अमेरिका-भारत परमाणु सहयोग और स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर | 07 Oct 2024

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर, यूरेनियम, जीवाश्म ईंधन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, परमाणु अप्रसार संधि, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी

मुख्य परीक्षा के लिये:

परमाणु ऊर्जा से संबंधित भारत का विकास, परमाणु ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के भारत के तरीके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल के घटनाक्रमों से भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौते के पुनरुद्धार पर प्रकाश पड़ा है जो होल्टेक इंटरनेशनल के स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR-300) पर केंद्रित है।

  • होलटेक का उद्देश्य भारत की ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये भारत के साथ सहयोग करना तथा SMR परिनियोजन के लिये मौजूदा कोयला संयंत्रों का उपयोग कर एवं संयुक्त विनिर्माण की संभावना तलाश कर स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करना है, जिससे भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण उद्देश्यों के साथ समन्वय स्थापित हो सके।

SMR-300 क्या है?

  • परिचय: SMR-300 एक उन्नत दाबित हल्का जल रिएक्टर है, जिसमें विखंडन के माध्यम से कम से कम 300 मेगावाट (MWe) विद्युत शक्ति उत्पन्न करने के लिये लो इनरिच्ड यूरेनियम ईंधन का उपयोग होता है।
  • कॉम्पैक्ट डिज़ाइन: SMR-300 के लिये पारंपरिक रिएक्टरों की तुलना में काफी कम भूमि की आवश्यकता होती है जिससे यह भारत में मौजूदा कोयला संयंत्रों के लिये उपयुक्त है।
  • स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिये समर्थन: यह प्रौद्योगिकी भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है जो बढ़ती ऊर्जा मांगों (विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा केंद्रों जैसे प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में) को देखते हुए जीवाश्म ईंधन के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी विकल्प प्रदान करती है।
    • SMR विकसित करके भारत का लक्ष्य वैश्विक परमाणु बाज़ार में एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में अपनी स्थिति बनाना है तथा रूस और चीन जैसे स्थापित हितधारकों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना है।
  • भारत में SMR-300 के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियाँ: 
    • परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010: इस विधि के तहत मुख्य रूप से उपकरण निर्माताओं पर दायित्व डालकर विदेशी परमाणु आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
      • परिणामस्वरूप दुर्घटनाओं से उत्पन्न होने वाली संभावित वित्तीय देनदारियों की चिंता के कारण कई संभावित साझेदार भारत के परमाणु क्षेत्र में निवेश करने से पीछे हट रहे हैं।
    • निर्यात विनियमन: अमेरिकी परमाणु ऊर्जा अधिनियम,1954 के तहत होलटेक जैसी अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारत में परमाणु उपकरण बनाने पर प्रतिबंध होने से SMR घटकों के स्थानीय उत्पादन की संभावना जटिल हो जाती है।
    • विधायी सीमाएँ: भारत के मौजूदा विधायी ढाँचे में दायित्व संबंधी कानूनों में संशोधन करने के लिये लचीलेपन का अभाव है, जिससे विदेशी संस्थाओं के साथ सहज सहयोग में बाधा उत्पन्न होती है।
    • भारत में SMR-300 से संबंधित भविष्य की संभावनाएँ: SMR प्रौद्योगिकी पर सहयोग से अमेरिका-भारत संबंधों में वृद्धि होने के साथ दोनों देशों की तकनीकी बाधाओं और श्रम लागत चुनौतियों का समाधान हो सकता है।

भारत-अमेरिका परमाणु समझौता

  • भारत -अमेरिका परमाणु समझौते को अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते के रूप में भी जाना जाता है, जिस पर वर्ष 2008 में हस्ताक्षर किये गए थे। यह समझौता वर्ष 2005 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा दिये गए संयुक्त वक्तव्य के साथ हुआ था।
    • इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु सहयोग को सुविधाजनक बनाना था, जो अमेरिकी नीति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव था, जिसने पहले परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर न करने के कारण भारत के साथ परमाणु व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया था।
  • भारत-अमेरिका परमाणु समझौता, जिसे प्रायः "123 समझौता" कहा जाता है, अमेरिकी कंपनियों को भारत के असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिये परमाणु ईंधन और प्रौद्योगिकी की आपूर्ति करने की अनुमति देता है।
  • भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के एक भाग के रूप में, भारत ने अपने असैन्य परमाणु कार्यक्रम के लिये अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) से निरीक्षण की अनुमति देने की प्रतिबद्धता जताई थी।
  • भारत को लाभ: भारत को यूरेनियम संवर्द्धन और प्लूटोनियम के पुनर्संसाधन हेतु सामग्री और उपकरण समेत अमेरिका से दोहरे उपयोग वाली परमाणु प्रौद्योगिकी को क्रय करने की पात्रता प्राप्त हुई।
    • इस समझौते से भारत की ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि होने तथा परमाणु ऊर्जा के माध्यम से इसकी बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने में मदद मिलने की उम्मीद थी।

स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) क्या हैं?

