वैश्विक ऋण संकट पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट | 11 Jun 2024

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक ऋण रुझान और निहितार्थ, ऋण, मंदी, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF)

मेन्स के लिये:

वैश्विक ऋण रुझान और निहितार्थ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास (UN Trade and Development- UNCTAD) द्वारा जारी "ऋण की दुनिया 2024: वैश्विक समृद्धि पर बढ़ता बोझ" शीर्षक रिपोर्ट में विश्व में अभूतपूर्व वैश्विक ऋण संकट का खुलासा किया गया है।

  • वर्तमान में लगभग 3.3 बिलियन लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ ऋण पर ब्याज का भुगतान शिक्षा या स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय से अधिक है।

वैश्विक ऋण क्या है?  

  • परिचय: ऋण वह धनराशि है जो व्यक्ति उधार लेता है और बाद में उसे चुकाना होता है।
    • वैश्विक ऋण से तात्पर्य विश्व भर में सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा ऋण ली जाने वाली कुल बकाया राशि से है।
      • इसमें सार्वजनिक और निजी दोनों ऋण शामिल हैं।
  • वैश्विक ऋण की संरचना:
    • सार्वजनिक ऋण: यह वह धनराशि है जो सरकार द्वारा घरेलू और विदेशी ऋणदाताओं को दी जाती है।
      • इसका वित्तपोषण आमतौर पर बॉण्ड, ट्रेज़री बिल या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से ऋण जारी करके किया जाता है।
    • निजी ऋण: यह वह धनराशि है जो व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा बैंकों, उधारदाताओं तथा अन्य वित्तीय संस्थानों को दी जाती है। 
      • इसमें बंधक, कॉर्पोरेट बॉण्ड, छात्र ऋण और क्रेडिट कार्ड ऋण शामिल हैं।

रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?

  • सार्वजनिक ऋण में तीव्र वृद्धि:
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थान (वित्तीय संस्थानों का एक वैश्विक संघ) ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक ऋण (परिवारों, व्यवसायों और सरकारों के उधार सहित) वर्ष 2024 में 315 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 3 गुना है।
      • हाल के संकटों (जैसे कोविड-19, खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतें, जलवायु परिवर्तन, आदि) तथा सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था (अर्थव्यवस्था की धीमी वृद्धि, बैंक ब्याज दरों में वृद्धि आदि) के संयोजन के कारण वैश्विक सार्वजनिक ऋण तेज़ी से बढ़ रहा है।
    • विकासशील देशों में सार्वजनिक ऋण पर शुद्ध ब्याज भुगतान वर्ष 2023 में 847 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021 की तुलना में 26% की वृद्धि को दर्शाता है।

Global Public Debt in 2024

  • ऋण वृद्धि में क्षेत्रीय असमानता:
    • यह 2023 में 29 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (कुल वैश्विक का 30%) तक पहुँच जाएगा, जो 2010 में 16% था।
    • 60% से अधिक ऋण-GDP अनुपात वाले अफ्रीकी देशों की संख्या 2013 और 2023 के बीच 6 से बढ़कर 27 हो गई है।
    • इसका मुख्य कारण अप्रत्याशित वैश्विक मुद्दे हैं, जो उनके विस्तार को प्रभावित कर रहे हैं तथा धीमी अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप घरेलू आय में कमी आई है।
    • विकासशील देशों में सार्वजनिक ऋण विकसित देशों की तुलना में दोगुनी दर से बढ़ रहा है।
    • अफ्रीका का ऋण बोझ उसकी अर्थव्यवस्था की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप ऋण-GDP अनुपात में वृद्धि हो रही है। 

ublic Debt Growth in Developing and Developed Countries

  • आय में ऋण सेवा का उच्च हिस्सा और जलवायु पहलों पर प्रभाव:
    • लगभग 50% विकासशील देश अब अपने सरकारी राजस्व का कम से कम 8% अपने ऋणों की चुकौती के लिये समर्पित कर रहे हैं, यह संख्या पिछले दस वर्षों में दोगुनी हो गई है।
    • वर्तमान में विकासशील देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा जलवायु प्रयासों (2.1%) की तुलना में ब्याज चुकाने (2.4%) पर खर्च कर रहे हैं।
      • जलवायु परिवर्तन से निपटने की उनकी क्षमता ऋण के कारण बाधित हो रही है। पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये वर्ष 2030 तक जलवायु निवेश को 6.9% तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance- ODA) में बदलाव:
    • ODA सरकारी सहायता है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों में आर्थिक विकास एवं कल्याण को बढ़ावा देना है।
    • विदेशी सहायता की प्रकृति में हाल ही में किये गए परिवर्तनों के कारण विकासशील देशों के लिये ऋण चुकाना अधिक कठिन हो गया है, जैसे:
      • समग्र सहायता में कमी: ODA में लगातार दो वर्षों से कमी हो रही है, जो वर्ष 2022 में घटकर 164 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगी।
      • ऋण वृद्धि और अनुदान में कमी: ऋण के रूप में दी जाने वाली सहायता का अनुपात बढ़ रहा है, जो वर्ष 2012 में 28% से बढ़कर वर्ष 2022 में 34% हो जाएगा। इससे विकासशील देशों पर ऋण का बोझ बढ़ सकता है।
      • मौजूदा ऋण से निपटने के लिये सहायता में कमी: ऋण पुनर्गठन और राहत जैसी ऋण प्रबंधन रणनीतियों के लिये आवंटित धनराशि में भारी कमी आई है, जो वर्ष 2012 में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2022 में केवल 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गई है। इससे भविष्य में उनकी ऋण तक पहुँच सीमित हो सकती है और उनके लिये अपने वर्तमान ऋण का प्रबंधन करना अधिक कठिन हो सकता है।

ऋण संकट को हल करने से संबंधित पहल क्या हैं?

