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भारतीय अर्थव्यवस्था

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट 2023-24

  • 26 Sep 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), औपचारिक नौकरियाँ, रिवर्स माइग्रेशन, अनौपचारिकीकरण, स्वचालन, डिजिटलीकरण, वस्तु एवं सेवा कर (GST), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), ग्रीन जॉब्स 

मेन्स के लिये:

भारत में रोज़गार की स्थिति, औपचारिक नौकरियों के सृजन से जुड़ी चुनौतियाँ।

स्रोत: बीएस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट 2023-24 जारी की गई, जिसमें दिखाया गया कि बेरोज़गारी दर 3.2% पर स्थिर है, जिसमें पर्याप्त औपचारिक रोज़गार सृजन करने में असमर्थता को लेकर चिंता जताई गई है।

PLFS रिपोर्ट 2023-24 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • स्थिर बेरोज़गारी दर: सत्र 2023-24 के लिये बेरोज़गारी दर 3.2 % पर अपरिवर्तित रही, जो स्तर 2022-23 के समान जारी है।
    • सत्र 2017-18 में PLFS की स्थापना के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है कि बेरोज़गारी दर में साल-दर-साल गिरावट नहीं देखी गई है।
  • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): राष्ट्रीय स्तर पर LFPR में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई जो सत्र 2022-23 में 57.9% से बढ़कर 2023-24 में 60.1% हो गई।
    • ग्रामीण LFPR बढ़कर 63.7% हो गया, जबकि शहरी LFPR बढ़कर 52% हो गया। यह दर्शाता है कि अधिक लोग ग्रामीण क्षेत्रों में काम/रोज़गार की तलाश कर रहे हैं, संभवतः महामारी के दौरान और उसके बाद रिवर्स माइग्रेशन या सीमित शहरी नौकरी के अवसरों के कारण।
      • किसी भी आबादी में LFPR कामगर या काम की तलाश करने वाले व्यक्तियों को प्रतिशत के रूप में दर्शाता है।
  • श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) में वृद्धि की प्रवृत्ति: सत्र 2023-2024 में WPR 58.2% थी। पुरुषों और महिलाओं के लिये यह क्रमशः 76.3% और 40.3% थी।
    • WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • नौकरी की गुणवत्ता में मामूली सुधार: नौकरी की गुणवत्ता में मामूली सुधार हुआ, वेतनभोगी या नियमित वेतन पाने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी 0.8 प्रतिशत अंक बढ़कर 21.7% हो गई।
  • शहरी और ग्रामीण विचलन: ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर में मामूली वृद्धि देखी गई, जो सत्र 2022-23 में 2.4% से बढ़कर 2023-24 में 2.5% हो गई।
    • इसके विपरीत, शहरी बेरोज़गारी दर में सुधार हुआ तथा यह 5.4% से घटकर 5.1% हो गयी।
  • लैंगिक असमानता: महिलाओं के लिये बेरोज़गारी दर बढ़कर 3.2% हो गई (सत्र 2022-23 में 2.9% से ऊपर), जबकि पुरुषों के लिये यह 3.3% से थोड़ी कम होकर 3.2% हो गई।
  • स्व-रोज़गार और अवैतनिक कार्य में वृद्धि: अवैतनिक घरेलू कार्य और छोटे व्यवसायों सहित स्व-रोज़गार में संलग्न लोगों की हिस्सेदारी सत्र 2022-23 में 57.3% से बढ़कर 58.4% हो गई।
    • स्वरोज़गार में उपक्रम संबंधी उद्यम और अनिश्चित अनौपचारिक कार्य दोनों शामिल हैं, जिससे यह नौकरी की गुणवत्ता का मिश्रित संकेतक बन जाता है।
  • अच्छे रोज़गार सृजित करने में चुनौतियाँ: पर्याप्त अच्छे रोज़गार सृजित करने में अर्थव्यवस्था की असमर्थता के कारण अधिक लोगों को स्वरोज़गार के के विकल्प तलाशने पड़ रहे हैं, जो प्रायः अनौपचारिक क्षेत्र में या अवैतनिक पारिवारिक भूमिकाओं में होता है।
    • महामारी से पहले की तुलना में वेतनभोगी रोज़गार का प्रतिशत अभी भी बहुत कम है, जो औपचारिक व स्थायी रोज़गार स्थापित करने की चुनौती को रेखांकित करता है।

PLFS रिपोर्ट के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: यह भारत में रोज़गार और बेरोज़गारी की स्थिति का आकलन करने के लिये सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत NSO द्वारा आयोजित किया जाता है।
  • PLFS के दो प्राथमिक उद्देश्य: इसे रोज़गार और बेरोज़गारी की स्थिति का आकलन करने के दो प्रमुख उद्देश्यों के साथ तैयार किया गया था:
    • पहला उद्देश्य: वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) उपागम का प्रयोग करके शहरी क्षेत्रों के लिये लघु अंतराल (प्रत्येक तीन माह) पर श्रम बल भागीदारी और रोज़गार की स्थिति की गतिशीलता का आकलन करना।
    • दूसरा उद्देश्य: सामान्य स्थिति और CWS मापदंडों का प्रयोग करके ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिये श्रम बल गणना का आकलन करना।
  • प्रतिदर्शन डिज़ाइन और डेटा संग्रहण में नवाचार: PLFS ने NSSO द्वारा किये गए पिछले पंचवर्षीय सर्वेक्षणों की तुलना में प्रतिदर्शन डिज़ाइन और जाँच अनुसूची की संरचना में परिवर्तन किये।
    • PLFS में अतिरिक्त डेटा भी शामिल किया गया है, जैसे कि काम किये गए घंटों की संख्या, जिसे NSSO के पूर्ववर्ती पंचवर्षीय दौर में संग्रह नहीं किया गया था।

रोज़गार से संबंधित सरकार की पहल क्या हैं?