  • परिचय: IAEA के अनुसार, स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) उन्नत परमाणु रिएक्टर होते हैं, जिन्हें बेहतर सुरक्षा और दक्षता के लिये डिज़ाइन किया गया है। उनकी विद्युत उत्पादन क्षमता आमतौर पर 30 MWe से लेकर 300 MWe से अधिक तक होती है। 
  • विशेषताएँ:
    • स्माॅल: पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों की तुलना में भौतिक रूप से छोटे, जिससे विभिन्न स्थानों पर लचीले ढंग से तैनाती की सुविधा मिलती है।
    • मॉड्यूलर: कारखाने में संयोजन के लिये डिज़ाइन किया गया, जिससे आसान स्थापना के लिये एक पूर्ण इकाई के रूप में परिवहन संभव हो सके।
    • रिएक्टर: विद्युत उत्पादन या प्रत्यक्ष अनुप्रयोगों के लिये ऊष्मा उत्पन्न करने हेतु परमाणु विखंडन का उपयोग करते हैं।
  • SMR प्रौद्योगिकी की वैश्विक स्थिति: वैश्विक स्तर पर 80 से अधिक SMR, उन्नत डिज़ाइन और लाइसेंसिंग के विभिन्न चरणों में हैं, जिनमें से कुछ पहले से ही संचालित हैं। ये डिज़ाइन विभिन्न श्रेणियों में आते हैं।
    • भूमि-आधारित जल-शीतित SMR: इसमें परिपक्व प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए इंटीग्रल प्रेशराइज्ड वॉटर रिएक्टर (PWR) और बॉयलिंग वॉटर रियेक्टर (BWR) जैसे डिज़ाइन शामिल हैं।
    • समुद्री-आधारित जल-शीतित SMR: समुद्री वातावरण में तैनाती के लिये डिज़ाइन किया गया है, जैसे जहाज़ों पर स्थापित तैरती इकाइयाँ।
    • हाई टेंपरेचर गैस-कूल्ड (HTGR): 750 डिग्री सेल्सियस से अधिक ताप उत्पन्न करने में सक्षम, जिससे ये विद्युत उत्पादन और विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिये कुशल बन जाते हैं।
    • लिक्विड मेटल कूल्ड फास्ट न्यूट्रॉन स्पेक्ट्रम SMR (LMFR): सोडियम और सीसा जैसे शीतलक के साथ फास्ट न्यूट्रॉन प्रौद्योगिकी का उपयोग।
    • मोल्टन साल्ट रिएक्टर SMR (MSR): इसमें मोल्टन फ्लोराइड या क्लोराइड लवण को शीतलक के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे लंबे ईंधन चक्र और ऑनलाइन ईंधन आपूर्ति की क्षमता प्राप्त होती है।
    • माइक्रो रिएक्टर (MR): अत्यंत छोटे SMR, जो विभिन्न शीतलकों का उपयोग करके आमतौर पर 10 मेगावाट तक विद्युत शक्ति उत्पन्न करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।

नोट: अब तक, विश्व स्तर पर दो SMR परियोजनाएँ परिचालन स्तर पर पहुँच चुकी हैं। जिसमें रूस की अकादमिक लोमोनोसोव फ्लोटिंग पॉवर यूनिट और चीन की हाई टेंपरेचर गैस-कूल्ड (HTGR) पेबल-बेड शामिल है।

SMR के लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?

SMR के लाभ

SMR से संबंधित चुनौतियाँ

SMR को अलग-अलग विद्युत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बढ़ाया या घटाया जा सकता है। मौज़ूदा विद्युत संयंत्रों को शून्य-उत्सर्जन ईंधन से पूरक बनाया जा सकता है या पुराने थर्मल पॉवर स्टेशनों का पुनः उपयोग किया जा सकता है।

विभिन्न SMR प्रौद्योगिकियों की अलग-अलग विनियामक आवश्यकताएँ होती हैं। बड़े पैमाने पर तैनाती के लिये उचित तकनीक को प्राथमिकता देना और प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (TRL) में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है।

SMR आधारित विद्युत संयंत्रों में ईंधन भरने में प्रत्येक 3 से 7 वर्ष का समय लगता है, जबकि पारंपरिक संयंत्रों में ईंधन भरने में 1 से 2 वर्ष का समय लगता है, तथा कुछ संयंत्रों को ईंधन भरे बिना 30 वर्षों तक संचलित होने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

SMR प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये आपूर्ति शृंखला के मुद्दे महत्त्वपूर्ण हैं। लचीली वैश्विक आपूर्ति शृंखला निर्माण के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है 

SMR निष्क्रिय सुरक्षा सुविधाओं का उपयोग करते हैं जो बिना विद्युत या मानवीय हस्तक्षेप के रिएक्टर को बंद करने और ठंडा करने के लिये भौतिकी पर निर्भर करते हैं, जिससे अंतर्निहित सुरक्षा सुनिश्चित होती है। 