  • हैविली इन्डेब्टेड पुअर कन्ट्रीज़ (Heavily Indebted Poor Countries- HIPC) पहल: 
    • विश्व बैंक और IMF की यह परियोजना विश्व के सबसे निर्धन देशों में ऋण संबंधी कठिनाइयों को संबोधित करती है। यह ऋण चुकाने के दौरान आवश्यक निवेश करने में उन देशों की कठिनाई को स्वीकार करती है। यह पहल ऋण राहत प्रदान करके संसाधनों को मुक्त करती है।
      • इससे इन देशों को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और निर्धनता उन्मूलन में निवेश करने का अवसर मिलेगा, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास एवं सामाजिक प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
  • ऋण प्रबंधन और वित्तीय विश्लेषण प्रणाली (Debt Management and Financial Analysis System- DMFAS) कार्यक्रम: 
    • UNCTAD का DMFAS कार्यक्रम विकासशील देशों को ज़िम्मेदारी से ऋण प्रबंधन में सहायता करता है। यह उनके ऋण प्राप्त करने के तरीकों को बेहतर बनाने के लिये प्रशिक्षण, दिशानिर्देश और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, जिसमें ऋण का रिकॉर्ड रखने, जोखिमों का आकलन करने तथा प्रभावी ढंग से ऋण का प्रबंधन करने हेतु आवश्यक उपकरण शामिल हैं।
      • यह कार्यक्रम सतत् ऋण प्रबंधन को बढ़ावा देता है ताकि ये देश भविष्य में बिना किसी समस्या के विकास के लिये ऋण प्राप्त कर सकें।
  • वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज सम्मेलन (Global Sovereign Debt Roundtable- GSDR):
    • इस गोलमेज सम्मेलन की सह-अध्यक्षता IMF, विश्व बैंक और G20 प्रेसीडेंसी द्वारा की जाती है, जिसका उद्देश्य ऋण चुनौतियों का व्यापक रूप से समाधान करना है। यह ऋणदाता देशों और लेनदारों को समायोजित करता है, जिसका उद्देश्य ऋण स्थिरता, ऋण पुनर्गठन चुनौतियों एवं संभावित समाधानों से संबंधित मुद्दों पर प्रमुख हितधारकों के बीच सामान्य समझ को बढ़ावा देना है।

वैश्विक ऋण संकट से निपटने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • समावेशी शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • विश्व बैंक द्वारा जारी 2022 की अंतर्राष्ट्रीय ऋण सांख्यिकी रिपोर्ट में सार्वजनिक ऋण से संबंधित चिंताजनक वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से निम्न आय वाले देशों के लिये, इसलिये निर्णय लेने संबंधी प्रक्रियाओं में इन देशों की भागीदारी बढ़ाना आवश्यक है।
    • सतत् विकास के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय इस तथ्य पर ज़ोर देता है कि ऋण संकट को नियंत्रित करने के लिये वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही महत्त्वपूर्ण है।
  • आकस्मिक वित्तपोषण:
    • IMF आपातकालीन वित्तीय सहायता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • "(ऋण संकट को टालने के तीन कदम  Three Steps to Avert a Debt Crisis)" शीर्षक वाली आपात स्थितियों के दौरान विकासशील देशों के भंडार को बढ़ाने के लिये विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) तक पहुँच बढ़ाने जैसे उपायों का प्रस्ताव किये गए the।
  • असंवहनीय ऋण का प्रबंधन (ऋण चुनौतियों का प्रबंधन):
    • ऋण पुनर्गठन के लिये मौजूदा ढाँचे, जैसे कि ऋण उपचार के लिये जी-20 सामान्य ढाँचे में सुधार किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, संकटग्रस्त देशों के लिये ऋण भुगतान को निलंबित करने हेतु स्वचालित प्रावधानों को शामिल करने से उन्हें अपनी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में सहायता करने हेतु आवश्यक लचीलापन मिलेगा।
  • सतत् वित्तपोषण को बढ़ाना:
    • बहुपक्षीय विकास बैंकों (Multilateral Development Banks- MDB) को सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण में प्रमुख भूमिका निभाने हेतु रूपांतरित किये जाने की आवश्यकता है।
    • स्वच्छ ऊर्जा जैसी सतत् परियोजनाओं हेतु निजी निवेश को आकर्षित करना भी आवश्यक है। सहायता और जलवायु वित्त के लिये मौजूदा प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करना, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिये, इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने हेतु आवश्यक है।

ऋण उपचार के लिये G20 सामान्य ढाँचा:

  • यह वर्ष 2020 में शुरु की गई एक पहल है, जिसे पेरिस क्लब के सहयोग से G20 द्वारा समर्थित किया गया है, ताकि अस्थिर ऋण बोझ का सामना कर रहे निम्न-आय वाले देशों (Low-Income Countries- LIC) को संरचनात्मक सहायता प्रदान की जा सके।
  • इस ढाँचे का उद्देश्य LIC के समक्ष आने वाली गंभीर ऋण चुनौतियों से निपटने के लिये एक समन्वित एवं व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करना है, जो कोविड-19 महामारी से और भी बदतर हो गई है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: बढ़ते वैश्विक ऋण संकट में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर विवेचना कीजिये तथा इस संकट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं द्वारा अपनाए जा सकने वाले संभावित उपायों का मूल्यांकन कीजिये।