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मानव विकास सूचकांक (HDI)

  • 05 Jan 2021
  • 9 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में मानव विकास सूचकांक में भारत के निराशाजनक प्रदर्शन व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

मानव विकास सूचकांक (HDI) जिसमें जीवन प्रत्याशा, शिक्षा या ज्ञान की पहुँच और आय या जीवन स्तर के संकेतकों को शामिल किया जाता है,  जीवन की गुणवत्ता का स्तर तथा इसमें परिवर्तन से जुड़े महत्त्वपूर्ण आँकड़े प्रस्तुत करता है। यह सूचकांक भारत और पाकिस्तान के दो प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ‘महबूब उल हक’ (पाकिस्तान ) और अमर्त्य सेन (भारत) की देन है। शुरुआत में इसे जीडीपी के विकल्प के रूप में लॉन्च किया गया था, क्योंकि यह वृद्धि प्रक्रिया मानव विकास की केंद्रीयता पर ज़ोर देती है।  स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत अपनी अर्थव्यवस्था में कई गुना वृद्धि करने में सफल रहा है परंतु HDI के संदर्भ में भारत का प्रदर्शन बहुत अधिक प्रभावी नहीं रहा है। पिछले तीन दशकों का HDI डेटा देखकर पता चलता है कि HDI स्कोर के संदर्भ में भारत की औसत वार्षिक वृद्धि दर मात्र 1.42% ही रही है।

ऐसे में यदि भारत को एक महाशक्ति बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है तो इसे अपनी आबादी में कमज़ोर वर्गों के सामाजिक और आर्थिक बोझ को कम करने पर विशेष ध्यान देना होगा।

भारत द्वारा मानव विकास के क्षेत्र में सुधार: 

  • संयुक्त राष्ट्र मानव विकास कार्यक्रम की मानव विकास रिपोर्ट-2019 के अनुसार, वर्ष 2005 से भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय दोगुने से अधिक हो गई है। साथ ही वर्ष 2005-06 के बाद के दशक में बहुआयामी गरीबों की श्रेणी में आने वाले लोगों की संख्या में 271 मिलियन से अधिक की गिरावट आई है। 
  • इसके अतिरिक्त मानव विकास के ‘बुनियादी क्षेत्रों’ में व्याप्त असमानताओं में भी कमी आई है। उदाहरण के लिये ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर रहने वाले समूह शिक्षा प्राप्ति के मामले में बाकी आबादी की बराबरी कर रहे हैं।  

HDI में भारत के खराब प्रदर्शन का कारण:  

वर्ष 2019 के मानव विकास सूचकांक में भारत 6,681 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय के साथ 131वें स्थान पर रहा, जो वर्ष 2018 (130वें स्थान) की तुलना में भारत को एक स्थान पीछे ले जाता है। सामाजिक और आर्थिक असमानता के नकारात्मक प्रभाव का बोझ भारत के इस खराब प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण रहा है, जबकि अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भारत विश्व की शीर्ष 6 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।  इसके अतिरिक्त भारत के इस खराब प्रदर्शन के अन्य प्रमुख कारणों में से कुछ निम्नलिखित हैं: 

  • आय असमानता में वृद्धि: आय के मामले में बढ़ती असमानता मानव विकास के अन्य मानकों में खराब प्रदर्शन का कारण बनती है। उच्च आय असमानता वाले देशों में पीढ़ीगत  आय गतिशीलता में भी कमी देखी गई है। 
    • इससे प्रभावित परिवारों में  यह असमानता बच्चों में जन्म से ही जुड़ जाती है और यह उनके लिये गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अवसरों तक पहुँच को सीमित करती है।
    • इसके अलावा देश में आय असमानता में वृद्धि की लहर देखी जा रही है।  वर्ष 2000 और वर्ष 2018 के बीच देश की निचली 40% आबादी (आर्थिक दृष्टि से) की आय में हुई वृद्धि मात्र 58%थी जो कि देश की पूरी आबादी की औसत आय वृद्धि  (122%) से काफी कम है।
  • लैंगिक असमानता: आँकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं की प्रति व्यक्ति आय पुरुषों की तुलना में मात्र 21.8% ही थी, जबकि विश्व के अन्य विकसित देशों में यह दोगुने से अधिक (लगभग 49%) थी।
    • भारत में कामकाजी आयु वर्ग की केवल 20.5% महिलाएँ श्रमिक वर्ग में शामिल थीं, जो कि एक निराशाजनक महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) की ओर संकेत करता है।   
  • प्रभाव:  इन कारकों के संचयी प्रभाव का प्रसार कई पीढ़ियों तक देखने को मिलता है। यह पीढ़ीगत दुश्चक्र ही समाज के निचले वर्ग के लोगों के लिये अवसरों को सीमित करता है।

आगे की राह: 

  • उचित आय वितरण: यद्यपि आर्थिक संसाधनों का आकार मानव विकास को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है परंतु  इन संसाधनों का वितरण और आवंटन भी मानव विकास के स्तर को निर्धारित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
    • कई वैश्विक अध्ययनों से पता चलता है कि एक मध्यम सामाजिक व्यय के चलते भी अधिक प्रभावी आय वितरण के साथ उच्च विकास (High Growth) के माध्यम से मानव विकास को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
    • उदाहरण के लिये दक्षिण कोरिया और ताइवान ने प्रारंभिक भूमि सुधारों के माध्यम से आय वितरण में सुधार किया।
  • सामाजिक अवसंरचना में निवेश: शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के सार्वभौमिकीकरण के माध्यम से वंचित वर्गों को गरीबी के दुश्चक्र से बाहर निकाला जा सकता है।
    • लोगों के लिये जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखना और इसमें निरंतर सुधार करना, नवीन चुनौतियों (जैसे शहरीकरण, आवास की कमी, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच आदि) से निपटने के लिये बनाई गई नीतियों पर निर्भर करेगी। 
    • वित्तीय ज़रूरतों का प्रबंधन: राजस्व सृजन के नए स्रोतों के निर्माण के पारंपरिक दृष्टिकोण को व्यवस्थित करना। सब्सिडी के तर्कसंगत लक्ष्यीकरण, सामाजिक क्षेत्र के विकास हेतु  निर्धारित राजस्व का विवेकपूर्ण उपयोग आदि जैसे कदम HDI में सुधार के लिये आवश्यक वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं।  
  • सुशासन : परिणामी बजट, सामाजिक ऑडिट और सहभागी लोकतंत्र आदि नवीन तरीकों के माध्यम से सामाजिक क्षेत्र के विकास में संलग्न परियोजनाओं और गतिविधियों के प्रभावी प्रदर्शन मूल्यांकन जैसे प्रयासों से सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
  • लैंगिक सशक्तीकरण:  महिलाएँ मानव विकास का अभिन्न अंग हैं, अतः सरकार को लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण में निवेश करना चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत के मानव विकास सूचकांक में व्यापक सुधार किया जा सकता है, परंतु यह तभी संभव होगा जब राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध सरकार द्वारा ऐसी समावेशी नीतियों को लागू किया जाए जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण को मज़बूत करने के साथ ही लैंगिक भेदभाव को समाप्त करते हुए एक अधिक समतावादी व्यवस्था की ओर ले जाती हैं।

HDI

अभ्यास प्रश्न:  एक बेहतर समतावादी व्यवस्था की स्थापना के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण को मज़बूत करने के साथ ही लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना बहुत आवश्यक है। टिप्पणी कीजिये।

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