SMR से रेडियोधर्मी अपशिष्ट उत्पन्न होता है जिसके लिये भंडारण और निपटान सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जिससे सामाजिक-राजनीतिक प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है।

नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जिससे न्यून कार्बन वाले सह-उत्पाद प्राप्त होते हैं। दैनिक और मौसमी आधार पर ऊर्जा आपूर्ति में उतार-चढ़ाव को कम करता है।

अभिनव डिज़ाइनों के साथ अनुभव की कमी सुरक्षा मानक अनुमोदन को जटिल बनाती है। परमाणु आपदाओं के भय से सार्वजनिक विरोध उत्पन्न हो सकता है, जिससे चिंताओं को दूर करने के लिये प्रभावी जागरूकता और सहभागिता की आवश्यकता होती है।

भारत की SMR विकास आकांक्षाओं में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • तकनीकी असमानताएँ: भारत की वर्तमान परमाणु प्रौद्योगिकी, जो मुख्य रूप से भारी जल और प्राकृतिक यूरेनियम पर आधारित है, विश्व स्तर पर प्रमुख हल्के जल रिएक्टरों (LWRs) के साथ समन्वय करने में असमर्थ होती जा रही है। 
    • SMR में परिवर्तन के लिये, जिसमें विभिन्न प्रकार के ईंधन का उपयोग किया जा सकता है, महत्त्वपूर्ण तकनीकी अनुकूलन और विशेषज्ञता विकास की आवश्यकता होती है।
  • उच्च बाह्य लागत: हालाँकि SMR को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिये डिज़ाईन किया गया है, लेकिन सुरक्षित रिएक्टरों के निर्माण और प्रयुक्त परमाणु ईंधन के प्रबंधन की लागत परियोजना के व्यय को काफी बढ़ा सकती है, जिससे आर्थिक व्यवहार्यता जटिल हो सकती है।
  • नियामक संबंधी बाधाएँ: मौज़ूदा परमाणु नियामक ढाँचे मुख्य रूप से बड़े रिएक्टरों के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, जिनमें SMR-विशिष्ट विशेषताओं को समायोजित करने के लिये अद्यतनीकरण की आवश्यकता है।
    • विविध SMR प्रौद्योगिकियों और डिज़ाइनों को संबोधित करने वाले एक व्यापक विनियामक ढाँचे की स्थापना महत्त्वपूर्ण है।
  • सार्वजनिक स्वीकृति और सुरक्षा धारणा: नवीन SMR डिज़ाइनों के संबंध में लोकसूचना का अभाव, चेरनोबिल आपदा जैसी परमाणु आपदाओं के भय के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताओं और विरोध उत्पन्न हो सकता है।
  • मानव संसाधन विकास: SMR की तैनाती को बढ़ाने के लिये बुनियादी ढाँचे और विनिर्माण सुविधाओं में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है। भारत में SMR संचालन में विशेषज्ञता वाले कुशल कार्यबल की कमी है जो प्रौद्योगिकी के सफल कार्यान्वयन और स्थिरता के लिये आवश्यक है।

आगे की राह

  • भारत को डिज़ाइन और परिचालन विश्वसनीयता को प्रमाणित करने के लिये SMR प्रोटोटाइप का निर्माण करना चाहिये। वर्ष 2030 के दशक की शुरुआत तक अपने प्रकार की पहली SMR इकाइयों को चालू करने का लक्ष्य स्थापित करना, जिससे ऊर्जा संक्रमण में सुविधा होगी।
  • नवीन SMR डिज़ाइनों को समायोजित करने के लिये मौज़ूदा परमाणु विनियमों की समीक्षा करना और उन्हें अद्यतन करना। सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिये परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के अधीन एक व्यापक नियामक ढाँचा स्थापित करना।
  • निजी निवेश को आकर्षित करने और परियोजना जोखिमों को कम करने के लिये हरित वित्त विकल्पों सहित नवीन वित्तपोषण मॉडल विकसित करना।
  • कौशल अंतराल की पहचान करना और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के माध्यम से SMR परिचालन के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों को लागू करना।
  • निरंतर SMR उत्पादन के लिये परमाणु आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ करने के लिये रणनीति विकसित करना। परमाणु अप्रसार संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये IAEA और अन्य देशों  के सहयोग से SMR डिज़ाइन में सुरक्षा उपायों को एकीकृत करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: स्माॅल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) प्रौद्योगिकी अपनाने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, तथा उनकी सफल तैनाती को बढ़ावा देने के लिये सरकार को क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न. परमाणु रिएक्टर में भारी पानी कार्य करता है? (वर्ष 2011)

(a) न्यूट्रॉन की गति को धीमा कर देना 
(b) न्यूट्रॉन की गति बढ़ाना 
(c) रिएक्टर को ठंडा करना 
(d) परमाणु प्रतिक्रिया को रोकना

उत्तर: (a)


मुख्य परीक्षा

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)