भारत पर्याप्त औपचारिक रोज़गार सृजन में क्यों संघर्ष करता है?

  • रोज़गार में अनौपचारिकता में वृद्धि: कृषि और निर्माण क्षेत्र में रोज़गार में वृद्धि, अनौपचारिकता में वृद्धि से संबंधित है।
    • चूँकि ये क्षेत्र आमतौर पर श्रम कानूनों द्वारा असुरक्षित होते हैं, इसलिये इन क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा या नौकरी की सुरक्षा तक पहुँच नहीं होती है।
  • तकनीकी उन्नति: AI और IoT की शुरूआत से कुशल श्रमिकों के लिये भी नौकरी की संभावनाएँ खतरे में पड़ गई हैं, जिससे रोज़गार परिदृश्य और भी जटिल हो गया है। इस बात की चिंता बढ़ रही है कि स्वचालन और डिजिटलीकरण के कारण श्रम की मांग कम हो जाएगी। 
    • IT कंपनियों में छंटनी जैसे उदाहरण दर्शाते हैं कि स्वचालन से, यहाँ तक ​​कि कुशल श्रमिकों के लिये भी रोज़गार/नौकरी के अवसर कम हो सकते हैं।
  • नौकरी चाहने वालों की बढ़ती संख्या: नौकरी तलाशने वाले शिक्षित लोगों की संख्या, विशेष रूप से स्नातक डिग्री वाले लोगों की संख्या में वृद्धि, उपयुक्त नौकरियों की उपलब्धता को लेकर चिंता उत्पन्न करती है, क्योंकि प्रतीत होता है कि ऐसे रोज़गार की कमी होती जा रही है।
  • नीतिगत त्रुटियाँ: वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण और वर्ष 2017 में खराब तरीके से क्रियान्वित वस्तु एवं सेवा कर (GST) जैसी नीतियों ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) जो भारत के अधिकांश कार्यबल को रोज़गार प्रदान करता है, को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, जिससे रोज़गार सृजन में और गिरावट आई है।
  • स्थिर सेवा क्षेत्र: परिवहन, भंडारण, संचार और वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों का उत्पादन अंश स्थिर रहा, लेकिन उनका रोज़गार प्रतिशत 6% से घटकर 5% हो गया, जबकि वित्तीय सेवाएँ 1% से नीचे गिर गईं।
  • कौशल असंतुलन: कौशल विकास पर सरकार द्वारा ध्यान केंद्रित करने के बावजूद, कुशल नौकरियों में श्रमिकों की हिस्सेदारी सत्र 2018-19 में 18% से गिरकर 2022-23 में 14% हो गई। 
    • इसके साथ ही बढ़ती असमानता और घटते श्रमिक-जनसंख्या अनुपात ने बढ़ती बेरोज़गारी चुनौतियों को उजागर किया है।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय विविधीकरण: विनिर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और तकनीकी नवाचार में निवेश से अधिक उत्पादकता एवं उच्च श्रम बल के साथ रोज़गार सृजित हो सकते हैं।
  • MSME का सुदृढ़ीकरण: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को अपनी रोज़गार क्षमता को पुनः प्राप्त करने और विस्तार करने में सहायता के लिये लक्षित वित्तीय सहायता, कर राहत एवं एक सुव्यवस्थित विनियामक परिवेश की आवश्यकता है।
  • मानव-केंद्रित तकनीक अनुकूलन: चूँकि कुछ उद्योगों जैसे संधारणीय विनिर्माण, स्वास्थ्य सेवा और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के पूर्णतः स्वचालित होने की कम संभावना होती है, इसलिये नवाचार को बढ़ावा देने के लिये इन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • उद्योग-संरेखित कौशल विकास: सरकार की कौशल पहल को वर्तमान और भविष्य की उद्योग आवश्यकताओं के साथ संरेखित किया जाना चाहिये और इसमें ग्रीन जॉब्स, AI नैतिकता, साइबर सुरक्षा और डेटा एनालिटिक्स जैसे उभरते क्षेत्रों में प्रशिक्षण शामिल होना चाहिये।
  • उच्च-संभावना वाले सेवा क्षेत्र: ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक्स और ऑनलाइन शिक्षा जैसी नए-युग की सेवाओं के विकास को प्रोत्साहित करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, जिनमें विभिन्न कौशल स्तरों के लिये रोज़गार सृजन करने की क्षमता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. आर्थिक विकास के बावजूद भारत अपनी आबादी के लिये पर्याप्त औपचारिक नौकरियाँ सृजन करने में संघर्ष क्यों करता है, उपाय बताइए?

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यत्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।

उत्तर: (c)


प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि (2013) 

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोजगार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमान्त उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (C)


मेन्स

प्रश्न. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

प्रश्न. ‘भारत में बनाइये (मेक इन इंडिया)’ कार्यक्रम की सफलता, ‘कौशल भारत’ कार्यक्रम और आमूल श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है। तर्कसम्मत दलीलों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. “जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।” क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएंगे? स्पष्ट कीजिये। (2014)

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