चा कीजिये कि इस बढ़ती चुनौती के प्रति भारत की प्रतिक्रिया को सुदृढ़ करने के लिये और क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं?

  1. कुछ व्यक्तियों में आनुवंशिक पूर्ववृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोजीशन) का होना
  2. रोगों के उपचार के लिये प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक्स) की गलत खुराकें लेना 
  3. पशुधन फार्मिंग में प्रतिजैविकों का इस्तेमाल करना 
  4. कुछ व्यक्तियों में चिरकालिक रोगों की बहुलता होना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 3 और 4
(d) 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स

Q. क्या ऐन्टीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना मुक्त उपलब्धता, भारत में औषधि-प्रतिरोधी रोगों के आविर्भाव के अंशदाता हो सकते हैं? अनुवीक्षण और नियंत्रण की क्या क्रियाविधियाँ उपलब्ध हैं? इस संबंध में विभिन्न मुद्दों पर समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2014)

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