भारतीय अर्थव्यवस्था
रिवर्स माइग्रेशन: भारत के समक्ष एक नई चुनौती
- 04 May 2020
- 12 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में रिवर्स माइग्रेशन व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
“हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे।
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।।”
फैज़ अहमद फैज़ ने अपनी इस रचना के माध्यम से न केवल श्रमिक वर्ग को सम्मान दिलाया बल्कि उनके हक के लिये आवाज़ भी बुलंद की। यूँ तो श्रमिक वर्ग के लिये प्रत्येक राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्र में ढेरों वायदे करते हैं परंतु ज़मीनी स्तर पर जब श्रमिकों के हित की बात आती है तो ठोस उपाय करने की बजाय राजनीतिक दल इस वर्ग की समस्याओं से पल्ला झाड़ने का प्रयास करते हैं। इस समय भारत में ज़ारी लॉकडाउन के दौरान श्रमिक वर्ग को पलायन जैसी गंभीर समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है।
लॉकडाउन के दौरान होने वाला पलायन सामान्य दिनों की अपेक्षा होने वाले पलायन से एकदम उलट है। अमूमन हमने, रोज़गार पाने व बेहतर जीवन जीने की आशा में गाँवों और कस्बों से महानगरों की ओर पलायन होते देखा है परंतु इस समय महानगरों से गाँवों की ओर हो रहा पलायन नि:संदेह चिंताज़नक स्थिति को उत्पन्न कर रहा है। इस स्थिति को ही जानकारों ने रिवर्स माइग्रेशन (Reverse Migration) की संज्ञा दी है।
इस आलेख में रिवर्स माइग्रेशन, उसके कारण, इससे उत्पन्न चुनौतियाँ और समाधान के विभिन्न प्रयासों का विश्लेषण किया जाएगा।
क्या है रिवर्स माइग्रेशन?
- सामान्य शब्दों में रिवर्स माइग्रेशन से तात्पर्य ‘महानगरों और शहरों से गाँव एवं कस्बों की ओर होने वाले पलायन से है।’
- बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों का गाँव की ओर प्रवासन हो रहा है। लॉकडाउन के कुछ दिनों बाद ही काम-धंधा बंद होने की वजह से श्रमिकों का बहुत बड़ा हुजूम हजारों किलोमीटर दूर अपने घर जाने के लिये पैदल ही सड़कों पर उतर पड़ा।
- लॉकडाउन में कैद, भूख-प्यास से परेशान मजदूरों के बीच छटपटाहट और बेचैनी लाज़िमी थी। अब लंबे इंतजार के बाद सरकार की इजाज़त से उनकी घर वापसी का रास्ता खुला है। इस वक्त यह राहत की बात लग सकती है, लेकिन यह रिवर्स माइग्रेशन संपन्न व पिछड़े दोनों तरह के राज्यों के लिये आफत साबित होने वाला है।
प्रवासी श्रमिक से तात्पर्य
- एक ‘प्रवासी श्रमिक’ वह व्यक्ति होता है जो असंगठित क्षेत्र में अपने देश के भीतर या इसके बाहर काम करने के लिये पलायन करता है। प्रवासी श्रमिक आमतौर पर उस देश या क्षेत्र में स्थायी रूप से रहने का इरादा नहीं रखते हैं जिसमें वे काम करते हैं।
- अपने देश के बाहर काम करने वाले प्रवासी श्रमिकों को विदेशी श्रमिक भी कहा जाता है। उन्हें प्रवासी या अतिथि कार्यकर्ता भी कहा जा सकता है, खासकर जब उन्हें स्वदेश छोड़ने से पहले मेजबान देश में काम करने के लिये भेजा या आमंत्रित किया गया हो।
भारत का विशाल असंगठित क्षेत्र
- भारत का असंगठित क्षेत्र मूलतः ग्रामीण आबादी से विकसित हुआ है और इसमें अधिकांशतः वे लोग शामिल हैं जो गाँव में परंपरागत कार्य करते हैं और शहरों में ये लोग अधिकतर खुदरा कारोबार, थोक कारोबार, विनिर्माण उद्योग, परिवहन, भंडारण और निर्माण उद्योग में काम करते हैं।
- इनमें अधिकतर ऐसे लोग है जो फसल की बुआई और कटाई के समय गाँवों में चले जाते हैं और बाकी समय शहरों-महानगरों में काम करने के लिये आजीविका तलाशते हैं।
- भारत में लगभग 50 करोड़ का कार्यबल है, जिसका 90% हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है।
- इन उद्यमों में काम करने वाले श्रमिक वर्ष 1948 के फैक्टरी अधिनियम जैसे किसी कानून के अंतर्गत नहीं आते हैं।
अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका
- भारत में आंतरिक प्रवासन के तहत एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने वाले श्रमिकों की आय देश की जीडीपी की लगभग 6 प्रतिशत है।
- ये श्रमिक इसका एक तिहाई यानी जीडीपी का लगभग दो प्रतिशत घर भेजते हैं। मौज़ूदा जीडीपी के हिसाब से यह राशि 4 लाख करोड़ रुपए है।
- यह राशि मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में भेजी जाती है।
- वर्ष 1991 से 2011 के बीच प्रवासन में 2.4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई थी, तो वहीं वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसकी वार्षिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही। इन आँकड़ों से पता चलता है कि प्रवासन से श्रमिकों और उद्योगों दोनों को ही लाभ प्राप्त हुआ।
