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वीमेन, पॉवर एंड कैंसर: लैंसेट

  • 30 Sep 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वीमेन, पॉवर एंड कैंसर: लैंसेट, कैंसर, लैंगिक असमानता, मानव विकास सूचकांक, जीवन के खोए हुए वर्ष (YLLs), लैंसेट ग्लोबल हेल्थ, हेपेटाइटिस B और C संक्रमण

मेन्स के लिये:

वीमेन, पॉवर एंड कैंसर: लैंसेट, कैंसर की रोकथाम

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ ने "वीमेन, पॉवर एंड कैंसर" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि कैसे महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक उदासीनता ने कैंसर की रोकथाम तक उनकी पहुँच में देरी की है।

अध्ययन की पद्धति:

  • इस अध्ययन में 30-69 वर्ष की आयु में समय से पहले होने वाली मृत्यु का अनुमान लगाया गया है और इन्हें पूरे विश्व के 185 देशों में ऐसी मृत्यु के रूप में पहचाना गया है जिन्हें रोका जा सकता है या इलाज किया जा सकता है।
  • इस जनसंख्या-आधारित अध्ययन के लिये देश, कैंसर, लिंग और आयु समूहों के आधार पर कैंसर के कारण होने वाली अनुमानित मृत्यु संबंधी आँकड़े इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के GLOBOCAN 2020 डेटाबेस से प्राप्त किये गए थे।
  • 36 कैंसर प्रकारों के लिये अपरिष्कृत और आयु-समायोजित कैंसर-विशिष्ट जीवन के खोए हुए वर्ष (YLLs) की गणना की गई।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • कैंसर से संबंधित मृत्यु दर और भार: 
    • वर्ष 2020 में पूरे विश्व में कैंसर से संबंधित 5.28 मिलियन असामयिक मृत्यु हुईं, जिनकी आयु 30 से 69 वर्ष के बीच थी।
    • इन असामयिक मौतों के परिणामस्वरूप 182.8 मिलियन वर्ष की जीवन हानि (Years Of Life Lost- YLLs) का महत्त्वपूर्ण बोझ पड़ा, जो सभी आयु समूहों में कैंसर से होने वाले कुल YLL का 68.8% है।  
  • रोकथाम और उपचार हेतु प्रयास:
    • समय-पूर्व YLL में से 68% को प्राथमिक रोकथाम या शीघ्र पता लगाने के प्रयासों के माध्यम से रोकने योग्य माना गया है।
    • शेष 32.0% YLL को उपचार योग्य माना गया, जहाँ उपचारात्मक उद्देश्य से प्रभावी साक्ष्य-आधारित उपचार से मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
  • लैंगिक असमानताएँ:
    • पुरुषों में महिलाओं (पुरुषों के लिये 70.3% बनाम महिलाओं हेतु 65.2%) की तुलना में रोकथाम योग्य समय-पूर्व YLL का अनुपात अधिक था।
    • हालाँकि इलाज योग्य समय-पूर्व YLL का अनुपात पुरुषों (महिलाओं के लिये 34.8% बनाम पुरुषों हेतु 29.7%) की तुलना में महिलाओं में अधिक था।
  • मानव विकास सूचकांक (HDI) और मृत्यु दर:
    • कम HDI स्तर वाले देशों में बहुत उच्च HDI देशों की तुलना में समय से पहले उम्र में YLL का अनुपात अधिक था।
    • मध्यम से बहुत उच्च HDI देशों में रोकथाम योग्य समय-पूर्व YLL में फेफड़ों का कैंसर एक प्रमुख योगदानकर्ता था, जबकि कम HDI देशों में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर का नेतृत्व किया गया था।
    • HDI के सभी स्तरों में कोलोरेक्टल और स्तन कैंसर प्रमुख उपचार योग्य कैंसर थे।

भारत के संबंध में अध्ययन की मुख्य बातें:

  • भारत में महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौतें:
    • भारत में महिलाओं में कैंसर से होने वाली लगभग 63% मौतों को जोखिम कारकों को कम करके स्क्रीनिंग अथवा शीघ्र निदान द्वारा रोका जा सकता था
    • उचित तथा समय पर उपचार से 37% मौतों को रोका जा सकता था।
  • महिलाओं के लिये कैंसर देखभाल को प्रभावित करने वाली चुनौतियाँ और कारक:
    • महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक उदासीनता, जागरूकता की कमी और प्राथमिक देखभाल स्तर पर गुणवत्ता विशेषज्ञता की अनुपस्थिति ने महिलाओं के लिये कैंसर की रोकथाम, पहचान तथा देखभाल तक पहुँच में बाधा उत्पन्न की।
  • स्वास्थ्य देखभाल में लैंगिक अंतर और भेदभाव:
    • कैंसर देखभाल में लैंगिक असमानता के कारण एक महिला की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को खारिज कर दिया गया अथवा नज़रअंदाज कर दिया गया
    • महिलाओं के सत्ता की स्थिति में होने की संभावना कम है और लैंगिक पूर्वाग्रह और भेदभाव के कारण उन्हें अपनी देखभाल का निर्धारण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
  • भारत में महिलाओं के बीच प्रमुख जोखिम कारक:
    • भारत में महिलाओं में शीर्ष तीन कैंसर में स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और डिम्बग्रंथि कैंसर शामिल हैं।
      • हर आठ मिनट में एक महिला की सर्वाइकल कैंसर से मौत हो जाती है।
    • भारतीय महिलाओं में कैंसर के लिये संक्रमण सबसे बड़ा जोखिम कारक बना हुआ है, जो 23% मौतों का कारण बनता है।
      • कैंसर के खतरे में वृद्धि करने वाले संक्रमणों में HPV वायरस शामिल है, जो सर्वाइकल कैंसर का कारण बनता है। साथ ही यह हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमण यकृत कैंसर के खतरे में वृद्धि करता है।
      • दूसरा महत्त्वपूर्ण जोखिम कारक तंबाकू है, कैंसर से होने वाली 6% मौतें इसी कारण होती हैं।
      • भारत में कैंसर से होने वाली मृत्यु में शराब के सेवन से होने वाले नुकसान और मोटापे का योगदान 1% है।
  • आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:
    • ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों में समय से पहले कैंसर से होने वाली मौतों के परिणामस्वरूप उत्पादकता में कमी के कारण 46.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ।
    • भारत के कुल राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यय का लगभग 3.66 प्रतिशत महिलाओं की अवैतनिक कैंसर देखभाल (unpaid cancer care-giving) पर खर्च होता है।

रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • कैंसर की देखभाल के लिये एक नए नारी-केंद्रित और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसका लक्ष्य कैंसर की उचित रोकथाम, पहचान तथा उपचार तक पहुँच में महिलाओं के समक्ष आने वाली लैंगिक असमानताओं व चुनौतियों का समाधान करना है।
  • स्वास्थ्य प्रणाली तक महिलाओं की पहुँच को प्रभावित करने वाली दीर्घकालिक भेदभावपूर्ण प्रथाओं का समाधान करते हुए लैंगिक रूप से अधिक समावेशी नीतियों तथा दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है।
  • समय से पहले कैंसर की असमानताओं को कम करने के लिये, शीघ्र निदान, जाँच, संपूर्ण उपचार, जोखिम कारक में कमी और टीकाकरण के लिये विशेष कार्यक्रम तैयार किये जाने की आवश्यकता है।
  • स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का शीघ्र पता लगाने और रोकथाम के लिये स्क्रीनिंग महत्त्वपूर्ण है।
    • हर महीने स्तनों की स्व-जाँच और प्रत्येक वर्ष डॉक्टर से क्लिनिकल जाँच की सलाह दी जाती है।
    • 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को स्तन कैंसर की जाँच के लिये वर्ष में एक बार मैमोग्राफी करानी चाहिये।
    • 25 से 65 वर्ष की आयु की महिलाओं को अपने गर्भाशय ग्रीवा पर कैंसर-पूर्व वृद्धि की जाँच के लिये पैप स्मीयर परीक्षण करवाना चाहिये।

कैंसर से मृत्यु के प्रति महिलाओं की अधिक संवेदनशीलता 

  • भारत में कई महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। विकासशील मस्तिष्क कैंसर से उत्पन्न होने वाले सिरदर्द को आमतौर पर कई मामलों में नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
    • महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक उदासीनता, जागरूकता की कमी और प्राथमिक स्तर पर गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल की अनुपस्थिति को संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • दिव्यांग महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियाँ, जिनमें कम उम्र में विवाह, शिक्षा की कमी और वित्तीय निर्भरता शामिल है, चिकित्सा सहायता लेने तथा उपचार जारी रखने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं।
  • ज्ञान की कमी और स्थानीय स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा निदान में देरी से मरीज़ को लेकर पूर्वानुमान जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
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