- श्रम गहन उद्योगों अर्थात ज्वैलरी, टेक्सटाइल, लेदर और ऑटोपार्ट्स सेक्टर में बड़ी तादाद में श्रमिक काम करते हैं।
- जब अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है तो इन श्रमिकों को बोनस, इन्क्रिमेंट, मोबाइल फोन रिचार्ज़, आने-जाने का किराया और कैंटीन जैसी सुविधाएँ देकर कंपनियाँ इन्हें अपने साथ जोड़कर रखना चाहती हैं।
श्रमिकों के प्रवासन से उत्पन्न चुनौतियाँ
- श्रमिकों के रिवर्स माइग्रेशन से देश के बड़े औद्योगिक केंद्रों में चिंता व्याप्त है।
- वर्तमान में भले ही उद्योगों में काम कम हो गया है या रुक गया है परंतु लॉकडाउन समाप्त होते ही श्रमिकों की मांग में तीव्र वृद्धि होगी। श्रमिकों की पूर्ति न हो पाने से उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा।
- लॉकडाउन समाप्त होने के पश्चात श्रमिक वर्ग के महानगरों में स्थित औद्योगिक इकाईयों में कार्य हेतु वापस न लौटने की भी आशंका है।
- पंजाब, हरयाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि कार्य हेतु बड़े पैमाने पर श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, रिवर्स माइग्रेशन की स्थिति में इन राज्यों की कृषि गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं।
- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बंगलुरू और हैदराबाद जैसे अन्य महानगरों को दैनिक कार्यों में सहायता देने वाले श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
- बड़ी संख्या में श्रमिकों के पलायन से महानगरों को प्राप्त होने वाला राजस्व भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाएगा।
- श्रमिकों के पलायन से रियल एस्टेट सेक्टर व्यापक रूप से प्रभावित हो सकता है। भवनों का निर्माण कार्य रुक जाने से परियोजना की लागत बढ़ने की संभावना है।
रिवर्स माइग्रेशन से पिछड़े राज्यों पर प्रभाव
- रिवर्स माइग्रेशन के परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों पर अत्यधिक आर्थिक दबाव पड़ेगा। यह सर्वविदित है कि महानगरों में कार्य कर रहे श्रमिक अपने गृह राज्य में एक बड़ी राशि भेजते हैं, जिससे इन राज्यों को बड़ी आर्थिक सहायता प्राप्त होती थी।
- बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य अपेक्षाकृत रूप से औद्योगीकरण में पिछड़े हुए हैं, रिवर्स माइग्रेशन के परिणामस्वरूप इन राज्यों में रोज़गार का संकट भीषण रूप ले रहा है।
- रोज़गार के अभाव में इन राज्यों में सामाजिक अपराधों जैसे- लूट, डकैती, भिक्षावृत्ति और देह व्यापार की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है, जिससे राज्य की कानून व्यवस्था और छवि दोनों खराब होने की आशंका है।
- रोज़गार के संकट से इन राज्यों में महिलाओं की स्थिति में गिरावट होगी क्योंकि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पूर्व में भी आर्थिक वंचनाओं के दौरान महिलाओं को प्रतिकूल परिवर्तनों का सामना करना पड़ा है।
आगे की राह
- यदि संपन्न राज्य प्रवासी श्रमिकों के रिवर्स माइग्रेशन को नहीं रोक पाते हैं, तो उद्योग अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता खो देंगे क्योंकि श्रम लागत में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- कार्यस्थलों पर श्रम कानूनों का प्रवर्तन और व्यापक कानून का अधिनियमन किया जाना चाहिये, मौजूदा श्रम कानूनों का कठोर प्रवर्तन आवश्यक है।
- प्रवासी श्रमिकों के लिये पूरे भारत में श्रम बाज़ार को विभाजित किया जाना चाहिये और कार्यकाल की सुरक्षा के साथ एक अलग श्रम बाज़ार विकसित किया जाना चाहिये।
- प्रवासी श्रमिक आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का लाभ उठा सकें इसके लिये सरकार द्वारा उन्हें पहचान-पत्र जारी किया किया जा सकता है।
- रिवर्स माइग्रेशन के प्रभाव को सीमित करने के लिये पिछड़े राज्यों को छोटे और मध्यम उद्योगों जैसे- ग्रामीण और कुटीर उद्योग, हथकरघा, हस्तशिल्प तथा खाद्य प्रसंस्करण एवं कृषि उद्योगों का विकास करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये।
प्रश्न- रिवर्स माइग्रेशन से आप क्या समझते हैं? अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका का उल्लेख करते हुए प्रवासन से उत्पन्न चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।